पैगाम मुक्त

 

 

 

महर्षि मुक्त

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पैग़ाम--मुक्त

 

प्रणेता                     -महर्षि मुक्त

 

प्रकाशक -              महर्षि मुक्तानुभूति साहित्य प्रचारक समिति केन्द्र रायपुर ( पंजीयन क्रमांक २०९३/९४,

 रायपुर (सर्वाधिकार सुरक्षित प्रकाशकाधीन)

 

मुद्रक                      -किरण कम्प्युटर्स, अश्वनी नगर, महादेव घाट रोड, रायपुर महावीर ऑफसेट, गीता नगर,

 रायपुर फोन - 255140

 

संस्करण               - प्रथमावृत्ति

 

प्रति                        -१०००

 

दिनाँक                   -१२ अप्रैल २००० (राम नवमी)

 

पुस्तक मिलने का पता

 

-डॉ. सत्यानंद त्रिपाठी आनंद भवन 80/48 * C बंधवापारा, रायपुर (. प्र.) - ४९२००१

-दाऊ बद्री सिंह बघेल स्थान - तरकोरी, पो. कौशलपुर, (मोहरेंगा)

व्हाया. - बेरला, जि. - दुर्ग (. प्र)

 

प्रकाशन क्रमांक   -

 

मूल्य                      - ६०/- रु.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पैगाम--मुक्त

 

महर्षि मुक्त (1906 झंडापुर से 1976 लुधियाना) विरचित 'पैशाम--मुक्त' रुहानी शेर--गजल का अनूठा संग्रह है, जिसके माध्यम से सारे चराचर के लिए संदेश दिया गया है कि अहम्त्वेन प्रस्फुरित जो तत्व है, वही सर्व का अस्तित्व है और वहीं देव है, जो मन का साक्षित्व करता है।

 

अनुभूतियों से सराबोर इस साहित्य में आत्मा, मन, माया, फकीरी और भगवान के रहस्य आदि पर जितनी सहजता से प्रकाश डाला गया है. अन्यत्र कहीं सुनने-पढ़ने में नहीं आता।

 

वेद के ब्राह्मण भाग उपनिषद् के मंत्रों की शेर--गजल के माध्यम से प्रस्तुति, अपने आप में विचक्षण एवं मौलिकता लिए हुए है।

 

मसलन -

 

"नाहं मन्ये सुवेदेति नो वेदेति वेद च।

यो नस्तद्वेद तढ्वेद नो वेदेति वेद ।।

यस्यामतं तस्यमतं मतं यस्यनवेद

अविज्ञातम् विजानताम् विज्ञातम्ऽविजानताम् ।।"

 

"खुद को जाना, कुछ भी जाना,

जिसने भी जाना, वह भी जाना।

जाने जाने को जिसने जाना,

ये जानना राज बड़ा ही मुश्किल ।।"

 

महर्षि मुक्त एक आजाद दरवेश थे, उनके पास सिवाय कफन की एक लंगोटी के और कुछ भी परिग्रह नहीं था। इसी फकीरी के बलबूते उन्होंने खुदा की भी खबर ली क्योंकि नंगा (फकीर) खुदा से बड़ा होता है-

 

'खुदा के सर पे कमबख्ती किधर से दौड़कर आई।

मोहताजी के चक्कर में, कभी आता, कभी जाता ।।"

 

"जीव कल्पयते पूर्वं ततो भावान् पृथक्विधान "

 

इस विकल्प के बाद ही खुदा मोहताज (दीन-हीन) हो गया। तभी तो -

 

"जो है सरताज का आलम, नचाती चाह अल्लाह को।" जबकि -

 

"बौफ खाते कमर शमशो सितारे टिक नहीं सकते

 मगर सामने पानी पत्थर के झुकाती चाह अल्लाह को "

"खामोश का खजाना, खामोश ढूँढता है।

कदमों तले है दौलत, दौलत को ढूँढता है ।।"

 

लेकिन ऐसी कमबख्ती का आना भी भला है। यदि ऐसा होता तो -

 

"मुबारक हो ये कमबख्ती, अगर आती अल्लाह में।

देखता कौन, कब, किसको, दिखाता कौन अल्लाहे "

 

खुदा को वाद-विवाद का विषय बनाकर लड़ने वालों के कारण ही खुदा बदनाम हुआ है, ऐसे उपासकों के चलते खुदा लांछित हुआ है।

 

इस पर कहते हैं -

 

"खुदा के बंदो को देख करके, खुदा से मुनकिर हुई है दुनियाँ।

जो ऐसे बंदे हैं जिस खुदा के, वो कोई अच्छा खुदा नहीं ।।"

 

महर्षि मुक्त उर्दू, पर्शियन, संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे, मूल पाण्डुलिपि नहीं मिलने के कारण जैसा भी मिला प्रकाशित किया जा रहा है. वैसे हाजी मोहम्मद आफाक साहब (गाजियाबाद वाले) जैसे विद्वान के द्वारा इसका संशोधन कराया गया है, फिर भी कहीं-कहीं यदि भूल रह गई हो तो उसके लिये समिति क्षमा चाहती है। समिति हाजी मोहम्मद आफाक साहब का हृदय से धन्यवाद ज्ञापन करती है।

 

सेवक द्वारा जो भी कार्य होता है उसकी पृष्ठभूमि में सेव्य का अनुग्रह रहता है इसी तरह समिति के इस गिलहरी प्रयास की पृष्ठ भूमि में भी उन्हीं अवधूत महापुरुष का आशीर्वाद एवं कृपा ही है।

 

इस पुस्तक में शेरो गजल के माध्यम से उस देश की खबर ली गई है जहाँ जाकर देश खतम हो जाता है।

 

पुस्तक प्रकाशन में पं. रामलालजी शुक्ल, दाऊ गोकुल प्रसाद बन्छोर एवं ठाकुर बद्री सिंह बघेल मालगुजार के सहयोग पर समिति इनका तहेदिल से शुक्रिया अदा करती है।

 

मस्ती में मस्त होकर मस्ती को लिख रहा हूँ।

मस्ती में मस्त पढ़ना दरिया नजर आएगा ।।

 

अलं

 

 

 

                                                                                                                                सही

                                                                                                                                (सत्यानंद)

रामनवमी                                                                                                              अध्यक्ष

92 - 8 - 2000                                                                                      महर्षि मुक्तानुभूति

साहित्य प्रचारक समिति

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पैग़ाम--मुक्त

(गजल-अनुक्रमणिका)

 

. मैं कौन हूँ कहाँ हूँ- पैग़ाम--मुक्त ("मैं”) 14

.ये दिल बरबाद होकर के.. 15

.रूहानी' दुनियाँ में रहकर. 16

. हक़ीक़ी' इश्क़ दरिया में. 17

. जिन मस्त ऑखों का ये इशारा. 18

.मुबारक बेज़बाँ मस्ती फ़क़ीरों. 19

.हक़ीक़त' का नज़ारा है. 20

.जो बेसहारा इस गुलचमन का.. 21

. मंज़िले मक़सूद' पे मंज़िल का.. 22

१०.खुदमस्त मस्तों की ये मस्त ऑखें.. 23

११.ढूँढ़ता दिल दर दर. 24

१२. मुरादे मर्ज' का दुनियाँ.. 25

१३.बेखुदी का दरिया उमड़ रहा.. 26

१४.हो गया हूँ मस्त... 27

१५.ऑख देखते ही ऑख.. 28

१६.ज़माने की थी जो ख्वाहिशातें. 29

१७. इस दिल की यकसुई' में. 31

१८.किया जो तर्क दुनियां का.. 32

१९.देखने वालों को देखता हूँ. 33

२०.महसूस हो रहा है जो सचमुच. 33

२१. याद की भी याद नहीं.. 34

२२. देख ले हर रौ' में तू खुद का नजारा. 35

२३.नहीं है शिकवा' कभी किसी से. 35

२४. जब सहारा गया तब सहारा मिला.. 36

२५. बक़ा' ये फनों जिंदगी रही.. 37

२६.खुदा की कमबख्ती.... 38

२७. मुवारक हो तेरा साक़ी.. 39

२८. फ़क़ीरी फ़ाक़ा किया है जिसने. 40

२९.सत्य का पैग़ाम सुनाने में. 41

३०. दिल कदा' --कदा है. 42

३१. गर सलामत रहे मयकदा.. 43

३२. चला था बेपता के लिये. 44

३३. दीदार' दिलरुबा का.. 44

३४. मैं अपने आप पे हूँ आशिक़.. 45

३५. मस्तों के जो इशारे समझेगा.. 46

३६. निज आतम की अनुभूति बिना.. 46

३७. हक़ीक़ी मस्ती में मस्त होगा.. 47

३८. रोकर पूछे हँसकर बोले. 48

३९. थे गुज़िरता जो भी हम. 50

४०. जो है सरताज का आलम. 51

४१. ना तो ज़िंदा रहा ना तो मुर्दा रहा.. 51

४२. लबरेज़' है ज़रखेज़ है. 53

४३. अफ़साना दुनियाँ तमाशा देखना.. 53

४४. आता नज़र ये गुलचमन. 54

४५. दीदार होती है हक़ीक़त. 54

४६. दिल मिला दिलवर. 55

४७. दाल' बिन देना कहाँ.. 56

४८. कहते हैं मुझको बेनिशाँ.. 57

४९. जो तेरी राह' में. 57

५०. मज़हबी क़ैदखाने से. 58

५१. ख़ामोश हो जाता है दिल. 59

५२. खुला बाज़ार मुक्ता का.. 59

५३. ख़ामोशी की दुनियाँ में ये दिल. 60

५४. उफ है ऐसी ज़िन्दगी.. 61

५५.दीवानों की बातों को.. 61

५६. ठिकाना सबका जिस जा पे. 62

५७. मैं हूँ दरिया एक सा.. 63

५८. पता था ये मर्ज ज़िन्दगी.. 63

५९. गर मैं होता तो खुदा होता.. 64

६०. खत्म हो जाती है गुरवत' 65

६१. मेरे सिवा कोई नहीं.. 66

६२. हो गया आनंद दुनियाँ को.. 67

६३. क्या क्या सहे हमने सितम' 67

६४. कोई तमन्ना ख्वाहिशातें. 68

६५. कुछ दिया कुछ लिया.. 69

६६. बता दे साक़िया.. 70

६७. बुज़दिली' के चक्कर में पड़कर. 70

६८. बरहना हूँ हक़ीक़त में. 71

६९. जो डर रहा है मुसीबत से. 72

७०. पी लिया गर जाम' तो.. 73

७१. हर रोज़ जनाज़ा होता है. 74

७२. दिल बेदिल हो जाता है पर. 76

७३. मैं हूँ सन्नाटा' मकाँ.. 77

७४. आज़ाद हूँ मैं हरदम. 78

७५. अरमान जिंदगी के.. 79

७६. मैं हूँ कौन क्या हूँ. 79

७७. ज़र' की मुझे दरकार नहीं.. 80

७८. जिस्मानी खुदी जिसमें नहीं.. 81

७९. ख़्वाहिरौं जब खत्म हुई. 82

८०. क़सम ख़ुदा की यार. 83

८१जिस पै ये दिल फिदा है. 83

८२. एक पहलू नाम दो.. 84

८३. किसी से नफरत कोई मुहब्बत. 85

८४. हक़ीक़त गर्चे "मैंही हूँ. 86

८५. हकीकत के परस्तों को.. 86

८६. पैग़ाम हक़ीक़त है. 87

८७. शमा' का मैं हूँ परवाना', 88

८८. इब्तिदा' नहीं इन्तिहा नहीं.. 88

८९. अलमस्त आज़ाद फ़क़ीरों को.. 89

९०. बेसाहिल' मस्ती की दरिया में. 90

९१. है छाई दिल पे ख़ामोशी.. 90

९२. दुनियाँ के जो मज़े हैं. 91

९३. मौज में बेफिकर रहना.. 92

९४. दम दम' दीदार हरसूं' 92

९५. यार दीवाने को पा.. 93

९६. दिल बेदिल हो जाता है. 94

९७. निजानन्द मस्ती में. 95

९८. मैं जैसा हूँ वैसा ही हूँ. 95

९९. हूँ जज़्ब ' जलवा.. 96

१००.पैग़ाम हक़ीक़त है. 97

१०१. है आती बेखुदी मस्ती.... 97

१०२. ये दिल है जिस पे आशिक़.. 98

१०३.हक़ीक़त जानना गरचे हो.. 99

१०४. मैं शमा हूँ तू है परवाना.. 99

पैगाम--मुक्: शे'. 104

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

. मैं कौन हूँ कहाँ हूँ- पैग़ाम--मुक्त ("मैं”)

मैं कौन हूँ कहाँ हूँ, मैं किसको क्या बताऊँ

मेरे सिवा कोई, मैं किसको क्या बताऊँ ।।

 

मेरी ही हुकूमत'[1] है, मेरी ही सकूनत[2] है।

मेरी ही हक़ीक़त है, मैं किसको क्या बताऊँ ।।

 

मैं जीव जब नहीं था, तो ब्रह्म हूँगा कैसे

अफसाना लगब[3] है सब, मैं किसको क्या बताऊँ ।।

 

बेहूदगी सरासर गर, कुछ कहूँ जबॉ से

शरमिन्दगी है चुप में, मैं किसको क्या बताऊँ ।।

 

जिस जा पे दिलकशी[4] हो, जिस जा पे खुदकशीं[5] हो।

उस जा पे जा जा[6] है, मैं किसको क्या बताऊँ ।।

 

जानता है ये मुतलक़[7]', ज़ाहिर[8] ज़हरे[9] फन'[10] है।

फ़नकार[11] हूँ अनोखा, मैं किसको क्या बताऊँ ।।

 

पैग़ाम 'मुक्ता' का यह, मस्तों का तजरबा है

इस दिल का भी तक़ाज़ा'[12], मैं किसको क्या बताऊँ ।।

 

.ये दिल बरबाद होकर के

 

ये दिल बरबाद होकर के दिले दिलदार होता है।

जो हो मोहताज मोहताजी से भी, वही जरदार'[13] होता है

 

मुनादी करते खादिम[14] की जो इस दुनियाँ के पर्दे पर।

मगर खुदमस्तों की खिदमत से ही, खिदमतगार होता है ।।

 

दुरंगी दुनियाँ के पहलू, बिगड़ना और बनना जो

खुशी ग़म में जो एक सॉ हो, वही ग़मख्वार होता है ।।

 

कभी करता है दोज़ख का, कभी करता बहिरतों का

जो करता तर्क दोनों का, करम किरदार[15] होता है ।।

 

अनेकों रागिनी रागें, हैं गाते साज़ बाजों पर

जो गाता बेजुबाँ होकर, वही गुलुकार होता है ।।

 

इश्क़ तालीम लेना गर, तो परवाने से जा पूछो

वजूदे ख़ाक[16] में मिलकर गुले गुलज़ार होता है ।।

 

हुनरमंद और हुनर कितने हैं आलम[17] में हद जिनकी

हक़ीक़ी फ़न में जो माहिर वही फ़नकार होता है ।।

 

फ़क़ीरों का यही नुस्खा 'मुक्त' का यह तजरबा है

समझना ना समझ होकर, जो बेघरवार होता है ।।

 

 

 

 

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.रूहानी' दुनियाँ में रहकर

 

रूहानी'[18] दुनियाँ में रहकर, आबाद हुआ आज़ाद हुआ

टल गया मुसीबत का ख़तरा, आबाद हुआ आज़ाद हुआ ।।

 

ख़्वाव खयाले ग़फ़लत[19] में, आने जाने का चक्कर था।

खुद की नज़रों से जब देखा, आबाद हुआ आज़ाद हुआ ।।

 

पा चुका हूँ जो कुछ पाना था मिल चुका हूँ जिससे मिलना था।

दरअसल नतीजा ये निकला, आबाद हुआ आज़ाद हुआ ।।

 

हूँ क़ज़ा क़ज़ाओं का क़ज़ा[20], बावजूद गुलरूबा हूँ गुलशन का।

दिलरुबा हूँ आलम के दिल का, आबाद हुआ आज़ाद हुआ ।।

 

मैकदा'[21] जाऊँ मय[22] पीने, सिजदा करूँ बुतख़ाने का

बेखुदी की मस्ती पीकर के, आबाद हुआ आज़ाद हुआ ।।

 

कहना है यही फ़कीरों का आज़ादी कोई मज़ाक नहीं

बरबाद बाद सब से 'मुक्ता', आबाद हुआ आज़ाद हुआ ।।

 

**

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

. हक़ीक़ी' इश्क़ दरिया में

 

 

हक़ीक़ी[23]' इश्क़ दरिया में लहराना मुबारक हो

नहीं कोई जुबाँ दुनियाँ में बतलाना मुबारक हो ।।

 

इश्क़ है क्या बला यारों जो परवाने से जा पूछो

राम्मों के रू रू आकर के, जल जाना मुबारक हो ।।

 

बिगड़ते बनते दो पुतले, आशिक़[24] और माशूक[25]

इश्क़ आतिश[26] में पड़ हस्ती[27]' पिघल जाना मुबारक हो ।।

 

वजूदे[28] दिल का कब तक है कि जब तक कुछ सहारा है।

सहारा तर्क कर देने से तब मिलता सहारा है ।।

 

मचलना दिल की आदत है याद में दिलरूबाई की

रोकना गैर मुमकिन है मचल जाना मुबारक हो ।।

 

ज़माने के हरएक दिल को, ख़ास पैग़ाम 'मुक्ता' का

हक़ीक़त पाना गर, कुछ भी कहलाना मुबारक हो ।।

 

**

 

 

 

 

. जिन मस्त ऑखों का ये इशारा

 

जिन मस्त ऑखों का ये इशारा, उन मस्त ऑखों को हम भी देखें।

जिस मस्त मस्ती में मुस्कुराती, उस मुस्कराहट को हम भी देखें ।।

 

तौक़े[29]' तमन्ना ये तर्क करके, हविस हुकूमत[30] से दूर रह कर

दरवेश[31] रहते हैं मस्त जिसमें, उस मस्तखाने को हम भी देखें ।।

 

ताज्जुब ये कि बेइन्तिहा'[32] पे, हदूदे ग़फ़लत का पड़ा जो पर्दा

 खुदा का खुद भी हर रौ[33] पे हाज़िर, पर्दा उठा करके हम भी देखें ।।

 

नमाज़ियों'[34] का क़लीसा[35] काबा, पुजारियों का जो बुतकदा है।

फ़क़ीरों की जो अनमोल दौलत, उस खानेदौलत को हम भी देखें ।।

 

कुर्बान होता है जिसपे आलम, खूबसूरती को है नाज़'[36] जिस पर

कश्मीर है जो हरएक दिल का, उस दिलरूबाई को हम भी देखें ।।

 

 

मस्ती शीरो मैकदा में, इरक माशूक़ आशिकों में।

जो जिस खज़ाने से निकलती मस्ती, उस कुल खज़ाने को हम भी देखें ।।

 

आसान इतना कि जो लाज़बाँ है, मुश्किल भी इतना कि हद जिसका।

दीदार[37] मस्तों की मेहर[38] से मुमकिन, उन 'मुक्त' मस्तों को हम भी देखें ।।

 

.मुबारक बेज़बाँ मस्ती फ़क़ीरों

 

मुबारक बेज़बाँ मस्ती फ़क़ीरों'[39] की इनायत[40] हो।

हुई काफूर'[41] सब हस्ती'[42], फक़ीरों की इनायत हो ।।

 

साक़ी है मैखाना पीने वाला पैमाना।

जिसमें होरा बेहोशी, फक़ीरों की इनायत हो ।।

 

बे-बुनियाद दुनियाँ का था खतरा ख्वाबे गफलत[43] का।

हक़ीकत में हूँ बुनियादी, फ़क़ीरों की इनायात हो ।।

 

मैं क्या था कौन हूँ खदशा[44], जो मुद्दत से खटकता था।

ताज्जुब कैसे कब निकला, फक़ीरों की इनायात हो ।।

 

कहाँ से ले कहाँ पटका डुबोया इश्क़ दरिया में।

भुलाया भूल भी जिसने, फ़क़ीरों की इनायत हो ।।

 

तज़रबा[45]' 'मुक्त' का यारों ही सचमुच में तज़रबा है।

तज़रबा उसको ही होता, फ़क़ीरों की इनायत हो ।।

 

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.हक़ीक़त' का नज़ारा है

 

हक़ीक़त'[46] का नज़ारा[47] है तो देखूँ कहाँ-कहाँ

जब खुद का पसारा'[48] है तो देखूँ कहाँ-कहाँ ।।

 

जज़्बा--दैरो हरम, बुतखाने मैकदा में

महबूब समाया है तो जाऊँ कहाँ-कहाँ ।।

 

पाने की तमन्ना से पर्दा-नसीं[49] को ढूँढ़ा

पाकर के भी पाया, तो पाऊँ कहाँ-कहाँ ।।

 

लवरेज़'[50] जो है लज्ज़त[51], दुनियाँ की लज़्ज़तों में

लाया कहीं से भी, तो लाऊँ कहाँ-कहाँ ।।

 

हक़्क़ानी हक़ीक़ी है और 'मुक्त' रागिनी है

तुम भी तो गाके देखो गाऊँ कहाँ-कहाँ ।।

 

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.जो बेसहारा इस गुलचमन का

 

जो बेसहारा इस गुलचमन का, उस बेसहारे को हम भी जानें।

जो नूरे हस्ती'[52] है बेकिनारा, उस बेकिनारे को हम भी जानें ।।

 

तरह-तरह की बेशुमार[53] कलियाँ, कभी सिकुड़ती कभी उघड़ती।

है मुस्कराती जिस गुलरूबा में, उस गुलरूबाई को हम भी जानें ।।

 

जो इश्क़ दिल है मिरले मजनूँ[54], तलाश करता है कूचे-कूचे।

मिटती है मिलते ही ख्वाहिशातें, माशूके लैला को हम भी जानें ।।

 

जो जानता है जहान[55]' सारा, जो देखता है हमेशा सबको

पहिचान जिसको भले बुरे की, पहिचान वाले को हम भी जानें ।।

 

रहता है सबमें होकर के सब कुछ, वेइब्तदा और वेइन्तिहा[56] है।

मसरूफ़[57] रहते हैं मस्त जिसमें, उस मस्त सूरत को हम भी जानें ।।

 

अनमोल 'मुक्ता' का ये खज़ाना, गर लूटना है मजे से लूटो।

हक़ीक़ी मस्तों की जो हक़ीक़त, ऐसो हक़ीक़त को हम भी जानें ।।

 

 

 

 

 

 

 

. मंज़िले मक़सूद' पे मंज़िल का

 

मंज़िले मक़सूद'[58] पे मंज़िल का निशाँ नाम नहीं।

खो गया जो दिल तो फिर उस दिल का दाल लाम नहीं ।।

 

नज़र से दूर महल मिला हमेशा के लिए

ज़मीं पे आसमाँ पे नहीं ज़ीना[59] नहीं बाम नहीं ।।

 

जिस्म छोड़ते ही जिस्म जो मिला वो बेपैदा

खूबसूरती है बेमिसाल जिसमें हाड़ नहीं चाम नहीं ।।

 

पीता हूँ दम दम[60] पे मगर जाके मैकदा में नहीं

हक़ीक़त में पूछिये तो अगर शीशा नहीं जाम'[61] नहीं ।।

 

फ़तेह[62] पाया जो यार मारके दुनियाँ फरजी[63]

शाहत'[64] मिली है बेमुल्के जहाँ सुबह नहीं शाम नहीं ।।

 

गौर से सुनके दोस्त तुम भी तज़र्वा तो करो

हर वक़्त कह रहा 'मुक्त' दूसरा पैग़ाम नहीं ।।

 

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१०.खुदमस्त मस्तों की ये मस्त ऑखें

खुदमस्त मस्तों की ये मस्त ऑखें,

उन मस्त ऑखों से ख़ुदा बचाये।

सरूरे वहरात'[65] का पिलाती प्याला,

पीकर बहकने से ख़ुदा बचाये ।।

 

हमेशा करती है तलाश उसको,

जो दम दम दिल ये तड़पता उसको।

बरबाद करती हैं देखते ही,

बरबाद होने से खुदा बचाये ।।

 

इशारा करती हैं जबकि उसको,

समझ में आता है इशारा उनका।

छुपा इशारे में बेइशारा,

ऐसे इशारे से ख़ुदा बचाये ।।

 

कोई फरिश्ता कहीं का भी हो,

मुक़ाबिले में जो आए कभी भी।

जनाजा निकला दिमाग़ो दिल का,

ऐसे जनाजे से खुदा बचाये ।।

 

ऑखें फ़क़ीरों की वहीं पे रहतीं,

जहां पे रहता है बेठिकाना।

उन बेठिकानों का बेठिकाना,

उन बेठिकानों से ख़ुदा बचाये ।।

 

आबाद होना है गरचे 'मुक्ता',

उन मस्त ऑखों की तरफ तो देखो।

निकलते जिनमें से मस्त शोले'[66],

उन मस्त शोलों से खुदा बचाये ।।

११.ढूँढ़ता दिल दर दर

 

ढूँढ़ता दिल दर दर,

वह दिलरुबा मैं ही तो हूँ।

गुलचमन गुल गुंचये[67]',

गुलरूबा मैं ही तो हूँ।।

 

जिसके डर से नाचते,

महताब[68] तारे आफ़ताब[69]

आसमाँ दर पर्द ये,

पर्दानशीं मैं ही तो हूँ।।

 

मैकदाओं और शीशों,

में मस्ती है धरी।

होती मस्ती मस्त जिससे,

मस्तीयाँ मैं ही तो हूँ ।।

 

चहचहाना बुलबुलों का,

मुस्कुराना बाग़ का

खूबसूरती हर गुलों की,

बाग़वाँ मैं ही तो हूँ।।

 

इल्म'[70] कितने हैं जो, दुनियाँ में जिनका इन्तिहा'[71]

उल्म इल्मों का महल, इल्मदाँ[72] मैं ही तो हूँ ।।

 

मैं हूँ, मैं हूँ, मैं ही हूँ, 'मुक्त' किससे कह रहा।

कहना सुनना सिर्फ अफ़सों'[73], कुछ भी हो मैं ही तो हूँ।।

१२. मुरादे मर्ज' का दुनियाँ

 

मुरादे मर्ज[74]' का दुनियाँ में मसीहा[75] कोई

हो गया आज़ाद तो फिर उसका नसीहा'[76] कोई ।।

 

ग़म खुशी कुछ नहीं चेहरे पे मायूसी भी नहीं

दिलवर की याद में कहीं जाने की तबियत कोई ।।

 

गुनाह बेगुनाह सभी मौत के मुँह में जो गये

इश्क़ में बेनींद के अब नींद भी आती कोई ।।

 

मुद्दतों के बाद में इस दिल को तसल्ली जो मिली

देखने सुनने की कभी और ज़रूरत कोई ।।

 

फर्जी हक़ीक़त का हक़ीक़त पे ये पर्दा जो पड़ा।

हक़ीक़त तो यही पर्द--पर्दानशी कोई ।।

 

'मुक्त' का इज़हार यही तुम भी तजुर्बा तो करो

मंज़िले मक़सूद पहुँचने पे दूसरा कोई ।।

 

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१३.बेखुदी का दरिया उमड़ रहा

 

बेखुदी का दरिया उमड़ रहा,

कब क्या हो जाये खुदा जाने।

जब डूब गया आलम'[77] सारा,

कब क्या हो जाये खुदा जाने ।।

 

झर रही है मस्त बादलों से,

मुतवातिर[78] मदमाती बूंदे

दिल तड़प रहा था चैन मिला,

कब क्या हो जाये खुदा जाने ।।

 

बाखुदी[79] का जंगल खाक'[80] हुआ,

ज़ालिम थे जानवर भाग गये।

मिल गई हुकूमत आज़ादी,

कब क्या हो जाये ख़ुदा जाने ।।

 

मैकदा जाकर जाम पीया,  सिजदा किया बुतखाने का।

फिर भी ये बेहोशी टपकी,  कब क्या हो जाये खुदा जाने ।।

 

खुद के घर में आबाद हुआ,  दुनियाँ का पर्दाफाश हुआ

हो गये अलविदा[81] ऑख-कान,  कब क्या हो जाये ख़ुदा जाने ।।

 

"मैं" फलॉ हूँ जुर्रत[82] है किसकी,  महफिल में जो कर सके बयाँ।

ये जुर्म है सरे आम'[83] 'मुक्ता'  कब क्या हो जाये खुदा जाने ।।

१४.हो गया हूँ मस्त

 

हो गया हूँ मस्त दुनियाँ को रिझाकर क्या करूँ।

जज़्बे'[84] जल्वा गर'[85] हूँ दीपक राग गाकर क्या करूँ ।।

 

दिल मिला दिलवर से जाकर खुदी बेखुदी से मिली।

हूँ जहाने हस्ती मैं, हस्ती मिटाकर क्या करूँ ।।

 

पैमाने पीकर के हर जा'[86] देखता हूँ मयकदा

मैं हूँ जब खुद का खुद मैकदा जाकर क्या करूँ ।।

 

इज़हार करते रात दिन इंजील वेद कुरों सभी

कुछ भी कहना शर्म है फिर मैं बताकर क्या करूँ ।।

 

पंडितों को है नमस्ते मौलवियों को है सलाम

दे चुका मुर्शद[87] को सर फिर सर झुकाकर क्या करूँ ।।

 

'मुक्त' का पैग़ाम आलम में हमेशा छा रहा

जा जा फ़रमान है तब फिर सुनाकर क्या करूँ ।।

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१५.ऑख देखते ही ऑख

 

ऑख देखते ही ऑख आँख देखते ही नहीं।

मंज़िले मक़सूद'[88] पहुँचकर नदी बहती ही नहीं ।।

 

ख़ुदा के माइने[89] हैं जो एक वही ख़ुद सबका

हक़ीक़त यही सचमुच में कोई बात सूझती ही नहीं ।।

 

हर वक़्त है फ़रमान'[90] इस दुनियाँ में तहीदस्तों"[91] का

 खुद का ही पसारा ही खुद पर लीक[92] टूटती ही नहीं ।।

 

जो देखना था देख लिया देखने वाला ही कौन

पर राज़ खोलने को भी ये ज़बाँ खुलती ही नहीं ।।

 

फूटती तक़दीर जब आता है 'मुक्त' महफ़िल में

फ़क़ीरों की इनयात बिना तक़दीर फूटती ही नहीं ।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

१६.ज़माने की थी जो ख्वाहिशातें

 

ज़माने की थी जो ख्वाहिशातें,

गई जहन्नुम'[93] में निजात[94] पाया।

तमन्ना'[95] बैठी ताबूत'[96] अंदर,

हुआ जो मातम[97] तो निजात पाया ।।

 

कभी किसी से कोई मुहव्वत,

कभी किसी से कोई नफरत

कोई है मेरा मैं किसी का,

दुनियाँ दुरंगी से निजात पाया ।।

 

कभी तो आना कभी तो जाना,

था मुद्दतों का खयाले अफ़सॉ।

हक़ीक़त में ही जो मैंने देखा,

ये ख़्वाब खयालों से निजात पाया ।।

 

कभी तो मौला[98] कभी तो बंदा'[99],

कभी तो मादा कभी परिन्दा[100]

बिगड़ते बनते खुद में हमेशा,

बिगड़ते बनने से निजात पाया ।।

 

पलक उठाने से है ये क़ायम,

पलक गिराने से है क़यामत।

मुबारक हो ये खुद का करिश्मा'[101],

क़ायम क़यामत से निजात पाया ।।

 

मखलूके[102] हस्ती जो कुछ भी मैं हूँ,

ख़ुदा परस्तों की हस्ती मैं हूँ।

खुद की जो हस्ती है खुदा परस्ती,

ग़फलत परस्ती से निजात पाया ।।

 

जो कुछ भी कहना बेखौफ हो,

करके तख़्ते सूली मंसूर मानिंद

की है इनायत फ़क़ीरों ने जब,

तब से ही 'मुक्ता' निजात पाया ।।

 

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१७. इस दिल की यकसुई' में

 

इस दिल की यकसुई[103]' में दीदारे दिलरूबा[104] है।

क्या खूब गुलचमन का हर जा'[105] में गुलरूबा है ।।

 

मिलता साक्रिया'[106] जब करता तलाश कूए[107]

पैमाना[108] पकड़ते ही हरराय में मैकदा है ।।

 

महबूब[109]' जुस्तजू[110] में होता है क्यों परेशॉ

ख़ुद को ही गौर कर तू क़तरा क़तरा[111] ही ख़ुदा है ।।

 

जिस्मानी[112] ज़िंदगी में दुश्वार[113]" उसका मिलना

मिलता है जो भी अफसॉ[114] मिलता जुदा है ।।

 

ताबूते'[115] तहखाने[116] से भी, 'मुक्ता' की यह हक़ीक़त

निकलेगी हर ज़बाँ से नुस्खा ये यकींदों[117]" है ।।

 

 

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१८.किया जो तर्क दुनियां का

 

किया जो तर्क दुनियां का, मुक़द्दर हो तो ऐसा हो।

मौत से भी नहीं डरता, मुक़द्दर हो तो ऐसा हो ।।

 

निगाहें जिसकी महबूबी[118]', उस्मानी[119] जिस्मानी।

मकीं[120] खानाबदोशों का, मुक़द्दर हो तो ऐसा हो ।।

 

उमड़ती बेखुदी मस्ती की, लहरों में जो लहराता

दिवाना है जो दिलवर का, मुक़द्दर हो तो ऐसा हो ।।

 

चुका जल इश्क़ शोले में, मिसाले जैसा परवाना

गई जन्नत जहन्नुम में, मुक़द्दर हो तो ऐसा हो ।।

 

रहती याद रोजे'[121] की, रहती है नमाज़ों की

यादगारी है यादों की, मुक़द्दर हो तो ऐसा हो ।।

 

जाता मैकदा अंदर, ख़्वाहिश बुतकदाओं की।

मुसीबत टल गई सारी, मुक़द्दर हो तो ऐसा हो ।।

 

मतलब बेगुनाहों से, नहीं मलतब गुनाहों से

हुआ जो 'मुक्त' दोनों से, मुक़द्दर हो तो ऐसा हो ।।

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१९.देखने वालों को देखता हूँ

 

देखने वालों को देखता हूँ देखने के लिए।

करता हूँ मौत इंतज़ार करने के लिए ।।

 

सचमुच में तअज्जुब तो यही ख्याल में दुनियाँ है छुपी।

खुद पे नज़र डालता हूँ खयाल खातमा के लिए ।।

 

भूल थी कैसी ये बड़ी हमको खुदा से मिलना।

तर्क कर दिया जो भूल, भूल भूलने के लिए ।।

 

स्वाँग वाले के लिए स्वाँग बनाया था जो मैं।

पाकर के बैठ गया हमेशा ही बैठने के लिए ।।

 

खोलते थे ऑख कान दोनों इस्म' जिस्मों से।

खेलने वाला हूँ खेल खेल खेलने के लिए ।।

 

फ़क़ीरों का तजर्दा है 'मुक्त' मस्त की निगाहों में।

मक़सूद है बेखुदी को दोस्त क़ब्र भेजने के लिए ।।

 

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२०.महसूस हो रहा है जो सचमुच

 

महसूस' हो रहा है जो सचमुच में बुतकदा[122]

 इस बुतकदे में जा जा[123] लबरेज़' दिलकदा[124] ।।

 

पर्दा नहीं ज़रा से भी पर्दानशीं कहाँ

जाहीर ज़हर सबको है फिर निहाँ[125] कहाँ ।।

 

जो भी निशान उसके ही तो बेनिहाँ कहाँ

दरअसल होकर मकी फिर बेमकाँ कहाँ ।।

 

ये राज़ मुबारक हो हक़ीक़त का जो कदा

कहता है 'मुक्त' ग़ौर से लेता है अलविदा" ।।

 

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२१. याद की भी याद नहीं

 

याद की भी याद नहीं किसकी याद कौन करे

दूसरा जब है ही नहीं तब याद किसकी कौन करे ।।

 

मालूम नहीं था मुझे कि मर्ज ये आयेगा कभी

मज़े मसीहा' नहीं तब याद किसकी कौन करे ।।

 

दिल दिमाग़ दोनों ही मुक़द्दर' से जहन्नुम में गये

याद वाला ही नहीं याद किसकी कौन करे ।।

 

जिसमें दरो' दीवार नहीं ज़ीना नहीं बाम नहीं

रहता हूँ बेहद्दे' महल याद किसकी कौन करे ।।

 

हर गुल गुलरान में मैं गुजरता हूँ मिसले भँवर

फुर्सत को भी फुर्सत नहीं तब याद किसकी कौन करे ।।

 

'मुक्त' मस्तों की निगाहों का तीर दिल को लगा।

होश आता ही नहीं याद किसकी कौन करे ।।

 

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२२. देख ले हर रौ' में तू खुद का नजारा

 

देख ले हर रौ'[126] में तू खुद का नजारा वाह-वाह

देखते ही ख़्वाबे दुनियाँ खुद फ़ना[127] हो जायेगी ।।

 

मस्त होना चाहता तू हर तरह बर्बाद हो

दुनियाँ दुरंगी तर्क' कर सब फिक्र से आज़ाद हो ।।

 

ज़िंदगी का है मज़ा बेफ़िक्र हो जाना ही दोस्त

खुद परस्ती क्या बेफ़िक्री मस्त रहना जिंदगी ।।

 

ये दुनियाँ सच में अफ़साना बिगड़ती बनती रोज़ाना।

हमेशा मारती ताना, दोस्ती कर दोस्ती कर ।।

 

तमन्ना से बरी' होना हरूफ़े 'मुक्त' के मानिंद

तमाशा देख फिर अपना क़यामत आने वाली है ।।

 

२३.नहीं है शिकवा' कभी किसी से

 

नहीं है शिकवा' कभी किसी से, जो एक दरिया के बलवले हैं।

 गिला करूँ मैं क्या और किससे, जो एक दरिया के चलवले हैं ।।

 

भला कहूँ तो शरमिन्दगी है, बुरा कहूँ तो बेहूदगी है।

हदूदी[128]' नजरों से मुड़ के देखा, जो एक दरिया के वलवले हैं ।।

 

जमी आसमों चाँद सूरज, आबोहवा' कोई सितारे

रखुद में ही खुद का ही ये पसारा, जो एक दरिया के बलवले हैं ।।

 

क्या खूबियाँ हैं इन सूरतों में, कभी तो ज़ाहिर कभी तो बातिन[129]'

तरह-तरह के नमूने जिनके, जो एक दरिया के वलवले हैं ।।

 

बेइन्तिहा यह अपार दरिया, कोई भी करती कोई भी साहिल'

 मानिंद 'मुक्ता' यह हजारों जिसमें, जो एक दरिया के वलवले हैं ।।

 

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२४. जब सहारा गया तब सहारा मिला

 

जब सहारा गया तब सहारा मिला, ज़िंदा रहने का कोई सहारा नहीं

सच में जीना उसी का जगत में सही, जिसके जीने का कोई सहारा नहीं ।।

 

ये दिल ढूँढता था जिसे दर दर, कभी क़ाज़ी मुल्ला, बरहमन बना

पर मिला कैसा जैसा नहीं कुछ मिला, बिन मिले कोई होता गुजारा नहीं ।।

 

जिसे मानता था हक़ीक़त यही, था वो फर्जी वो फ़ानी फ़रेबियाँ'

लेकिन माना था जिसने वह पर्दानशीं, दरअसल कैसा पर्दा उघारा नहीं ।।

 

क़ाबिले ज़िक्र रूपोरा कहना है क्या, जो कि खामोश इतना है बेइन्तिहा

जो कि करता है दीदार सबका वहीं, कर लो दीदार दूजा दीदारा'[130] नहीं ।।

 

तफसीले महबूब तामील कर, 'मुक्त' महफिल की बातें समझ बूझकर

तर्क कर दो तमन्ना तसव्वुर सभी, और कहूँ क्या मैं कुछ भी इशारा नहीं ।।

 

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२५. बक़ा' ये फनों जिंदगी रही

 

बक़ा'[131] ये फनों जिंदगी रही,

ज़िंदगी जो मिली वह सदा के लिये।

जिसे पाकर दिवाना बना घूमता,

जग में फेरी हमेशा लगाता हूँ मैं ।।

 

कहाँ था वो क्या था, कहाँ मैं हूँ, क्या,

तसव्वुर था जन्नात मारा गया।

कैसी खब्तुलहवासी[132] ये सर पे चढ़ी,

बेशरम हो करके क़हक़हाता हूँ मैं ।।

 

गुल चमन कैसा कैसा अनोखा खिला,

गुंचे दामन की क्या क्या यह हैं खूबियाँ।

यह गमकता है क्या गुलराने' गुलरूबा,

मिसले हो बुलबुलें चहचहाता हूँ मैं ।।

 

अंदरे आसमाँ मस्त दरिया भरा,

जो कि बेइव्तदा[133]' और बेइन्तहा।

ब्रह्मा विष्णु शिवादिक यह हैं बुलबुलें,

जिसमें हर वक्त गोता लगाता हूँ मैं ।।

 

यक़ीनन अगर मुझसे पूछो सही,

ज़िंदा रहने का मक़सद मेहरबाँ यहीं।

दिल आलम को पैग़ाम देता रहूँ,

इसलिये मस्त बातें सुनाता हूँ मैं ।।

 

जो फ़क़ीरों की सुहवत' कभी किया,

उनके कदमों पे कुर्यां कभी हुआ।

भला समझेगा क्या 'मुक्त' अल्फाज' को,

जा जा साज़" में गीत गाता हूँ मैं ।।

 

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 २६.खुदा की कमबख्ती

 

खामोश का खजाना खामोश ढूँढता है

क़दमों तले है दौलत दौलत को ढूँढता है ।।

 

कमवख्ती'[134] कमवख्त[135] ने आकर किधर से घेरा

मखलूके[136] खुदा होकर खुदा को ढूँढता है ।।

 

जिसकी रोशनी से आलम है सारा रोशन

रोशन का भी रोशन है रोशन को ढूँढता है ।।

 

महताब[137]' आफ़ताबे[138] तारे हैं जगमगाते

इनका भी जो सहारे सहारे को ढूँढता है ।।

 

सबकी है जो अक़ीदत[139] सबकी है जो तरीक़त[140]'

हक़ की भी जो हक़ीक़त' हक़ीक़त को ढूँढता है ।।

 

बंधन मोक्ष जिसमें मानिंद ख़्वाब के हैं

जो 'मुक्त' है हमेशा मुक्ति को ढूँढता है ।।

 

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२७. मुवारक हो तेरा साक़ी

 

मुवारक हो तेरा साक़ी रहे आबाद मैखाना

जिधर जाऊँ जहाँ पर हो दिले भरपूर पैमाना ।।

 

पिलाया जाम'[141] यह तूने क़ाबिल दीनों दुनियाँ के

देखता हूँ बेदिल होकर नज़र आता है याराना ।।

 

अमूमन[142] कहते हैं पीने से जाती है वेहोशी

झुका सर रही मस्ती हुआ गायब वेहोशाना ।।

 

क़यामत जब कभी होती ज़र्मी आसमाँ होता

क़यामत खुद खुद 'मैं' ही रहा बाक़ी जो अफ़साना ।।

 

नहीं मतलब है उस मय से जो पीते दिल बिगड़ जाए।

मेहरवाँ गर मिला साक़ी जो पीते ही बदल जाना ।।

 

गुज़िरता'[143] कौन था, क्या हूँ आइंदा'[144] क्या रहूँगा मैं।

उलझनें हल हुई सारी यही दुनियाँ का मुरझाना ।।

 

पीया एक बार मस्ती का है मैंने वहदते[145]' प्याला

हमेशा लहरों में गोता लगाता रहता मस्ताना ।।

 

बचाये इंसा अल्लाहे'[146] 'मुक्त' साक़ी की नज़रों से

नज़र पड़ती है जब जिस पर वही हो जाता नज़राना ।।

 

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२८. फ़क़ीरी फ़ाक़ा किया है जिसने

 

हक़ीक़ी

 

फ़क़ीरी फ़ाक़ा किया है जिसने,

राक्ले इलाही'[147] को हो मुवारक।

हो करके वरवाद वजूद'[148] अपना,

मिटाया जिसने हो उसे मुवारक ।।

 

एतराज[149] दोज़ख[150] बहिरते'[151] ख्वाहिश,

कहाँ नहीं 'मैं' यह यक़ीन जिसको।

खुद में ही खुद को देखता जो,

खुदमस्ती-मस्तों को हो मुवारक ।।

 

खुद भी सहारा है नहीं किसी का,

खुद का सहारा भी नहीं है कोई।

हमेशा रहता जो वेसहारा,

उस वेसहारे को हो मुवारक ।।

 

ज़मीं पे रहता आसमाँ पे,

रहता जन्नत ही जहन्नुम

रहता है महले मखलूक़ में जो,

सलाम सिजदा हो उसे मुवारक ।।

 

फ़िदा[152] है जिस पे यह सारा आलम,

तलाश करता है कूए-कूए'[153]

वही हक़ीक़त है नज़र में जिसके,

इस हक़ परस्ती[154] को हो मुवारक ।।

 

कभी आती है याद अपनी,

कभी आती है दूसरों की।

है याद यादों की यादगारी,

उस यादगारी को हो मुवारक

 

खानाबदोशों[155] ख़ुदा बचाये,

भरी मुहव्वत से निगाहें जिसकी।

हुआ निगाहों से निहाल 'मुक्ता',

ऐसी निगाहों को हो मुवारक ।।

 २९.सत्य का पैग़ाम सुनाने में

 

सत्य का पैग़ाम सुनाने में कोई साथ नहीं

नारा--हक़ीक़त का लगाने में कोई साथ नहीं ।।

 

बुज़दिल[156]' दुनियाँ में घूम घूम के कोशिश भी किया।

हर दिल में शम्म [157]' 'मैं' के जलाने में कोई साथ नहीं ।।

 

जहाँ की जान वही, मंज़िले मक़सूद वहीं

खुदा का खुद भी बताने में कोई साथ नहीं ।।

 

क़ाबिले तारीफ़ यह कैसी बेवकूफ़ी है

मगर खुद को बेवकूफ़ बनाने में कोई साथ नहीं ।।

 

तअज़्ज़ुव यह उसे कमबख़्ती'[158] किधर से सूझी

हटाना खुद को पड़ेगा यह हटाने में कोई साथ नहीं ।।

 

रहता है 'मुक्त' मौज में दुनियाँ से बेधड़क होकर

जो मौत की भी मौत भगाने में कोई साथ नहीं ।।

 

* *

 

 

 ३०. दिल कदा' --कदा है

 

दिल कदा[159]' --कदा है यह सारा जहाँ,

जो यक़ीनन है यह जा जा बुतकदा

जिसने देखा है हरसू[160] में नूरेज़हाँ[161],

उसे हर वक़्त हर जा पे है मैकदा ।।

 

था गुज़िरता[162] वही आज[163] भी सब दरअसल,

और आगे भी[164] उसके सिवा कुछ नहीं

पर इनायत फ़क़ीरों की हो जब कभी,

फिर ज़रूरत जाने की है बुतकदा ।।

 

देख हिन्दू मुसलिम की खूंरेज़ियाँ[165]',

तरस आता है मज़हब के हैं जानवर

लेकिन जिस वक़्त दोनों जुदा हो गये,

तो काबा क़लीसा नहीं बुतकदा ।।

 

खुद मायने 'मैं' हूँ सब का सभी,

जो अलिफ़ एक मुतलक़ दूजा कोई

बता गिरज़ा काबा क़लीसा कहाँ,

आना जाना कहाँ और कहाँ बुतकदा ।।

 

क़ाबिले ग़ौर एतबार कर 'मुक्त' का,

गरचे दुनियाँ में सदियों से बेज़ार[166] है।

दिलकदा मैं हूँ और मैकदा मैं हूँ जो,

सिजदा मैं हूँ मैं हूँ सभी बुतकदा ।।

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३१. गर सलामत रहे मयकदा

 

गर सलामत रहे मयकदा साक्रिया

तो जगह जगह बुतकदा साक्रिया ।।

 

पीते पीते बेहोशी बेहोशी गई

क़तरा क़तरा है लवरेज' साक्रिया ।।

 

ग़म खुशी दोनों यकसों जहन्नुम गए

झूमता हूँ नशे में सदा साक्रिया ।।

 

जीने मरने की कोई तमन्ना नहीं

हो गया ख़त्म क़ानून साक्रिया ।।

 

गुलरूबा गुँचे गुलरान हूँ मैं बाग़वाँ

चहचहाता हूँ मैं बुलबुले साक्रिया ।।

 

ज़िंदगी में जिसने तजर्वा किया

'मुक्त' क्या होगा दुनियों से वो साक्रिया ।।

 

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३२. चला था बेपता के लिये

 

चला था बेपता के लिये खुद को बेपता पाया

कहाँ पे किस तरह है निशाँ यह भी बता पाया ।।

 

तक़रीर[167]' कुराँ वेदों की सब कर थके हाफ़िज'[168] मुल्लां³

करवटें बदली तो मैं हर रों में बेपता पाया ।।

 

कोशिश तो यही थी कभी पाने पे मैं जाऊँगा बदल

पाना पाना ख़्वाब था मैं जैसा था वैसा पाया ।।

 

जिस खुदा के वासते वेताब है सारी दुनियाँ

अलिफ़[169] पे गौर जब किया तब खुद में ही खुदा पाया ।।

 

मंज़िले मक़सूद पे ख़्वाहिश थी पहुँचने की बड़ी

मंज़िले मक़सूद को हर जा में जा जा'[170] पाया ।।

 

'मुक्त' का पैग़ाम मुक्त को ही मुक्त करता है।

हक़ीक़त में पूछिये अगर पाया को भी नहीं पाया ।।

३३. दीदार' दिलरुबा का

 

दीदार' दिलरुबा का दीवारे कहकहा'[171] है।

जिसने उधर को देखा वो फिर इधर कहाँ है ।।

 

हक़ीक़त में दिल जो बेदिल नामो निशॉ कोई।

खामोश बे खामोशी दोनों भी यहाँ है यहाँ है ।।

 

नेकी बदी बिल्कुल ख़्वाब ख़्याल'[172] समझो।

कुछ भी दीनों दुनियाँ धरती आसमाँ है ।।

 

कहना है कुछ बेशर्मी सुनना है सिर्फ अफ़सों।

सबमें ऊँचा है सबको लेकिन वो लाज़बाँ [173]है ।।

 

है चरमदीद जो चरम' हमेशा हैरौँ।

 'मुक्ता' मकीं जहाँ में फिर भी वो ला मकाँ है।

 

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३४. मैं अपने आप पे हूँ आशिक़

 

मैं अपने आप पे हूँ आशिक़, कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता।

मैं आशिक़ क्या माशूक़ भी हूँ, कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता।।

 

इश्क़ लबालब दरिया में, गरक़ाब'[174] हुआ आलम सारा

कुछ भी रहा नामो निशॉ, कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता ।।

 

द्वैताद्वैत के दलदल में, फँसना है बिल्कुल नादानी।

रहना अलमस्त' फ़क़ीरी में, कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता ।।

 

ग़मी खुशी काफूर' हुई, प्याला पीकर खुद मस्ती का।

फुर्सत भी नहीं कुछ कहने की, कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता ।।

 

ऑख कान लाचार हुए, और दिल भी चकनाचूर हुआ।

क्या नशा क़ाबिले दिल पसंद, कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता ।।

 

है सच में मज़ा इसे पीने का, जब अर्श ज़र्मी का पता हो।

जिसे पीकर 'मुक्ता' मुक्त हुआ, कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता ।।

 

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३५. मस्तों के जो इशारे समझेगा

 

मस्तों के जो इशारे समझेगा मस्त होगा।

 उनकी कृपा से उनको समझेगा मस्त होगा ।।

 

मस्ती में मस्त खेलें हँस हँस के तूफान झेलें।

मस्ताने दीवाने को जानेगा मस्त होगा ।।

 

अज़गैबी'[175] बात बोलैं दुनियों की पोल खोलें

क़दमों पे हमेशा जो लोटेगा मस्त होगा ।।

 

कहता ज़माना कुछ भी दिन रात जल रहा है।

मस्ती हो फिर मुबारक झूमेगा मस्त होगा ।।

 

'मुक्ता' की मुक्त वाणी खोकर वजूद' कहती

सब कुछ मिटाके आपा[176] आयेगा मस्त होगा ।।

 

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३६. निज आतम की अनुभूति बिना

 

निज आतम की अनुभूति बिना, निज आत्मानंद को क्या जाने

अनब्याही किताबें पढ़ करके, ससुराल की बातें क्या जाने ।।

 

सब वेद पुरान कुरान पढ़ा, जीवन सारा वेदान्त पढ़ा

पर पढ़ने वाले आलिम'[177] को, मुर्शद[178] की मेहर बिन क्या जाने ।।

 

अस्तीति चराचर में व्यापक, वह 'मैं' हूँ 'मैं' हूँ बोल रहा

जो श्रुति की टेर कभी सुनी, अभिमानी मुरख क्या जाने ।।

 

हो जा कुर्बान फ़क़ीरों के, क़दमों पे झुका दे सर अपना

फिर देख नज़ारा ख़ुद का ही, गर देखा नहीं तो क्या जाने ।।

 

भगवान आत्मा गुलशन में, भगवान 'मुक्त' ही गूँज रहा

ज़रा ज़र्रा' 'मैं' हूँ 'मैं' हूँ जिसने सुना वो क्या जाने ।।

 

 

 

 

 

३७. हक़ीक़ी मस्ती में मस्त होगा

 

हक़ीक़ी मस्ती में मस्त होगा,

इशारे मस्तों के वो ही जाने

वजूद खोया है जिसने अपना,

नज़ारे मस्तों के वो ही जाने ।।

 

नहीं नसीहा' कोई नसीहत,

मज़हबी झगड़ों से जो अलहदा

 फ़क़ीरी हासिल जिसे मुवारक,

खानाबदोशों को वो ही जाने ।।

 

दीवाना खुद पे लहराना खुद पे,

रामाँ भी खुद ही परवाना खुद पे

छलक पड़ी है ख़ुदाई मस्ती,

ख़ुदा परस्तो को वो ही जाने ।।

 

मिली मुक़द्दर से है बेशर्मी,

कभी तो रोना कभी तो हँसना

पिया है कैसी अनोखी प्याला,

प्याला परस्तों को वो ही जाने ।।

 

दिमाग़ो दिल सब गए जहन्नुम,

मझधार दरिया में डूबा आलम

गले पिन्हाए जो हार 'मुक्ता',

मस्ताना मुक्ता को वो ही जाने ।।

 

३८. रोकर पूछे हँसकर बोले

 

रोकर पूछे हँसकर बोले,

टुकड़ों की मोहताज' रे।

भाई रहना सावधान,

यह दुनियाँ धोखेबाज़ रे ।।

 

बालू की दीवाल उठायै,

आसमान में बाग़ लगावै।

देख देख के जिया ललचावै,

कभी तो रोवै कभी तो गावै ।।

 

खुद का ख़्याल करें नहिं कबहूँ,

जो सबका सिरताज रे।

भाई रहना सावधान,

यह दुनियाँ धोखेबाज़ रे ॥१॥

 

आवागमन का झूला झूलै,

अपने "मैं" को हमेशा भूलै

दुख को सुख, सुख को दुख माने,

संत शरण को नहीं पहचानै ।।

 

खुद का ख़्याल करें नहिं कबहूँ,

जो सबका सिरताज रे

भाई रहना सावधान,

यह दुनियाँ धोखेबाज़ रे ॥२॥

 

दुनियाँ दीखै भोली भाली,

सच में पूछो नागिन काली।

जग जाने पर ख़्वाब ख्याली,

सूझै सावन ही हरियाली ।।

 

खुद का ख्याल करें नहिं कबहूँ,

जो सबका सिरताज रे।

भाई रहना सावधान,

यह दुनियाँ धोखेबाज़ रे

 

दारा सुत मतलब के साथी,

चाहै भरि भरि लावैं थाती।

रे मन चेत मुसाफिर मीता,

समझ बूझ ले आतम नीता ।।

 

खुद का ख्याल करै नहिं कबहूँ,

जो सबका सिरताज रे।

भाई रहना सावधान,

यह दुनियाँ धोखेबाज़ रे ॥४॥

 

खुद ग़रज़ी से प्यार जो करती,

बाहर भीतर चलती फिरती।

सतगुरू 'मुक्त' बिना यह ठगनी,

अद्भूत नाच नचावै नटनी ।।

 

खुद का ख्याल करै नहिं कबहूँ,

जो सबका सिरताज रे।

भाई रहना सावधान,

यह दुनियाँ धोखेबाज़ रे ॥५॥

 

**

 

 

३९. थे गुज़िरता जो भी हम

 

थे गुज़िरता जो भी हम, वह आज भी हम हो गये।

थे जहाँ पर जिस तरह, वह आज भी हम हो गये

 

ग़फ़लत का ख़्वाब ख़्याल था, संसार कहते हैं जिसे

खुद में था खुद का नज़ारा, आज सब हम हो गये ।।

 

ग़म खुशी थे ज़िंदगी, गाड़ी के पहिये एक सॉ

हो गये महरूम सबसे, जा जा हम हो गये ।।

 

जिस मज़े को ढूँढते, मायूस' की दुनियों में हम

अब जो नफ़रत हमने की, वह खुद खुद हम हो गये ।।

 

गुलचमन कितना अनोखा, चहचहाती बुलबुलें

खुशबू ये हर गुल गुलसितॉ बाग़वाँ हम हो गये ।।

 

गूँजती आलम में यह, दरवेश 'मुक्ता' की सदा'

हम जो थे तुम हो गये, तुम जो थे हम हो गये ।।

 

**

 

 

 

 

 

 

 ४०. जो है सरताज का आलम

 

जो है सरताज का आलम, नचाती चाह अल्लाह को

करिरमा क्या-क्या दुनियॉ का, दिखाती चाह अल्लाह को ।।

 

तअज्जुब यह कि कुल'[179] सबमें, बना जुज़'[180] कैसी कमबखती।

गले में हार माया का, पिन्हाती चाह अल्लाह को ।।

 

शहनशाहों के मख़लूके[181] फँसा, खुद कर्म कीचड़ में

सैर दोज़ख बहिश्तों की, कराती चाह अल्लाह को ।।

 

अक़्ल हैराँ ज़ुबाँ हैराँ, परेशा योगी संन्यासी

भटकता दर दर मोहताज़, बनाती चाह अल्लाह को ।।

 

ख़ौफ़ खाते क़मर रामशो, सितारे टिक नहीं सकते

मगर सामने पानी पत्थर के झुकाती चाह अल्लाह को ।।

 

ख़ुदा खुद की जुदाई का, शोरगुल हो रहा जग में

चाह गर 'मुक्त' मस्तों की, लखाती चाह अल्लाह को ।।

 

४१. ना तो ज़िंदा रहा ना तो मुर्दा रहा

 

ना तो ज़िंदा रहा ना तो मुर्दा रहा,

मैं हूँ नाचीज़ दूजा कोई रहा

ज़मीं पे रहा फ़लक' पे रहा,

जहाँ कुछ भी नहीं तो मैं ही मैं रहा ।।

 

सकै हम वतन तक जुर्रत किसे,

मैं हूँ कैसा कहाँ तक बयाँ कर सकै

आसमाँ के फ़रिश्ते या इन्सान हो,

बाक़ी जैसा रहा वैसा मैं ही रहा ।।

 

ये मन मेरी साया मुझसे जुदी,

और मन मेरी माया ये है मेरी खुदी

जहाँ साया वो माया है कुछ भी नहीं,

वहाँ मेरे सिवा बाक़ी कुछ रहा ।।

 

मेरा मन ये कहने में शरमिन्दगी,

और मैं मन हूँ कहने में बेहूदगी

लेकिन रहता हक़ीक़त में नाचीज़ हूँ,

बाक़ी मैं ही रहा और कुछ रहा ।।

 

देखता हूँ मैं जिस वक़्त संसार है,

बंद करता हूँ तो ये निराकार है।

पर ये मुझपे मुनहसर' तमाशा है क्या,

बाक़ी कहना वो सुनना नहीं कुछ रहा ।।

 

ख़ौफ़ खाता नहीं मौत से ख्वाब में,

कभी डरता नहीं झुठे संसार से

 'मुक्त' मस्ती के दरिया में ग़रक़ाब हो,

बाक़ी अफसाना ये बड़बड़ाना रहा ।।

 

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४२. लबरेज़' है ज़रखेज़ है

 

लबरेज़' है ज़रखेज़[182] है, सिजदा करूँ तो कहाँ करूँ।

करता हूँ तो ये मज़ाक़ है, सिजदा करूँ तो कहाँ करूँ ।।

 

हर जा' पे हस्ती का नूर है, नहीं पास है नहीं दूर है।

गर पग रखूँ तो कहाँ रखूँ, सिजदा करूँ तो कहाँ करूँ ।।

 

इस जिंदगी में जो सर झुका, एक बार अब तक भी उठा।

अब क्या झुके किसको झुकै, सिजदा करूँ तो कहाँ करूँ ।।

 

तर्क करके चाह को, बरबाद हूँ मैं हर जगह

दरअसल है सिजदा यही, सिजदा करूँ तो कहाँ करूँ ।।

 

कुछ करना ही इबादत, और सिजदा वाह-वाह

नहीं बद्ध हूँ नहीं मुक्त हूँ, सिजदा करूँ तो कहाँ करूँ ।।

 

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४३. अफ़साना दुनियाँ तमाशा देखना

 

अफ़साना दुनियाँ तमाशा देखना

खुद बन जाना तमाशा देखना ।।

 

देखना सुनना हक़ीक़त कुछ नहीं

खने वाला हक़ीक़त देखना ।।

 

क़ायम क़यामत दोनों जिसके वलवले

मैं हूँ सचमुच में दरिया देखना ।।

 

बेखुदी मस्ती का पैमाँ पी लिया

अब, नहीं पीना पिलाना देखना ।।

 

जो गुनाहों बेगुनाहों से बरी'

जा बजा हर जा में हाज़िर देखना ।।

 

राम कहता है कोई कहता रहीम

ये सभी ख़ुद के तखल्लुस' देखना ।।

 

है मुक्रम्मल' जिस जगह 'मुक्ता' मुक़ीम'[183]

दरवेश रहते हैं जहाँ पर देखना ।।

 

४४. आता नज़र ये गुलचमन

 

आता नज़र ये गुलचमन' यह राज़' तो देखो

बूये हक़ीक़त है छुपी गुलसाज़ तो देखो ।।

 

भूल से जिस चीज़ को तुम देखते आलम

लेकिन हक़ीक़ी आँख से सरताज तो देखो ।।

 

दरअसल कुछ भी नहीं पर है ये चश्मदीद

देखने वाला ही है फ़नबाज़ तो देखो ।।

 

हर वक़्त हर एक साज़ से आती है सदा' यह

ग़ौर से समझो ज़रा आवाज़ तो देखो ।।

 

राही दिल की है यही अरसे से जुस्तजू 

'मस्त' जिस मस्ती में 'मुक्ता' नाज़" तो देखो ।।

 

४५. दीदार होती है हक़ीक़त

 

दीदार--हक़ीक़त

 

दीदार होती है हक़ीक़त, अमन हो जाने के बाद

मन अमन होता ही जब, दीदार हो जाने के बाद ।।

 

यूँ तो कोशिश करने से, मन ठहरता है चंद वक़्त

पर अमन होता नहीं, होता अमन होने के बाद ।।

 

मन अमन से ज़ाहिरा, आसमाने आसमाँ

समझ में आती हक़ीक़त, मेहर हो जाने के बाद ।।

 

माइने अमन ने खुद खुद, जो खुद खुद वह है अमन

लेकिन यह होता है तजरबा, खुदी खो जाने के बाद ।।

 

अमन सागर में करती, छोड़ बिन मल्लाह के

पार होगी ही यक़ीनन, बेपरवाह हो जाने के बाद ।।

 

है नहीं आसान यह, तौहीद' का मसला है दोस्त

उसको ही आती है मस्ती, 'मुक्त' हो जाने के बाद ।।

 

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 ४६. दिल मिला दिलवर

 

दिल मिला दिलवर' से जा, फिर आशिकाना है कहाँ।

दर्सगाहे[184]' इश्क़ में, फिर शम्मा परवाना' कहाँ ।।

 

शहंशाही' क्या मिली, दुनियों की बरबादी हुई

ख्वाहिशें सब खत्म होने पर ग़रीबाना' कहाँ ।।

 

बैठा हूँ मैं बेखौफ से तख़्ते बलंदी'[185] आसमाँ

आला अदना' है कोई तो फिर राहंशाना कहाँ ।।

 

पी लिया एक मर्तबे फिर तब दुबारा पीया

बिन पीये रहती जो क़ाबिल साक्री" मयखाना' कहाँ ।।

 

खुद सिवा जब कुछ नहीं जो है लबालब एक सा

दुश्मनी गर है नहीं तो है फिर याराना कहाँ ।।

 

दरवेश 'मुक्ता' का यही हर वक़्त हर पल हर कलाम

देखिये खुद की नजर से तो फिर बेगाना" है कहाँ ।।

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४७. दाल' बिन देना कहाँ

 

दाल'[186] बिन देना कहाँ और लाम[187] बिन लेना कहाँ।

दिल मिला दिलवर' से जा फिर मैं कहाँ और तू कहाँ

 

रोख को काबा मुवारक, बरहमन को बुतकदा

यार तै होने से मंजिल में कहाँ और तू कहाँ ।।

 

दरअसल पीना वही पीकर दूबारा पिया

होश भी बेहोश है फिर मैं कहाँ और तू कहाँ ।।

 

इरक्र कहते हैं किसे सीखो सबक परवाँ से दोस्त

राम्मों परवाँ एक हो फिर मैं कहाँ और तू कहाँ ।।

 

चल रहा मैं तू का झगड़ा मुद्दतों से आज तक

आपा खोकर के जो देखो मैं कहाँ और तू कहाँ ।।

 

'मुक्त' दरिया ये तरंगों की अनोखी यह सदा

वलवला[188] ही रहा फिर मैं कहाँ और तू कहाँ ।।

 ४८. कहते हैं मुझको बेनिशाँ

 

कहते हैं मुझको बेनिशाँ पर बेनिशाँ मैं हूँ कहाँ।

हर निशाँ जब मैं ही हूँ तब बेनिशाँ मैं हूँ कहाँ

 

ज़रें ज़र्रे' में समाया क़तरे क़तरे में मकी

मैं मकीं आलम मकाँ तब ला मकाँ मैं हूँ कहाँ ।।

 

बेज़बाँ फ़रमान सबका वेद शास्त्र कुरान दे

गर हूँ मैं सबकी ज़बाँ तब बेजबाँ मैं हूँ कहाँ ।।

 

हर एक कुल' हर एक जुज़' जो मुझसे है ज़ाहिर' ज़हूर[189]

कब निहाँ कैसे निहाँ किससे निहाँ मैं हूँ कहाँ ।।

 

देखना है गर करिरमा खुद--खुद चारों तरफ़

जब निहाँ 'मुक्ता' नहीं तब फिर अयाँ"[190] मैं हूँ कहाँ ।।

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४९. जो तेरी राह' में

 

जो तेरी राह' में बेनामो निशाँ होता है।

एक एक दिन महबूबे जहाँ होता है ।।

 

जो हर तरह से तेरे लिए संसार में बरबाद हुआ।

ज़रें ज़रें में तू उसको ही अयाँ होता है ।।

 

नामो निशाँ वालों को बेनामो निशाँ कैसे मिले

 हक़ीक़त में बेनिहाँ तू फिर तू कैसे निहाँ होता है ।।

 

इश्क़ मुबारक है तो बस एक दिन इंसा अल्लाह'

 बाद जलने के सही परवाँ राम्मों होता है ।।

 

कैदखाने से निकलकर के ही पाता है तुझे

मस्त होने पे कहाँ कौन 'मुक्त' होता है।

 

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५०. मज़हबी क़ैदखाने से

 

मज़हबी क़ैदखाने से निकलती बेखुदी' प्याला

जो हरदम खिंच रही छोड़ दे पीकर बाखुदी प्याला ।।

 

लबालब है भरा शीशा जिसे दरवेश हैं पीते

पूरा है खाली है नहीं गोरा नहीं काला ।।

 

अचंभा है यही हर रौ में हर ज़रें वो क़तरे में।

इशारा साक्रिया लेकर तोड़ मैखाने का ताला ।।

 

यार पी तो ज़रा एक बार करिरमा देख इस मय का।

कहाँ दीनों कहाँ दुनियाँ कहाँ अदना' कहाँ आला' ।।

 

अमूमन कहते हैं आलिम सिवाय उसके नहीं कुछ भी।

नज़रिया है नहीं ऐसी दूर कर मोतिया जाला ।।

 

नहीं मालूम है कैसी कि जिसको कोसती दुनियाँ

 'मुक्त' पीता हमेशा ही हुआ पीकर के मतवाला ।।

 

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५१. ख़ामोश हो जाता है दिल

 

ख़ामोश हो जाता है दिल खामोश हो जाने के बाद

रास्ता होता है तय, मक़सूद' पा जाने के बाद ।।

 

चाह में ज़र-जन-ज़र्मी के भटकता दिल रात दिन

चाह होती है फना' बेचाह हो जाने के बाद ।।

 

जिस सकूने दिल को दुनियाँ ढूँढ़ती है दर दर

लेकिन वो मिलती है हक़ीक़त खुद को पा जाने के बाद ।।

 

आशिक़ो माशूक़ दोनों दो शकल हैं मुख्तलिफ़'

एक होते दर्सगाहे इश्क़ हो जाने के बाद ।।

 

हो मुवारक इश्क़ ऐसा राम्माँ परवाँ की तरह

 पर राम्माँ परखाँ दो कहाँ परवाँ जल जाने के बाद ।।

 

गूँजती है ये सदा चारों तरफ़ दुनियाँ में दोस्त

दरअसल समझे वही पर 'मुक्त' हो जाने के बाद ।।

 

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५२. खुला बाज़ार मुक्ता का

 

खुला बाज़ार मुक्ता का खरीदो बेखुदी मस्ती

अगर क़ीमत चुकाना है तो दे दो बाखुदी मस्ती ।।

 

कुछ करने से है मिलती या कुछ करने से मिलती है।

दरवेशों के क़दमों पे मिटा दो दिल की तंगदस्ती' ।।

 

दुरंगी त्याग कर दिल से पहन इकरंगी बाना'

सहारा ले फ़कीरों का छोड़ दे ज़िन्दगी करती ।।

 

जा काबे कलीसा में मैखाना बुतखाना

तमन्ना गरचे पीने की तो जा मस्तों की जो बस्ती ।।

 

जो हस्ती इंसा हैवाँ में, जो नर मादा परिंदा' में।

जो है खानाबदोशों की हक़ीक़त में वहीं मस्ती ।।

 

जब तक मिला 'मुक्ता' ये मस्ती महंगी से मंहगी।

मेहर साक़ी की हो जाए तो मस्ती सस्ती ही सस्ती ।।

 

**

 

 

५३. ख़ामोशी की दुनियाँ में ये दिल

 

ख़ामोशी की दुनियाँ में ये दिल खामोश हो बैठा।

जाने कब हुआ कैसा वजूदे अपना खो बैठा ।।

 

गुज़ारी ज़िन्दगी सारी अज़ाँ रोज़ा नमाज़ों में

हासिल जब हुई मंज़िल परेशाँ होके रो बैठा ।।

 

गुनाहों बेगुनाहों' की ये गठरी ढोया मुद्दत से

नज़र जब हो गई मुर्राद' की ढोना था सो बैठा ।।

 

जहाँ पे दिलकशी होती जहाँ दरवेश हैं सोते

छोड़कर सब ववालों को वहीं पे जाके सो बैठा ।।

 

कुछ करना ही करना है कुछ पाना ही पाना है।

जानना कुछ नहीं जाना सभी से हाथ धो बैठा ।।

 

करने से जो हो पैदा करने से जो मर जाता

यही पैग़ाम मस्ती का जो सुनकर 'मुक्त' हो बैठा ।।

 

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५४. उफ है ऐसी ज़िन्दगी

उफ है ऐसी ज़िन्दगी जिसको मिला साक़ी' नहीं।

शर्म को भी शर्म है पीना कभी बाक़ी नहीं ।।

 

नशा क्या जिसको तुरशी एकदम देवे उतार

एक मर्तबे चढ़ के उतरना फिर कभी बाक़ी नहीं ।।

 

सूरतें लाखों हैं पर सूरतगरी है एक की

देखते ही जीना मरना फिर कभी बाक़ी नहीं ।।

 

होश को बेहोश करती लानते देते हैं लोग

बेहोश भी बेहोश फिर होश आना बाक़ी नहीं ।।

 

साक्रिया ने क्या पिलाया कब पिलाया वाह वाह

मैं कहाँ और तू कहाँ दुनियाँ कहाँ बाक़ी नहीं ।।

 

जो मय है एक सी पैमाने दिल में भरी

 'मुक्त' पीता पिलाता बाक़ी भी बाक़ी नहीं ।।

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५५.दीवानों की बातों को

दीवानों की बातों को, वही समझे जो दीवाना

दीवानों की ही खिदमत से, हक़ीक़त में जो दीवाना ।।

 

निगाहें जिनकी मदमाती, चढ़ी रहती बलंदी पर

जिधर जब देख दे जिसको, वही हो जाता मस्ताना ।।

 

अज़गैबी' कलामों से है, झरती बेखुदी मस्ती

जहाँ जिस जा पे जा बैठे, वही काबा बुतवाना ।।

 

किसी पर हैं नहीं आशिक़ नहीं माशूक़ है कोई।

रामाँ ये इश्क़ आतिश' में, मिसाले खाक परवाना ।।

 

किसी के हैं नहीं ताबे, जा बैठे तख्ते आज़ादी

दुरंगी दुनियाँ क्या जाने, लग्ब फ़ानी अफसाना ।।

 

कभी आती बेहोशी, होशी की हविस जिनको

मगर पीते हमेशा ही, जिन्हें हर रौ में मैख़ाना ।।

 

रहते शाही महलों में, रहते क़ाफिले अंदर

जहाँ पर दिलकशी होती, वही घर उनका वीराना ।।

 

जिन्हें हसरत शोहरत की, तमन्ना है दौलत की।

सभी से 'मुक्त' है हरदम, मुवारक हो फ़क़ीराना ।।

 

५६. ठिकाना सबका जिस जा पे

 

ठिकाना सबका जिस जा पे, जहाँ अपना बेगाना'

सजावट क्या अनोखी है, दीवाने आम शाहाना ।।

 

छोड़ आनन्द सागर को, फँसा है कर्म कीचड़ में।

तड़पता पीछे शबनम' के, रात दिन होके दीवाना ।।

 

चाह चक्कर में पड़ करके, पड़ा गुरवत' के फंदे में।

अगर बेचाह हो जा तू, किसे कहते हैं गरीबाना ।।

 

राहँशाह होके तू करता, परस्ती ज़र परस्तों की।

खजाना तेरा तुझमें ही, बढ़कर के अमीराना ।।

 

अक़्लमंदों की दुनियाँ में, जाना ही मुसीबत है।

अक़ल भी बेअक़ल जिस जा पे, बढ़ करके अक़्लमंदाना ।।

 

यार दुनियाँ की मैं पीकर, तसल्ली किसको कब होगी।

उमड़ता हर घड़ी हरदम, हर एक ज़रें में मैखाना ।।

 

इसलिए कहीं मत जा कर कुछ, तू फकीरों की ही खिदमत कर।

तमाशा देख 'मुक्ता', मुबारक हो फ़क़ीराना ।।

 

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५७. मैं हूँ दरिया एक सा

 

मैं हूँ दरिया एक सा, बाक़ी हैं ये सब वलवले

मैं हूँ सन्नाटा ये हरदम, शोरगुल सब वलवले ।।

 

नक़्क़ाशी की यह बनावट, और सजावट बेशुमार

लेकिन यह मेरा ही करिरमा, और सब हैं वलवले ।।

 

रंग बिरंगे गुलराने, गुल खिलते मुस्काते बरोज़'

है मुबारक मुझको ही, गुल गुंचे हैं सब वलवले ।।

 

गूँजता है भँवर जिसमें, चहचहाती बुलबुले

दरअसल मैं ही तो हूँ, जो कुछ भी है सब वलवले ।।

 

मुद्दतों से रहा, आलम बिगड़ता बनता रोज़

बनता बिगड़ता जिसमें मैं हूँ, और सब हैं वलवले ।।

 

'मुक्त' दरिया मुक्त साहिल, मुक्त करती' ही नाखुदा'

कहना सुनना कुछ नहीं, जो कुछ भी है सब वलवले ।।

 

५८. पता था ये मर्ज ज़िन्दगी

 

पता था ये मर्ज ज़िन्दगी में आयेगा

यक़ीं था ये मर्ज़ ज़िन्दगी हो जायेगा ।।

 

जितने थे ताल्लुकात' दिल से टूट गये दुनियाँ का

ये भी पता था हमें ऐसा भी इक दिन आयेगा ।।

 

दिल दिमाग़ दोनों ही दरिया हक़ीक़त में गये

सूझबूझ कुछ रही कौन क्या बतायेगा ।।

 

मानिंद ये ख़्वाब खेल खुद खुद ये कैसा रचा।

इल्मकदी ये भी नहीं खुद ही से मिट जायेगा ।।

 

खुद पे खुद जो परदा बनके बन गया पर्दानीं

गर नहीं है खुद की मेहर कौन जो हटायेगा ।।

 

ग़म खुशी की आग में जलता ये ज़माना कैसा

दीदारे दिलरूबाई नहीं जो कौन ये जलायेगा ।।

 

दुई दफ़ना गई आलम का जनाज़ा निकला

रोने वाला ही नहीं कौन क्या जिलायेगा ।।

 

खुद मस्ती का मस्त मर्ज़ इंशाँ अल्ला सबको लगे

'मुक्त' मस्त की नज़र जब खुद आप ही लगायेगा ।।

 

५९. गर मैं होता तो खुदा होता

 

गर मैं होता तो खुदा होता,

यह जानना राज़' बड़ा ही मुरिकल

खुद मस्त मस्तों की हो इनायत,

ये जानना राज़ बड़ा ही मुरिकल ।।

 

खुदा की हस्ती खुदा की नेस्ती',

दोनों ही मसलों को मैं जानता हूँ।

खुदा से बढ़कर के खुद का मसला,

ये जानना राज़ बड़ा ही मुरिकल ।।

 

खुद की जो हस्ती है खुदा की हस्ती,

खुद की परस्ती है खुदा परस्ती

हस्ती परस्ती का सहारा मैं हूँ,

ये जानना राज़ बड़ा ही मुश्किल ।।

 

हालॉकि आसान है खुद का मसला,

लेकिन ज़माने से है परेशाँ

आसान कैसा है क्यों परेशाँ,

ये जानना राज़ बड़ा ही मुश्किल ।।

 

जितने हुनरमंद और बेहुनर हैं,

सभी को मालूम है यह कि मैं हूँ।

लेकिन एतबार कभी किसी को,

ये जानना राज़ बड़ा ही मुश्किल ।।

 

खुद को जाना कुछ भी जाना,

जिसने भी जाना वह भी जाना

जाने जाने को जिसने जाना,

ये जानना राज़ बड़ा ही मुश्किल ।।

 

जानना ही सब जानना है,

समझना ही सब समझना है

उन 'मुक्त' मस्तों की मेहर से मुमकिन,

ये जानना राज़ बड़ा ही मुश्किल ।।

 

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६०. खत्म हो जाती है गुरवत'

 

खत्म हो जाती है गुरवत' ख्वाहिरो जाने के बाद।

ख्वाबे परदा फारा' होता आँख खुल जाने के बाद ।।

 

साधना मंजिल का चलना अंत होता है जभी

खुद खुद मंज़िले मक़सूद' पा जाने के बाद ।।

 

रोज़ा नमाज़ों में ज़ाहिद' ज़िन्दगी क्यों खो रहा

होती तेरी ही इबादत कुछ भी करने के बाद ।।

 

मायूस होना क़हक़हाना ये है कुदरत का मज़ाक़

लेकिन ये मैं हूँ एक सा महसूस हो जाने के बाद ।।

 

मरसिया पढ़ते ही पढ़ते कितनी सदियाँ' हो चुकीं

मरसिया मर जाती है ज़िंदा ही मर जाने के बाद ।।

 

महफ़िल ये मस्ती का नारा समझने की चाह गर

मस्त क़दमों की मेहर से 'मुक्त' हो जाने के बाद ।।

 

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६१. मेरे सिवा कोई नहीं

 

. मेरे सिवा कोई नहीं डरने की ज़रूरत क्या है

क़ज़ा भी सामने हो गर डरने की ज़रूरत क्या है ।।

 

मरना था जिसको मर चुका मरने में ज़िन्दगी का मज़ा

हर वक़्त जनाज़ा है गर रोने की ज़रूरत क्या है ।।

 

बेक़रार था दिल जो खुद की ज़िन्दगी के लिए

ज़िन्दगी गर खुद खुद हँसने की ज़रूरत क्या है ।।

 

संसार में चारों तरफ फैला है जाल माया का

मुर्शद की मेहर हो गई फँसने की ज़रूरत क्या है ।।

 

क्या हूँ मैं कौन कहाँ हूँ मैं किस तरह कैसा

कहूँ तो हक़ीक़त नहीं कहने की जरूरत क्या है ।।

 

जब कभी अफ़साना दुनियाँ की क़यामत होगी

सचमुच में गर्चे 'मुक्त' हूँ मरने की ज़रूरत क्या है ।।

 

६२. हो गया आनंद दुनियाँ को

 

हो गया आनंद दुनियाँ को रिझाकर क्या करूँ।

दिल मुनव्वर'[191] है तो दीपक राग गाकर क्या करूं ।॥

 

चक्रवर्ती कर दिया गुरू ने बताकर आत्मज्ञान

फिर भला महाराज दुनियाँ से कहाकर क्या करूँ ।।

 

रोम रोमों में रमा है आत्मज्ञान मेरे सनम

ख़ाक में भी रम रहा खाके रमाकर क्या करूँ ।।

 

सब सजावट और बनावट का मेहर है आत्मा

फिर भला हड्डी वो चमड़े को सजाकर क्या करूँ ।।

 

चढ़ गया अद्वैत का रंग दिल में सुर्खी गई

फिल भरा मिट्टी में कपड़े को रंगाकर क्या करूँ ।।

 

गई 'मुक्ता' को मस्ती पढ़ के एकनामी क़लाम

तो भला उन पोथियों में सर पचाकर क्या करूँ ।।

 

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६३. क्या क्या सहे हमने सितम'

 

करूण कहानी

 

क्या क्या सहे हमने सितम' यार की खातिर

किसको बनाया सनम[192], यार की ख़ातिर ।।

 

पढ़ पढ़ के वेद शास्त्र दर्शनों को भी देखा

और कर्म उपासन में किया नाम का लेखा ।।

अज्ञान की रेखा मिटी, यार की खातिर

क्या क्या सहे हमने सितम यार की ख़ातिर ।।

 

घर बार छोड़ करके लिया खोह में डेरा

भूखा मरा प्यासा मरा, वैराग ने घेरा ।।

सब कुछ किया अपनी क़सम उस यार की ख़ातिर

क्या क्या सहे हमने सितम यार की खातिर ।।

 

बहुरुपिया बन बनके मैं संसार में घूमा

उन पंथ के गुरुओं के भी चरणों को मैं चूमा ।।

पर कुछ भी बता के दिया यार की ख़ातिर

क्या क्या सहे हमने सितम यार की खातिर ।।

 

मुद्दत से फिरा यार के पीछे मैं दीवाना

सद्गुरू की कृपा जब भई तब यार दीवाना ।।

अब क्या कहूँ, क्या कहूँ उस यार की ख़ातिर

क्या क्या सहे हमने सितम यार की ख़ातिर ।।

 

'मैं' को ही यार मान बनी करूण कहानी

सुन करके दोस्त गौर करो 'मुक्त' की बानी ।।

हो सफल तुम्हारा जनम उस यार की ख़ातिर

क्या क्या सहे हमने सितम यार की ख़ातिर ।।

 

६४. कोई तमन्ना ख्वाहिशातें

 

फ़क़ीरी

 

कोई तमन्ना ख्वाहिशातें, दुरंगी दुनियों से शर्म क्या है।

पीया हूँ प्याला जो बेखुदी कामन माने नाचूँ तो  शर्म क्या है ।।

 

खुद पे ही कुर्बा मैं हो चुका हूँ, वजूद सारा मिटा चुका हूँ।

यह ख़ाके पुतला अभी फना हो, अगर नहीं डर तो शर्म क्या है

 

नहीं है परवाह कभी किसी की, कुछ भी लेना कुछ भी देना।

रहूँ बरहना' या पहनूं बुर्का, ऐसे बेशर्मों से शर्म क्या है ।।

 

सम्भालने से नहीं सम्भलती, रग-रग में आकर समा गई है।

छलक रही है अलमस्त मस्ती, मस्ती परस्तों को शर्म क्या है ।।

 

मैं गुलरूबा हूँ इस गुलचमन का, मैं दिलरुबा हूँ हर एक दिल का।

दरिया बेदिल हुआ हूँ बेदिल, बेदिल परस्तों को शर्म क्या है ।।

 

फ़ॉक़ा किया हूँ ये ग़म खुशी का, है कोई मेरा दोस्त दुरमन

दिमाग़ों दिल से मोहताज 'मुक्ता', खफतुलहवासों को शर्म क्या है ।।

 

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६५. कुछ दिया कुछ लिया

 

यार की यारी ने मुझे,

कुछ दिया कुछ लिया।

गर दिया भी है तो यही,

कि बस फ़िक्र से आज़ाद किया ।।

 

यार की दुनियाँ में सिवा,

यार के कोई और नहीं।

अरों' नहीं ज़मीं नहीं,

जिस मुल्क में आबाद किया ।।

 

आशिक़ माशूक़ दो,

एक साथ जहन्नुम में गए।

इश्क़ मुबारक हो,

जिसने 'मुक्त' को वरवाद किया ।।

 

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६६. बता दे साक़िया

 

बता दे साक़िया तेरा किधर रहता है मैखाना

किधर काबा किधर मक्का किधर रहता है बुतख़ाना ।।

 

दुरंगी चाल है जिसकी कभी रोना कभी हँसना

मिसाल ख़्वाब के मानिंद किधर दुनियाँ है अफसाना ।।

 

हविस' दौलत के तहखाने तमन्ना भर रही हरदम

हुआ महरूम दोनों से किधर रहता है अमीराना ।।

 

नहीं परवाह कभी कुछ भी जुदाई एक-ताई से

बेमुल्के ताज है सिर पे हक़ीक़त में ये शाहाना' ।।

 

ठिकाना है नहीं जिसका ठिकाना बेठिकाना है

हमेशा बेखुदी मस्ती मुबारक हो फ़क़ीराना ।।

 

शौक्रिया दिल की ख़ामोशी जिसे दरवेश हैं पीते

अगर पीना कोई चाहै, पिलाता 'मुक्त' रोजाना ।।

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६७. बुज़दिली' के चक्कर में पड़कर

बुज़दिली' के चक्कर में पड़कर, मैं अपने आपको खो बैठा।

तस्वीर तमन्ना में फँसकर, कैसा था अब क्या हो बैठा ।।

 

इल्ज़ाम लगाऊँ मैं किस पर, मिन्नत भी करूँ किसके आगे।

खुद पे खुद की कमबख़्ती से, जैसा था उसको खो बैठा ।।

 

हालाँकि वही हूँ जो मैं था, बदला हूँ बदल सकूँ

लेकिन ये हक़ीक़त है कैसी, बस इसको ही मैं खो बैठा ।।

 

अनबने अंदर बुतख़ाना, ज़ाहिर ज़हूर ये परदानीं

पर बेसमझी से समझ पड़े, उस बेसमझी को खो बैठा ।।

 

जितने हैं जो मंदिर मस्ज़िद, मिलने के ये नहीं इबादत के

मिलने की हविस जिस जा पे ख़तम, जा जा उस जा को खो बैठा ।।

 

मानिन्द आइने खुद पे जो, दिखता वह मुझसे जुदा नहीं

ज़ंजीर मज़हबी क्यों कैसी, इस ख़्वाब खयाली को खो बैठा ।।

 

समझेगा वही सोहबत पसंद, बन गया दोस्त दरवेशों का

यह दिल दिमाग़ की चीज़ नहीं, जो करता है सो खो बैठा ।।

 

दरअसल 'मुक्त' है वही मुक्त, होता है नहीं जो मुक्त सही

मगर बद्ध मुक्त है अफ़साने, मैं दोनों को ही खो बैठा ।।

६८. बरहना हूँ हक़ीक़त में

 

बरहना हूँ हक़ीक़त में मुबारक हो बेशरमाना

करूँ क्या शर्म इस दुनियाँ से सचमुच में जो अफसाना ।।

 

मिटा कर खुद को ज्यों नदियाँ हमेशा करती तय मंज़िल

गुज़िरता कौन थी अब क्या ख़तम हो जाता फरमाना ।।

 

दरसगाहे इश्क़ जाके परवाने से जा पूछो

बताना गैर मुमकिन है शम्मों जाने या परवाना ।।

 

नज़र में मुख्तलिफ दोनों ही आए मैकदा दर पर

मगर जब फिर गई आँखें साक़ी है मैखाना ।।

 

अनोखा गुलचमन कैसा हरा होता मुरझाता

बहारें एक सी रहती, खिला रहता गुलिस्ताना ।।

 

कलामे 'मुक्त' का यारो गौर करना मुनासिब है

ज़िन्दगी का मज़ा पाकर बनोगे मस्त मस्ताना ।।

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६९. जो डर रहा है मुसीबत से

 

"नामर्द उसे कहते हैं"

 

जो डर रहा है मुसीबत से उसे नामर्द कहते हैं।

जो घबराता क़यामत से उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

बिगड़ना बनना दोनों ही ये दुनियाँ के करिश्में हैं।

कभी रोता कभी हँसता उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

ग़रीबों की गुरबत है अमीरों की दौलत है।

समझा जिसने अफ़साना उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

कमबख्ती के चक्कर में भटकता रात दिन नादाँ।

देखे खुद को जो सबमें उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

सोहबत बुज़दिलों की करके सदियों से बना बुज़दिल

किया सोहबत बेदिल का उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

फलक में नाचते हैं चाँद सूरज हुक्म से जिसके

पाया गर हुकूमत को उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

दिल की यकसुई' जब कभी होती है सुख हासिल।

जानता भी नहीं जाना उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

कुछ करना परस्ती है अगर कुछ करना गलती है।

मगर करता जो एतबार उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

 

मैं ही नर हूँ मैं ही मादा मैं ही ख्वाँदा हूँ बेख्वाँदा'

मानता फर्क जो इसमें उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

मैं जैसा हूँ वैसा ही हूँन ऐसा हूँन वैसा हूँ।

मगर कहता जो ऐसा हूँ उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

सदा' मैं 'मुक्त' हूँ सबसे यही मर्दानगी सच में।

नहीं मर्दानगी जिसमें उसे नामर्द कहते हैं ।।

 

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७०. पी लिया गर जाम' तो

 

क़ानून हमवतन

 

पी लिया गर जाम' तो फिर याद करना जुर्म है।

क़ब्र में पड़ करके चीखें मारना फिर जुर्म है ।।

 

सोचना था पहले ही होना था जो कुछ हो चुका

कट गया गर सर ज़मीं पर देखना फिर जुर्म है ।।

 

दोज़ख बहिश्तों का यह नक्शा देखना तू बंद कर

बेगुनाह गुनाहों के चक्कर में पड़ना जुर्म है ।।

 

ज़िंदगी करती दरिया पार हो हरगिज़ हो

हो करके बेपरवाह फिर परवाह करना जुर्म है ।।

 

हमशकल होने के नाते हमशकल जो कुछ भी है।

खुद सिवा जब कुछ नहीं संसार कहना जुर्म है ।।

 

दिलरुबा हूँ जबकि दिल का और मैं दिल का सकून

वज़ीरे आलम दिल है मेरा रोकना तब जुर्म है ।।

 

क़ानून पैग़ाम 'मुक्ता' को फ़क़ीरों से मिला

अमल' करना है सभी को गर करना जुर्म है ।।

 

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७१. हर रोज़ जनाज़ा होता है

 

हर रोज़ जनाज़ा होता है हर रोज़ बरातें होती हैं।

मंज़िल पे पहुँचने के खातिर मुतवातिर' बातें होती हैं ।।

 

कोई सिजदा करता काबे में,

और कोई जाता बुतखाना,

कोई आशिक़ वो माशूक़ हुआ,

कोई दौड़ के जाता मैखाना,

कोई लटक रहा कोई भटक रहा,

कोई नाक रगड़ता रो रो के,

ग़म में कोई मायूस हुआ,

कोई खुशी मनाता हँस हँस के,

 

हर रोज़ इबादत करते हैं हर रोज़ नमाज़ें होती हैं।

मंज़िल पे पहुँचने के ख़ातिर मुतवातिर बातें होती हैं ।।

 

कोई स्वांग बनाता योगी का,

और कोई बनता है वैरागी,

कोई धारण कर संन्यास वेश,

कोई विषयों से है अनुरागी,

कभी तो हसरत दौलत की,

और कभी तमन्ना शोहरत की,

कोई फ़िक़र में मरता बच्चों की,

कोई चिंतन करता औरत की,

 

पैदाइश से मरने तक लेकर जो कुछ भी की जाती है।

मंज़िल पे पहुंचने के खातिर मुतवातिर बातें होती हैं ।।

 

भले बुरे जितने हैं करम,

जो भी होते हैं इस दुनियों में,

ज़िंदगी का मक़सद सबका एक,

ऊँचा नीचा इस दुनियाँ में,

राहें अनेक राही अनेक,

पर सबकी मंज़िल एक सही,

कोई कब पहुँचा कोई कब पहुँचा,

पहुँचेगा जल्द जो तड़प सही,

 

वेद शास्त्र इंजिल कुरां, सबकी ये सदाएं आती हैं।

मंज़िल पे पहुँचने के खातिर मुतवातिर बातें होती है ।।

 

तारीफ़ यही खुद मंज़िल है,

मंज़िल की तमन्ना में फिरता,

कैसा ये अचम्भा कुदरत का,

दर दर भटकता है फिरता,

जो एक समाया आलम में,

वह मैं हूँ मैं हूँ बोल रहा,

अपनी ही कमबख्ती से,

खुद को हर जगह टटोल रहा,

 

हर डार डार हर पात पात बुलबुलें भी गाना गाती हैं।

मंज़िल पे पहुँचने के ख़ातिर मुतवातिर बातें होती हैं ।।

 

ब्रह्मा विष्णु शिवादिक भी,

ये निशिदिन जिनका ध्यान धरें,

नारद शेष शारदा आदिक,

वीणा में गुणगान करें,

ज़ाहिर ज़हूर मशहूर जगत में,

सबका सब कुछ है प्यारा,

सर्व रूप में सबमें होकर,

फिर भी है सबसे न्यारा,

 

जो मन का मन है मन नहिं जाता आँखें देख पाती हैं।

मंज़िल पे पहुँचने के खातिर मुतवातिर बातें होती हैं ।।

 

साधन से मंज़िल तय होती,

तप से ये मंज़िल तय होती,

चाहे लाखों जनम उपाय करो,

तब भी ये मंज़िल तय होती,

मंज़िले हक़ीक़त पाना गर,

मस्तों की आँख से आँख मिला,

मैं ही तू है तू ही मैं हूँ,

मस्ती का दिल को जाम पिला,

 

फिर देख तमाशा 'मुक्ता' कब दिन और रातें आती हैं।

मंज़िल पे पहुँचने के ख़ातिर मुतवातिर बातें होती हैं ।।

 

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७२. दिल बेदिल हो जाता है पर

 

दिल बेदिल हो जाता है पर दिलरुबा पाने के बाद

खुश हो जाता है गुलरान गुलरूबा आने के बाद ।।

 

लाज़बाँ लहराते दरिया में हज़ारों बुलबुले

ज़िंदगी का है मज़ा मस्ती में लहराने के बाद ।।

 

हो जा बेपरवाह' करती खुद किनारे जा लगे

मुल्के मिल जाती हुकूमत कुछ कहलाने के बाद ।।

 

लुत्फ़ बेफ़िकरी में यारों भाड़ में जाये बला

गूँजती है यह सदा अंदर में ठहराने के बाद ।।

 

साक़िए मैखाना जाने से ही आता है सरूर

ख़त्म हो जाती है दुनियाँ पैमाना पीने के बाद ।।

 

आशिक़ो माशूक़ दोनों दरसगाहे जा मिले

इश्क़ की तारीफ़ क्या तालीम सिखलाने के बाद ।।

 

बेसरापा बातों को समझेगा बेसिर पैर का

समझना आसान होगा 'मुक्त' मुसकाने के बाद ।।

 

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७३. मैं हूँ सन्नाटा' मकाँ

मन की नसीहत

 

मैं हूँ सन्नाटा' मकाँ और तू है हँगामा' मकीं

मैं ही तू और तू ही मैं हूँ, मैं मकाँ तू है मर्की ।।

 

मैं ही हूँ तेरा सहारा मैं ही हूँ तेरा वजूद

देख तू खुद की नज़र में मैं मकाँ तू है मकीं ।।

 

दौड़ते ही दौड़ते पर आज भी तू थका

बैठ जा आराम कर मैं हूँ मकाँ तू है मकीं ।।

 

मेरे बिना तू है नहीं तेरे बिना मैं हूँ ज़रूर

शोरगुल जब है नहीं मैं हूँ मकाँ तू है मकीं ।।

 

मैं हूँ सब कुछ सर्व का और मैं हूँ हक़ तेरा सकून

मंज़िले मक़सूद तेरा मैं मकाँ तू है मकीं ।।

 

'मुक्त' होकर खोजता रे मन मुक्त होने के लिए।

ढूँढ़े महल में मंज़िले मन मैं मकाँ तू है मकीं ।।

७४. आज़ाद हूँ मैं हरदम

 

आज़ादी

 

आज़ाद हूँ मैं हरदम डरने की ज़रूरत क्या

महफूज़ मुझसे आलम डरने की ज़रूरत क्या ।।

 

पैदा होता कुछ भी जीने की कल्पना क्या।

ज़िंदा ज़िंदगीं भी मरने की ज़रूरत क्या ।।

 

कर्त्ता करम हैं जितने ख़्वाबे ख़याल झूठे

मैं खुद खुद हूँ सबका करने की ज़रूरत क्या ।।

 

'मैं' ही समाया सबमें मानिन्द आसमाँ के

ख़्वाहिरा नहीं है मुझको फँसने की ज़रूरत क्या ।।

 

ग़म खुशी के तूफ़ाँ दुनियाँ के जिलज़िले हैं।

होता कभी टसमस टलने की ज़रूरत क्या ।।

 

मैं मीं जहाँ का मेरा मकाँ जहाँ है

फिर ईंट पत्थरों को गढ़ने की ज़रूरत क्या ।।

 

दुनियों के खज्ञाने जो मेरे ही खज्ञाने हैं।

तब मिसले खाक सिक्के रखने की ज़रूरत क्या ।।

 

आज़ादी मुबारक हो बरबादी मुबारक हो

मुर्शिद इशारे 'मुक्ता' बंधने की ज़रूरत क्या ।।

 

७५. अरमान जिंदगी के

 

दिल की जिंदगी

 

अरमान जिंदगी के इस दिल की जिंदगी है।

पूरे कभी होंगे जब तक ये जिंदगी है ।।

 

शोहरत की जो ये हसरत दौलत की ये तमन्ना

पाने की जो ये ख्वाहिश तब तक ये ज़िंदगी है ।।

 

खुद को देखा जिसने जाना जो हक़ीक़त

जब तक मिला साक्री तब तक ये ज़िंदगी है ।।

 

खुद को जलाके परवाँ होता रामा रामों में

ऐसा जला जब तक तब तक ये ज़िंदगी है ।।

 

मस्तों का मस्त पैशाँ सुनके हुआ बेदिल

क़तरा समझा दरिया तब तक ये ज़िंदगी है ।।

 

जो है वजूदे आलम 'मैं' हूँ आवाज़ जिसकी

खुद पे हुआ कुर्बा तब तक ये ज़िंदगी है ।।

 

मस्ती का जाम पीके 'मुक्ता' हुआ दीवाना

कुछ भी रहा बाक़ी बाक़ी ही जिंदगी है ।।

 

* *

 

७६. मैं हूँ कौन क्या हूँ

 

राज़े खुदा *

 

मैं हूँ कौन क्या हूँ कहने के क़ाबिल

अगर बेज़बाँ हूँ सुनने के क़ाबिल ।।

 

कहते हैं संसार जिसको जुबाँ से।

वह भी हमराकल है देखने के क़ाबिल ।।

 

भरी खूबियाँ क्या क्या इन सूरतों में।

जीने के क़ाबिल मरने के क़ाबिल ।।

 

लियाक़त' हो गर कोई आके बताये।

लिहाज़ा ये क्या पकड़ने के क़ाबिल ।।

 

है में जो 'है' है, नहीं में 'नहीं' है।

ये ख़ामोश लिखने पढ़ने के क़ाबिल ।।

 

गुलिस्ताँ सजा मुझमें कैसा अनोखा

मौज' ले ये 'मुक्ता' फँसने के क़ाबिल ।।

 

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७७. ज़र' की मुझे दरकार नहीं

 

फ़क़ीरी

 

ज़र' की मुझे दरकार नहीं ज़रदार के दर पर जाना क्यूँ।

इज़्ज़त बेइज़्ज़त तर्क किया दुनियों से आँख मिलाना क्यूँ ।।

 

भले बुरे जितने भी करम दरअसल सभी है अफ़साने

जाना ही नहीं दोजख बहिरत तब इधर दुबारा आना क्यूँ

 

हो गया दीवाना मस्तों का मस्ती का जाम पी करके

जब दिल दिमाग़ में सूझ नहीं तब पीना और पिलाना क्यूँ

 

चाह नहीं कुछ लेने की कोई भला कहे या बुरा कहे

बैठा हूँ ये तखते शाहाना फिर ग़ैरों के गुन गाना क्यूँ !!

 

कर चुका हूँ जो कुछ करना था पढ़ चुका हूँ जो कुछ पढ़ना था।

देखना था जो कुछ देख चुका संसार में धक्के खाना क्यूँ ।।

 

बेशुमार और बेमिसाल मेरे ही अनोखे बाने हैं

पचरंगी बुरक़ा पहन लिया तब फिर बहरूपिया बाना क्यूँ ।।

 

पैग़ामे 'मुक्त' हक़ीक़ी ये समचमुच में क़ाबिले ग़ौर सही

हर एक साज़ से निकल रहा मैं हूँ मैं हूँ शरमाना क्यूँ ।।

 

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७८. जिस्मानी खुदी जिसमें नहीं

 

जिस्मानी खुदी जिसमें नहीं कहते हैं उसे दीवाना

मस्ती में हुआ मस्त जो कहते हैं उसे दीवाना ।।

 

खोजते हैं यार को पर यार सिवा कुछ भी नहीं।

खोजी भी खो जाय हक़ीक़त में यही याराना ।।

 

दुरंगी दूर भई दुनियाँ का जनाज़ा निकला

फँसना नहीं फँदा भी नहीं सच में ये फ़क़ीराना ।।

 

दौलत की चाह है नहीं गुरबत भी जहन्नुम में गई

दोस्त दुश्मन भी नहीं कहते हैं इसे शाहाना ।।

 

नाचता है जो हविश हाक़िम की जी हुजूरी में

सकूने ख़्वाब ये सचमुच में ये ग़रीबाना ।।

 

दरवेश अपनी मौज में जब जाके बैठते हैं जहाँ

रोख का काबा वही बरहमन'[193] का वही बुतख़ाना ।।

 

बक़ा फ़ना एक संग दो रहते हैं कि दुनियाँ में कहाँ

किसका बक़ा किसका फ़ना कहते हैं इसे अफ़साना ।।

 

उस मै को मुबारक हो जो कि पीके उतरती ही नहीं।

साक्रिया मिल जाय गर हर जा जा पे मैखाना ।।

 

मस्ती मैकदा की नहीं और बुतकदा की नहीं

मस्ती खुदकशी की ये कहता है 'मुक्त' मस्ताना ।।

 

७९. ख़्वाहिरौं जब खत्म हुई

 

ख़्वाहिरौं जब खत्म हुई तब मिला फ़क़ीराना

बेताज हुकूमत है, हक़ीक़त में ये जागीराना ।।

 

ख़ुदा की जूस्तजू में हुई दर दर परेशानी

मिहर मुर्शिद की भई काफ़ी'-दरे-जानाना ।।

 

सैलाब ये मस्ती का मस्त उमड़ता है पल पल में।

क्या कहूँ क्या ना कहूँ कहता भी हूँ तो अफ़साना ।।

 

मस्ती का मस्त ये सुरूर भर गया है रग-रग में

देखता हूँ जब कभी दिखता कोई बेगाना ।।

 

दौलत की तमन्ना नहीं हसरत भी नहीं शोहरत की

जीने का भी मक़सद नहीं सचमुच में ये अमीराना ।।

 

पैग़ाम ये मस्ती का मस्त दे रहा हूँ मुद्दत से

क़ाबिले ज़िक्र है समझेगा अक्लमंदाना ।॥

 

पीना है अगर एक बार फिर कभी नहीं पीना

मैं पीना बुरा नहीं बशर्ते दिले पैमाना ।।

 

वहदते पीना है जाम 'मुक्त' साक्रिया से मिलो

मगर पीने का मजा इसमें ही पीते ही तुम बहक जाना ।।

 

 

८०. क़सम ख़ुदा की यार

 

क़सम ख़ुदा की यार मंज़िले मक़सूद तू ही।

नज़रे हक़ीक़त से देख मंज़िले मक़सूद तू ही ।।

 

बुज़दिलों के बीच बैठ करके बन गया मेमना

कमबख़्ती तर्क करदे यार मंज़िले मक़सूद तू ही ।।

 

चरमे बंद करता ध्यान जिसका तू तनहाँ होके

वह तू ही है वह तू ही यार मंज़िले मक़सूद तू ही ।।

 

बाख़ुदी दुनियाँ को छोड़ बेखुदी में तो ज़रा

फिर ज़र्रा-ज़र्रा है तू ही मंज़िले मक़सूद तू ही ।।

 

'मुक्त' पैग़ाम हक़ीक़त पे ग़ौर करके दोस्त

जो मैं हूँ वही तू है यार मंज़िले मक़सूद तू ही ।।

 

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८१जिस पै ये दिल फिदा है

 

जिस पै ये दिल फिदा है वह सबसे है निराला

मिलता है दिलकशी से, पर सबसे है वो आला

 

काबा बुतकदा में पैमाँ में मयकदा में

हर जॉ ज़हर ज़ाहिर पर सबसे है निराला

 

फिरका परस्त बनकर पाना बड़ा ही मुरिकल

बुरक़ा उतार फेंको सबसे है वो निराला

 

तारे भी आसमाँ के फरों ज़मीं पे आये

मिलता करने से कुछ क्योंकि है वो निराला ।।

 

मिलने वाला खुद में खुद को ही ढूँढ़ता है

फिर क्यूँ मिलेगा किसको जो सबका है उजाला ।।

 

दीदारे दिलरुबा का होता ज़रूर 'मुक्ता'

इनायत हो फ़क़ीरों की क्योंकि है सबमें आला ।।

 

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८२. एक पहलू नाम दो

 

एक पहलू नाम दो माया कहो या मन कहो

 ईश्वर की माया मेरा मन माया कहो या मन कहो ।।

 

माया नहीं तो मन नहीं और मन नहीं माया कहाँ।

क़ाबिले यह ज़िक्र है माया कहो या मन कहो ।।

 

ईरा की दुनियाँ में माया 'मैं' की दुनियाँ में है मन।

राज़ यह संतों से पूछो माया कहो या मन कहो ।।

 

मन का बुरक़ा मुझपे है माया का बुरक़ा ईश पर

पर बुरक़ा 'मैं' पे हरगिज़ माया कहो या मन कहो ।।

 

बुरक़ा जब तक जीव हूँ बुरक़ा है जब तक ईश हूँ।

बुरक़ा नहीं तब खुद खुद माया कहो या मन कहो ।।

 

मन माया का ये परदा फाश करना है अगर

बरबाद होकर 'मुक्त' हो माया कहो या मन कहो ।।

 

* *

८३. किसी से नफरत कोई मुहब्बत

 

किसी से नफरत कोई मुहब्बत, गर मैं करूँ तो बेहूदगी है

गर कुछ भी है भी तो हमशकल है, गर फ़र्क़ मानें तो बेहूदगी है ।।

 

सितारे जितने इक आसमाँ के, कोई तो रोशन है कोई बेरोशन

इसी तरह 'मैं' हूँ जहान सारा गर फ़र्क़ मानें तो बेहूदगी है ।।

 

हिन्दू मुसलमाँ इसाई मज़हब, सचमुच में हमनामो हमवतन है

सोचो ज़रा फिर खूरेजियाँ[194]' क्यूँ, गर फ़र्क़ मानूँ तो बेहूदगी है ।।

 

कोई भी जाता है कलीशा काबा, कोई भी गिरजा या बुतकदे में

बताओ क्या ज़र्क़ है किसमें कितना, गर फ़र्क़ मानें तो बेहूदगी है ।।

 

जिस जा पे होती है मुकीम गंगा, वहीं पे होती है मुकीम नाली

मुकीम होने पर कौन क्या है गर फ़र्क़ मानें तो बेहूदगी है ।।

 

'मैं' तू का है फ़र्क़ गले की फाँसी, पड़ी जो मुद्दत से निकालना है।

तब 'मुक्त' होगा इन मुसीबतों से, गर फ़र्क़ मानूँ तो बेहूदगी है ।।

 

 

८४. हक़ीक़त गर्चे "मैंही हूँ

 

हक़ीक़त गर्चे "मैंही हूँ नगम दुनियाँ अफ़साना।

क़ाबिले गौर "मैंही हूँ सिर्फ दुनियाँ ये अफसाना ।।

 

गुज़िश्ता हाल आइन्दा वजूद अपना ही क़ायम

जानता हूँ बदस्तूरे सिर्फ़ दुनियाँ ये अफ़साना ।।

 

मिलता बुतकदाओं में नहीं रोज़ा नमाज़ों में

जहाँ जिस जा पे हूँ मिलता सिर्फ़ दुनियाँ ये अफ़साना ।।

 

जहाँ जिस जा पे मन जाता जहाँ जिस जा पे जाता।

उसी जा पे हूँ मैं मिलता सिर्फ़ दुनियॉ ये अफ़साना

 

निगाहों में निगाहों सा ज़बाँ में "मैं" ज़बाँ सा हूँ।

सभी में सब सा हूँ माहिर सिर्फ़ दुनियाँ ये अफ़साना ।।

 

बेसाहिल दरिया सन्नाटा जहाँ सब बुलबुले मानिंद

ये हक़ है नाखुदा 'मुक्ता' सिर्फ़ सन्नाटा ये अफ़साना ।।

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८५. हकीकत के परस्तों को

हकीकत के परस्तों को हकीकत का तकाजा है।

होता ही हक परस्तों को हकीकत का तकाजा है।॥

 

हकीकत हक़ परस्ती है हकीकत खुदपरस्ती है।

अफसाना परस्तों को हकीकत का तकाजा है।।

 

निगाहें देखतीं जिसको ज़बाँ हैरान कहने में

सभी अफसों नहीं हरगिज़ हक़ीक़त का तक्राज्ञा है ।।

 

हक़ीक़त की हक़ीक़त है नसीहत' की नसीहत है।

 शरिअत' की है जो शरिअत हक़ीक़त का तक़ाज़ा है ।।

 

खोलना बंद करना जुर्म दरवाज्ञा निगाहों का

निगाहों की निगाह हाज़िर हक़ीक़त का तक़ाज़ा है ।।

 

मशिरिक्र' का जो मशिरिक्र है मग़रिब' का मगरिब है।

निकलता गुष जिस जॉ पे हक़ीक़त का तक़ाज़ा है ।।

 

यह दिल आता जाता है पैदा होता मरता है।

मेरा ही यह करिश्मा है हक़ीक़त का तक़ाज़ा है ।।

 

'मुक्त' पैग़ाम सुन करके बदला गर दिले महफ़िल

नहीं पैग़ाम अफ़साना हक़ीक़त का तक़ाज़ा है ।।

 ८६. पैग़ाम हक़ीक़त है

 

पैग़ाम हक़ीक़त है सुन करके ग़ौर करना

मक़सद को जान करके हर वक़्त मस्त रहना ।।

 

राही भी वो मंज़िल भी वह खुद खुद है अपना

फ़क़ीरों की इनायत से मंज़िल को पार करना ।।

 

जीना मरना कुछ गर है भी तो भी अफ़साँ।

हक़ीक़त की ज़िंदगी में मर करके फिर मरना ।।

 

ये नाम रूप जितने जो भी हैं खुद की छाया

क़तरा दूजा कोई इससे कभी टलना ।।

 

समझो कि मैं हूँ दरिया बाक़ी सभी हैं लहरें

खुद आपको ठगाकर दुनियाँ कभी ठगना ।।

 

बेख़ौफ़ होके 'मुक्ता' अंदर से कह रहा है।

हदूदे ज़िंदगी में रहकरके भी फँसना ।।

 

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८७. शमा' का मैं हूँ परवाना',

 

शमा' का मैं हूँ परवाना', कोई कुछ समझे को कुछ समझे।

यार' पर मैं हूँ दीवाना, कोई कुछ समझे कोई कुछ समझे

 

यार की यारी में खोया, जितने दुनियों के थे फन्दे

है यही यार का याराना', कोई कुछ समझे कोई कुछ समझे

 

वहदते' पिलाया मय साक़ी', दिल ज़ेर-ज्ञबर-बे लाम हुआ।

बरहना घूमता मस्ताना, केई कुछ समझे कोई कुछ समझे

 

बे० चरम" हुआ तब चरम खुली, बेजिस्म हुआ तब जिस्म मिली।

कुछ रहा अपना बेगाना, कोई कुछ समझे कोई कुछ समझे ।।

 

खुदी" गुमी गुमशुदा मिला, तमन्ना सब क्राफूर" हुई

पस हो गई दुनियाँ अफसाना", कोई कुछ समझे कोई कुछ समझे ।।

 

'मुक्ता' जब मिला समुंदर से, फिर कौन किसी की याद करे

बस इसी लहर में लहराना, कोई कुछ समझे कोई कुछ समझे ।।

 

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८८. इब्तिदा' नहीं इन्तिहा नहीं

 

इब्तिदा' नहीं इन्तिहा नहीं, कोई क्या जाने कोई क्या जाने।

है बेमिसाल' दरिया कैसा, कोई क्या जाने कोई क्या जाने ।।

 

बेदिल' में दिलरूबा' मिला, दुनियाबी झगड़े खत्म हुए।

अब हार नहीं और जीत नहीं, कोई क्या जाने कोई क्या जाने ।।

 

मैं क्या था क्या हूँ क्या हूँगा, इनका अब नामो निशाँ नहीं।

ऐसी अज़गैबी बातों को, कोई क्या जाने कोई क्या जाने ।।

 

लुट गया खज़ाना फ़िक्रों का, तब अजब अनोखा चैन' मिला।

मिल गई हुकूमत बेमुल्के, कोई क्या जाने कोई क्या जाने ।।

 

होश बेहोशी ख़ामोशी, पी गया सभी कुछ प्याले में

हर वक़्त झूमता मस्ताना, कोई क्या जाने कोई क्या जाने ।।

 

मुक्ति क़ैद से मुक्त हुआ, तब आसमान का ताज' बना

बाक़ी बहुरंगी है दुनियाँ, कोई क्या जाने कोई क्या जाने ।।

 

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८९. अलमस्त आज़ाद फ़क़ीरों को

 

अलमस्त आज़ाद फ़क़ीरों को, कोई क्या समझे कोई क्या समझे।

अनमोल ज़ख़ीरी हीरों को, कोई क्या समझे कोई क्या समझे।॥

 

गरक़ाब' हुए हैं मस्ती में, जीने मरने का ख़ौफ़ नहीं

इस ख़्वाब खयाले ग़फ़लत' को, कोई क्या समझे कोई क्या समझे ।।

 

कोई बुरा कहे या भला कहे, इसकी जिनको परवाह नहीं।

महदूद निगाहें बदल गईं, कोई क्या समझे कोई क्या समझे

 

मौहताज नहीं है टुकड़ों के, बेताज तख़्त पर हैं बैठे

मिल गया मुबारक शाहाना, कोई क्या समझे कोई क्या समझे ।।

 

फिरते रूहानी दुनियाँ' में, दुनियाँ का परदाफाश किये

खानाबदोश' मस्तानों को, कोई क्या समझे कोई क्या समझे ।।

 

आशिक़ वो माशूक" साथ, जल गए इश्क़ आतिश में।

गुंजाइश अब रही 'मुक्ता', कोई क्या समझे कोई क्या समझे

 

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९०. बेसाहिल' मस्ती की दरिया में

 

बेसाहिल' मस्ती की दरिया में, लहराना मुबारक हो

गुलिस्ताने ज़हाँ अन्दर, क़हक़हाना' मुबारक हो ।।

 

मज़हबी कैदखाने से, रिहा होना है खुशकिस्मत

खुदी-जिस्मानी दुनियों से, बहक जाना मुबारक हो ।।

 

बिना दिल दिलवर आलम' में, आता वह जो बेदिल हो।

हमेशा मदभरी आँखें, छलक जाना मुबारक हो ।।

 

कुराँ वेदों की फरमाइश, तहीदस्तों का नक़्क़ारा

खुदा खुद में जो खुद रोशन, झलक जाना मुबारक हो ।।

 

क़दमबोसी फ़क़ीरों की, तू कर पाना सनम' हाफ़िज़"

इशारा" ही मुनासिब है, लटक जाना मुबारक हो ।।

 

इस लामहदूद गुलशन में, समाया गुलरूबा" सादिक्र"

महकता 'मुक्त' महबूबे, महक जाना मुबारक हो ।।

 

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९१. है छाई दिल पे ख़ामोशी

 

है छाई दिल पे ख़ामोशी, ये बीमारी मुबारक' हो

ये कैसी दिल की बेहोशी, ये बीमारी मुबारक हो ।।

 

खुशी ग़म बह गये दोनों, इश्क़ सैलाब' दरिया में।

हवाये रही ठण्डी, ये बीमारी मुबारक हो ।।

 

कहाँ आना कहाँ जाना, देखना और क्या सुनना

सरे बाज़ार सन्नाटा, ये बीमारी मुबारक हो ।।

 

खुशक़िस्मत से फ़क़ीरी का', खज़ाना मिल गया मुझको।

जो होना है सो होने दो, ये बीमारी मुबारक हो ।।

 

दरवेशों की बातों को, समझना बूझना मुश्किल

कोई समझे तो क्या समझे, ये बीमारी मुबारक हो ।।

 

जहाँ में लाइलाजे मर्ज , की हिक़मत" है कोई

मौज' में चल रहे झोंके, ये बीमारी मुबारक हो ।।

 

मुनादी मुक्त दुनियाँ में, हमेशा हो रही हरदम ।।

मुबारक हो मुबारक हो, ये बीमारी मुबारक हो ।।

 ९२. दुनियाँ के जो मज़े हैं

 

दुनियाँ के जो मज़े हैं, हरगिज़ ये कम होंगे

चरचे यही रहेंगे, अफ़सोस' हम होंगे ।।

 

मरना है जिसको मरता, जीना है जिसको जीता

गाती हमेशा गीता, मायूस² हम होंगे ।।

 

गुलशन जहाँ में काँटे, गुल' खिलते रंग-बिरंगे

हरराय में मस्त होकर, बेहोश हम होंगे ।।

 

'मुक्ता' की मुक्त वाणी, बेखौफ़ होकर कहती

जैसा है वैसा कहना, टसमस' कभी होंगे ।।

 

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९३. मौज में बेफिकर रहना

 

मौज में बेफिकर रहना, ज़माना कहता है कहने दो।

मौत से भी नहीं डरना, ज़माना कहता है कहने दो ।।

 

वतन' अपना अनौखा बेमिसाले, आसमाँ अन्दर

क़ाबिल' ये ज़हाँ सारा, अगर जलता है जलने दो

 

सरासर बेवकूफी है, मानना खुद को जो कुछ भी।

बदस्तूरे मुक़म्मल रहता है, वैसा ही रहने दो

 

तअज्जुब यह कि बिन परदे के, बन परदानीं बैठा।

ख्याले परदा हट जाए, अगर हटता है हटने दो ।।

 

कोई जीता कोई मरता, कोई बनता बिगड़ता है।

कुदरती" चल रहा चरखा, अगर चलता है चलने दो ।।

 

गलाना दिल " मुमकिन है, गले दिल को गलाना क्या।

मुसीबत मोल क्यों लेना, अगर गलता है गलने दो ।।

 

फ़िक़रों से बरी होना, यही ऐशोपरस्ती" है

बशर्ते तूफाँ" टल जाए, अगर टलता है टलने दो

 

'मुक्त' को गर समझना है, हक़ीक़त " मुक्त हो जाना।

नहीं दुनियों के चक्कर में, अगर मरता है मरने दो

 

 

९४. दम दम' दीदार हरसूं'

 

दम दम' दीदार हरसूं', दिलरूबा' का हो रहा।

पा के यह दिल दिलरूबाई, दिलरुबा में सो रहा ।।

 

वहदते दरिया में नादाँ, क्यों नहीं ग़रक़ाब' हो।

दलदले दुनियाँ में पड़कर, ज़िन्दगी क्यों खो रहा ।।

 

छोड़ महद्दे नुमाई, तंगदस्ती दूर कर।

खुद ही जब गौहर ख़ज़ाना क्यों गरीबी ढो रहा ।।

 

'मुक्त' सागर की तरंगे, क्या इशारा कर रही।

तू मुक्त है तू मुक्त है, नाचीज़ बन क्यों रो रहा ।।

 

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९५. यार दीवाने को पा

 

यार दीवाने को पा, मैं भी दीवाना हो गया

बेठिकाना देख मैं भी, बेठिकाना हो गया ।।

 

ग़फ़लत का ख़्वाबे ख़याल' था, जीना मरना ये बवाल।

आँख खुलते ही जो देखा, सब अफ़साना' हो गया ।।

 

साक्रिया मुरशद ने मैं' कैसी पिलाई वाह-वाह

देखना सुनना समझना, सब मैखाना हो गया ।।

 

पैमाना आँखें बनीं, और कान पैमाना बना

पैमाना सारा ज़हाँ, दिल भी पैमाना हो गया ।।

 

क्या करूँ नज़रे-नियामत', हस्ती" नेस्ती" कुछ नहीं।

बस यही नज़रे नियामत, खुद नज़राना" हो गया ।।

 

शुक्रिया साक़ी के क़दमों पै भी लाखों शुक्रिया

शुक्रिया कहते ही कहते, खुद शुकराना" हो गया ।।

 

जल रही है बेख़ुदी', कैसी अनौखी है रामाँ"

यारों" परवाना बनो, मैं भी परवाना हो गया ।।

 

लाज़बाँ मस्ती-परस्तो  हक़' परस्ती दरअसल

कुछ भी करने पर ही 'मुक्ता', मन मस्ताना हो गया ।।

 

 

 

९६. दिल बेदिल हो जाता है

 

दिल बेदिल हो जाता है, पर दिलरूबा' पाने के बाद।

खुरा हो जाता है गुलरान², गुलरूबा' आने के बाद ।।

 

लाज़बाँ लहराते दरिया, में हज़ारों बुलबुले

ज़िन्दगी का है मज़ा, मस्ती में लहराने के बाद ।।

 

हो जा बेपरवाह किश्ती, खुद किनारे जा लगे

मुल्के मिल जाती हुकूमत, कुछ कहलाने के बाद ।।

 

लुत्फ' बेफ़िकरी में यारों, भाड़ में जाये बला

गूँजती है यह सदा', अन्दर में ठहराने के बाद ।।

 

साक्रिए मैखाना जाने, से ही आता है सरूर"

खत्म हो जाती है दुनियाँ, पैमाना", पीने के बाद ।।

 

आशिक़े  माशूक़ " दोनों, दर्शगाहे " जा मिले

इश्क़ की तारीफ़" क्या, तालीम सिखलाने के बाद ।।

 

बेसरापा' बातों को, समझेगा बेसिर पैर का

समझना आसान होगा, 'मुक्त' मुसकाने के बाद ।।

 

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९७. निजानन्द मस्ती में

 

निजानन्द मस्ती में मैं डूबता हूँ।

कहाँ कौन कैसा हूँ मैं ढूँढता हूँ।।

 

जीने की चिन्ता मरने का खतरा।

क़ज़ा' से निडर' होके मैं घूमता हूँ।।

 

खिले हैं बगीचे में गुल' रंग-बिरंगे।

मिसाले भँवर होके मैं गूँजता हूँ।।

 

गुज़िरता ज़माने के थे कर्म जितने

सदा ज्ञान होली में मैं फेंकता हूँ।।

 

नहीं दोस्त दुश्मन मैं हूँ किसी का।

नरो में हमेशा ही मैं झूमता हूँ।।

 

हस्ती नेस्ती नहीं बुतपरस्ती'

मैं ही, मैं में, मैं को ही, मैं पूजता हूँ ।।

 

दिया है जिन्होंने ये बेहद निगाहें"

पकड़ उनके क़दमों को मैं चूमता हूँ।।

 

हुआ 'मुक्त' सबसे बड़ी खुशनसीबी"

फ़क़ीरी खज्ञाने को मैं लूटता हूँ।।

 

 

९८. मैं जैसा हूँ वैसा ही हूँ

मैं जैसा हूँ वैसा ही हूँ, कोई कुछ देखा कोई कुछ देखा।

जो जैसा है वैसा ही हूँ, कोई कुछ देखा कोई कुछ देखा ।।

 

हूँ कौन कहाँ मैं हूँ कैसा, तरारीह' नहीं तक़रीर नहीं।

हो गए मुसव्वर' सब हैरौँ', कोई कुछ देखा कोई कुछ देखा ।।

 

अरों नक़ाब पोशीदा' हूँ, दीदार चरम पेचीदा हूँ।

लग गए लबों पर चुप ताले, कोई कुछ देखा कोई कुछ देखा ।।

 

सारी दुनियाँ का "मैं" हूँ दूनियाँ फिर भी तलाश में फिरती है।

बस यही तमाशा" कुदरत" का, कोई कुछ देखा कोई कुछ देखा ।।

 

ये अजब अनौखी तसवीर, खिंच रही तसव्वुर" में हरदम

तसवीर तसव्वुर दोनों को, कोई कुछ देखा कोई कुछ देखा ।।

 

बेदाल लाम वाले "मैं" को, बेदिल" होकर जिसने देखा

हो गया 'मुक्त' जंजालों से, कोई कुछ देखा कोई कुछ देखा ।।

 

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९९. हूँ जज़्ब ' जलवा

 

हूँ जज़्ब ' जलवा -गर सबमें इकसां', दीवाना' होकर जो हमने देखा।

गई जहन्नम में सारी दुनियाँ, बेताब होकर जो हमने देखा ।।

 

मैं हूँ सभी का हूँ सबसे आला तक़रीर' मेरी इस जहाँ' में।

बताने वाले ख़ामोश बैठे, नाचीज़" होकर जो हमने देखा ।।

 

जो कुछ भी माना खुद को ही माना, मैंने ही माना ये भूल भुलैया।

ये खेल कैसा परदा' नर्सी' का, परदा" उठाकर जो हमने देखा ।।

 

भटकती दुनियाँ दैरो-हरम' में, दिले दफ़ीना" हुआ हासिल

दिले दफ़ीना तलारागर" खुद, नज़र उठाकर जो हमने देखा ।।

 

हमेशा लहराता मुक्त दरिया, हुआ ये ग़रक़ाब सारा आलम

पता नहीं मैं था कौन, क्या हूँ, मस्ताना होकर जो हमने देखा ।।

१००.पैग़ाम हक़ीक़त है

 

पैग़ाम हक़ीक़त है सुन करके गौर करना

मक़सद को जान करके हर वक़्त मस्त रहना ।।

 

राही भी वो मंज़िल भी वह खुद खुद है अपना

फ़क़ीरों की इनायत से मंज़िल को पार करना ।।

 

जीना मरना कुछ भी गर है तो भी अफसों।

हक़ीक़त की ज़िंदगी में मरकरके फिर मरना ।।

 

ये नाम रूप जितने जो भी हैं खुद की छाया

क़तरा दूजा कोई इससे कभी टलना ।।

 

समझो कि मैं हूँ दरिया बाक़ी सभी हैं लहरें

खुद आपको ठगाकर दुनियों को कभी ठगना ।।

 

बेख़ौफ़ होके 'मुक्ता' अंदर से कह रहा है।

हदूदे ज़िंदगी में रह करके भी इसमें फँसना ।।

 

* *

 १०१. है आती बेखुदी मस्ती

 

है आती बेखुदी मस्ती, खुदी जब दूर हो जाये।

तसल्ली दिल को जब होती, दुई काफूर हो जाये ।।

 

किसी की मंज़िले काबा, कोई मंज़िल है बुतख़ाना।

ख़तम होती सभी मंज़िल, कि जब मक़सूद मिल जाये ।।

 

खुद से है जुदा कोई, जो हर ज़र्रा हर क़तरा

मगर जब हो मेहर मस्तों की, तभी महसूस हो जाये ।।

 

दिल की यकसूई करने की, कोशिश करते सब मुद्दत से।

दिवाना दिल ठहर जाता कि, बेदिल उसको मिल जाये ।।

 

फलॉ हूँ पर्द फ़र्जी, पड़ा है जिस हक़ीक़त पर

नज़र पर्दानशीं आता जो परदाफाश हो जाये ।।

 

बँधता खुद ही मरज़ी से, है खुलता खुद इनायत से

 देखता खुद को खुद होकर, देखकर 'मुक्त' हो जाये ।।

 

*

 

 

१०२. ये दिल है जिस पे आशिक़

 

ये दिल है जिस पे आशिक़ आशिक़ ही जानते हैं।

माशूक़ दिलरुबा है माशूक़ जानते हैं ।।

 

दिल जो यह रामाँ है यह दिल है जिसका परवाँ

नाचीज़ होके हरदम हम हमको जानते हैं ।।

 

जाने कब से यह दिल राही बना हुआ है

सब राह छोड़ करके मंज़िल मक़सूद जानते हैं ।।

 

है दिल मुक़ीम जिसमें और वह मकान दिल है।

बेदर दीवारे ज़ीना हम उसको जानते हैं ।।

 

तसवीर दिल है जिसकी जो दिल का तसव्वर है।

वह जैसा तसव्वर है वैसा ही जानते हैं ।।

 

उस गुलचमन की रौनक कहने में बेज़बाँ है

नामो निगार 'मुक्ता' हक़ीक़त को जानते हैं ।।

 

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१०३.हक़ीक़त जानना गरचे हो

 

हक़ीक़त जानना गरचे हो मस्तों का दीवाना।

तमाशा देख खुद में खुद का कोई अपना बेगाना ।।

 

मगर ये दिल क़ाबिले ग़ौर कुछ करना ही कम्बख्ती।

नहीं कुछ करने से मस्ती का मैख़ाना ही पैमाना ।।

 

जहाँ तक करना धरना है कभी मंज़िल तय होगी।

सभी से हाथ धो बैठे कहाँ आना कहाँ जाना ।।

 

जहाँ पे दिल बेदिल होके दुबारा दिल बन पाता।

हमेशा रहता सन्नाटा वहीं पे यार याराना

 

बिना खींचे ही जो खिंचती जिसे दरवेश हैं पीते

ख़तरा दीनो दुनियाँ का वही मस्तों का मैखाना ।।

 

रोख़ों का यही काबा बुतख़ाना बरहमन का

फ़क़ीरों का यही नुस्ख़ा कहता 'मुक्त' मस्ताना ।।

 

**

 

*

१०४. मैं शमा हूँ तू है परवाना

 

मैं शमा हूँ तू है परवाना मुख्तलिफ दो हैं कहाँ।

हालाँकि सूरत मुख्तलिफ पर, मुख्तलिफ दो हैं कहाँ ।।

 

दौड़ के जाते हैं परवाँ रामा होने के लिए

ख़ाक हो जाने पे परवाँ, मुख्तलिफ दो हैं कहाँ ।।

 

मैं होता गर्चे तू क्यों जुस्तजू में मुबतला

ग़ौर कर तू हमशकल है मुख्तलिफ दो हैं कहाँ ।।

 

दीदार कर अपने वतन का हमशकल हमशकल

तर्क कर अफ़साना यह तब, मुख्तलिफ दो हैं कहाँ ।।

 

एक पहलू नाम दो हैं मन कहो या मैं कहो

सरझुका जो खुद को देखा मुख्तलिफ़ दो हैं कहाँ ।।

 

क्या है ठंडक क्या है लज़्ज़त हुस्न क्या है क्या सुकून

 मुक्त हो जा 'मुक्त' में फिर मुख्तलिफ़ दो हैं कहाँ ।।

 

**

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पैग़ाम--मुक्त

 

 

 

 

 

 

 

 

शे'

 

 

 

 

पैगाम--मुक्: शे'

 

सोचता है क्या अरे दिल सोचना कोई चीज है

सोचना मुमकिन नहीं वेदाल लाम यार है ।।

 

* *

देख ले हर रौ में तू खुद कानजारा वाह वाह

देखते ही क्ष्वाबे दुनियां खुद फना हो जायगी ।।

 

* *

मस् होना चाहता गर हर तह वर्वाद हो

दुनिया दुरंगी तर्क कर और फिक्र से आजाद हो ।।

 

* *

फिक्र फॉका कर तू नॉदों फिक्र ही जंजीर है

फिक्र होती ज्यों फना बस गया तू फकीर है

 

* *

इश् के कूचे में आकर हो गया दिल लापता 

लापता ही लापता वाकी जो वह भी लापता ।।

 

* *

इश् की तलवार से सिर कट गया अभिमान का

फिर जो देखा तो यही खुद के सिवा कुछ भी नहीं ।।

 

* *

इश् का तूफान आया उड़ गया सारा बवाल

ढुंढने वाला नहीं फिर क्या मिले मसूके खाक ।।

* *

मिलना गर माशूक से माशूक़ होना लाज़िमी

जब कभी मिलते हैं दो, मिलना मिलाना कुछ नहीं

 

* *

 

गुमशुदा' की तलाश में खुद ही हुआ मैं गुमशुदा

देखता हूँ गुमशुदा पाता नहीं हूँ गुमशुदा ।। *

 

**

 

ज़िन्दगी का है मज़ा बेफ़िक्र हो जाना ही दोस्त

खुद परस्ती है बेफिक्री मस्त रहना ज़िन्दगी ।।

 

* *

 

बेफिक्र होना गर तुझे बेफ़िक्र से कर दोस्ती

फ़िक्र के मोहताज़' जो दोस्ती कर दोस्ती कर ।।

**

इश्क़ के दरबार में आये थे हम कुछ पायेंगे

पास में जो कुछ भी था वह मुस्कराकर दे चले ।।

 

**

 

इश्क़ के बाज़ार में सौदा खरीदा इश्क़ का

 पास में कुछ भी था क़ीमत चुकाया आपको ।।

 

**

 

हविस' हर चीज़ की थी जब भटकता था मैं मुद्दत' से

हविस जब हर लई हरि ने वेशर्मी गई तब से ।।

 

* *

 

तमन्ना से वरी होना हरूफ़े मुक्त के मानिन्दः

तमाशा देख फिर अपना क़यामत' आने वाली है ।।

 

* *

 

पकड़ना चाहता था मुक्ता हटती जाती थी

दुरंगी दुनियॉ ठुकराया दिवानी घूमती फिरती ।।

 

* *

 

कुदरतन" जल रहा जल्वा" हमेशा 'मैं' ही हूँ, रोशन।

चुनाँचे झूमना मस्ती में होना है सो होने दो ।।

 

* *

 

फ़र्ज़ है ग़ौर करना तुझको मस्तों के इशारे पर

ख़याले दरम्यों जो बैठा समझना बस तू ही तू है ।।

 

* *

 

इशारा कर रही ऑखें हमेशा ही फ़क़ीरों की

जहाँ पर हम ठहर जायें वहाँ जा बस तू ही तू है ।।

 

* *

 

परस्ती खुद बिना दुनियों परस्ती' बेवकूफी है।

परस्ती खुद हुई दुनियॉ परस्ती खुद परस्ती है ।।

 

* *

 

भरा मस्तों की आँखों में दिले वेहोशी का जादू

जिसे देखा वहीं घायल क़ाबिल जीने मरने के ।।

 

**

मदभरी आँखै इशारा कर रही हैं बार-बार

फ़िक्र से हो जा मुबर्रा नाचती सर पर क़ज़ॉ ।।

 

* *

 

मानकर 'मैं' को ही तू देरो-हरम' में तलाश की

 सर झुका हमने जो दी दो साथ ही दफना गये ।।

 

* *

 

फ़क़ीरों की आँखें हमेशा निराली

जिधर देखते हैं उधर लाली लाली ।।

 

* *

 

भागती फिरती थी दुनियाँ जब तलब करते थे हम

अब जो नफ़रत हमने की वह बेक़रार आने को है ।।

 

* *

 

ये दुनियाँ सच में अफसाना' बिगड़ती बनती रोज़ाना।

हमेशा मारती ताना दोस्ती कर दोस्ती कर

 

* *

 

कूंचे कूँचे हो रही मस्तों की ये तक़रीर' दोस्त

जिस जगह रूकती सदा दीदारे है रोशन ज़मीर ।।

 

* *

 

बंद करना खोलना ऑखों का जब मिटता खयाल

ग़ौर से दीदार कर खुद के सिवा कुछ भी नहीं ।।

 

* *

 

ज़िन्दगी कुदरत ने दी आज़ाद' होने के लिए

लेकिन फँसा खुद आप, तोहमत' दे रहा अल्लाह को ।।

 

* *

 

निगाहें मस्त की ऊँची चढ़ी रहती है चोटी पर

उतरती जब कभी मौक़े पर, कर देती तभी घायल ।।

 

**

 

निगाहें निरखती मस्तों की उनको जो तड़पता हो

 पिलाती जाम का प्याला जो पीते ही वहक जाये ।।

 

**

किसी पर भी कर एतवार अपना आप कुछ भी हो

दुरंगी दुनियाँ चमगीदड़ कभी हँसती कभी रोती ।।

 

* *

 

अरमान' ज़िन्दगी के पूरे कभी होंगे

अपने ही खुद वतन में होकर अमन तू सो जा ।।

 

**

 

जो खुद ग़रज़ी से आती है फॅसाती है ये रो रोकर

तअज्जुब ऐसी दुनियाँ को भला कोई कैसे खुश रखै ।।

 

**

 

एक सॉ हर झरोखे में बैठकर 'मैं' हूँ, जो कहता

गौर कर देख खुद अपना, लो ये तेरा ही पसारा है ।।

 

**

 

सोना जागना दोनों के दरम्याने में जो बैठा।

 फ़क़ीरों की वही दौलत जो दुनियाँ की इबादत' है ।।

 

**

 

सॉस के अन्दर वही और सॉस के बाहर वही

आने जाने दोनों के अन्दर ख़ुदा रोशन ज़मीर ।।

 

**

 

हक़ीक़त में ठिकाना कहते जो सबका ठिकाना है।

ठिकाना मिलता ही उससे जो सच में बेठिकाना है ।।

 

* *

 

फ़क़ीरों की निगाहों का करिश्मा दूर से देखो

नहीं हो जाओगे घायल क़ाबिल' दीन दुनियाँ के ।।

 

* *

 

सीखना गर हक़ीक़त में सही नुसखा' फ़क़ीरी का।

किताबों में नहीं नुस्ख़ा तू ख़िदमत कर फ़क़ीरों का ।।

 

**

 

हिकमत है नहीं दुनियाँ में गुरवत' अन्दरूनी की।

नुस्खा बेखुदी मस्ती का गर मस्तों से मिल जाये ।।

 

**

फ़िरक़ा परस्ती से मिली राहत हमेशा के लिए

अब कौन सी ताक़त है दुनियाँ में जो आगे सकै ।।

 

* *

 

बचना है तमन्ना की तबाही' से अगर दोस्त

रहना है मुल्के मुक्त तबाही नहीं जहाँ ।।

 

* *

 

वरी होना अगर तुझको हविरा हाकिम हुकूमत ' से

पराये देश को ठोकर मार करके स्वदेशी बन ।।

 

* *

 

मुक्त को ज़िंदगी भर फ़र्ज़ अदा करना है

दुनियाँ अंधी है चहै भला बुरा कुछ भी कहै ।।

 

**

 

मुक्त का संदेश यही गूँज रहा आलम में

खुदा का भी 'मैं' हूँ, मुक्त मुक्त सिवा कुछ नहीं ।।

 

* *

 

मुवारक़ मुक्त महफ़िल को जहाँ पर मुक्त बैठा हो

पिलाता मुक्त पैमाना जो पीकर मुक्त हो जाये ।।

 

* *

 

मुक्त ज़िन्दा है इस दुनियाँ में तो औरों के लिए

लग जाय दूसरों के लिए जिस्म' का टुकड़ा टुकड़ा ।।

 

* *

 

तमन्ना तलाक़ दे चुकी तब दिल भी क्या करें

मंज़िले मक़सूद' पहुँच गया तो फिर किधर को जाय ।।

 

* *

 

भरा अनमोल लालों से खज़ाना मस्त मुक्ता का

लूटते रात दिन जितना ख़ज़ाना ज्यों का त्यों उतना ।।

 

* *

 

है तुझे दुनियाँ में मुसीवतो का सामना करना

मुक्त दुनियाँ में , दिल खोल बेख़ौफ़ होकर ।।

 

**

मुक्त को जीना है अगर जीना है वेग़रज़ी से

और ग़र्ज़ से जीना है अगर अभी मर जाना वेहतर ।।

 

* *

 

मुक्त की महफ़िल में आता मुक्त होने के लिए

मुक्त से भी मुक्त होकर सिर्फ़ रह जाता है मुक्त ।।

 

**

 

खुद के बिना कुछ भी नहीं, खुद से जुदा है अगर

हक़ीक़त समझना है तुझे ख़ुदा होकर के समझ ।।

 

**

 

मुक्त को जानना है अगर मुक्त जानने के लिए

मगर मुक्त की नज़र से देख मुक्त जानना है अगर ।।

 

* *

 

मस्त रखते हैं क़दम वहाँ बन जाता काबा

बैठते जिस वक़्त जहाँ पर वहीं है बुतखाना ।।

 

* *

 

मस्तों को देखने से ही इस दिल को तसल्ली होती

 मगर सबको मिलते भी नहीं मिलते हैं वे उनको ही जो तड़फता हो ।।

 

* *

 

मुहत्वत करना है तुझे कर खुदा के अज़ीज़ों से

दिल दिमाग़ देकर क़दमों पे तू हो जा कुर्वा ।।

 

* *

 

सब कुछ देकर के तो मस्तों से मुहव्यत पाई

मैं भी नहीं तू भी नहीं दीन वो दुनियाँ भी नहीं ।।

 

* *

 

तौक़ दुनियाँ के नम्बर दो नेकनामी वो वदनामी

सभी से मुक्त है मुक्ता नेकनामी या वदनामी 11

 

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आसान होना है वरी फौलाद की ज़ंज़ीर से

 मुश्किल हविश हटती नहीं यह नामुरादे मर्ज़ है ।।

 

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देखते हैं मस्त जिधर उधर जलजला' आता

बंद करते हैं पलक़ दिल की क़यामत होती ।।

 

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बोलते हैं मस्त जहाँ वहाँ आसमाँ फटता

चुप होते हैं जभी चारों तरफ़ ख़ामोशी ।।

 

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शुरुआत मुहत्वत की मंज़िल में रो रहा है

चोटी है मुसीवत की इसको भी पार करना ।।

 

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मुहत्वत की दुनियाँ में आकर के देखो

मुहत्वत सिवा ज़मीं आसमाँ है ।।

 

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टपकता है हमेशा मस्त की आँखों से मस्ती का सरुर'

मस्त होना है अगर तू ऑख पैमाना बना ।।

 

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वेपिये वदहोश होता है जहाँ पर मयक़दा

नज़र आता है हक़ीक़त में मुवारक़ वुतक़दा ।।

 

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तुझको अगर करना है मुसीवत का सामना

मस्तों की महफ़िल में मस्ती का जाम पी ।।

 

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शुरु में सोचना था फ़कीरों की क़रामात

जब सौंप दिया दिल को तो अब ज़िंदगी कहाँ ।।

 

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पैग़ाम मुहव्वत का आँखों में नूर जिनके

मिलते कहाँ रूहानी दुनियाँ में घूमते हैं ।।

 

हकीक़ी बगीचे की सूरत निराली

मुहव्वत से देखो बिना ऑख देखो ।।

 

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मस्तों की महफ़िल में क़ायदा क़ानून नहीं

जाम पीना है अगर बैठ जा पैमाना लेकर ।।

 

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मुहत्वत बिना मुक्त मस्ती नहीं

जहन्नुम में ढूँढ़ो या जन्नत में ढूँढ़ो ।।

 

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मुहत्वत की मंज़िल अजब है निराली

मुहत्वत बिना वाक़ी ख़ाली ही ख़ाली ।।

 

नहीं

 

हक़' में हक़ूक़ उसका जाना है जो हक़ीक़त

भरपूर है जहाँ में मगर दूर बेइन्तिहाँ है ।।

 

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वाख़ुदी मस्ती नहीं है वेख़ुदी मस्ती है दोस्त

हक़-परस्ती कुल-परस्ती खुद-परस्ती ज़िदगी ।।

 

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आती है दिवाली तो निकलता है दिवाला

मगर ज़िंदगी में मौक़ा आता कभी कभी ।।

 

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क़ब्र पर चादर तनी तब फिर कहाँ है चूँ चरा

जूतियों, फूलों का सेहरा डालकर देखै कोई ।।

 

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जीना ख़ास उसका ही जो जीता बेसहारा है

सहारा छोड़ देने से ही तब मिलता सहारा है ।।

 

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अमल से ज़िन्दगी में जन्नत भी जहन्नुम भी

तक़रीर से क्या बनैगा मुल्ला हो चहै हाफ़िज़ ।।

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मयक़दा क्यों ढूंढ़ता है मयक़दा तू खुद खुद

खिंच रही है जो हमेशा अन्दरूनी शौक़ कर ।।

 

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होती है ज़िन्दगी में मुहत्वत कभी कभी

होती है फ़क़ीरों की इनायत कभी कभी ।।

 

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जो हैं क़ानून दुनियों के कभी जब टल नहीं सकते

चुनाँचे चाल मस्तों की भला कैसे बदल जाये ।।

 

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निकलता है दिवाला जब, तभी होता है दीवाना

दिवानों की ही बातों को समझता है जो दीवाना ।।

 

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दीवाना वह जो दिल दिमाग़ दुरूस्त नहीं

 मैं कहाँ दुनियाँ कहाँ इस होरा का भी होरा नहीं ।।

 

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मस्तों की दिवाली है जो सबकी दिवाली

शामिल वही होते हैं जो महरूम हैं सबसे ।।

 

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मरती मायूसी दुनियाँ के झंझटों में

हर वक़्त खुश मिज़ाज़ी मिलती है मुक़द्दर से ।।

 

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मायूस की दुनियाँ में रहकर क़हक़हाना जुर्म है

मुक्त होना चाहता गर मुक्त की महफ़िल में ।।

 

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तय हुई मंज़िल तमन्ना हविश हाज़िर है नहीं

टल गया दुनियों का ख़तरा मौज से आराम कर ।।

 

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ख़ुदा बचाये मुक्त मस्त की निगाहों से

फ़रिश्ता" हो तो बहक़ जाय आदमी क्या है ।।

 

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खुद पे ज़माने का पड़ा फ़र्जी जिस्मानी वुरक़ा'

अगर बुरक़ा हटाया तो इस ज़िन्दगी से मरना अच्छा ।।

 

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बेखुदी जिनकी ग़िज़ा और वेखुदी जिनकी खुराक

दीन दुनिया से विलग उन खुद-परस्तों को समझ ।।

 

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मस्तों की महफिल में नहीं फर्क है नर मादा' का

राज़ समझना है अगर तू भी नज़र पैदा कर ।।

 

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ज़िन्दगी का ऐन" क्या है फिर दुबारा ज़िन्दगी

ज़िन्दगी हासिल हुई जब फिर कहाँ वह ज़िन्दगी ।।

 

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रोज़मर्रा है मुहत्वत का हंगामा दोस्तो

 मगर मजनूं ही बताएगा मुहव्वत क्या वला ।।

 

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साक़िये दर पे हज़ारों पीने वालों का हजूम'

पीते ही गर वहक़ जाये अहमियत उस जाम' को ।।

 

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जज़्बा' सादिक्र' है तो फिर क्यों तलारो कुये दोस्त

जिस जगह सर रख दिया वही दरे' जानाना है ।।

 

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मस्ती में मस्त रहना जिन्दगी का मज़ा है

अगर हुई हासिल तो खुदकशी' है लाज़िमी' ।।

 

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ज़रें ज़र्रे' में समाई हुई सूरत अपनी

मगर दिल की तंग-दस्ती से मोहताज बना ।।

 

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मंज़िल मुहत्वत तुझे है अगर तय करनी

तो सबसे सब तरफ से तू अन्धा हो जा ।।

 

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गर्चे बुलाये तो रामा रामाँ नहीं

परवाना भी वही जो खुद खुद जाये ।।

 

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खामोशी समझ के यार आप में खामोश हो जा

अगर नहीं भी समझ में आये तब भी तू खामोश हो जा ।।

 

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खामोशी बड़ी चीज़, क़िस्मत से नहीं मिलती

चाहता गर दिल से फ़क़ीरों की क़दमबोसी कर ।।

 

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मुद्दत से मरती दुनियाँ खामोशी के वासते

मगर ढूँढ़ती कुछ करके खामोशी मिले कहाँ ।।

 

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मुहद्व्वत कर लिया मस्तों से फिर दुनियों से क्या डर है।

क़फ़न जब बंध गया कंधे से नेकनामी या वदनामी ।।

 

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दे दिया खुद आपको मुहव्वत के वासते

अंजाम क्या वला है अच्छा या बुरा हो ।।

 

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मस्तों की निगाहों में भरा प्याला मुहत्वत का

जिधर जब देख दें जिसको वह चकनाचूर हो जाये ।।

 

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शम्माा कभी कहती नहीं

परवाने खुद खुद आते हैं ।।

 

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महबूबे मुहत्वत की मंज़िल कोई नहीं

अगर सौंप दिया दिल को तो दिल भी कोई नहीं ।।

 

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क़यामत की क़रामातै हैं, मस्तों की निगाहों में

राम्मों को देखने से ही ख़तम होते हैं परवाने ।।

 

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मुस्कराते बोलते मस्तों की आँखें जिसने देखा है।

वह डूबा मौज के सैलाब में गोता लगा करके ।।

 

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शम्मॉ के मुस्कराने में हज़ारों टूटते आशिक़

सभी कुर्वानियाँ करते कोई आगे कोई पीछे

 

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तड़प दिल भी उसे कहते राम्मों को ही तड़फ़ता हो

शम्मॉ की आबरू इसमें अगर आते हैं परवाने ।।

 

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माशूक़ महफिल में हैं आशिक़ आते परवाने

शम्मॉ की आग में जल करके ही दीदार करते हैं ।।

 

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तड़प को देख करके गर तड़फ गई

याद करने में अगर होश है तो याद नहीं ।।

 

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तड़प आई नहीं महबूब का दीदार कहाँ

हक़ीक़त जानना अगर पूँछ तू परवानों से ।।

 

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खुश क़िस्मती से जिसने मस्तों का प्यार पाया

सरताज बन के रोशन दुनियाँ में चमकता है ।।

 

 

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मस्तों की निगाहों का समझेगा इशारा

देखैगा अपने अंदर अपना ही नज़ारा ।।

 

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जगमगाता रात दिन मस्तों की आँखों का जो नूर

भाग जाता है अंधेरा मुड़ गई आंखें जिधर ।।

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मस्तों की ऐसी मस्ती मुरिक्रल से सम्हलती है।

रखें कहाँ किधर को धरती आसमाँ है ।।

 

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आलम का खुदा कहते हैं जिसे सच में मौज़ा' मुरतरक़ा है।

खुद का दीदार किया जिसने मालिक मक़बूज़ा' है उसका ।।

 

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मुवारक है मुहव्वत को कभी अल्लाह जिसे वक़्शे

खुशी से खुदकशी करते राम्मों में आके परवाने ।।

 

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मस्तों की मुस्क राहट एक बार जिसने देखा

बस लुट गया खज़ाना महरूम ज़िन्दगी से ।।

 

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इश्क़ के झोंके ने फेंका मुक्त को सागर के पार

हो गई मंज़िल खतम अब और होने की है ।।

 

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मुस्कराहट इश्क़ में जब क़ैद हो जाता है दिल

छोड़ता तब छूटता खुद आप हो जाता है इश्क़ ।।

 

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इश्क़ है दिल की क़यामत इश्क़ है दिल की क़जा'

इश्क़ से बचना मुसाफिर इश्क़ है ख़ौफ़ो ख़तर' ।।

 

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मुस्करा रही है शम्मॉ शम्मॉ में जलना है तुझे

दीन दुनियाँ को भूल करके तू परवाना बन ।।

 

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यहाँ चूँ चाँ नहीं करना मुहव्वत की हुकूमत है।

नहीं औरों की गुंजाइश ज़मीं या आसमाँ का हो ।।

 

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ज़िन्दगी कहो उसे जो ज़िन्दगी की ज़िन्दगी

ज़िन्दगी गर मिल गई तब फिर कहाँ है ज़िन्दगी ।।

 

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इल्  क्या दुनियों को जो समझै दीवानों की सदा'

ग़म खुशी की आग में जो है झुलसती रात दिन ।।

 

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'मैं' सोता हूँ या जाग रहा इसका भी ख्वाबों खयाल नहीं।

जिस वक़्त मस्त हो गया तब सर पे कोई बवाल नहीं ।।

 

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ये रिश्ता है मुहत्वत का समझना बूझना मुश्किल

शमाँ की है मुहत्वत में हमेशा जलते परवाने ।।

 

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खुदकशी अगर कोई करता है तो करने का इलज़ाम नहीं।

यह चीज़ मुहत्वत है ऐसी जीने मरने का नाम नहीं ।॥

 

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शमॉ के रूबरू आकर शमॉ  में जलते परवाने ।।

अन्दरूनी' मुहव्वत में शमॉ जाने या परवाने ।॥

 

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खज़ाना मौज़ से लूटो सरे बाज़ार मुक्ता का

जिसे जितनी ज़रूरत हो वही उतना ही ले जाये ।।

 

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अनमोल हीरों का खज़ाना लुट रहा हर पल मुक़ाम

वक़्त भी अनमोल है अनमोल मुक्ता की सदा ।।

 

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साक़िया ने क्या पिलाया क्या पीया कैसे पीया ।।

होश हूं, वदहोश हूँ, इस याद की फुरसत कहाँ ।।

 

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'मैं' कौन हूँ, क्या कर रहा हूँ, और कुछ करना भी है।

इस भार को ढोने की ताक़त दिल दिवाने को कहाँ ।॥

 

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खिदमत' भी वही कर सकता है दुनियाँ का जिसे जंजाल हो।

हर वक़्त विलग है जो सबसे और दिल का भी कंगाल हो।

 

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दरवेशों की करना खिदमत जिन्हें कभी भी मानामान हो

रहती है फ़क़ीरी मुट्ठी में दिल में जिनके अरमान हो ।।

 

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खिदमत की बदौलत ख़ुदा मिला दुनियॉ सब गई जहन्नुम में।

ज़िन्दगी का मक़सद कुछ रहा जो होना है सो होने दो

 

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खिदमत से ख़ुदा खिदमत से जुदा यह राज़ 'समझना है मुरिक़ल

एहसानमंद हो मस्तों का मुश्क़िल क्या जो आसान हो ।।

 

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फक्र कर तू ज़िन्दगी में गर फ़क़ीरी गई

बादशाहत चीज़ क्या सब का ख़ुदा बन जाएगा

 

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मादरे वतन" को छोड़ चला दिल ये तसल्ली के लिए।

मक़सद पूरा हुआ चाट रहा है शबनम ।।

 

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गुरबत" जा नहीं सकती हविस की इस हुकूमत में

कहो दिल से सिमिट कर आप में खामोश हो जाये ।।

 

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मुहत्वत की नज़र से देख कोई अपना बेगाना।

अगर करता है नफ़रत दिल से फिर ख़तरा ही खतरा है।।

 

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गुलिस्ताने जहाँ मुहव्वत में फूल भी हैं और काँटे भी।

मगर जो गुल के जोया' हैं उन्हें क्या खार से खटका" ।।

 

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यह दुनियाँ ख़ार है कहीं लग जाये

तुझे गर प्यार है तो देख मुहत्वत से

 

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जो क़ैदी हैं मुहत्वत के उन्हें दुनियाँ से क्या मतलब

हमेशा हैं वरी' दो से क़यामत हो या क़ायम हो ।।

 

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ताज जिस वक़्त सर पर था बना महबूब आलम का।

उतरकर गया नीचे जिधर देखो जुदाई है ।। *

 

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मगरूरी, क़दा अन्दर छुपा बैठा तसल्ली से

गरचे देखना उसको तो खिदमत कर फक्रीरों की

 

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हक़ीक़त देखना गर्चे तरीक़ा' बंद कर शाहिद'

रेयाज़े' कुछ करना ही यही असली इवादत' है ।।

 

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मुहत्वत मुल्क में देखो हस्ती है नेस्ती है

भला फिर कौन सी दुनियाँ में रहते आशिक़ो माशूक़

 

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मुसाफ़िर जो मुहत्वत के चले आते हैं मुद्दत से

जहाँ जब तय हुई मंज़िल रहा अपना बेगाना ।।

 

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हुकूमत सब पर करना गर तमन्ना तर्क कर फ़ौरन

निडर होकर नज़ारा देख अपना खुद की नज़रों से ।।

 

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हरगिज़ तसल्ली मिल सकती तसवीह' तमन्ना गर ज़िन्दा

तसवीह तमन्ना तोड़ फेंक तालीम' तालिबे इल्मों की ।।

 

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यार महफूज़ी से रहना ये है दुनियाँ ज़लज़ला

हो गये वर्वाद लाखों जो भी थे बाहर वतन ।।

 

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यह फ़न है कि दुनियाँ में रहकर दुनियाँ से विलग होकर रहना

ग़म खुशी रंग दुनियों के जो रोने में कभी तो रो देना हँसने में कभी तो हॅस देना ।।

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यह फ़न है ख़ुदा जो आलम' का खुद को जिसने महसूस किया।

 शाबास मुवारक इस फ़न को तहज़ीब यही तालीम यही ।।

 

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हर वक़्त तू महफूज़' है डरता है क्यों तूफ़ॉने दोस्त

तू खुदा तूफ़ाँ ख़ुदा दुनियॉ दुरंगी भी ख़ुदा

 

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मैकदा की तलाश में दर दर भटकता मैं फिरा

मिल गया जब साक्रिया अन्दर जो देखा मैकदा

 

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गुजि़श्ता ज़माने की क्यों याद करना गया जो दगाबाज़ आता नहीं है ।॥

 

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हाल' ये होता गुज़िस्ता' आइन्दा' होता है हाल

फिकर क्यों करता अरे दिल फेंक तू सारा बवाल ।।

 

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सुन लिया गर ज़िन्दगी में उन फ़क़ीरों का कलाम।

खुल गई सारी हक़ीक़त फिर कहाँ सिजदा सलाम' ।।

 

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पीने से गर सरूर है तो मैकदा नहीं

ख़याल से दीदार है तो बुतकदा नहीं

 

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साक्रिये के रूबरू गर दीन दुनियों की खबर

दरअसल साक्री नहीं बाज़ार का मोहताज है ।।

 

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दिल पे क़ाबू पाना है गर दिल की धड़कन बंद कर

फिर तू किधर दुनियाँ किधर दिल किधर धड़कन किधर

 

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जिन्दगी में इश्क़ के चक्कर में पड़ना है फिजूल

होते फ़ना जन्नत जहन्नुम सिर्फ़ रह जाता है इस्क्र ।।

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ज़िन्दगी का है मज़ा जब जिन्दगी बेफिक्र हो

फ़िक्र की दुनियाँ में ऐसा कौन जो बेफिक्र हो ।।

 

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क़ानून कुदरत का है ये बनना बिगड़ना रात दिन

क़ानून को जो समझता हर हाल में वह मस्त है ।।

 

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आज जो पैदा हुआ उसे एक दिन मरना जरूर

जाना सबको इस तरह अफसोस करना जुर्म है ।।

 

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ज़िन्दगी में इश्क़ के चक्कर में पड़ना है फ़िजूल'

होते फ़ना जन्नत जहन्नुम सिर्फ रह जाता है इश्क़ ।।

 

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इश्क़ में गर आशिक़ो माशूक़ आते हैं नज़र

इश्क़ मंज़िल दूर है ज़रा और भी आगे बढ़ो ।।

 

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इश्क़ मंज़िल तय हुई तब ख्याल करना जुर्म है।

होना था जो हो चुका अब और क्या होना है दोस्त ।।

 

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दुश्मनी दिल से कर ये दिल भी दानिशमंद' है

है तमन्ना दिल को जिसकी वह दिल का दामनगीर है ।।

 

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गर ढूँढ़ो हक़ीक़त दुनियाँ में दुनियाँ की हक़ीक़त हो जाती।

 भगवान कहो या इरक़ कहो यह भी सच है वह भी सच है ।।

 

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उस इश्क़ से नहीं मतलब दिल जिससे है बेगाना'

मक़सूद है उस इश्क़ से जहां इश्क़ ही ख़ुदा है ।।

 

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हैं रहते जिस मस्ती में मस्त, मस्ती की उनको चाह नहीं।

खुद मस्ती इश्क़ परस्ती है इसकी भी तो परवाह नहीं ।॥

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इश्क़ ही माशूक़ है माशूक्रे इश्क़ है

इश्क़ तजुरवा नहीं फिर इश्क़ क्या करै ।।

 

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फ़क़ीरी निगाहों में तोहफा भरा है

मिलाकर के देखो खोटा खरा है ।।

 

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क़ाबिले तारीफ़ मुझे आज मिल गया साक़ी

जागने सोने में दोस्त होश की परवाह नहीं ।।

 

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है बाज़ार मस्ती का ख़रीदो कीमती मस्ती

ही क़ीमत अगर देनी तो कर दो सर क़लम' अपना ।।

 

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यह महफ़िल है फ़क़ीरों की फ़क़ीरी जिनकी है दौलत

वहीं सकता है इसमें जो मकाँ अपना जलाया है ।।

 

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मस्ती भी मस्त जिनसे रहती है जो हमेशा

दुनियाँ के मस्त जितने वे आज हैं तो कल नहीं ।।

 

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निगाहें कह नहीं सकतीं ज़बाँ कहने में शरमाती

 मुवारक हो वतन ऐसा जहाँ दरवेश रहते हैं ।।

 

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तुझे दीदार करने की तमन्ना दिलरुबाई का

तो आपा तर्क करके देख करिश्मा दिलरूबाई का ।।

 

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खुद से खुदा की हस्ती फिर ढूंढता कहाँ है।

ज़मी से आसमाँ तक खुद से हुआ जहाँ है ।।

 

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अपना ही यह करिश्मा संसार जिसे कहते

गर देखना करिश्मा आपा मिटाके देखो

 

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पूछो मस्त लोगों से ठिकाना उनके रहने का।

जहाँ जब वे ठहर जायें वहीं उनका ठिकाना है ।।

 

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हैं बेशुमार दुनियाँ में जो मस्तों का कोई पार नहीं।

जो खुद मस्ती में मस्त हैं उनका कोई बाज़ार नहीं' ।।

 

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फ़क़ीरों की निगाहों की हर वक़्त तमन्ना

एक पल में बदल जाये रफ़्तारे ज़माना ।।

 

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मिलती मस्ती काबे में मिलती बुतकदा अन्दर

मेहर होती जभी मस्तों की तब मस्ती ही मस्ती है ।।

 

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फ़ॉक़ा कर तू फिक्रों का फ़क़ीरी गर्दै करना है।

अलविदा होता दुनियॉ से जनाज़ा तब निकलता है ।।

 

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नुसखा है बाज़ारों में दे सकता है सौदागर

ये मिलता उन फ़क़ीरों से जो आपा खो के बैठे हैं ।।

 

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वाना' ख़ास है उनका नहीं कोई ठिकाना है।

ठिकाना वेठिकाना है नहीं वाना ही वाना है ।।

 

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छुटकारा मुरादों से उम्र भर तक नहीं मिलता

मुरार्दै ख़त्म होती है सही खुद के बदलने में ।।

 

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गिरगिट का रंग जैसा वैसा तू बदलना

मख़लूके' खुदा जैसा वैसा ही खुद खुद है ।।

 

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तक़ाज़ा है मुहव्वत का रामाँ जलती रहे हर पल।

शमाँ की आबरू इसमें रहें जलते ही परवाने ।।

 

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शमाँ जिस वक़्त जलती है तभी आते हैं परवाने

दीवानों की ही महफ़िल में इकट्ठे होते दीवाने ।।

 

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खुद से ख़ुदा की हस्ती फिर ढूँढ़ता कहाँ है।

ज़मीं से आसमाँ तक खुद से हुआ जहाँ है ।।

 

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खुद के माइने हैं जो समाया सब में खुद एक सॉ।

लिहाज़ा' खुद की होती है इवादत सारी दुनियों में ।।

 

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परवाना उसे कहते हैं जल जाय जो रामों में

लानत है इश्क़ पर जो हक़ीक़त में जला ।।

 

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अफ़साने से क्या लेना यह दुनियाँ अफ़साना है।

जान बूझकर छोड़ अरे दिल बन जा मस्ताना है ।।

 

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मुहत्वत मत करो दुनियाँ से दुनियाँ लग वे फ़ानी है।

हक़ीकत देखना है गर तो सेमल के दरखतों में ।।

 

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अपने आपको मजनूं ढिंढोरा पीटते फिरते

हक़ीक़त में वही मजनूं नज़र ही जिसकी लैला है ।।

 

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दिवाने ढूंढ़ता है क्या कहा उसने मैं दीवाना

दिवाने सच बता तू कौन कहा उसने मैं परवाना ।।

 

 

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अगर है सीखना तुझको बड़ा नुसखा फ़क़ीरी का

तो खिदमत कर फ़क़ीरों की फ़क़ीरी खुद खुद आये ।।

 

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शाहों की शाहत है ग़रीबों की गुरवत है

मुबारक मुल्क में ऐसे जहाँ दरवेश रहते हैं ।।

 

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पहुँच कर मुल्क में ऐसे जहाँ बेमुल्क हो जाता

मुवारक हो शहन्शाही जहाँ दरवेश रहते हैं ।।

 

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क़िलों में बादशाहों के रहते क़ाफ़िले अन्दर

जहाँ पर डर भी डरता हो वहाँ दरवेश रहते हैं ।।

 

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मिलता है फ़क़ीरों से कुछ भी नहीं मिलता

हता है जो भी पास में वह जाता है जहन्नुम ।।

 

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फ़क़ीरी गर्चे करना है फ़क़ीरों से मिला ऑखें

फ़क़ीरों की निगाहों में हमेशा ही फ़क़ीरी है ।।

 

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असली कीमियाँगर है निगाहें उन फ़क़ीरों की

जो आया जब कभी दर पर बता देती खुदा उसको ।।

 

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करिश्मा फ़क़ीरों का गर देखना है

मिटा अपने हस्ती दिले तंगदस्ती ।।

 

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राही एक मंज़िल के रासते मुखतलिफ़ जिनके

मुक़ीमर्मी सब को होना है कोई आगे कोई पीछे ।।

 

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रहवरों की इनायत से राराबा शोर हंगामा

नसीहत जैसी दी जाये वैसे ही कर गुजरते हैं ।।

 

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हिन्दू मुसलमाँ ईसाई कोई दुनियाँ में

पकड़ता रासता जैसा नाम वैसा ही हो जाता ।।

 

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मिराले गुलचमन की वूये वहार आती

रहते हैं मस्त जिसमें जहाँ खार' है खटका ।।

 

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दुनियाँ की मंज़िलैं दो जन्नत भी जहन्नुम भी

है वेख़ुदी ये जन्नत और वखुदी जहन्नुम ।।

 

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रोना है तो दिल भर के मंज़िले इब्तिदायी में

पहुँचकर आख़िरी मंज़िल क़यामत ही क़यामत है ।।

 

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मयियते' ताबूत में फिर तब जनाज़ा' चल पड़ा।

क़ब्र दरवाजे खड़ी और इन्तिज़ारी कर रही ।।

 

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क़ब्र का मेहमान जो वह मौत का पैग़ाम है।

कुदरत के इस क़ानून को फिर क्यों समझता बेफ़ना ।।

 

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गारंटी दे सकता कोई जीने मरने की।

दिले अरमान कब तेरे भला कैसे ख़तम होंगे ।।

 

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मरना हो तो जीने का मज़ा क्या है।

अफ़सोस है दुनियाँ के लोग मौत में डरते हैं ।।

 

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जीने मरने की नहीं चाह तो फिर डर किसका

मस्त हो करके वेखुदी में क्रहक़हाता जा ।।

 

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मुक्ती से हुआ मुक्त कोई चाह नहीं

छोड़ सहारे को वेसहारा हो जा

 

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दिल दौड़ता रहता है दिलरुबा के लिए

लेकिन बड़ी मज़बूरियों शबनम' ही सही ।।

 

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ख़याल करने की कोई चीज़ है दुनियाँ में नहीं

ख़याल जाता है जहन्नुम को ख़याल करने से ।।

 

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आँखों का हाल क्या है और सेहत' है कैसी

काफूर हो गया वजूद ख़्याल कौन करें ।।

 

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देखने सुनने से हुआ मुक्त हमेशा के लिए

मुक़ीम हो गया जो मर्ज़ वह कभी जाता भी नहीं ।॥

 

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आप को पाता नहीं जब आप को पाता हूँ मैं।

खुद ही खो जाता हूँ मैं या खो दिया जाता हूँ मैं ।।

 

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तख़ते आसमाँ बैठा बिठाया मुक्त सतगुरू ने

वस्ती है वीराना जहाँ पर सिर्फ सन्नाटा ।।

 

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निगाहें देखना चाहें तो देखें किस तरह किसको

हक़ीक़त देख लेने पर भला इनको कहाँ फुरसत

 

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इज़्ज़त की नहीं चाह वेइज़्ज़त की है अचाह नहीं।

रहता है मुक्त मौज़ में दुनियाँ है चमगीदड़ की तरह ।।

 

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नदी सागर से मिली लौटकर आती कभी

कौन थी क्या हो गई सर दर्द मुसीवत है कहाँ ।।

 

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ख़ुद का जब दीदार है दीदारे ख़ुदा है।

अगर हुआ दीदार तो जीने का मज़ा क्या ।।

 

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कैसा है और किस तरफ़ खुदा की नहीं पैमाइश

खुद का दीदार' है दीदारे ख़ुदा पैमाइश ।।

 

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मस्तों की निगाहों ने मस्ती पिलाई मुझको

पीते ही पीते मुक्ता, बस हो गया दीवाना ।।

 

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मस्तों की मुहत्वत ने मुक्ती दिलाई सब से

वर्वाद होते होते आज़ाद हो गये हम ।।

 

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मुक्ता की मुहत्वत का हज़म' होना बड़ा मुश्किल

हज़म होने से वर्वादी होने से भी वर्वादी ।।

 

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मुक्ति से भी अगर लेनी है मुक्ती मस्त मुक्ता से

कटाये सर कोई अपना मुक्त महफिल में आकर के ।।

 

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ख़रीदो वेखुदी मस्ती है आया मुक्त सौदागर

देकर वख़ुदी मस्ती जिसे लेना है ले जाये

 

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मुक्ता का ख़रा सौदा मिलता बाजारों में

मिलता है जो जहाँ पर आपा मिटा के देखो ।।

 

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मुक्ता की मुक्त आँखै उसको ही देखती हैं

आया जो मुक्त होने मुक्ता के मुक्त दर पर ।।

 

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मुक्त हो करके मुक्ति ढूँढ़ता है क्यों नाहक़

शमशो' क़मर करते हैं हर वक़्त वन्दगी तेरी ।।

 

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नेकी वदी के ज़लज़ले से मुक्त ने राहत पाई

किसी की खुशी वेख़ुशी से हमें लेना क्या ।।

 

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ज़ाहिरे आलम में जो लवरेज़ मशहूरे मुक्ता

तअज्जुब यह कि ढूँढ़ने वाला ही ढूँढ़ रहा है खुद को ।।

 

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जो आँख मिचौली का खेल खेल रहा मुद्दत से

ख़ुद परद होकर परदानशीं बन बैठा ।।

 

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ख़्वाब की दुनियों में था मुर्शद मुरीद का रिश्ता

आँख खुलने पर हुआ मुक्त सब बवालों से ।।

 

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ख़्वाहिशातों का ख़ज़ाना जो भी था वह लुट गया

मुक्त मंज़िल तय हुई मिन्नत' परस्ती है कहाँ ।।

 

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याद आने से मुक्ता याद आती है सदा

राज़ समझेगा वही समझा हुआ बेसमझ हो ।।

 

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फेंक दे तू झूठी दुनियाँ इश्क़ के सैलाब' में

आशिक़ माशूक दो एक साथ ही बह जायेंगे ।।

 

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नक़ल क्यों करता अरे दिल नक़ल क्या कोई चीज़ है।

देख अपनी असलियत यह दुनियाँ धोखेबाज़ है ।।

 

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दुश्मनी दोस्ती मुसीबत छोड़कर आज़ाद हो

हो जा बेड़ा पार किश्ती खुद किनारे जा लगे ।।

 

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खुदगरज़ी से आती है फॅसाती है ये रो रोकर

 तअज्जुब ऐसी दुनियों को बता कैसे कोई खुश रखै ।।

 

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क़ैदी हैं मुहत्वत के उन्हें दुनियों से क्या मतलब

हमेशा है वरी दो से क़यामत हो या क़ायम हो ।।

 

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क्या करूँ यार मस्ती सम्हलती नहीं

इतनी मज़ेदार छोड़ता हूँ छूटती ही नहीं ।।

 

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मुक्त सागर से बदस्तूरे' निकलती है सदा

सुनते ही जिसे दिल ये हो जाता है फ़िदा० ।।

 

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इशारा कर रही लहरें हमेशा मुक्त सागर की

मिटाकर वाख़ुदी' गोता लगाये जिसका जी चाहै ।।

 

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मुक्त सागर का करिश्मा कुछ कह सकती ज़बाँ

हो गया ग़र्काब आलम देखते ही देखते ।।

 

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मुक्त सागर की तरंगै रात दिन करतीं पुकार

कौन था मैं कौन हूं मिलकर बताये तो जरा ।।

 

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मुक्त मस्ती का नज़ारा देखना है गर्चे दोस्त

मुक्त हो आज़ाद हो और हर तरह वर्वाद हो ।।

 

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लुट रही है मुक्त मस्ती लूटना गर तुझको दोस्त

कुछ होकर कुछ कर तू आप में खामोश हो ।।

 

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दरिया ख़ामोशी का इब्तिदा' इन्तिहाँ है।

मैं देखता जिधर को खामोश खामोशी है ।।

 

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तुझे देखें तो फिर औरों को किन ऑखों से हम देखें।

ये ऑखें फूट जाये गर्चे इन आँखों से हम देखें ।।

 

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पतझड़ खिज़ॉ है तो गर्दा गुबार है

मस्तों की ज़िन्दगी में हमेशा वहार है ।।

 

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जहाँ पर जा नहीं सकते सितारे सूर्य शरमाते

मुवारकं मुल्क है ऐसा वहाँ दरवेश रहते हैं ।।

 

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फलक पर्दा पड़ा जिस पर फलक जिसके सहारे है।

शादी है मायूसी वहाँ दरवेश रहते हैं ।।

 

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दरवेशों की दुनियाँ में पहुँचना है बड़ा मुश्क़िल

मेहर होती जभी उनकी जिधर देखो उधर दुनियाँ ।।

 

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अगर कुछ जब कभी कहती ज़बाँ भी लाज़बाँ होकर।

वेमुल्के मुल्क है ऐसा वहाँ दरवेश रहते हैं ।।

 

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ज़रूरत कुर्वा' होने की उन दरवेशों के क़दमों पर।

जिधर देखो उधर अपनी हुकूमत ही हुकूमत है ।।

 

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तमन्ना है नहीं दिल में हविरा भी गैरहाज़िर है।

ख़तरा जीने मरने का उसे दरवेश कहते हैं ।।

 

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तमन्ना है नहीं इज़्ज़त वेइज़्ज़त की ख़्वाहिश है।

क़फ़न कंधे पर है जिसके उसे दरवेश कहते हैं।

 

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अगर महफूज़' रहना है ये चमगीदड़ की दुनियाँ में।

तू अंधा बन तू बहरा बन तू गूँगा बन तू मस्ताना ।।

 

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भगवान होना है अगर चाह बगीचे से निकल

चीज़ से नाचीज़ हो संसार से मुफ़लिस' होकर ।।

 

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भगवान होने के सिवा भगवान बनना जुर्म है।

चाहता मस्ती अगर बनना बिगड़ना छोड़ दे ।।

 

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फ़िक्र की दुनियाँ का फ़ॉक़ा कर हमेशा रात दिन

 लुत्फ़ सागर का नज़ारा देखना है गर तुझे ।।

 

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आसमानी मुल्क में गर पहुँचना है तुझको यार

तर्क कर दे आसमाँ बस आसमाँ ही आसमाँ ।।

 

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मिलती है मुक़द्दर से अलाली है किसी को

मैं कौन हूँ क्या हूँ जिसे इस याद की ताक़त है कहाँ ।।

 

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अलाली से गईं आँख अलाली से गया कान

मुवारक हो अलाली उसे जिसको ख़ुदा वक़्शे ।।

 

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मुक्त मस्ती जो मिली अक़्ल' जहन्नम में गई

होश वेहोशी भी गई रह गई मासूमी फ़क़त ।।

 

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मस्त की दुनियों को समझना है गर नाचीज़ बनो

आग में जल करके ही कोयला सफेद होता है ।।

 

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ख़ुदा बक़्रौ ये जिसे वेखुदी मस्ती का नशा

दीन दुनियाँ की ख़बर कुछ भी ज़िन्दगी में नहीं ।।

 

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क़यामत का करिश्मा देखना गर मस्त ऑखों का

मिला उन मस्त आँखों से जो मिलते ही क़यामत हो

 

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चरमा' खुल गया मस्ती का ताक़त क्या जो रूक जाये।

जिसे बहना है बह जाये या बह करके ही मर जाये

 

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निकलकर ऑख से चरमा इशारा करता महफ़िल को

नज़ारा देखना है गर मिटा दे वाख़ुदी' हस्ती ।।

 

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दलदले दुनियाँ में फॅसकर मुरिकले पाना निजात

छूटना फॅसना मुनस्सर मेहर दरवेशों की है ।।

 

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शेरों के अमल' करने से हो जाता है शेरे दिल

भागती बुज़दिली अंदर से गरजता जबकि रोरे दिल ।।

 

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डूबने से वेखुदी में ग़र्क' हुआ ये आलम

क्या रहा कुछ रहा मैं भी गया तू भी गया ।।

 

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ऑख जाने से हक़ीक़त की आँख मिलती है।

होती है इनायत कभी दरवेशों की

 

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दिल मर गया ऑखों का तीर लगने से

मौला कहाँ वंदा' कहाँ अब इसकी याद कौन करै ।।

 

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लग गया है तीर जिसे मस्ती का मस्त ऑखों का

जीने से वो जीता भी नहीं मरने से वो मरता भी नहीं ।॥

 

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फ़क़ीरों की इनायत से ये दुनियाँ की क़यामत है।

ख़ाक़ होता है जब गुलरान यही उसकी नियामत' है ।।

 

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गुलरूबा खिलते ही खिलते क़हक़हाता गुलचमन

 आबरू इसमें ही है जब चहचहातीं बुलबुलें ।।

 

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ऑख से आँख मिला तू ख़ुदा अज़ीज़ों से

खोकर के वाख़ुदी को देख, देख करिश्मा अपना ।।

 

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देखना है गर हक़ीक़त चीज़ से नाचीज़ हो

 ख़ाक़ हो करके ही दाना बाद होता गुलयमन ।।

 

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कश्मीरे शाही चरमा क्या कर रहा है कलकल'

गोता लगा तू इसमें पाता है ज़िन्दगी को ।।

 

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आँखों की आँख जिसने दीदार कर लिया जब

बस हो गया हमेशा क़ाबिल देखने के ।।

 

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आँखों की आँख से ही आँखों में बेहोशी है

बल्कि खुदा बचाये इस मर्ज बेहोशी से ।।

 

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नामो निगार' दिल से वेदिल की हाल पूछो

दिल की ही वेवसी से वेदिल हुआ बेगाना' ।।

 

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शाहों का शाह वेदिल ये दिल वज़ीर आज़म

मख़लूके मुल्क पर जो है कर रहा हुकूमत ।।

 

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बेदिल' दीदार बिन हरगिज़ जाती बुज़दिली'

गर्चे होना सिंह दिल वेदिल परस्तों को समझ ।।

 

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दुश्मनी दिल से कर वेदिल का नामोनिगार है।

गर होता दिल जहाँ में कौन फ़रमाता वेदिल ।।

 

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बेसाहिल मुक्त दरिया में हज़ारों बुलबुले आशिक़

बिगड़ते बनते रोज़ाना मुवारक हो मुवारक हो ।।

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देखना सच में उसका ही अनदेखे को जो देखै

देखता हर घड़ी सबको बिना ऑखों के जो देखै

 

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ऑख जाने से ऑख आई हमेशा के लिए।

चश् चश् का दीदार हुआ चारों तरफ़

 

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मारता तू क्यों नहीं छलांग क्रहक्रहा' करके

खत्म होते ही यार खाक से होता कुंदन' ।।

 

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वह ज़िन्दगी भी क्या है क़ानून दायरे में बंधी

मगर ज़िन्दगी की ज़िन्दगी क़ानून के पाबंद नहीं ।।

 

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मानने में सिर्फ़ गुमशुदा खुद से जुदा

परद दूर ख़ुद बस हो गया मख़लूके ख़ुदा ।।

 

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दीदार साक्रिया का हरराय में मैकदा है।

जिसने पीया जहाँ पर धरती आसमाँ है ।।

 

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शर्म ज़िन्दगी को उस मय का तजुर्वा किया।

हर वक़्त हमेशा बिना जो पिये चढ़ी रहती है ।।

 

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मैकदा तू ही है तो फिर क्यों तलारो कूये दोस्त

मयं भी तू साक़ी भी तू मीना' भी तू शीशा भी तू

 

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साक़िया ने ज़िन्दगी में की इनायत एक बार

होश हूँ बेहोश हूँ ख़ामोश हूँ किसको पता ।।

 

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इनायत फ़क़ीरों की जब तक होगी

ज़माने में भटका भटकता रहेगा

 

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चरम चश्' का दीदार हो गया जब से

देखने सुनने की खत्म हो गई सारी मंज़िल ।।

 

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मुवारक हो ये मुहताजी इन्शॉ अल्लाह जिसे बखरो

मिला दोनों से छुटकारा देखना और सुनना क्या ।।

 

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मुवारक ज़िन्दगी को है जिसने ज़िन्दगी पाई

नहीं शर्म है ज़िन्दगी को वेहतर है खुदकशी करना ।।

 

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दिल की ही खुदकशी से वेदिल हुआ है रोशन

जीने का नहीं मक़सद तक़दीर क्या बला है ।।

 

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मर्ज़ बुज़दिली से क़ज़ा' सर पे हमेशा क़ाबिज़

 गर्चे शेरे दिल है तो फिर मौत से भी क्या खतरा ।।

 

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दुआ' हो या वद्दुआ मतलब दोनों से कोई

क़ज़ा दर पे खड़ी होना है जो गर हो हो ।।

 

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हँसते हो क्या दुनियॉ वालो हम वेशरमों के लिए

हमीं थी जब खिल्लियों अब वेहमीं में क्या मज़ा ।।

 

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शाही चश्मा चरम यह क़लक़लता रात दिन

कौन था क्या हूँ मैं कैसा बह गया सारा वजूद ।।

 

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दार' पे चढ़ क़हक़हा महबूबे परदा फाश हो

ज़ल्व लाइब्तिदा और जज़्ब ला इन्तिहाँ' ।।

 

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इश्क़ का पैग़ाम सुन आते हैं आशिक़ दौड़कर

खुद को पेरो नज़र की तब खत्म हो जाता वजूद

 

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जहाँ में नाइत्तिफ़ाक़ी' से हज़ारों मंजिलै बनतीं

बचाये रहनुमाओं से ख़ुदा चाहै जिसे बखरो ।।

 

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हज़ारों मुखतलिफ़' मंज़िल हज़ारों मुखतलिफ राही।

मगर मक़सूद के दर पर नहीं मंज़िल नहीं राही ।।

 

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सही पैग़ाम मस्तों का ग़लत दुनियाँ यह क्या समड़ौ

नहीं रहते कभी जन्नत' रहते हैं जहन्नुम में ।।

 

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क़लामें मुक्त मस्ती का मस्त करता है एक पल में

दिमागे दिल दलीलों का दिवाला जब निकल जाये ।।

 

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वाख़ुदी' संसार में है शोरगुल और क़हक़ हे

 वेखुदी रहती जहाँ खामोश भी खामोश है ।।

 

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पहुँचने से जहाँ मस्ती भी हो जाती है मस्तानी

हमेशा जो वहाँ रहता हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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शरियत" की तरीक़त की नसीहत की गुंजाइश

जो करता है फिकर फॉक़ा हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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विला क़ानून के क़ानून की दुनियाँ में रह करके

पीया है वेखुदी प्याला हक़ीक़ी मस्त कहते हैं।

 

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दुनियाँ की निगाहों में बोलता देखता सुनता

हक़ीक़त में है सन्नाटा हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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दिखता वज़वों" दुनियाँ में राक्ले दुनियाँ हो करके

मगर है वेज़वॉ दुनियाँ हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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हज़ारों खलक़ बनते हैं बिगड़ते वलबले मानिंद

जो लहराता है दरिया हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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गुज़िरता' कौन था अब क्या आइन्दा क्या रहूँगा मैं।

जो रहता मिरले' मासूमी हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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दौलते दुनियाँ हासिल हो या हासिल वेदौलते दुनियाँ।

ख़ुशी भी हो मायूसी हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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ख़ामोशी में हँसता है रोता है वेख़ामोशी में

जो रहता दोनों में एक सॉ हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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सिकुड़कर आप में जैसा कि मिसले कछुवा रहता है।

दुरंगी दूर की जिसने हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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सितारे चॉद सूरज भी जहाँ पर जा नहीं सकते

वहीं जागीर' है जिसकी हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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नज़र के रूबरू जाए ज़ालिम हो या ज़ाहिद हो।

देखता खुद में खुद को ही हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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हक़ीक़ी इश्क़ में है जो हुआ मरारूफ़' क्या कहना।

मुवारकवाद है जिसको हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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इलाही इश्क़ का प्याला जो पीते ही बहक जाए।

हमेशा ही पिया प्याला हक़ीक़ी मस्त कहते हैं ।।

 

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काबे' कलीसा की मैखाने' बुतख़ाने'

ख़ुदा जाने किधर से दौड़कर रही मस्ती ।।

 

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बेरयाज़ का रयाज़ किया उसका ही अंजाम' मिला

आँखों से पूछने पर मगर कुछ भी बोलती ही नहीं ।।

 

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मुक्त को परवाह नहीं दुनियाँ की नाराज़गी से

क़यामत भी अगर हो सामने तब भी कोई एतराज़ नहीं ।।

 

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क़ानूने कुदरत समझकर रोना रूलाना है फ़िजूल

ज़िन्दगी का लुत्फ़ लेना ही बड़ी इंसानियत ।।

 

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मस्त की दुनियाँ में कभी ग़म ख़ुशी का नाम नहीं।

वेगुनाह रहना है गर क़ानून के पाबंद रहो ।।

 

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दिलकशी खुद के लिए मुमकिन है करना दोस्तों

दिलकशी या खुदकशी' हरगिज़ नहीं दो मुखतलिफ़ ।।

 

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जिसके वास्ते दिलकशी करती है दुनियाँ रात दिन

अफ़सोस है महबूब क्या मिलता है यारों ताक़" में ।।

 

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वेशर्मी गर्चे पाना है तो कर खिदमत फ़क़ीरों की

मगर वख़्शे खुदा जिसको मुवारक हो वेशरमाना ।।

 

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ख़ुदा की जो हक़ीक़त सचमुच में लाज़बाँ है

जैसा जो देखता है वैसा ही वो अयाँ  है ।।

 

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क़ाबिले तारीफ़ ज़िन्दगी को ज़िन्दगी है मिली

सिजदा है बारबार उसे बन्दा जो अल्लाह हुआ ।।

 

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मस्त की महफ़िल में आकर फिर भी करता चूँ चरा'

गर्चे दानिशमंद है पयमान मस्ती तू पी ।।

 

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मस्त रहते हैं जहाँ पर वहीं पर है मयखाना

खुशक़िस्मत से जो पहुँचा वहाँ पीने की ज़रूरत भी नहीं ।।

 

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खुदा करै बुज़दिले महफ़िल में बैठना हो अगर

ज़िन्दगी हो जाय ख़त्म क़ब्र--सोना बेहतर ।।

 

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जिस्मानी ज़िन्दगी' में ख़तरा है हर क़दम पर

आज़ादी जा ज़ा है रूहानी ज़िन्दगी हो ।।

 

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फ़रेब की दुनियाँ' में रहना फ़ौलादी दिल है गर तेरा

नहीं पिघल पिघलकर मरना है चहै अफ़लातें भी क्यों हो ।।

 

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होता है ज़माना अगर तबदील जाम पीने से

सरे बाज़ार' पीयो और हमेशा ही पीओ ।।

 

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फ़रेब की दुनियाँ में रहकर फ़ौरेव से बचना है मुश्किल

पा लिया हक़ीक़त को जिसने फिर ख़ौफ़ नहीं फ़रेब नहीं ।।

 

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शराफ़त है ये कमवख्ती इबादत है ये कमवख़्ती

अगर होती कमवख़्ती ढूँढ़ता कौन अल्लाहे ।।

 

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मुवारक हो ये कमबख्ती अगर आती अल्लाह में

देखता कौन कब किसको दिखाता कौन अल्लाहे ।।

 

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बेवकूफी से ख़ुदा शाह से मोहताज बना

परेशॉ होके भटकता है दर दर कैसा ।।

 

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बुरक़ा अरों ज़ावज़ा फरमान करता रात दिन

परद परदानीं परदा उठा के देख लो ।।

 

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अहमेव खंजर से कटा मख़लूक़ सर वाह वाह

शहनशाही हो मुवारक खौफ खतरा टल गया ।।

 

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ख़ुदा की जो बेशरमी कहना भी बेशरमी से

मख़लूके ख़ुदा होकर बन्दा नज़र आता है ।।

 

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अन्दरूनी शोर गुल से शक़्ले आलम शोरगुल

हो गया खामोश दिल खामोश भी खामोश है ।।

 

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ख़याल में ही इस्म' जिस्मै खयाल ही है इस्म जिस्म

ख़याल पर्दा हट गया खुद के सिवा कुछ भी नहीं ।।

 

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नज़रिया एक है सबकी अनेकों मुखतलिफ़ मंज़िल

कोई राही हक़ीक़त का मिज़ाज़ी इश्क़ का कोई ।।

 

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मरसिया--वदनसीबी का तू पढ़ना बंद कर

हो रहा है जो होने दे बस यह हक़ीक़त ज़िन्दगी ।।

 

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मुवारक हो नज़र मस्तों की गर कोई भी टकराये

ख़ुदा भी खुद ख़तम होकर रहै मुतलक़ कुछ वाक़ी ।।

 

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मुहत्वत कैदखाने से निकलकर गर्चे भग जाये

मुहत्वत सच नहीं यारों मुहव्वत का है अफ़साना ।।

 

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फ़रिश्तों का फ़रिश्ता हो ख़ुदा से भी हो या रिश्ता

मगर खुद मस्ती बिन यारों फ़रिश्ता है रिश्ता है ।।

 

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ख़ुदा बचाये सबको सदा मुक्त महफ़िल से

वर्वाद होके अब ख़ुदा से हाथ धो बैठे ।।

 

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अगरचे रिश्ता करना है तो रिश्ता कर फ़क़ीरों से

सभी खुदगरज़ी के रिश्ते बिगड़ते और कभी बनते ।।

 

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ख़ुदा के सर पे कम्बख़्ती किधर से दौड़कर आई

मोहताजी के चक्कर में कभी आता कभी जाता ।।

 

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दोस्ती मस्तों की बदनसीबों को नसीब कहाँ

मुहव्वत दुनियाँ की यही तोहफ़ा समझ बैठे हैं ।।

 

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मैदाने जंग में आकर के डरना मौत से बढ़कर

मौत की मौत होकर अगर डरता है, लानत है ।।

 

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मुक्त महफ़िल में आते ही रहता दीनो दुनियाँ का

मुक्ति से मुक्त हो जाता मुवारक हो मुवारक हो ।।

 

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मुक्त होके ढूँढ़ता तू मुक्त होने के लिए

वदनसीबी वदतमीज़ी बेवकूफ़ी छोड़ दे

 

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मस्त सागर की सदा क़ाबिले यह ग़ौर है।

गरचे तू है मैं नहीं और मैं हूँ गर फिर तू कहाँ ।।

 

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मुहत्वत के, मरीज़ों को मसीहा कुछ कर सकता

तड़पना रोना बेचैनी सिसकना ज़िन्दगी सारी ।।

 

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सच कहते हैं बुरा वक़्त दिखलाये ख़ुदा

दोस्त फिर जाते हैं तो दुश्मन की शिकायत क्या ।।

 

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जिसे हम फूल समझे थे गला अपना सजाने को

वो ज़ालिम नाग बन बैठा हमारे काट खाने को ।।

 

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तमन्ना नहीं है दुआ बहुआ की

तब जंगल उन्हें क्या और लश्कर उन्हें क्या ।।

 

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पाखंड के सहारे आता है जो शरण में

एतबार के क़ाबिल ज़मीं या आसमाँ का ।।

 

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ख़ामोशी बड़ी चीज़ है क़िस्मत से नहीं मिलती

चाहता गर दिल से फ़क़ीरों की क़दमबोसी कर ।।

 

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खामोशी समझ के यार आपमें ख़ामोश हो जा

अगर नहीं भी समझ में आए तब भी तू खामोश हो जा ।।

 

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मुक्त पैग़ाम सुन करके बदला जो दिले महफ़िल

हक़ीक़त है नहीं पैग़ाम पैग़ाम अफ़साना ।।

 

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मुक्त पैग़ाम सलामत तो बस एक दिन इन्शा-अल्लाह

बंध जाएगा सारा ये ज़हाँ हक़ीक़त के एक धागे में ।।

 

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निभाना है बड़ा मुश्किल मुहत्वत अपने दिलवर से

उधर सूरत अमीराना इधर हालत गरीवाना ।।

 

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शिकायत किस ज़वाँ से मैं करूँ उनके आने की

यही एहसान क्या कम है कि हरदम दिल में रहते हैं ।।

 

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बेगाना गर नज़र पड़े तो आशना को देख

दुश्मन गर आए सामने तो भी खुदा को देख ।।

 

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जुदाई मुक्त की दिल में अखरती सबको जो जैसा

फ़रिश्ते जबकि हैं रोते तो इन्सों की ख़ुदा जाने ।।

 

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मस्ती में मस्त होकर मस्ती को लिख रहा हूँ

मस्ती में मस्त पढ़ना दरिया नज़र आयेगा ।।

 

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ख़ुदा के बंदों को देखकर के ख़ुदा से मुनकीर हुई है दुनियाँ।

गर ऐसे बंदे हैं जिस खुदा के वो कोई अच्छा ख़ुदा नहीं है ।।

 

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सितारों के शरारत से बिगड़ता क्या अरे मुक्ता

बिगड़ना बनना दोनों ही ये कुदरत के नज़ारे हैं ।।

 

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खामोश का खज्ञाना खामोश ढूँढ़ता है

क़दमों तले है दौलत दौलत को ढूंढ़ता है ।।

 

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जिसको तुम भूल गए, कौन उसे याद करे

जिसको तुम याद हो, वह और किसे याद करे ।।

 

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गर इश्क़ सच्चा है तो इक दिन इन्शॉ अल्लाह

कच्चे धागे से बंधे आप खिंचे आयेंगे ।।

 

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आती याद अपने की आती ही पराये की

हक़ीक़त में यही निष्ठा रहा बाकी जो अफ़साना ।।

 

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नहीं आराम जिस्मानी नहीं आराम रुहानी

बिना मुक्ता मुहब्बत के रुहानी जिस्मानी ।।

 

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पिया प्याला मुहब्बत का मार्का शम्स मुक्ता

भला फिर क्या जरुरत है किसी को सर झुकाने की ।।

 

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मुद्दत से मरती दुनियाँ ख़ामोशी के वास्ते

मगर ढूँढ़ती कुछ करके खामोशी मिले कहाँ ।।

 

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ख़ौफ़ से डोलते फिरते सितारे आसमाँ अंदर

चाँद सूरज में जो रोरान सितारों से है क्या ख़तरा ।।

 

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रोशनी आई या नहीं, पूछते हो क्या वल्ला

आने पे ज़िंदगी है, नहीं इसकी क़यामत होगी ।।

 

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दरवेश अपनी मौज में, बैठते जिस जाँ में

शेख का काबा वही, बरहमन का बुतख़ाना ।।

 

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ये मस्ती मैकदा की नहीं, और बुतकदा की नहीं।

ये मस्ती खुदकशी की है, कहता मुक्त मस्ताना ।।

 

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आशिक़े माशूक़ हूँ, इक तरफा मज़ा है

दीवाना हूँ मैं जिसका, वह दीवाना है मेरा ।।

 

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रोशनी है ज़िन्दगी और जिसको कहते हैं खुदा

रोशनी है रोशनी मयफूज़ रखना चाहिए ।।

 

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रोख काबा को चले, रोशनी पाने के लिए

मिलने पर रोशनी भी गई, और रोशन मिला ।।

 

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खोजते हैं यार को यार सिवा कुछ नहीं

खोजी भी मिट जाए कहते है इसे यराना ।।

 

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रोशनी सबमें जो रोशन दिखता है सारा जहाँ

रही खुद खुद, कुछ इन्तज़ारी कीजिये ।।

 

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[1] प्रशासन

[2] एक स्थान पर ठहरना

[3] झूठी और नाशवान

[4] दिल जहाँ मर जाए (अमनस्कता)

[5] आत्महत्या

[6] सर्वत्र

[7] ईश्वर

[8] प्रगट

[9] सृष्टि

[10] कला

[11] कलाकार

[12] मांग

[13] मालदार

[14] सेवक

[15] चरित्र

[16] मिट्टी

[17] संसार

[18] आध्यात्मिक

[19] अज्ञानता

[20] मृत्यु

[21] मदिरालय

[22] मदिरा

[23] वास्तविक

[24] प्रेम करने वाला

[25] जिससे प्रेम किया जावे

[26] आन

[27] जीवन

[28] अस्तित्

[29] जंजीर

[30] शासन करने की इच्छा

[31] संत, जगद्गुरु

[32] अनंत

[33] वस्तु चीज

[34] नमाज अदा करने वाला

[35] पूजा घर, जिस दिशा में नमाज पढ़ी जाती है

[36] गर्व

[37] दर्शन

[38] कृपा

[39] फकीर - फकीर शब्द फारसी के चार शब्दों से बनता है , क्र, ,.   =फाका (भूख पर नियंत्रण),  क्र=सब्र या संतोष (किवाअत), = हमेशा यादें, इलाही खुदा का स्मरण, =रियाज़त (इबादत में सदैव व्यस्त रहना)

 

[40] कृपा

[41] उड़ना

[42] अस्तित्व (मान्यता)

[43] अज्ञानता

[44] खटका, संदेह,

[45] अनुभव, अनुभूति

[46] सत्व

[47] मायाजाल

[48] समाना (पसरने की क्रिया)

[49] पर्दे में रहने वाला

[50] लबालब

[51] मज़ा

[52] जीवन

[53] अनगिनत,

[54] पागलों के समान

[55] संसार

[56] अनादि और अनंत

[57] व्यस्त

[58] चाहा नया उद्देश्य

[59] सीढ़ी, दवाजा

[60] हर समय, प्रत्येक साँस के साथ

[61] प्याला

[62] विजय

[63] असत्य संसार

[64] बादशाहत

[65] बेहोशी

[66] चिंगारी

[67] कली

[68] चाँद

[69] सूर्य

[70] विद्या

[71] अंत

[72] विद्वान

[73] दिखावटी, कहानी

[74] बीमारी

[75] वैद्य

[76] नसीहत करने वाला

[77] संसार

[78] लगातार

[79] अभिमान

[80] मिट्टी

[81] जुदा

[82] साहस

[83] सबके सामने

[84] ठसाठस,

[85] प्रकाश

[86] जगह

[87] सद्गुरु

[88]  लक्ष्यपद, आखरी मुकाम

[89] अर्थ

[90] बयान, कहना,

[91] खाली हाथों वाले, महात्मा

[92] लकीर

[93] नरक

[94]  छुटकारा

[95] आशा

[96] मुर्दा रखने का डिब्बा

[97] रोना पिटना

[98] मालिक

[99] नौकर

[100] पक्षी

[101] चमत्कार

[102] संसार के

[103] एकाग्रता

[104] आत्मा

[105] हर जगह

[106] सद्गुरू

[107] गली

[108] आत्मबोध

[109] प्यार

[110] तलाश

[111] कण-कण

[112] देहाभिमान

[113] कठिन

[114] कहानी

[115] संदूक जिसमें लाश रखी जाती है

[116] कब्र

[117] विश्वसनीय

[118] जिसे प्रेम किया जाये,

[119] आध्यात्मिक

[120] मकान में रहने वाला

[121] व्रत

[122] मंदिर

[123] यथार्थ

[124] भगवान आत्मा,

[125] छुपा हुआ

[126] वस्तु

[127] नाश होना

[128] सीमित

[129] छुपे

[130] दर्शनीय

[131] जिन्दनी (जन्म)

[132] अर्थविक्षिप्तता, पागलपन

[133] अनादि

[134] दरिद्रता

[135] दरिद्र

[136] संसार के

[137] चाँद

[138] सूर्य

[139] विश्वास,

[140] कर्मकाण्ड

[141] ब्रह्मानंद मदिरा, प्याला

[142] प्रायः

[143] भूत

[144] भविष्य

[145] अद्वैत

[146] अगर ईश्वर ने चाहा

[147] ईश्वर

[148] अस्तित्व

[149] नफरत,

[150] नरक

[151] स्वर्ण

[152] कुर्बान

[153] जगह जगह

[154] सत्य का पुजारी

[155] घुमक्कड़ (जिनका घर कांधो पर हो)

[156] डरपोक

[157] दीप

[158] दुर्भाग्य

[159] जहां दिल लगे

[160] चारों तरफ़ (हर दिशा)

[161] संसार का प्रकाश

[162] भूत

[163] वर्तमान

[164] भविष्य

[165] खूनखराबा (रक्त पात)

[166] व्याकुल

[167] व्याख्यान, भाषण

[168] जिसे कुरआन कंठस्थ हो

[169] प्रारंभ

[170] प्रत्येक स्थान

[171] उपमा- चीन के दिवार की

[172] -फिजुल

[173] अनिर्वचनीय

[174] डुबना

[175] जिसे कोई जाने ( अटपटी बातें)

[176] अहंकार

[177] विद्वान

[178] सद्गुरु

[179] पूरा

[180] टुकड़ा (अंश)

[181] बनाया हुआ

[182] सोना उगलने वाला

[183] ठहरा हुआ (स्थिर)

[184] प्रेम की पाठशाला

[185] सिंहासन के ऊपर

[186] दिल का देना

[187] दिल का लेना

[188] जल का अंश

[189] आँख से दिखने वाला

[190] प्रगट

[191] रोशनी

[192] गुरु

[193] ब्राह्मण

[194] लड़ाई झगड़े, धर्म के नाम पर रक्तपात