हठयोग
HATHA YOGA का हिन्दी अनुवाद
लेखक
श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती
अनुवादिका
शिवानन्द राधिका अशोक
प्रकाशक
द डिवाइन लाइफ सोसायटी
पत्रालय : शिवानन्दनगर—२४९१९२
जिला : टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड (हिमालय), भारत
www.sivanandaonline.org, www.dishq.org
प्रथम हिन्दी संस्करण : २००७
द्वितीय हिन्दी संस्करण : २०१६
(१००० प्रतियाँ)
© द डिवाइन लाइफ ट्रस्ट सोसायटी
ISBN 81-7052-207-2
HS 4
PRICE : ₹ 100/-
'द डिवाइन लाइफ सोसायटी, शिवानन्दनगर' के लिए
स्वामी पद्मनाभानन्द द्वारा प्रकाशित तथा उन्हीं के द्वारा 'योग- वेदान्त
फारेस्ट एकाडेमी प्रेस, पो. शिवानन्दनगर – २४९१९२,
जिला टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड' में मुद्रित ।
For online orders and Catalogue visit: disbooks.org
हठयोग किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्ति हेतु सभी के लिए एक दैवी वरदान है। शरीर एवं मन उपकरण है। ये हठयोग के अभ्यास से दृढ़, शक्तिशाली और ऊर्जा से परिपूर्ण रहते हैं। ये भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में विरोधी शक्तियों से लड़ने के लिए अस्त्र की भाँति कार्य करते हैं । इसके अभ्यास से आप आदि-व्याधि पर नियन्त्रण कर सकते हैं और उत्तम स्वास्थ्य एवं ईश्वर-साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं ।
श्री स्वामी शिवानन्द जी द्वारा लिखी गयी 'हठयोग' पुस्तक उनकी पुस्तक ‘योगासन’ की सहयोगी पुस्तक है । योगासनों के साथ-साथ इसमें प्राणायाम, मुद्राओं, बन्धों और षट्कर्मों का भी विस्तृत एवं सरलता से समझने योग्य विवरण दिया गया है। इसमें 'योग में मूल बन्ध' एवं 'नव 'चक्र विवेक' के बारे में भी बताया गया है। हठयोग जैसा कि यहाँ वर्णित किया गया है, उसे मुख्य रूप से निम्न प्रसिद्ध ग्रन्थों से उद्धृत किया गया है— 'शिव संहिता', 'घेरण्ड संहिता' तथा 'हठयोग प्रदीपिका' । हठयोग के अभ्यास से आपका मन एवं शरीर स्वस्थ रहेगा तथा आपको आध्यात्मिक अनुभव भी प्राप्त होंगे ।
'हठयोग' स्वामी जी के बृहत् साहित्य का एक बहुमूल्य रत्न है । हम इस अमूल्य खज़ाने को राष्ट्रभाषा हिन्दी में प्रस्तुत करते हुए आज हर्ष का अनुभव कर रहे हैं और आशा करते हैं कि सभी पाठक गण भी इससे पूर्ण लाभान्वित होंगे ।
-द डिवाइन लाइफ सोसायटी
यह पुस्तक सन् १९३९ में अंग्रेज़ी में सर्वप्रथम प्रकाशित हुई थी। इस कारण हिंदी भाषी जन अभी तक इससे वंचित थे। गुरुदेव की प्रेरणा से मुझे यह लगा कि इस पुस्तक का हिंदी भाषा में अनुवाद करना चाहिए; क्योंकि स्वामी जी महाराज ही वे पहले संत थे, जिन्होंने यह बताया कि योग सामान्य जनों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है और यह कि इसका अभ्यास मात्र आध्यात्मिक लाभ हेतु ही नहीं, वरन् सांसारिक जीवन में सफल होने के लिए तथा इस शरीर को स्वस्थ रखने हेतु अनिवार्य है। इससे पूर्व योग मात्र हठयोगियों अथवा जिन्होंने इस संसार को तपस्या हेतु त्याग दिया है, के लिए ही उपयोगी माना जाता था। सामान्य मनुष्य इसका अभ्यास करने में भय का अनुभव करता था। किंतु गुरुदेव ने यह भ्रम दूर किया और कहा कि योग से हमारी अंतःशक्तियों का विकास होता है और इस शरीर रूपी उपकरण को स्वस्थ रखने के लिए बच्चे, बड़े, स्त्रियों एवं पुरुषों सभी को योगाभ्यास करना चाहिए। आज जो हम सर्वत्र योग का प्रचार-प्रसार देख रहे हैं, वह स्वामी शिवानंद जी की ही देन है। उन्होंने तीन सौ से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। गुरुदेव कहते थे कि 'मैं मोक्ष नहीं प्राप्त करना चाहता, मैं सभी की आध्यात्मिक मार्ग में सदा सहायता करना चाहता हूँ और मैं इस हेतु अपनी पुस्तकों के रूप में सदा विद्यमान रहूँगा।' गुरुदेव भगवद् साक्षात्कार प्राप्त संत थे, इस कारण उनका लिखा एक-एक शब्द अत्यंत शक्तिशाली है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि उनके पास जो भी व्यक्ति आते थे, वे वहाँ आने के पूर्व ही उनकी पुस्तकों को पढ़ कर किसी-न-किसी प्रकार की साधना प्रारंभ कर देते थे। आज भी वे अपनी पुस्तकों के द्वारा जिज्ञासुओं का मार्गदर्शन कर रहे हैं। 'हठयोग' पुस्तक योग के ऊपर संपूर्ण ज्ञान प्रदान करती है। इसमें सभी आवश्यक आसनों, प्राणायामों, बंधों, मुद्राओं, धारणा और ध्यान की विधि आदि का अत्यंत सरल भाषा में वर्णन किया गया है, जिससे वे सरलता पूर्वक सामान्य व्यक्ति को समझ में आ जायें और वे तत्काल योगाभ्यास प्रारंभ कर दें और इसके द्वारा मानव जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करें। इस पुस्तक में एक और महत्वपूर्ण क्रिया के बारे में बताया गया है, वह है नासिका से जल पीना । वास्तव में यह क्रिया अत्यंत लाभदायक है और आशा है कि समस्त हिंदी भाषी जन इस क्रिया का स्वयं अभ्यास कर इसके लाभों का स्वयं साक्षात्कार करेंगे। अंत में सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि वे इस पुस्तक को मात्र पढ़ें ही नहीं, वरन् इसमें बताये गये आसनों, प्राणायामों आदि का नित्य अभ्यास करें, तो जैसा कि मैंने स्वयं अनुभव किया है, उनके जीवन में भी आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तन आयेगा।
सदा गुरुदेव की सेवा में,
शिवानन्द राधिका अशोक
आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः।
इदमेकं सुनिष्पन्नं योगशास्त्रं परं मतम् ॥
(शिवसंहिता)
"सभी शास्त्रों के अध्ययन एवं बार-बार मनन करने पर यह योगशास्त्र ही मात्र सत्य तथा दृढ़ सिद्धांत युक्त पाया गया।”
नास्ति मायासमः पाशो नास्ति योगात्परं बलम् ।
नास्ति ज्ञानात्परो बंधुर्नाहंकारात् परो रिपुः ।
(घेरण्डसंहिता)
"माया के समान कोई बेड़ी नहीं, योग से मिलने वाली शक्ति के समान कोई शक्ति नहीं, ज्ञान के समान श्रेष्ठ कोई मित्र नहीं और अहंकार के समान "कोई शत्रु नहीं है।"
भ्रांत्या बहुमत ध्वांते राजयोगमजानताम् ।
हठप्रदीपिकां धत्ते स्वात्मारामः कृपाकरः ।।
'अनेक विरोधी मतों के अंधकार में जो भटकते रहते हैं और राजयोग नहीं प्राप्त कर पाते, उनके लिए सर्व कृपालु स्वात्माराम योगी हठयोग का प्रकाश प्रदान करते हैं।"
अशेषतापतप्तानां समाश्रयमठो हठः।
अशेषयोगयुक्तानामाधारकमठो हठः ।।
"जो त्रितापों से जलाये जा रहे हैं, उनके लिए हठयोग मंदिर के समान है तथा जो योगाभ्यास में लगे हैं, उन सभी के लिए हठयोग उस कच्छप के समान है जो इस संपूर्ण जगत का आधार है।"
युवा वृद्धोऽतिवृद्धो वा व्याधितो दुर्बलोऽपि वा ।
अभ्यासात्सिद्धिमाप्नोति सर्वयोगेष्वतंद्रितः ॥
(हठयोगप्रदीपिका)
"यदि कोई लगन पूर्वक योगाभ्यास करता है, तो चाहे वह युवा, वृद्ध, अति वृद्ध, रोगी अथवा दुर्बल क्यों न हो, सिद्ध बन जाता है।"
बृहत सूर्य से ले कर छोटे से अणु तक यह संपूर्ण विश्व नियम द्वारा नियंत्रित है। सर्वत्र एक निश्चित नियम है। सूर्य अपना काम पूर्ण नियमितता से करता है। यह सही समय पर उदित होता है और सही समय पर अस्त हो जाता है। तारे और ग्रह एक निश्चित क्रम में भ्रमण करते हैं। ये सभी एक नियम द्वारा नियंत्रित हैं। मनस लोक में भी नियम हैं। भौतिकी, खगोल शास्त्र, गणित सभी के नियम हैं। स्वास्थ्य तथा स्वच्छता के नियम हैं जो हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। इस बृहत विश्व में एकमात्र मनुष्य ही ऐसा है जो सभी नियमों को तोड़ता है और इनका उल्लंघन करता है। नियम विरुद्धता एवं नियम त्यागने का मनुष्य एकमात्र उदाहरण है। वह स्वास्थ्य के नियमों का पूर्ण उल्लंघन करता है, अनैतिक जीवन व्यतीत करता है और फिर आश्चर्य करता है कि वह रोगों तथा असंगति से पीड़ित क्यों है। वह स्वच्छता एवं उचित जीवन के नियमों की पूर्ण उपेक्षा करता है और फिर जब वह किसी भयंकर असाध्य रोग से पीड़ित हो जाता है, तो रोता है।
वह चीज क्या है जो जीवन को बहुमूल्य बनाती है? वह है स्वास्थ्य "शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् " मानव अस्तित्व के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए शरीर वास्तव में एक अनिवार्य साधन है।
चरक महर्षि ने अपनी संहिता में लिखा है: “धर्मार्थ काम मोक्षानाम् आरोग्यं मूलमुत्तमम्, योगस्तस्य अपहर्तार श्रेयसो जीवितायच”—गुणों, धन, कामना, मुक्ति एवं आनंद हेतु उत्तम स्वास्थ्य सहायक है। रोग स्वास्थ्य को नष्ट करते हैं। स्वास्थ्य संरक्षण के नियमों का ध्यान रखना सर्वाधिक आवश्यक है। स्वास्थ्य संरक्षण के नियम प्रकृति के नियम हैं। इनका उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिये। जो इन नियमों की अवहेलना करते हैं, वे असाध्य रोगों का शिकार हो जाते हैं।
स्वास्थ्य ही संपत्ति है। स्वास्थ्य ही वास्तव में ऐसी संपत्ति है जिसका लोभ किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य सभी के लिए एक बहुमूल्य संपत्ति है। आपका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए। यदि आपका स्वास्थ्य उत्तम नहीं है, तो आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में समृद्धि नहीं प्राप्त कर सकेंगे। स्वास्थ्य वह स्थिति है, जिसमें मनुष्य अच्छी नींद सोता है, उसका भोजन अच्छी तरह पचता है तथा वह सभी रोगों से मुक्त रहता | जब आपका स्वास्थ्य अच्छा रहता है, तो सभी अंग जैसे हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क, वृक्क, यकृत, आँतें आदि समन्वय पूर्वक तथा संतोष जनक ढंग से कार्य करते हैं और नाड़ी की गति सही रहती है, शरीर का तापमान सामान्य रहता है एवं नित्य खुल कर शौच होता है। स्वस्थ मनुष्य सदा मुस्कुराता और हँसता रहता है। वह सदा उत्साहित रहता है। वह अपने नित्य कर्तव्य अत्यंत सहज रूप से करता है। स्वस्थ मनुष्य बिना थके लंबे समय तक कार्य कर सकता है। उसके पास श्रेष्ठ मानसिक एवं शारीरिक क्षमता होती है।
स्वस्थ मनुष्य आवश्यक नहीं कि बलवान् हो, और बलवान् मनुष्य आवश्यक नहीं कि स्वस्थ हो । अत्यंत बलवान् व्यक्ति हो सकता है रोगों से पीड़ित हो । स्वस्थ तथा बलवान् व्यक्ति सबके आकर्षण का केंद्र होता है। वह जिनके भी संपर्क में आता है, उन सभी में स्वास्थ्य एवं शक्ति का विकिरण करता है। शक्ति एवं आकार के द्वारा आप उसके स्वास्थ्य का अनुमान नहीं लगा सकते। एक दुबला-पतला अथवा भारी शरीर वाला व्यक्ति भी बलवान् हो सकता है। आपके भीतर माँसपेशियों की शक्ति के साथ-साथ नाड़ी शक्ति भी होनी चाहिए। शक्तियाँ भी विभिन्न प्रकार की होती है। कुछ लोग भारी वजन उठा सकते हैं। कुछ लोग अत्यधिक गर्मी तथा शीत को सहन कर सकते हैं। कुछ लोग कई दिनों तक उपवास रख सकते हैं। कुछ अपमान तथा आघात सहन कर सकते हैं। कुछ कार को रोक सकते हैं और जंजीरें तोड़ सकते हैं। कुछ लोग लंबी दूरी तक तैर सकते हैं। कई लोगों के पास बहुत अधिक शारीरिक शक्ति होती है, किंतु उनके पास मानसिक शक्ति नहीं होती। एक कठोर शब्द उनका मानसिक संतुलन बिगाड़ देता है। कुछ लोग प्रचुर शक्ति संपन्न होते हैं, लेकिन वे किसी तीव्र रोग का दर्द सहन नहीं कर सकते। जब वे किसी रोग से ग्रस्त हो जाते हैं, तो बच्चों की तरह बिलखने लगते हैं। उनके पास थोड़ी सी भी मानसिक शक्ति नहीं होती। कुछ लोग शारीरिक रूप से बलवान् होते हुए भी लोगों की आलोचना से डरते हैं।
जिसके पास शारीरिक, मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक शक्ति है, वह एक आदर्श व्यक्ति है। नैतिक बल शारीरिक बल से श्रेष्ठ है। आध्यात्मिक शक्ति पृथ्वी पर सर्वोच्च शक्ति है। वह संत अथवा योगी जिसके पास आध्यात्मिक शक्ति है, वह संपूर्ण जगत् को चला सकता है। उसका व्यक्तित्व अद्भुत होता है। गाँधी जी के पास नैतिक शक्ति थी। उन्होंने यह शक्ति अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य के अभ्यास से अर्जित की थी। गाँधी के पास शारीरिक बल तो नहीं था, लेकिन उनके पास मानसिक और आध्यात्मिक बल था। दुबले-पतले शरीर में भी एक शक्तिशाली आध्यात्मिक आत्मा निवास कर सकती है।
आज संसार को अच्छी स्वस्थ माताओं, शक्तिशाली बालकों तथा बालिकाओं की आवश्यकता है। भारत वह भूमि है, जिसने भीष्म, भीम, अर्जुन, द्रोण, अश्वत्थामा, कृप, परशुराम तथा असंख्य पराक्रमी योद्धाओं को जन्म दिया है। वह भूमि जहाँ के असंख्य राजपूत निस्संदेह रूप से निर्भीकता, अतुलनीय शक्ति एवं पराक्रम से सम्पन्न रहे हैं, आज उसी भारत में आप क्या पाते हैं ? आज वहाँ के लोग दुर्बल तथा नपुंसक हो गये हैं। बच्चे बच्चों को जन्म दे रहे हैं। स्वास्थ्य के नियमों की अवहेलना, उपेक्षा हो रही है। देश मर रहा है, पीड़ित है । आज जगत को पराक्रमी, नैतिक और आध्यात्मिक ऐसे अनगिनत सैनिकों की आवश्यकता है जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह से संपन्न हो। जिनके पास स्वास्थ्य और शक्ति है तथा जिनके पास उपरोक्त पाँचों सद्गुण हैं, जिनके पास आत्मज्ञान है, वे ही जगत हेतु सच्ची स्वतंत्रता सुरक्षित कर सकते हैं।
उत्तम स्वास्थ्य आपकी महान् धरोहर है। बिना उत्तम स्वास्थ्य के आपको जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता मिलना कठिन है। यहाँ तक कि आध्यात्मिक लक्ष्य हेतु भी उत्तम स्वास्थ्य पूर्वापेक्षा है। बिना उत्तम स्वास्थ्य के आप अपने अंतर के जीवन के बृहत सागर की गहराइयों में प्रवेश नहीं कर सकेंगे और न ही जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। उत्तम स्वास्थ्य के बिना आप उपद्रवी इंद्रियों तथा प्रबल मन से संघर्ष नहीं कर सकेंगे।
शुद्ध जल पीने से, शुद्ध पौष्टिक भोजन ग्रहण करने से, स्वास्थ्य तथा स्वच्छता के नियमों का पालन करने से, नियमित व्यायाम करने से तथा प्रातः काल शीतल जल से स्नान करने से, जप तथा ध्यान का अभ्यास करने से, सही जीवन जीने से, सही सोच रखने से, अच्छे कार्य करने से, सही आचरण से, ब्रह्मचर्य के पालन से, नित्य कुछ देर खुली हवा तथा सूर्य के प्रकाश में निवास करने से आपको अद्भुत स्वास्थ्य, बल और जीवनी शक्ति प्राप्त होगी।
सात्विक आहार अथवा अच्छा पौष्टिक आहार एवं पूर्ण आहार लेना, योगासनों का नियमित क्रमबद्ध अभ्यास, सही जीवन जीना, सही सोच रखना तथा सादा जीवन व्यतीत करना, ये सभी उच्च स्तरीय बल तथा जीवनी शक्ति प्राप्त करने हेतु महत्वपूर्ण पूर्वापेक्षायें हैं। ये सभी वे उत्कृष्ट सिद्धांत हैं, जिनका पालन कर प्राचीन ऋषि और योगी दीर्घायु रहते थे तथा शांति पूर्ण जीवन व्यतीत करते थे, ये सभी वे महत्वपूर्ण विधियाँ हैं, जिन पर योगका तंत्र आधारित है और इनसे शरीर एवं मन के स्वास्थ्य में पूर्णता की प्राप्ति होती है। ये वे आधार हैं, जिनसे भारत देश अपना खोया हुआ वैभव पुनः प्राप्त कर सकता है।
यदि यौगिक क्रियाओं का नित्य १५ मिनट अभ्यास किया जाये तो आप पूर्ण स्वस्थ और हष्ट-पुष्ट रहेंगे। आपमें प्रचुर ऊर्जा, पेशी बल तथा नाड़ी शक्ति होगी। आपका व्यक्तित्व आकर्षक होगा तथा आप दीर्घायु
आजकल अनेक प्रकार की व्यायाम की विधियाँ प्रचलित हैं, उनमें से हटयोग श्रेष्ठ है। प्राचीन ऋषियों एवं योगियों ने इसका अभ्यास किया था। यह सर्वाधिक त्रुटि रहित विधि है। इससे मस्तिष्क, माँसपेशियाँ, नाड़ियाँ, शरीर के अंग, ऊतक आदि की मालिश होती है और शक्ति प्राप्त होती है। सभी जीर्ण रोग जड़ से दूर हो जाते हैं। हठयोग की क्रियाओं के अभ्यास से आपको स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मन प्राप्त होता है तथा आध्यात्मिक अनुभव भी प्राप्त होते हैं। हठयोग में क्रियाओं का क्रमबद्ध अभ्यास आता है। इसमें षट्कर्म, आसन, प्राणायाम, मुद्रा एवं बंध तथा ध्यान एवं धारणा की क्रियायें सनिहित हैं।
आसन भौतिक शरीर से सम्बद्ध हैं। ये शरीर को दृढ़ एवं स्थिर रखते हैं। बंध प्राण से सम्बद्ध हैं। जो बाँधता है, वह बंध है। ये प्राण को ऊपर नहीं जाने देते और अपान को नीचे नहीं जाने देते। ये प्राण तथा अपान को बाँधते हैं, मिलाते हैं तथा इस संयुक्त प्राण और अपान को सुषुम्ना के साथ भेजते हैं। मुद्रायें मन के साथ संबद्ध हैं। ये आत्मा के साथ मन को बंद कर देती हैं। ये मन को विषयों की ओर नहीं भागने देतीं। ये बहिर्गामी मन को हृदय गुहा में आत्मा की ओर निर्दिष्ट करती हैं तथा इसे वहाँ स्थिर करती हैं। किंतु सभी क्रियाओं का संयुक्त अभ्यास आवश्यक है।
इस पुस्तक का प्रथम अध्याय प्रमुख आसनों के बारे में व्यवहृत है। स्वास्थ्य तथा शक्ति के लिए मैंने २० आसनों का वर्णन किया है। आसनों की प्रकृति एवं लाभ के अनुसार ये ८ समूहों में विभाजित किये गये हैं। ८ वें समूह में ध्यान हेतु सर्वश्रेष्ठ ४ आसनों का वर्णन किया गया है। अध्याय २ में प्राणायाम की विधियाँ वर्णित हैं। प्राणायाम के अभ्यास से फेफड़ों में रक्त परिसंचरण में वृद्धि होती है और नाड़ियों की शुद्धि होती है।
तीसरे अध्याय में आपको मुद्राओं तथा बंधों की जानकारी मिलेगी। अंत में मैंने कुंडलिनी, इसके जागरण, धारणा, स्वास्थ्य तथा दीर्घायु के बारे में महत्वपूर्ण लेख दिये हैं। इसके पश्चात् आपको नित्य अभ्यास हेतु आसनों का समूह दिया गया है। प्रत्येक समूह से आपको अपने स्वभाव, क्षमता एवं उपलब्ध समय के अनुसार एक या दो आसन चुन लेने चाहिए। यदि आप प्रत्येक समूह से एक आसन भी चुन लें तथा प्रतिदिन १५ मिनट भी इसका अभ्यास करें, तो भी आपके शरीर का सम्पूर्ण विकास होगा।
आप सभी को योगाभ्यास एवं ऋषियों के आशीर्वाद से उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु, उच्चस्तरीय बल तथा जीवनी शक्ति प्राप्त हो!
-स्वामी शिवानंद
हे देवी माँ, हे सर्पिणी कुंडलिनी शक्ति !
हमारे हृदय में वास करने वाली !
आप साढ़े तीन कुंडल मारे हुए, मूलाधार में सोई हुई हैं।
आप ही साकार और निराकार हैं।
आप ही सगुण और निर्गुण हैं।
आप ही स्रोत और अवलंबन हैं।
आप कण-कण में विद्यमान हैं।
वेद आपका गुणगान करते हैं।
संत आप पर ध्यान करते हैं।
योगी आपका ध्यान करते हैं।
भक्त आपकी पूजा करते हैं।
आप गहन हैं।
आप अबोधगम्य है।
आप अविचल हैं।
आप अचिंतनीय हैं।
भक्त आपकी पूजा करते हैं।
हमारे नेत्र आपको ही देखें।
अब हमारी जिहा आपका ही गुणगान करे।
अब हमारे हाथ आपके ही लिए कार्य करें।
अब हमारे मन आप पर ही द्रढ़ रहें।
अब मैं सहस्रार में ही लीन रहूँ ।
अब मेरी सुषुम्ना का द्वार खुल जाये ।
अब मेरी कुंडलिनी जाग्रत हो जाये।
अब मैं हठयोग के अमृत का पान करूँ
अब मैं समाधि प्राप्त करूँ।
अब मेरे प्राण अपान के साथ एक हो जायें।
अब मुझे केवल कुंभक प्राप्त हो, और मुझे आपके साथ एक होने दें।
भैया, उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करो,
स्वास्थ्य के बिना तुम कैसे जियोगे ?
स्वास्थ्य के बिना कैसे अर्जन करोगे?
स्वास्थ्य के बिना तुम कैसे आगे बढ़ोगे?
हठयोग से स्वास्थ्य प्राप्त करके,
ह का ठ से मिलन करके,
चंद्रमा का सूर्य के साथ मिलन करके,
प्राण का अपान के साथ मिलन करके,
सहस्रार में अमृत का पान करो,
और अमर धाम में निवास करो,
हठ एवं राजयोग अभिन्न हैं,
जहाँ हठयोग समाप्त होता है,
वहाँ राजयोग प्रारंभ होता है।
हठयोग आपको निर्विकल्प समाधि लिए तैयार करता है।
हठयोग के बिना सफलता नहीं,
हठयोग के बिना समाधि नहीं,
हठयोग के बिना वीर्य नहीं,
हठयोग के बिना स्वास्थ्य नहीं,
हठयोग के बिना सौंदर्य नहीं,
हठयोग के बिना दीर्घायु नहीं,
अभ्यास आरंभ करने के पहले गणेश जी को प्रणाम करें,
आसनों के राजा शीर्षासन का अभ्यास करें और
सभी रोगों को दूर करें,
सर्वांग आसन के अभ्यास से थायराइड ग्रंथि का विकास करें,
और पश्चिमोत्तानासन द्वारा
भोजन का पाचन करें,
मयूरासन से विष भी पच जाता है।
अर्ध मत्स्येंद्र आसन रीढ़ को लचीली बनाता है।
भुजंग, शलभ और धनुर आसन के अभ्यास से
शौच खुल कर होता है।
तथा ये कब्ज को समूल नष्ट कर देते हैं।
शीर्ष, सर्वांग आसन द्वारा वीर्य का संरक्षण करें
और स्वप्न दोष से बचें।
शवासन में माँसपेशियों को
विश्राम प्रदान करें।
आगे झुकने और पीछे मुड़ने वाले
आसनों की उपेक्षा न करें,
यदि आप चहुंमुखी विकास चाहते हैं,
तो रीढ़ को मोड़ने की उपेक्षा न करें।
पश्चिमोत्तानासन से पेट की चर्बी कम होती है।
हलासन से रीढ़ की हड्डी लचीली होती है।
वज्रासन से आलस्य निश्चित रूप से दूर होता है,
और मत्स्यासन से सर्वांग आसन के प्रभाव में वृद्धि होती है।
प्राणायाम से सभी रोग दूर होते हैं
एवं जठराग्नि में वृद्धि होती है।
हलका सा कुंभक दीर्घायु तथा शक्ति
स्फूर्ति एवं जीवनी शक्ति प्रदान करेगा
और कुंडलिनी का जागरण करेगा।
शीतली मस्तिष्क एवं शरीर को शीतल करता है,
तथा रक्त को शुद्ध करता है।
भस्त्रिका अस्थमा और कब्ज को दूर करेगा।
बंध त्रय आपको सुंदर बना सकता है।
प्रातःकाल अभ्यास हेतु अति अनुकूल है।
आसन से प्रारंभ करें, फिर प्राणायाम करें।
प्रतिदिन आसन, प्राणायाम हेतु १५ मिनट व्यय करें।
यह आपको स्वस्थ रखने हेतु पर्याप्त है।
अपने अभ्यास में नियमित रहें,
अंत में थोड़ा दूध पिएं,
स्नान हेतु १ घंटे प्रतीक्षा करें।
भोजन एवं निद्रा में संयमित रहें।
गर्म कढ़ी, प्याज का त्याग करें।
आसनों का अभ्यास खाली पेट करें।
विषय-सूची
समूह १ : सिर के बल किये जाने वाले आसन
समूह २ : शरीर को आगे की ओर मोड़ने वाले आसन
समूह ३ : शरीर को पीछे की ओर मोड़ने वाले आसन
समूह ४ : बगल की ओर झुकने वाले आसन
समूह ५ : मेरुदंड को मोड़ने वाले आसन
२. कुंडलिनी का जागरण कैसे करें?
५. ब्रह्मचर्य द्वारा जीवन में वृद्धि
शरीर के संपूर्ण विकास के लिए आसन
बीस महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक नियम
शीर्षासन सभी आसनों का राजा है। इस आसन के अभ्यास से आपको अधिकतम शारीरिक तथा आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होंगे। संस्कृत में 'शीर्ष' का अर्थ है सिर। चूँकि इस आसन में अभ्यासी सिर के बल खड़ा रहता है, इस कारण इसे शीर्षासन कहते हैं। इसका अन्य नाम कपाली आसन है (कपाल अर्थात सिर)।
प्रविधि
भूमि पर चारवर्ती कंबल बिछा लें। चूंकि इस आसन में सारे शरीर का भार सिर के ऊपर रहता है, इसलिये सिर के नीचे कंबल का होना आवश्यक है।
घुटनों के बल बैठ जायें। दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लें। फंसी हुई उंगलियों को भूमि पर इस प्रकार रखें कि हाथ सिर के शीर्ष भाग के पास रहें इस समय कोहनियाँ सारे शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिये आधार का कार्य करेंगी। निम्न चित्र के द्वारा आप देख सकेंगे कि फंसी हुई उंगलियाँ किस प्रकार भूमि पर रखनी हैं, इनसे सिर को आधार मिलता है।
अब अपने सिर का शीर्ष भाग हाथों के बीच रखें और उंगलियों को फंसा लें। शरीर को ऊपर उठायें और घुटनों को अपने सीने के पास लायें ।
पंजे भूमि को स्पर्श करेंगे, इस स्थिति से आपको धीरे-धीरे पंजों को भूमि से ऊपर उठाने का प्रयत्न करना है २, ३ बार में आप शरीर को संतुलित करने की कला सीख जायेंगे। आप दीवार के सहारे इस आसन को सफलता पूर्वक सीख सकेंगे। हाथों और सिर को दीवार के पास रखें और अपने पैरों को दीवार के सहारे ऊपर की ओर ले कर जायें। अपने पैरों को दीवार से दूर करने का प्रयास करें। इस विधि से आप शरीर को संतुलित करने की विधि सीख सकेंगे। आप अपने मित्र से भी अपने पैरों को पकड़ने के लिए कह सकते हैं। यह देखने के लिए कि आप स्वयं स्थिर रह सकते हैं या नहीं, वह आपके पैरों को कभी-कभी छोड़ भी सकता है।
जब आप आसन में रुके हों, तो सदा नासिका से श्वाँस लें, कभी भी मुँह से श्वाँस न लें। कुछ दिनों तक आपको नासिका से श्वाँस लेने में कष्ट का अनुभव होगा, फिर आपको सरल लगने लगेगा।
यदि आपको इस प्रकार कठिनाई का अनुभव हो तो आप हथेलियों को भूमि पर भी रख सकते हैं। कुछ समय बाद आप पूर्व वाली विधि अपना सकते हैं। आसन के समाप्त हो जाने पर आप थोड़ी देर तक सीधे खड़े रहें। और अगला आसन प्रारंभ करने के पहले कुछ देर विश्राम करें। ऐसा करने से आपका रक्त संचरण सही रहेगा। कुछ लोग इस आसन में एक साथ तीन घंटे तक रुक सकते हैं। ग्रीष्म ऋतु में इस आसन को अधिक लंबे समय तक न करें। जब आप आसन कर रहे हों तो इष्ट मंत्र का जप भी कर सकते हैं।
लाभ
इस आसन में सम्पूर्ण शरीर उल्टा हो जाता है, इस कारण गुरुत्वाकर्षण के कारण महाधमनी, गले की धमनी, अनुजत्रिक धर्मनी आदि शुद्ध रक्त से भर जाती हैं। मात्र इसी आसन में मस्तिष्क को शुद्ध रक्त की आपूर्ति होती है। बारह जोड़ी कपालीय नाड़ियों, मेरुरज्जु, ३१ जोड़ी मेरु नाड़ियों तथा संवेदी तंत्र को पर्याप्त पोषण प्राप्त होता है। नाड़ियों, नेत्रों, नासिका, गले तथा कानों के समस्त दोष इस आसन के अभ्यास से दूर हो जाते हैं। यह एक शक्तिशाली नाड़ी शक्ति प्रदायक इससे संपूर्ण नाड़ी तंत्र की मालिश होती है एवं पोषण मिलता है। सभी शिराओं का रक्त चूँकि गुरुत्वाकर्षण के विपरीत जाता है, इसलिए उनको गुरुत्वाकर्षण बल से सहायता मिलती है। और शिराओं तथा उनके कपाटों को विश्राम प्राप्त होता है। इसी कारण यह वेरीकोज वेन्स रोग के उपचार में सहायता करता है।
यह ब्रह्मचर्य पालन में बहुत सहायक है। इससे वीर्य शक्ति ओज़ में परिणित हो जाती है और मस्तिष्क की ओर प्रवाहित होती है, इस ओज़ शक्ति का उपयोग ध्यान हेतु होता है। इसे यौन शुद्धिकरण भी कहते हैं। स्वप्न दोष से पीड़ित व्यक्तियों को इस आसन से बड़ा आराम मिलता है। शीर्षासन के उपरांत ध्यान करने से बड़ा लाभ प्राप्त होता है। इस आसन में आप अनाहत नाद स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं।
शीर्षासन शक्ति में वृद्धि करता और जीवन देता है। यह सभी रोगों की राम बाण औषधि है। यह शक्तिशाली रक्त शोधक है। इसके अभ्यास से झुर्रियाँ तथा सफेद बाल अदृश्य हो जाते हैं। यह यकृत, प्लीहा, फेफड़ों तथा जननांगों एवं उत्सर्जक अंगों से सम्बंधित समस्त रोगों को दूर करता है। यह बहरापन, मधुमेह, बवासीर, पायरिया, कब्ज आदि रोगों को दूर करता है। इससे पाचन शक्ति अत्यंत तीव्र हो जाती है। यह स्त्रियों के लिए भी अति उत्तम है। किंतु मासिक धर्म एवं गर्भधारण के समय इसे करना ठीक नहीं है। इसके अभ्यास से नपुंसकता समाप्त हो जाती है तथा स्मरण शक्ति में अद्भुत रूप से वृद्धि होती है। वकीलों, विचारकों ने इसे बड़ा उपयोगी पाया है। इसको करते समय यदि आप श्वाँस पर ध्यान देंगे तो पायेंगे कि यह सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जा रही है। यह आसन स्वाभाविक रूप से प्राणायाम हेतु प्रेरित करता है और यह मूलाधार में स्थित कुंडलिनी के जागरण करता है।
यदि आप शीर्षासन अच्छी तरह से कर सकते और इसमें अपने शरीर का संतुलन बनाये रख सकते हैं, तो आप ऊर्ध्व पद्मासन का अभ्यास कर सकते हैं। जब आप शीर्षासन में खड़े हों, तब धीरे से बायें पैर को मोड़ें और दाँय जाँघ पर रख दें, इसी प्रकार दायें पैर को मोड़ें और बाँय जाँघ पर रख दें। इस प्रकार पद्मासन बन जायेगा ।
यदि आप बैठ कर पद्मासन कर सकते हैं तो आप ऊर्ध्व पद्मासन हेतु प्रयत्न कर सकते हैं। आपको यह आसन अत्यंत सावधानी पूर्वक तथा धीरे-धीरे करना चाहिए। वह व्यायामी जो पैरेलल बार अथवा भूमि पर संतुलन कर सकता है, वह इस आसन को सरलता से कर सकता है। प्रारंभ में इस आसन में १५ सेकेंड तक रुकें, फिर पद्मासन को खोल दें। इसके बाद कुछ सेकेंड तक शीर्षासन में रुकें, फिर धीरे-धीरे पैरों को नीचे लायें। जैसा कि शीर्षासन में पूर्व में निर्देश दिया गया है, आसन समाप्त होने पर थोड़ी देर तक सीधे खड़े रहें। इससे रक्त का परिसंचरण संतुलित हो जायेगा। शीर्षासन के सभी लाभ इससे प्राप्त होते हैं। जो इसका अभ्यास करता है, उसका शरीर पर पूर्ण नियंत्रण रहता है।
सर्वांग का अर्थ है-सभी अंग। यह नाम बतलाता है कि यह सभी अंगों से सम्बद्ध है। यह एक अनूठा आसन है जो कि संपूर्ण शरीर को नवजीवन प्रदान करता है।
प्रविधि
भूमि पर मोटा कंबल बिछा लें। पीठ के बल लेट जायें। धीरे-धीरे दोनों पैरों को ऊपर उठायें। पेट, जाँघ तथा पैरों को बिल्कुल सीधे उठायें। कोहनियों को भूमि पर दृढ़ता से लगाये रखें और पीठ को दोनों हाथों से सहारा दें। पैरों को तब तक उठायें जब तक कि वे सीधे लम्बवत न हो जायें। ठोड़ी से सीने पर दबाव दें। यह जालंधर बंध है। जब आप यह आसन कर रहे हों, तो आपकी गर्दन, सिर का पिछला भाग और कंधे भूमि को स्पर्श करने चाहिये। धीरे-धीरे श्वाँस लें तथा गले में स्थित थायराइड ग्रंथि का ध्यान करें। शरीर को आगे-पीछे न जाने दें। जब आसन समाप्त हो जाये तो पैरों को बड़ी सावधानी से धीरे-धीरे नीचे लायें, झटका नहीं लगना चाहिए। आसन को अत्यंत सुंदर ढंग से करें। इस आसन में आप हाथों के सहारे खड़े रहते हैं। और आपका सम्पूर्ण भार कंधों पर रहता है। इसके तुरंत बाद मत्स्यासन का अभ्यास करना चाहिए जिससे आप सर्वांग आसन के अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकेंगे। इस आसन में प्रारंभ में मात्र दो ही मिनट रुकें, फिर इस अवधि को धीरे-धीरे ३० मिनट तक बढ़ायें।
लाभ
जिस प्रकार शीर्षासन संपूर्ण तंत्रिका तंत्र की मालिश करता है, उसी प्रकार सर्वांग आसन (अवटु ग्रंथि) थायराइड ग्रंथि का विकास करके संपूर्ण शरीर तथा इसके कार्यों में सहयोग करता है। अवटु (थायराइड) ग्रंथि सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथि है। इस आसन में इस ग्रंथि को रक्त की अच्छी आपूर्ति होती है । स्वस्थ अवटु ग्रंथि (थायराइड) का अर्थ है—शरीर के परिसंचरण, श्वसन तथा सभी तंत्रों का सही ढंग से कार्य करना ।
यह आसन अवटु ग्रंथि (थायराइड) की आधुनिक चिकित्सा का अच्छा स्थानापन्न है यह आसन कुष्ठ रोग को दूर करता है। उपचार की अवधि में रोगी को मात्र दूध पर निर्भर रहना होता है। दूध अवटु ग्रंथि को पर्याप्त मात्रा में इसका रस स्रवित करने में सहायता करता है, जिससे कि प्रकृति को अपने जीर्णोद्धार एवं पुनर्जीवन के कार्यों में सहायता मिल सके। यदि रोगी प्रातः - सायं सूर्य स्नान करे तो वह शीघ्र स्वस्थ होता है।
यह आसन वृद्धावस्था को नष्ट करता है तथा मनुष्य को सदा युवा रखता है। यह स्वप्न दोष को प्रभावकारी ढंग से रोकता है। यह अजीर्ण, कब्ज, एपेंडिसाइटिस एवं अन्य आमाशय सम्बन्धी रोगों तथा वेरिकोज वेन्स को दूर करता है। यह नाड़ियों की जड़ों को अधिक मात्रा में रक्त की आपूर्ति करता है। यह आसन रक्त को मेरुदंड में केंद्रित करता है तथा इसका पोषण करता है।
इस आसन में मेरुमूल पर्याप्त मात्रा में रक्त खींचते हैं। यह मेरुदंड को लचीला रखता है। रीढ़ का लचीलापन अर्थात चिर यौवन। यह हड्डियों को असमय कड़ा होने से रोकता है। सर्वांग आसन कुंडलिनी को जगाता है तथा जठराग्नि को बढ़ाता है।
यह आसन आपको दृढ़ करेगा तथा आपको नवीन बल और स्वास्थ्य प्रदान करेगा। यह एक आदर्श आसन है। कई लोगों ने मुझे इसके अद्भुत और रहस्यमय लाभदायक परिणामों को बताया है। जब आपके पास अधिक आसन करने का समय न हो तो आप बिना चूके सर्वांग आसन के साथ-साथ शीर्षासन और पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करें। यह आपके डाक्टर के बिल को भी बचायेगा।
प्रविधि
भूमि पर कंबल बिछा लें और इसके ऊपर पीठ के बल लेट जायें। धीरे-धीरे उठ कर बैठ जायें। अब श्वाँस को बाहर निकालें और तब तक आगे की ओर झुकें जब तक कि आप दोनों हाथों से दोनों पैरों के पंजों को न पकड़ लें। धीरे-धीरे आगे की ओर झुकते जायें। आप चित्र में बताये अनुसार अपने चेहरे को घुटनों के मध्य ला सकते हैं। इस आसन में ५ मिनट तक रुकें तथा धीरे-धीरे लेट जायें। अब आप श्वाँस भीतर ले सकते हैं। इसे ३ या ४ बार दोहराएँ ।
जिनको पूर्ण पश्चिमोत्तानासन करने में कठिनाई का अनुभव होता है, वे अर्ध पश्चिमोत्तानासन कर सकते हैं। इसके लिए एक पैर दूसरे पैर की जाँघ के पास रखें और दूसरे पैर को सीधा रखें, अब झुक कर इसके पंजे को पकड़ें। अब यही दूसरे पैर से भी करें। कुछ समय बाद रीढ़ लचीली होने पर आप पूर्ण पश्चिमोत्तानासन कर सकेंगे।
लाभ
यह एक अद्भुत आसन है। यह श्वाँस को ब्रह्मनाड़ी (सुषुम्ना) से प्रवाहित करता है तथा जठराशि बढ़ाता है। इसके अभ्यास से पेट की सभी माँसपेशियाँ प्रभावशाली ढंग से सिकुड़ती है। यह पेट की चर्बी को कम करता है। यह मोटापे तथा तिल्ली एवं यकृत की वृद्धि के निवारण हेतु विशेष लाभप्रद है। यह पेट हेतु शक्तिदायक आसन है। यह आसन पेट के अंगों जैसे वृक्क, यकृत, अग्न्याशय को उत्तेजित करता है। यह आँतों की क्रमाकुंचन गति को बढ़ाता है तथा कब्ज को दूर करता है। यह बवासीर को ठीक करता है और मधुमेह को रोकता है। यह आसन नाक्चुरल एमिषन (रात को सोते समय मूत्र की असंयति) हेतु अच्छा प्रतिरोधक है। यह शरीर के पश्च भाग की माँसपेशियों को पर्याप्त शक्ति प्राप्त होती है। इसके अभ्यास से अधिजठरीय नाड़ियाँ, आमाशय, कटि की नाड़ियाँ तथा संवेदी तंत्र अच्छी स्थिति में रहते हैं ।इसके अभ्यास से से रीढ लचीली होती है । जिससे कि स्थायी यौवन स्थापित होता है । हलासन तथा पश्मिोत्तानासन रीढ़ को आगे की ओर सही ढंग से मोड़ते है ।
जब यह आसन प्रदर्शित किया जाता है, तो हल की भाँति दिखाई देता है ।
प्रविधि
दरी के ऊपर पीठ के बल लेट जायें, हथेलियों को भूमि की ओर रखते हुए दोनों हाथों को जाँघों के पास रखें। पैरों को मोड़े बिना, धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठायें। हाथों को भूमि पर दृढ़ता पूर्वक स्थिर रखे रहें । जाँघों तथा कमर का भाग ऊपर की ओर उठायें और पंजों को तब तक नीचे लायें, जब तक कि पंजे सिर के पीछे भूमि को स्पर्श न कर लें। घुटनों को बिलकुल सीधे और पास-पास रखें ।
इस आसन का एक और प्रकार है। जब पंजे भूमि को स्पर्श करें, तो हाथों से पंजे पकड़ लें। यह भी एक अच्छा प्रकार है, अथवा आप अगले उदाहरण में बताए अनुसार भी हाथ रख सकते हैं। इसे ३ या ४ बार कर सकते हैं। आध्यात्मिक लाभ हेतु आपको इस आसन में लम्बे समय तक रुकना चाहिए ।
लाभ
हालांकि भुजंग, शलभ और धनुर आसन में गहरी और सतही माँसपेशियाँ पूरी तरह खिंचती हैं और शिथिल होती हैं, लेकिन हलासन में पीठ की जो माँसपेशियाँ पूरी तरह खिंचती और शिथिल होती हैं, वे रीढ़ को स्वस्थ रखने के लिए उत्तरदायी हैं।
इसके अभ्यास से पेट की माँसपेशियाँ शक्तिशाली रूप से संकुचित होती हैं और दृढ़ बन जाती हैं। इस आसन में संपूर्ण मेरुदंड पीछे की ओर खींचा जाता है, जिससे कि इससे जुड़ी प्रत्येक कशेरुका एवं अस्थि बंधन को प्रचुर मात्रा में रक्त मिलता है और वह दृढ़ हो जाता है। इसके अभ्यास से रक्त की अत्यधिक आपूर्ति होती है और सभी ३१ जोड़ी मेरुनाड़ियों एवं संवेदी तंत्र को पोषण मिलता है तथा उनकी अच्छी मालिश होती है। यह आसन रीढ़ की हड्डी के शीघ्र अस्थिकरण को रोकता है और इसके अभ्यास से मेरुदंड इतना लचीला हो जाता है कि इसको एक कैनवास के टुकड़े की तरह मोड़ा और लपेटा जा सकता है। वह जो इस आसन का अभ्यास करता है। वह अत्यंत फुर्तीला, दीर्घायु तथा ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। यह आसन मेरु नाड़ियों, संवेदी नाड़ी तंत्र, पीठ की माँसपेशियों और कशेरुकाओं की हड्डियों का पोषण करता है । अनेक प्रकार के पेशीशूल, कटिशूल, गले का दर्द तथा स्नायुशूल इसके अभ्यास ये ठीक हो जाते हैं। मोटापा, कब्ज, गुल्म तथा यकृत और प्लीहा के सभी रोग इससे दूर हो जाते हैं ।
इसे खड़ा पश्चिमोत्तानासन भी कह सकते हैं। संस्कृत में पाद का अर्थ है पैर और हस्त का अर्थ है हाथ ।
प्रविधि
सीधे खड़े हो जायें। अपने दोनों हाथ ऊपर करें और पूरी तरह श्वाँस भीतर लें। फिर धीरे-धीरे श्वाँस को बाहर निकालें। इस समय शरीर को तब तक नीचे झुकायें जब तक कि हाथ पंजों तक पहुँच जायें और नासिका घुटनों को स्पर्श करने लगे। घुटनों को दृढ़ और सीधे रखें। पैरों को न मुड़ने दें। ऊपर उठे हुए हाथों को सारे समय यहाँ तक कि शरीर को झुकाते समय भी कानों से स्पर्श करना चाहिए। आप पंजों को पकड़े भी रह सकते हैं। धीरे-धीरे अभ्यास से आप अपने दोनों हाथों को भूमि पर दृढ़ता से जमाए रख कर सिर को दोनों घुटनों से स्पर्श कर सकेंगे। इस आसन में ५ सेकेंड तक रुकें, इसके बाद धीरे से अपने शरीर को उठायें और खड़े हो जायें ।
जब आप आप अपने शरीर को उठायें तब आप धीरे-धीरे श्वाँस ले सकते हैं। इसकी ४ बार पुनरावृत्ति करें। कंधों की माँसपेशियों के कड़े होने और पेट के मोटे होने के कारण आप अधिक देर तक पंजों को पकड़े न रह सकते हों, तो घुटनों को थोड़ा सा झुका लें। पंजों को पकड़ लेने के बाद पैरों को सीधे और कड़े कर लें।
लाभ
इस आसन से पश्चिमोत्तानासन के सभी लाभ प्राप्त होते हैं। इसके अभ्यास से रीढ़ लचीली और लंबी होती है। आपकी लंबाई बढ़ाने के लिए यह सर्वश्रेष्ठ आसन है। इसके अभ्यास से पेट के ऊपर की चर्बी अदृश्य हो जाती है और शरीर हलका हो जाता है। मोटापा कम करने तथा सुंदर शरीर बनाये रखने के लिए यह आसन स्त्रियों के लिए अत्यधिक अनुकूल है। आपको इस आसन को करने के बाद बहुत अधिक शक्ति का अनुभव होगा। क्योंकि इसके अभ्यास से तमोगुण का निवारण होता है और इस कारण शरीर हल्का हो जाता है।
संस्कृत में 'मत्स्य' का अर्थ है, मछली। इस आसन में व्यक्ति जल के ऊपर मछली की भाँति तैरता रह सकता है।
प्रविधि
भूमि पर कंबल बिछा लें और पैर फैला कर बैठ जायें। सीधे पाँव को मोड़ें और एड़ी को बाँयीं जाँघ के जोड़ के ऊपर रख दें। फिर बाँयें पैर को मोड़ें और इसे दाँय जाँघ के जोड़ के ऊपर रख दें। यह पद्मासन है।
इसके बाद पीठ के बल लेट जायें। पद्मासन को भूमि से न उठने दें। कोहनियों अथवा हाथों को भूमि पर टिकायें। अब धड़ और सिर को उठायें। और पीठ को अच्छी तरह झुका कर सिर के शीर्ष भाग को भूमि पर टिकायें। तत्पश्चात् हाथ से पंजों को पकड़ें। यह मत्स्यासन है। इसे सर्वांगासन के तुरंत बाद करना चाहिए। इस आसन में २ या ३ मिनट तक अथवा जितनी देर आप सर्वांगासन करें उससे आधी देर तक रुकें। इसके बाद हाथों की सहायता से सिर को धीरे-धीरे सीधा कर लें। धीरे से बैठ जायें और पद्मासन खोल दें।
जो लोग मोटे होने के कारण पद्मासन नहीं कर सकते, वे मात्र घुटनों से पैरों को मोड़ कर इस आसन का अभ्यास कर सकते हैं। यदि आपको गर्दन मोड़ने में तथा सिर का शीर्ष भाग भूमि पर लगाने में तकलीफ हो तो आप अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जा सकते हैं। हाथों को कोहनियों के पास रखें और सिर को हाथों के ऊपर रखें। इस आसन में आप जल पर तैर सकते हैं।
लाभ
यह आसन देर तक सर्वांग आसन करने से उत्पन्न ग्रीवा क्षेत्र की ऐंठन तथा कड़ेपन को दूर करता है। मत्स्यासन गर्दन तथा कंधों की मालिश करता है। सर्वांगासन गर्दन को आगे की ओर अच्छी तरह मोड़ता है, जब कि मत्स्यासन में गर्दन पीछे की ओर मुड़ती है। यह सर्वांग आसन का पूरक आसन है। मत्स्यासन में भी अवटु ग्रंथि तथा परा अवटु ग्रंथि को रक्त की अच्छी आपूर्ति होती है। इससे कमर, पीठ तथा गर्दन शक्तिशाली होती हैं। चूँकि इस आसन में स्वर यंत्र तथा श्वाँस नली अच्छी तरह खुल जाती है, इसलिए अभ्यासी खुल कर तथा गहरी श्वाँस ले सकता है। फेफड़ों का ऊपरी भाग जो कि हँसली के ठीक पीछे स्थित है उसे उचित मात्रा में ताजी हवा और प्राण वायु की पर्याप्त मात्रा प्राप्त होती है। गर्दन तथा पृष्ठ क्षेत्र की नाड़ियों को रक्त की अच्छी आपूर्ति होने से उनका पोषण होता है तथा उनकी सही ढंग से मालिश होती है। इसके अभ्यास से अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ, मस्तिष्क में स्थित पीयूष ग्रंथि एवं पीनियल ग्रंथि उत्तेजित होती हैं तथा उनकी मालिश भी होती है। ये ग्रंथियाँ शरीर के क्रिया विज्ञान सम्बन्धी कार्यों में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस आसन में उदर की माँसपेशियाँ खिंचती हैं, इस कारण यह आसन कब्ज दूर करता है तथा पेट के सभी अंगों की मालिश करता है ।
जब यह आसन पूर्ण रूप में किया जाता है तो यह फन फैलाये नाग की भाँति दिखाई देता है। इसीलिए इसका नाम भुजंग आसन है।
प्रविधि
कंबल के ऊपर पेट के बल लेट जायें। सभी माँसपेशियों को पूरी तरह ढीली छोड़ दें। दोनों हथेलियों को कंधों के नीचे रखें। सिर तथा शरीर के ऊपरी भाग को धीरे-धीरे ऊपर उठाये जिस प्रकार नाग अपना फन उठाता है। मेरुदंड को अच्छी तरह मोड़ें। शरीर को अचानक झटके से न उठायें। इसे थोड़ा-थोड़ा उठायें जिससे कि आप वास्तव में एक-एक कशेरुका को मोड़ सकेंगे और दबाव धीरे-धीरे नीचे की ओर जायेगा। नाभि से ले कर नीचे पंजों तक का भाग भूमि से स्पर्श करता रहेगा। आसन में १५ मिनट तक रुकें। फिर सिर को धीरे-धीरे नीचे ले कर आयें। आप इसे ६ बार दोहरा सकते हैं।
सभी पश्चिमी लोगों ने सर्वसम्मति से रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन के महत्व को स्वीकार किया है। रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन का अर्थ है— व्यक्ति का स्वास्थ्य, जीवनी शक्ति और यौवन । इससे पीठ की गहरी और सतही माँसपेशियों की अच्छी मालिश होती है। यह आसन अत्यधिक श्रम के कारण उत्पन्न दर्द को दूर करता है। इसके अभ्यास से पेट की माँसपेशियाँ खिचती हैं जिससे वे शक्तिशाली हो जाती हैं। पेट का भीतरी दबाव अत्यधिक बढ़ जाता है और कब्ज दूर हो जाता है। इसके अभ्यास से पेट के सभी अंगों की अच्छी मालिश होती है।
इसके अभ्यास से प्रत्येक कशेरुका तथा इसके अस्थि बंधन पीछे की ओर खिंचते हैं और उन्हें रक्त की पूर्ण आपूर्ति होती है। यह शरीर की गर्मी बढ़ाता है तथा रोगों को नष्ट करता है। इससे भूख भी अच्छी लगती है। स्त्रियों के अंडाशय तथा गर्भाशय की मालिश के लिये यह विशेष रूप से उपयोगी है। यह एक शक्तिशाली शक्ति वर्धक है। यह अनावर्त, कष्टावर्त, प्रदर रोग तथा अन्य गर्भाशय तथा डिम्बग्रंथि सम्बंधी रोगों को दूर करता है।
जब यह आसन किया जाता है तो यह धनुष जैसा दिखाई देता है। 'धनुर' अर्थात धनुष । खिंचे हुए हाथ और पैर धनुष की कमान को अभिव्यक्त करते हैं और शरीर तथा जाँघें धनुष को अभिव्यक्त करते हैं।
प्रविधि
कंबल के ऊपर पेट के बल लेट जायें। माँसपेशियों को ढीला छोड़ दें। घुटनों को मोड़ कर पैरों को जाँघों के ऊपर मोड़ें। सिर और सीने को उठायें। दाँयें टखने को दाँयें हाथ से तथा बाँये टखने को बाँयें हाथ से दृढ़ता से पकड़े। हाथों और पैरों को खींच कर सिर, शरीर तथा घुटनों को उठायें जिससे कि शरीर का संपूर्ण भार पेट पर आ जाये। इसको करने पर रीढ़ धनुष के आकार में मुड़ जाती है। हाथों और कोहनियों को सीधी और दृढ़ रखें और पैरों को अच्छी तरह खींचें जिससे आप सीने को उठा सकें। घुटनों को पास-पास रखें। कुछ देर इसी स्थिति में रहें, तत्पश्चात् शरीर को ढीला छोड़ दें। आप कुंभक करें अथवा सामान्य रूप से श्वाँस लें। यहाँ तक कि दुबले व्यक्ति भी इस आसन को सुंदर ढंग से कर सकते हैं ।
आसन को झटके से न करें। धनुरासन भुजंगासन का पूरक आसन है। जब हम टखनों को पकड़ लेते हैं तो हम इसे भुजंग और शलभ आसन का संयोजन भी कह सकते हैं। भुजंग, शलभ और धनुरासन एक लाभदायक संयोजन है। ये सदा एक साथ किये जाते हैं। ये आसनों का एक समूह निर्मित करते हैं। धनुरासन को ३, ४ बार दोहराया जा सकता है।
लाभ
इस आसन को देखने से लगता है कि यह भुजंग और शलभ आसन का संयुक्त रूप है । शलभ और भुजंग आसन के सभी लाभ धनुरासन में बहुत अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं। इसके अभ्यास से पीठ की माँसपेशियों की अच्छी मालिश होती है। यह कब्ज, अजीर्ण, गठिया तथा पेट के सभी रोगों को दूर करता है। यह मोटापा कम करता है। यह पाचन शक्ति एवं भूख में वृद्धि करता है और उदरीय अंगों में रक्त के जमाव को रोकता है। यह आसन स्त्रियों के लिये अत्यंत अनुकूल है। इससे हाथों और पैरों का पूर्ण व्यायाम होता है।
जब यह आसन किया जाता है तो यह चक्र जैसा दिखाई देता है, इसी कारण इसका नाम चक्रासन है। वास्तव में यह चक्र के स्थान पर धनुष जैसा अधिक दिखाई देता है, अंतर मात्र इतना है कि धनुरासन में शरीर का सम्पूर्ण भार पेट पर रहता है, जब कि चक्रासन में शरीर को हाथों और पैरों का सहारा रहता है । अनेक कलाबाज इसका सड़कों पर प्रदर्शन करते हैं। किशोर बालक इसे बड़ी सरलता से कर सकते हैं, क्योंकि उनकी रीढ़ बहुत लचीली होती है। जब प्रौढ़ावस्था में हड्डियाँ कड़ी हो जाती हैं और उनका अस्थिकरण होने लग जाता है, तो रीढ़ की हड्डी को मोड़ना कठिन होता है, इस कारण उनको इसे करने में कठिनाई होती है।
प्रविधि
भूमि पर मोटा कंबल बिछा लें और इस पर खड़े हो जायें। हाथों को ऊपर उठायें, धीरे-धीरे रीढ़ को मोड़ते हुए पीछे की ओर झुकें। जब आपके हाथ जंघाओं तक पहुँच जायें तो थोड़ा घुटनों को झुकायें, इससे आपको और आगे झुकने में सहायता मिलेगी। अब अपनी हथेलियों को भूमि पर जमा दें। हथेलियों का मुख भूमि की ओर हो। जल्दी न करें, झुकते समय शरीर का पूर्ण संतुलन बनाये रखें, झटके से नीचे न आयें। जब हथेलियाँ भूमि तक पहुँच जायें तो इनको यथासंभव धीरे-धीरे पैरों के पास लाने का बयत्न करें। दुबले व्यक्ति जिनकी रीढ़ लचीली है, वे सरलता पूर्वक टखनों को भी पकड़ लेते हैं। इस आसन में २, ३ मिनट तक रहें और धीरे-धीरे रीर को उठाते हुए खड़े हो जायें। यह चक्रासन है।
यदि आप इस आसन को ऊपर बताए अनुसार नहीं कर सकते हैं, तो इसे दीवार के सहारे भी कर सकते हैं। दीवार से ३ फीट दूर खड़े हो यें। अपने हाथों को उठायें और हथेलियों को दीवार की ओर रखें। उंगलियाँ भूमि की ओर होनी चाहिए। हाथों को भूमि की ओर