गुरुदेव कुटीर में
भजन-कीर्तन
संकलन
श्री स्वामी देवानन्द जी महाराज
प्रकाशक
द डिवाइन लाइफ सोसायटी
पत्रालय : शिवानन्दनगर-२४९ १९२ जिला : टिहरी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड (हिमालय), भारत
www.sivanandaonline.org, www.dlshq.org
प्रथम संस्करण : १९८९
द्वादश संस्करण : २०१९
(१,००० प्रतियाँ)
© द डिवाइन लाइफ ट्रस्ट सोसायटी
HO 45
PRICE: 50/-
'द डिवाइन लाइफ सोसायटी, शिवानन्दनगर' के लिए
स्वामी पद्मनाभानन्द द्वारा प्रकाशित तथा उन्हीं के द्वारा
'योग-वेदान्त फारेस्ट एकाडेमी प्रेस, पो. शिवानन्दनगर,
जि. टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड, पिन : २४९ १९२' में मुद्रित ।
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दिव्य जीवन संघ के परम पूज्य संस्थापक
श्री स्वामी शिवानन्द जी का जन्म सन्त अप्पय्य दीक्षितार तथा अन्य अनेक प्रख्यात सन्तों तथा विद्वानों के कुलीन परिवार में ८ सितम्बर १८८७ को हुआ था। वेदान्त के अध्ययन तथा उसके व्यावहारिक पक्ष की ओर उन्मुख जीवन के प्रति उनमें जन्मजात झुकाव था। उनमें प्राणिमात्र की सेवा करने की अन्तर्जात आकांक्षा तथा समस्त मानवों में अन्तर्निहित एकता की सहज भावना थी। यद्यपि उन्होंने एक रूढ़िवादी परिवार में जन्म लिया था, तथापि वह अत्यन्त उदारमना, सहिष्णु तथा धर्म-परायण थे।
सेवा करने की आकांक्षा ने उन्हें चिकित्सा-क्षेत्र की ओर आकर्षित किया। फिर उन्होंने उन स्थानों की ओर ध्यान दिया जहाँ उनकी सेवा की अत्यधिक आवश्यकता थी। इसी दृष्टि से वह मलाया (मलेशिया) गये। इस बीच उन्होंने एक स्वास्थ्य-पत्रिका को सम्पादित करना प्रारम्भ कर दिया था। वह उसमें नियमित रूप से स्वास्थ्य-सम्बन्धी समस्याओं के बारे में लिखा करते थे। उनका कहना था कि जन-साधारण को सही ज्ञान प्रदान करने की परम आवश्यकता है। ऐसे ज्ञान का प्रचार-प्रसार उनका जीवन-लक्ष्य बन गया।
यह ईश्वर का मंगलमय विधान ही था, जिसके कारण मन तथा शरीर के इस चिकित्सक में तीव्र वैराग्य की भावना उत्पन्न हो गयी। परिणाम- स्वरूप वह अपनी जीवन-वृत्ति को त्याग कर मानव की आत्मोन्नति में सहायक बनने के लिए संन्यासी बन गये। ऋषिकेश को उन्होंने अपना तपःस्थल बनाया तथा एक मनीषी, योगी, सन्त तथा जीवन्मुक्त के रूप में ख्याति प्राप्त की।
पूज्य स्वामी जी ने मात्र जीवित रहने के लिए कभी उदर-पोषण नहीं किया। हाँ, उन्होंने सेवा करने के लिए जीवित रहना आवश्यक समझा। एक छोटी-सी जीर्ण-शीर्ण कुटिया ने-जिसमें मच्छरों-बिच्छुओं के अतिरिक्त और कोई नहीं रहता था-वर्षा और धूप से उनकी रक्षा की। कठिन तपश्चर्या का जीवन व्यतीत करते हुए भी उन्होंने रोगियों की बहुत सेवा की। वह दवाएँ ले कर रोगी साधुओं की कुटियाओं में जाते थे और उनकी सेवा-शुश्रूषा करते थे। वह उनके लिए भिक्षा माँग कर लाते और उन्हें अपने हाथों से खिलाते थे। रोगियों के सिरहाने रात-रात भर बैठ कर उनकी देख-भाल करना उनकी दिनचर्या का एक अंग बन गया था। तीर्थयात्रियों को भगवान् का रूप मान कर वह उनकी भी सेवा मन लगा कर किया करते थे।
अपने परिव्राजक-जीवन में पूज्य स्वामी जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया। भ्रमण-काल में वे संकीर्तन कराते और प्रवचन दिया करते थे। स्वामी जी ने उन्हीं दिनों कैलास तथा बदरी की भी यात्राएँ कीं।
तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सन् १९३२ में उन्होंने पवित्र गंगा के दक्षिण तट पर शिवानन्दाश्रम की स्थापना की। सन् १९३६ में उन्होंने 'द डिवाइन लाइफ सोसायटी' (दिव्य जीवन संघ) की स्थापना की। किसी परित्यक्त गोशाला की तरह दिखायी पड़ने वाला एक टूटा-फूटा पुराना कुटीर उन्हें मिल गया। उनके लिए वह एक महल से भी बढ़ कर था। उन्होंने उसकी सफाई की और फिर उसी में रहने लगे। जब उनके श्रीचरणों के निकट बैठ कर उनके उपदेशामृत का पान करने वाले भक्तों की संख्या बढ़ने लगी, तब उसके विस्तारण की आवश्यकता समझी जाने लगी। कुछ और न रहने योग्य खाली शेड ढूँढ़ निकाले गये। इनमें कोई भी रहने का साहस नहीं कर पाता था। दिव्य जीवन संघ का शैशव इन्हीं अ-वासयोग्य टूटे-फूटे भवनों में व्यतीत हुआ।
श्री स्वामी शिवानन्द योग के, मानवीय कष्टों के उपशमन के तथा प्रत्येक वस्तु के संश्लेषण (समन्वय) में विश्वास रखते थे। स्वामी जी ने सेवा, ध्यान तथा भगवद्-साक्षात्कार के दिव्य उदात्त सन्देश को अपनी पत्रिकाओं, पत्रों तथा अपनी ३०० से अधिक पुस्तकों के माध्यम से संसार के कोने-कोने में प्रचारित-प्रसारित किया। उनके निष्ठावान् शिष्यों में सभी धर्मों, पन्थों तथा सम्प्रदायों के अनुयायी थे।
स्वामी शिवानन्द का योग-समन्वययोग-कर्मयोग, ज्ञानयोग तथा भक्तियोग के अभ्यास के माध्यम से 'हाथ', 'मस्तिष्क' तथा 'हृदय' का सुसंगत विकास सम्पन्न करता है। दिव्य जीवन संघ का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार करना है। इसके सुविख्यात संस्थापक श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए गंगा-तट पर स्थित अपने छोटे-से कुटीर में बैठ कर तीस वर्षों तक कठोर परिश्रम किया।
१४ जुलाई १९६३ को महात्मा श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज शिवानन्दनगर में स्थित गंगा-तट पर बने हुए अपने कुटीर में अपना पार्थिव शरीर त्याग कर महासमाधि में लीन हो गये।
यद्यपि आज स्वामी शिवानन्द जी हमारे बीच नहीं हैं; परन्तु वह अपने द्वारा प्रारम्भ किये गये महान् कार्य का मार्ग-निर्देशन आज भी सूक्ष्म रूप से कर रहे हैं। प्रत्येक व्यतीत हो जाने वाला क्षण उस कार्य की गति-मात्रा में वृद्धि कर जाता है। अपने परमाध्यक्ष श्री स्वामी चिदानन्द जी महाराज के नेतृत्व में दिव्य जीवन संघ के वरिष्ठ संन्यासी दिव्य जीवन के इस सिद्धान्त को प्रचारित करने में सदा-सर्वदा रत हैं जो पूज्य गुरुदेव के इन शब्दों में समाहित है : "सेवा, प्रेम, दान, शुचिता, ध्यान, साक्षात्कार!"
ॐ सद्गुरु परमात्मने नमः
पुण्य सलिला गंगा के तट पर अवस्थित 'गुरुदेव कुटीर' प्रतिदिन सायं संकीर्तन की दिव्य लहरियों से आपूरित हो जाती है। पुरवासी, अतिथि, अभ्यागत, बाल-वृद्ध, नर-नारी सभी उपस्थित जन आत्म-विभोर हो उठते हैं। ऐसे प्रभावी दिव्य संकीर्तन का शुभारम्भ हुआ कैसे? उत्तर आप भी जानिए- यह सब समन्वय योगीश्वर संकीर्तन-सम्राट् सद्गुरुदेव श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज की अनुपम संकल्प-शक्ति का ही प्रत्यक्ष स्वरूप है।
आश्रम पहुँच कर गुरुदेव के आध्यात्मिक परिवार में सम्मिलित होने पर मैं सत्संग में भजन-कीर्तन करता था। जब श्री सद्गुरुदेव प्रसन्न हो कर कभी-कभी मुझसे कहते थे, 'देवानन्द संगीत सीखो, हारमोनियम बजाना सीखो' तब अननुकूलता के कारण सीख न पाया। किन्तु श्री सद्गुरुदेव का संकल्प व्यर्थ कैसे हो सकता था? उस संकल्प ने अद्भुत रूप से काम किया। सन् १९६३ में 'विजयादशमी' के शुभ दिन पूज्य श्री स्वामी नादब्रह्मानन्द जी महाराज ने मेरा हाथ पकड़ कर संगीत-कक्ष (Music Room) में ले गये और दृढ़ सहजता से कहा- 'मैं आपको संगीत सिखाऊँगा, सीखिए' कह कर - 'सा, रि, ग, म' सरगम में सिखाना प्रारम्भ कर दिया। कृपा के प्रत्यक्ष दर्शन कीजिए-अभ्यास करने के लिए अपना हारमोनियम भी दे दिया। उसी दिन से मैं संगीत का थोड़ा-थोड़ा अभ्यास भी करने लगा था। 'गुरुदेव कुटीर' में प्रतिदिन सायं जब मैं हारमोनियम पर उच्च स्वर में गा-गा कर कीर्तन-ध्वनियों का अभ्यास करता था, तब 'गुरुदेव कुटीर' परिसर के बच्चे दिव्य नाम-कीर्तन से आकर्षित हो, आ कर मेरे सामने बैठ जाते तथा कभी-कभी साथ में गाने भी लगते थे। बच्चों की कीर्तन के प्रति अतिशय रुचि को देख कर सप्ताह में एक बार अर्थात् - प्रत्येक रविवार को नियमित रूप से उपस्थित सभी ३०-४० बच्चों को कीर्तन-ध्वनि गा-गा कर सिखाने लगा तथा समवेत रूप से कीर्तन करने लगा। तदनन्तर इसी साप्ताहिक कार्यक्रम ने दैनिक संकीर्तन का रूप धारण कर लिया और शनैः -शनैः बच्चों के अतिरिक्त बड़े स्त्री-पुरुष, प्रौढ़-वृद्ध भी संकीर्तन में सम्मिलत हो कर मस्ती में भजन-कीर्तन करने लगे। क्यों न ऐसा होता, क्योंकि भगवन्नाम-कीर्तन का प्रभाव अद्वितीय व अवर्णनीय है। श्री सद्गुरुदेव कहते हैं-
संकीर्तन के अतिरिक्त कोई भी रसायन इतना प्रभावशाली नहीं है जिससे पापयुक्त हृदय पवित्र हो सके। नामोपैथी भव-रोग नाशक सर्वोत्तम औषधि है। संकीर्तन मन की चंचलता का विनाश करके एकाग्रता की स्थिति उत्पन्न करता है। संकीर्तन से मन के तीन दोष- मल, विक्षेप और आवरण नष्ट हो जाते हैं। तीन ताप-आधिभौतिक, आधिदैहिक और आधिदैविक क्षय हो जाते हैं। पाँच प्रकार के रोग- अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष, देहासक्ति तथा जन्म-जरा रोग और दुःख मिट जाते हैं। तीनों कर्मों-संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण का नाश हो जाता है। रजस् और तमस् दूर हो मन सात्त्विकता से ओत-प्रोत हो जाता है। हृदय श्रेष्ठ और आत्म प्रोन्नत करने वाले विचारों से ओत-प्रोत हो जाता है। संकीर्तन सांसारिक भाव को ईश्वरीय प्रेम भाव में बदल देता है। इससे कुसंस्कारों का विनाश हो जाता है। परिणामतः भगवान् भक्त के सामने प्रकट हो जाते हैं।
भगवान् हरि स्वयं नारद मुनि से कहते हैं-
नाहंवसामि वैकुण्ठे, योगिनां हृदये न च ।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद ।।
अर्थात् “न मैं वैकुण्ठ में रहता हूँ, न ही योगियों के हृदय में। मैं वहाँ रहता हूँ जहाँ मेरे प्रेमी भक्त मेरे नाम का संकीर्तन करते हैं।" ऐसा है दिव्य संकीर्तन का प्रभाव।
परम पूज्य श्री स्वामी चिदानन्द जी महाराज (परमाध्यक्ष, दिव्य जीवन संघ मुख्यालय, शिवानन्दनगर, ऋषिकेश) भी एक-दो बार सायं संकीर्तन में गुरुदेव कुटीर में पधारे। सभी उपस्थित भक्तों को आशीर्वाद दिया तथा स्व-कर-कमलों से प्रसाद भी बाँटा। तब से बच्चों में और भी उत्साह बढ़ा। परम पूज्य श्री स्वामी चिदानन्द जी महाराज कहते हैं-
"दिव्य नाम और ब्रह्म अभिन्न हैं। ब्रह्म की अतर्क्स शक्ति दिव्य नाम अर्थात् नाम भगवान् के रूप में प्रकट हुई है। दुर्दिनों में सशक्त पवित्र दिव्य नाम ही मानवता का एकमात्र मुक्ति प्रदायक अवलम्बन है। संकीर्तन का दैनिक अभ्यास करने से मानवता वर्तमान अन्धकार के कूप से निकल कर स्वर्णिम भविष्य के प्रकाश को देख सकेगी। नियमित संकीर्तन करने से व्यक्ति मृत्यु के पाश से मुक्त हो कर अमरता को प्राप्त होता है।"
आओ, हम सब मिल कर उच्च स्वर से मस्ती में गायें-
आना सुन्दर श्याम हमारे घर कीर्तन में,
आप भी आना संग सखियों को लाना,
आ कर वंशी बजाना हमारे घर कीर्तन में।
संकीर्तन के दिव्य प्रभाव से प्रभावित हो कर कुछ उपस्थित भक्त जन मुझसे पूछते-"आप जो कीर्तन-ध्वनि तथा भजन गाते हैं, वे किस 'भजन-संग्रह' पुस्तक में हैं। वे हमें कहाँ से कैसे प्राप्त हो सकते हैं?" मैं उनसे कहता कि कुछ 'कीर्तन-भजन' तो किसी 'भजन-संग्रह' पुस्तक में है; पर इसमें से कुछ मेरे हृदय, मेरे मुख में हैं। तब वे कहते हैं कि जो 'कीर्तन-भजन' आप प्रतिदिन संकीर्तन में गाते हैं, उनको संकलित कर पुस्तकाकार रूप में मुद्रित करवा दीजिए, तो इच्छुक कीर्तन-प्रेमी लाभान्वित हो आत्म-सुख प्राप्त करेंगे। मुद्रित करवाने का विचार किया; परन्तु यह विचार विचार-मात्र ही रह गया, कार्यान्वित न हो पाया। किन्तु पुनः श्री सद्गुरुदेव महाराज की कृपा-महिमा देखिए-
एक जर्मन महिला भक्त श्रीमती मेरी लूईस (Mrs. Marie Luise) आश्रम-वास के दिनों में श्री स्वामी हंसानन्द जी की प्रेरणा से प्रतिदिन 'गुरुदेव कुटीर' में संकीर्तन में भाग ले कर आनन्दित होर्ती। उन्होंने श्री स्वामी हंसानन्द जी से नियमित रूप से प्रतिदिन गाये जाने वाले कीर्तन-भजनों को लिखवा कर पुस्तकाकार रूप में “गुरुदेव कुटीर में भजन-कीर्तन" नाम से १९८९ में मुद्रण का आर्थिक भार स्वयं वहन कर ५०० प्रतियाँ प्रकाशित करवायीं। कीर्तन-प्रेमियों की खुशी का ठिकाना न रहा।
श्री स्वामी हंसानन्द जी ने मेरे कथनानुसार 'गुरुदेव कुटीर' में दिनानुसार कीर्तन के रूप में (जैसे रविवार, सोमवार आदि) क्रमबद्ध प्रारूप तैयार करके दे दिया। अतः मैं स्वामी हंसानन्द जी का आभारी हूँ।
१९-१०-१९९९ विजयादशमी -स्वामी देवानन्द
ॐ
ॐ सर्वेषां स्वस्ति भवतु । सर्वेषां शान्तिर्भवतु ।
सर्वेषां पूर्णं भवतु । सर्वेषां मंगलं भवतु ।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ।।
ॐ असतो मा सद्गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्मा अमृतं गमय ।।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
१. अखण्ड श्री हरिनाम संकीर्तन का सुमधुर ध्वनि नाद जहाँ तक भी जाता है, वहाँ तक के सभी प्रकार के प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष अमंगलों का नाश घटता है तथा सभी प्रकार सर्वमंगलमय, सुख, समृद्धि, शान्ति तथा आनन्दमय प्रभाव का विस्तार होता है।
२. जहाँ पर परम पावन श्री हरिनाम संकीर्तन यज्ञ अनुष्ठित होता है, वहाँ की पृथ्वी का कण-कण सभी तीर्थों की रज के समान अति पवित्र हो जाता है।
३. जहाँ पर श्री हरिनाम संकीर्तन यज्ञ का अनुष्ठान होता है और उसमें अखण्ड ज्योति जलायी जाती है, उसके प्रभाव से आस-पास के सारे इलाके तक का सारा तम नाश हो जाता है।
४. जहाँ पर श्री हरिनाम संकीर्तन यज्ञ का अनुष्ठान होता है और मंगल कलश की स्थापना होती है तथा उसका जल यज्ञ अनुष्ठान के समापन के बाद जहाँ-जहाँ छिड़का जाता है, तहाँ-तहाँ सारा अमंगल नाश हो कर सभी प्रकार सम्पन्नता, समृद्धि, सुख-शान्ति तथा परमानन्द का राज्य होता है। सारे अभाव दूर हो जाते हैं।
५. जहाँ पर श्री हरिनाम संकीर्तन यज्ञ का अनुष्ठान होता है वो सभी उन ८४ लाख योनियों में भटक रहे जीवों का नाम श्रवण नाम सम्बन्ध से पाप को नाश कर दुःख कष्ट क्लेश से त्राण दिलाता है जो प्रारब्ध कर्मफल भोग रहे हैं।
६. जहाँ पर श्री हरिनाम संकीर्तन यज्ञ अनुष्ठान प्राकृतिक प्रकोप, ग्रहों की शान्ति, महामारी-सूखा आदि के शमन, शान्ति तथा निवृत्ति के उद्देश्य से किये जाते हैं ऐसे महायज्ञ से ग्रह शान्त होते हैं, देवता प्रसन्न हो जाते हैं तथा व्याधि का सुनिश्चित निवारण होता है।
७. श्री हरिनाम संकीर्तन यज्ञ के सार्वभौम प्रभाव के विस्तार मंगलमय प्रभाव के संचार से जहाँ बराबर प्रभातफेरियाँ तथा अखण्ड यज्ञ होते रहते हैं, वहाँ पशुशालाओं में स्वस्थ पशु अधिक दूध देते हैं तथा खेतों में अनाज अधिक उत्पन्न होता है। नाम ध्वनि तरंगों से नाना प्रकार के कीटाणुओं का नाश होता है तथा प्राकृतिक व्याधि से छुटकारा मिलने से फसलें अच्छी होती हैं।
८. सभी प्रकार के काम्य कर्म, अनुष्ठानों की पूर्ति, देवताओं की प्रसन्नता, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति, सुख-सम्पदा और नाम-यश हेतु किये गये अनुष्ठानों में व्याधि विघ्न नाश हो कर सुनिश्चित फल प्राप्ति के निमित्त श्री हरिनाम संकीर्तन अति सरल सहज निरापद उपाय है।
९. जहाँ श्री हरिनाम संकीर्तन यज्ञ में भगवान् के प्रेमी भक्त लोग आनन्द मग्न हो कर नृत्य करते हैं, नाम गान करते-करते वाणी गद्-गद् हो जाती है, आँखों से परमानन्द में डूबने हेतु प्रेमानन्द मग्न होने से प्रेमाश्रु बहते हैं, वहाँ श्रीहरिपार्षद आविर्भूत हो जाते हैं।
१०. जहाँ नित्य नियम से श्री हरिनाम संकीर्तन भक्त लोग विह्वल हो कर गाते हैं, वहाँ श्रीहरि आविर्भूत हो कर इस पृथ्वी पर अवस्थान करते हैं।
अनुक्रमणिका
(९) हे माधवा मधुसूदना श्री केशवा
(१६) शंकर महादेव देव सेवत सब जाके
(१९) हमारे भोले बाबा को भिखारि न समझियो
(२९) पग घुँघरु बाँध मीरा नाची रे
(३१) जिस हाल में, जिस देश में, जिस वेष में रहो
(३६) श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
(४१) कृष्ण गोविन्द गोविन्द गाते चलो
(४४) सुनाजा सुनाजा सुनाजा कृष्णा
(४५) कृष्ण कृष्णा मुकुन्दा जनार्दना
(४९) शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम्
(५१) देव-देव-शिवानन्द दीनबन्धो पाहि माम्
(५४) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
(६८)जय दुर्गे दुर्गति परि हारिणि
(७०) अम्ब परमेश्वरि अखिलाण्डेश्वरि
(७२) रामचन्द्र रघुवीर, रामचन्द्र रणधीरा
(७६) भजो रे भय्या राम गोविन्द हरे
(७७) राम कृष्ण हरि, मुकुन्द मुरारी
(७९) राम नाम जपना क्यों छोड़ दिया
(८०) श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
ॐ भास्कराय विद्महे
महाद्युतिकराय धीमहि
तन्नो आदित्यः प्रचोदयात् ।।
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् ।
तमोऽरिं सर्व पापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहि माम्।
श्री गणेश श्री गणेश श्री गणेश रक्ष माम् ।।
शरवणभव शरवणभव शरवणभव पाहि माम्।
कार्तिकेय कार्तिकेय कार्तिकेय रक्ष माम् ।।
जय सरस्वति जय सरस्वति जय सरस्वति पाहि माम्।
श्री सरस्वति श्री सरस्वति श्री सरस्वति रक्ष माम् ।।
जय गुरु शिव गुरु हरि गुरु राम।
जगद्गुरु परं गुरु सद्गुरु श्याम ।।
आदिगुरु अद्वैतगुरु आनन्दगुरु ॐ।
चिद् गुरु चिद्धन गुरु चिन्मय गुरु ॐ ।।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय।
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॥
ॐ नमो नारायणाय ॐ नमो नारायणाय ।
ॐ नमो नारायणाय ॐ नमो नारायणाय ।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।
गुरुदेव कुटीर में भजन-कीर्तन
आंजनेय आंजनेय आंजनेय पाहि माम्।
हनुमन्त हनुमन्त हनुमन्त रक्ष माम् ।।
दत्तात्रेय दत्तात्रेय दत्तात्रेय पाहि माम्।
दत्तगुरु दत्तगुरु दत्तगुरु रक्ष माम् ।।
शंकराचार्य शंकराचार्य शंकराचार्य पाहि माम्।
भगवत्पाद भगवत्पाद भगवत्पाद रक्ष माम् ।।
सद्गुरुदेव सद्गुरुदेव सद्गुरुदेव पाहि माम्।
शिवानन्द शिवानन्द शिवानन्द रक्ष माम् ।।
गंगाराणि गंगाराणि गंगाराणि पाहि माम्।
भागीरथि भागीरथि भागीरथि रक्ष माम् ।।
ॐ शक्ति ॐ शक्ति ॐ शक्ति पाहि माम्।
ब्रह्म शक्ति विष्णु शक्ति शिव शक्ति रक्ष माम् ।।
ॐ आदि शक्ति महा शक्ति परा शक्ति पाहि माम्।
इच्छा शक्ति क्रिया शक्ति ज्ञान शक्ति रक्ष माम् ।।
राजराजेश्वरि राजराजेश्वरि राजराजेश्वरि पाहि माम्।
त्रिपुरसुन्दरि त्रिपुरसुन्दरि त्रिपुरसुन्दरि रक्ष माम् ।।
ॐ तत्सत् ॐ तत्सत् ॐ तत्सत् ॐ ।
ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ ।।
गजाननं भूतगणाधिसेवितं,
कपित्थजम्बूफलसारभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं,
नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुःसाक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं,
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।
नमामि नारायण पाद पंकजं,
करोमि नारायण पूजनं सदा ।
वदामि नारायण नाम निर्मलं,
स्मरामि नारायण तत्त्वमव्ययम् ।।
ॐ
ॐ गं गणेशाय नमः ।
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः ।
ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।
गणेश शरणं, शरणं गणेश।
गणेश शरणं, शरणं गणेश ।।
पाहि पाहि गजानन, पार्वति पुत्र गजानन
मूषक वाहक गजानन, मोदक हस्त गजानन
चामर कर्ण गजानन, विलम्बित सूत्र गजानन
वामनरूप गजानन महेश्वर पुत्र गजानन
विघ्न विनायक गजानन, पाद नमस्ते गजानन
श्री नारायण जय नारायण, श्री हरि नारायण नारायण।
श्री नारायण जय नारायण, श्री हरि नारायण नारायण ।।
आपद्वान्धव नारायणा, अनाथ रक्षक सदाशिवा।
दीनबन्धु नारायणा, दीन नाथा सदाशिवा ।।
पतित पावन नारायणा, पतितोद्धारा सदाशिवा ।
वैकुण्ठ वासा नारायणा, कैलास वासा सदाशिवा ।।
गरुड़ वाहन नारायणा, नन्दि वाहन सदाशिवा ।
चक्रपाणि नारायणा, त्रिशूलपाणि सदाशिवा ।।
पन्नग शयना नारायणा, पन्नग भूषण सदाशिवा ।
लक्ष्मी रमणा नारायणा, पार्वती रमणा सदाशिवा ।।
अलंकार प्रिय नारायणा, अभिषेक प्रिय सदाशिवा ।
हरि ॐ हरि ॐ नारायणा, हर ॐ हर सदाशिवा ।।
Come Come O Lord Narayana
Give me Darshan Sadasiva.
Save me Guide me Narayana
Save me Protect me Sadasiva.
Thy Name is a Boat Narayana
To Cross this Samsar Sadasiva.
Thy Name is a Weapon Narayana
To cut this evil mind Sadasiva.
पाहि मां रक्ष मां नारायणा,
पाहि मां रक्ष मां सदाशिवा।
पवन मन्द सुगन्ध शीतल, हेम मन्दिर शोभितम्।
निकट गंगा बहत निर्मल, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ।। पवन…
शेष सुमिरन करत निशिदिन, धरत ध्यान महेश्वरम्।
श्री वेद ब्रह्मा करत स्तुति, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ॥ पवन...
इन्द्र चन्द्र कुबेर दिनकर, धूप दीप प्रकाशितम्।
सिद्ध मुनि जन करत जय जय, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ॥ पवन…
शक्ति गौरी गणेश शारद, नारद मुनि उच्चारणम्।
योगि ध्यान अपार लीला, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ।। पवन…
यक्ष किन्नर करत कौतुक, ताल वीणा वेदितम्।
श्री लक्ष्मी कमला चमर डोले, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ।। पवन…
कैलास में एक देव निरंजन शैल शिखर महेश्वरम्।
राजा युधिष्ठिर करत स्तुति, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ।। पवन…
हेम पथ केदार दर्शन, सिद्ध मुनिजन सेवितम्।
हिमालय में सुख स्वरूप, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ।। पवन…
तप्त कुण्ड के अधिक महिमा, दश दिशानन शोभितम्।
नर नारायण करत सेव, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ।। पवन…
श्री बद्रीनाथ के सप्त रात्र, परम पाप विनाशनम्।
कोटि तीर्थ स्वरूप पूरण, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ।। पवन…
श्रीमन्नारायण नारायण नारायण।
लक्ष्मी नारायण नारायण नारायण ।।
बद्री नारायण नारायण नारायण।
सूर्य नारायण नारायण नारायण ।।
सत्य नारायण नारायण नारायण।
हरि ॐ नारायण नारायण नारायण ।।
गावो नारायण नारायण नारायण ।
जपो नारायण नारायण नारायण ।।
माता नारायण नारायण नारायण।
पिता नारायण नारायण नारायण ।।
बन्धु नारायण नारायण नारायण ।।
सखा नारायण नारायण नारायण ।।
गुरु नारायण नारायण नारायण ।
सर्वं नारायण नारायण नारायण ।।
श्रीहरि नारायण नारायण नारायण ।
भजमन्नारायण नारायण नारायण ।।
दीन दयालु दया करके,
भव सागर से कर पार मुझे । दीन...
नीर अपार न तीर दिसे किमि,
धीर धरूँ अब मैं मन में।
मेरी नाव डुबाय रही मग में,
शरणागत जानके तार मुझे ।। दीन...
छूट गया अब साथ मेरा,
कुछ हाथ में जोर रहा भी नहीं।
अब नाथ न देर लगाओ जरा,
निज बाहु पसार उबार मुझे ।। दीन…
तेरा नाम जहाज बड़ा जग में,
सब वेद पुराण बतावत हैं।
ब्रह्मानन्द जयूँ दिन रात सदा प्रभु,
कीजिये पार किनार मुझे ।। दीन...
हे माधवा मधुसूदना श्री केशवा,
नारायणा, लक्ष्मी नारायणा ।
नारायणा, श्रीमन्नारायणा,
राम कृष्ण गोविन्द नारायणा ।। हे माधवा ।।
श्रीधरा केशवा दामोदरा,
अच्युतानन्द हे नारायणा ।
नारायणा, श्रीहरि नारायणा,
राम कृष्ण गोविन्द नारायणा ।। हे माधवा ।।
नमो माधवा, जगन्नायका, हृषिकेशवा,
हे नाग शयना, श्री शेष शयना।
नारायणा, सत्य नारायणा,
राम कृष्ण गोविन्द नारायणा ।। हे माधवा ।।
अच्युता केशवा दामोदरा,
सच्चिदानन्द हे नारायणा ।
नारायणा, लक्ष्मी नारायणा,
राम कृष्ण गोविन्द नारायणा ।। हे माधवा ।।
जय नारायण जय नारायण, जय नारायण जै जै जै ।
लक्ष्मी नारायण लक्ष्मी नारायण, लक्ष्मी नारायण जै जै जै ।
बद्री नारायण बद्री नारायण, बद्री नारायण जै जै जै ।
सूर्य नारायण सूर्य नारायण, सूर्य नारायण जै जै जै ।
सत्य नारायण सत्य नारायण, सत्य नारायण जै जै जै ।
जय महादेव जै जय महादेव जै, जय महादेव जै जै जै जै ।
जय शिवशंकर जय शिवशंकर, जय शिवशंकर जै जै जै ।
जय सीताराम जै जय सीताराम जै, जय सीताराम जै जै जै जै ।
जय राधेश्याम जै जय राधेश्याम जै, जय राधेश्याम जै जै जै जै ।
जय हनुमान् जै जय हनुमान् जै, जय हनुमान् जै जै जै जै ।
जय जगन्नाथ जै जय जगन्नाथ जै, जय जगन्नाथ जै जै जै जै ।
जय श्रीनिवास जै जय श्रीनिवास जै, जय श्रीनिवास जै जै जै जै ।
जय महालक्ष्मी जै जय महालक्ष्मी जै, जय महालक्ष्मी जै जै जै जै ।
जय महाकालि जै जय महाकालि जै, जय महाकालि जै जै जै ।
जय गुरुदेव जै जय गुरुदेव जै, जय गुरुदेव जै जै जै जै ।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे
महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।।
दधिशंखतुषाराभं क्षीरार्णव समुद्भवं ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।
वन्दे शम्भुमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं,
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।
वन्दे सूर्यशशांकवह्निनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं,
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शंकरम् ।।
शान्तं पद्मासनस्थं शशधरमुकुटं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रं,
शूलं वज्रं च खंगं परशुमभयदं दक्षिणांगे वहन्तम्।
नागं पाशं च घण्टां डमरुकसहितं चांकुशं वामभागे,
नानालंकारदीप्तं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ।।
चन्द्रोद्भासित शेखरे स्मर हरे गंगाधरे शंकरे,
सपैर्भूषित कण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थ वैश्वानरे।
दन्तित्वक्कृत सुन्दराम्बरधरे त्रैलोक्यसारे हरे,
मोक्षार्थं कुरुचित्तवृत्तिमचलां अन्यैस्तु किं कर्मभिः ॥
ॐ शिव ओंकारा जय जय। भज शिव ओंकारा ।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिवा। हर हर हर महादेवा ॥
शिव शिव शिव शिव सदाशिवा। हर हर हर हर महादेवा ।।
नमामीशमीशान निर्वाण रूपम्,
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपम्।
अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम्,
चिदाकाशमाकाश वासं भजेऽहम् ।।
निराकारमोंकार मूलं तुरीयम्,
गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालुम्,
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरम्,
मनो भूत कोटि प्रभा स्वत् शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा,
लसत्फाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगम् ।।
चलत्कुण्डलं शुभ्रनेत्रं विशालम्,
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालम्,
प्रियं शंकरं सर्व नाथं भजामि ।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशम्,
अखण्डं भजे भानु कोटि प्रकाशम्।
त्रयीशूल निर्मूलनं शूल पाणिम्,
भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी,
सदा सज्जनानन्द दाता पुरारिः।
चिदानन्द सन्दोह मोहपहारी,
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारिः ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दम्,
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्ताप नाशम्,
प्रसीद प्रभो सर्व भूताधिवासम् ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजाम्,
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुं तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानम्,
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तम्, विप्रेण हर तोषये।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।
नामावली
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय।
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॥
शिवाय नमः ॐ नमः शिवाय।
शिवाय नमः ॐ नमः शिवाय ॥
हर गाओ शिव गाओ,
हर हर शिवशंकर गाओ ।। हर गाओ ।।
जय उमानाथ जय मन्दनान्तक,
जय शिव त्रिपुरारी गाओ।
डम डम डम डम डमरू बाजे,
नन्दि वाहन गाओ।
जय उमा महेश्वर गाओ ।। हर गाओ ।
जय गंगाधर जय विश्वेश्वर,
जय जय भवानीवर गाओ।
पाप विमोचन भवा निरंजन,
शिव मन मोहन गाओ।
जय उमा महेश्वर गाओ ।। हर गाओ ।।
जय नाग दमन जय नाग भूषण,
जय शिव गण भूषण गाओ।
कल्मष मोचन भव भय हरणा,
शिव पंचानन गाओ।
जय उमा महेश्वर गाओ। हर गाओ ।।
ॐ शिव ॐ शिव परात्परा ।
ओंकारा शिव तव शरणम् ।।
नमामि शंकर भजामि शंकर।
गिरिजा शंकर तव चरणम् ।।
गौरी शंकर तव शरणम्।
भवानि शंकर तव चरणम् ।।
शम्भो शंकर तव शरणम्।
उमा महेश्वर तव शरणम्।
शंकर महादेव देव सेवत सब जाके,
जटा मुकुट सीस गंगा।
वहन तेरे अति प्रचण्ड,
गौरी अरधंग संग भंग रंग साजे । शंकर ।।
ध्यावत सुर नर मुनीश,
गावत गिरिजा गिरीश ।
पावत नहीं पार शेष, नेति नेति पुकारे ।। शंकर ।।
भरणत तुलसी दास,
गिरिजापति चरण आस।
ऐसे वर वेष नाथ, भक्त हेतु ताके । शंकर ।।
शंकर जी का डमरू बोले
श्रीराम जय राम जय जय राम
श्रीराम जय राम जय जय राम ।। श्रीराम ।।
मीरा बाई की इकतारि बोले
राधे श्याम राधे श्याम राधे
श्याम राधे श्याम ।। श्रीराम ।।
तुकाराम की वीणा बोले
बिट्ठल बिट्ठल जय हरि नाम
बिट्ठल बिट्ठल जय हरि नाम ।। श्रीराम ।।
सूरदास की इकतारि बोले
गोविन्द गोविन्द राधेश्याम
गोविन्द गोविन्द राधेश्याम ॥ श्रीराम ।।
रामदास की कुबड़ी बोले
रघुपति राघव राजा राम ।
रघुपति राघव राजा राम ॥ श्रीराम ॥
कबीरदास की इकतारि बोले
सोऽहं सोऽहं जय हरि नाम
सोऽहं सोऽहं जय हरि नाम ।। श्रीराम ।।
एकनाथ की चिपली बोले
दिगम्बरा दिगम्बरा
श्री पाद बल्लभ दिगम्बरा
दत्तात्रेया दिगम्बरा ।। श्रीराम ।।
हरि ॐ सद्गुरु ओंकारा
नत जन हृदय कमल भ्रमरा
दिगम्बरा दिगम्बरा
दत्तात्रेया दिगम्बरा ।। श्रीराम ।।
गुरुनानक की वाणी बोले
सत्यनाम सत्यनाम
सत्यनाम सत्यनाम ।। श्रीराम ।।
आनन्दाश्रम कण कण बोले
श्रीराम जय राम जय जय राम
श्रीराम जय राम जय जय राम ।। श्रीराम ।।
शिवानन्द की वाणी बोले
श्याम श्याम राधे श्याम
श्याम श्याम राधे श्याम ।। श्रीराम ।।
खड़ी हूँ द्वार दर्शन को
शरण शिव जी की आयी हूँ।
अगर मैं जल चढ़ाती तो,
यहाँ मछलियों का जूठा है।
इसीलिए पैर नहीं पड़ता,
तेरे मन्दिर में आने को ।। खड़ी ।।
अगर मैं दूध चढ़ाती तो,
यहाँ बछड़ों का जूठा है।
इसीलिए पैर नहीं पड़ता,
तेरे मन्दिर में आने को । खड़ी ।
अगर मैं फूल चढ़ाती तो,
यहाँ भौरों का जूठा है।
इसीलिए पैर नहीं पड़ता,
तेरे मन्दिर में आने को । खड़ी ॥
अगर मैं फल चढ़ाती तो,
यहाँ पक्षियों का जूठा है।
इसीलिए पैर नहीं पड़ता,
तेरे मन्दिर में आने को ।। खड़ी ।।
अगर मैं सिर झुकाती तो,
यहाँ पापों का भारी है।
इसीलिए पैर नहीं पड़ता,
तेरे मन्दिर में आने को || खड़ी ॥
हमारे भोले बाबा को भिखारि न समझियो,
हमारे भोले बाबा के हाथ में त्रिशूला,
त्रिशूला को देख के संहारि न समझियो ।। हमारे ।।
हमारे भोले बाबा के हाथ में है डमरू,
डमरू को देख के, डमरू को देख के,
मदारि न समझियो । हमारे ।।
हमारे भोले बाबा के साथ में है बैला,
बैला को देख के, बैला को देख के,
व्यापारि न समझियो । हमारे ।।
हमारे भोले बाबा के संग में है गौरी,
गौरी को देख के, गौरी को देख के,
संसारि न समझियो ।। हमारे ।।
ईश्वर को जानो बन्दे, मालिक तेरा वही है।
कर ले तू याद दिल से, हर जग में वो सही है ।। ईश्वर को ।।
भूमी अगन पवन में, सागर पहाड़ वन में।
उसकी सभी भुवन में, छाया समा रही है । ईश्वर को ।।
उसने तुझे बनाया, जग खेल है दिखाया।
तू क्यों फिरे भुलाया, उमर बिता रहा है ।। ईश्वर को ।।
विषयों की छोड़ आशा, सब झूठ है तमाशा।
दिन चार की दिलासा, माया फँसा रही है। ईश्वर को ।।
दुनिया से दिल हटा ले, प्रभु ध्यान में लगा ले।
ब्रह्मानन्द मोक्ष पा ले, तन का पता नहीं हैं। ईश्वर को ।
नामावली
शंकरः शिवा शंकरः शिवा।
शम्भो महादेव शंकरः शिवा।
सुखकर सुखकर शंकरः शिवा ।।
दुःखहर दुःखहर शंकरः शिवा
पापहर शोकहर शंकरः शिवा ॥
तापहर पापहर शंकरः शिवा ।।
शिव शिव शिव शिव शंकरः शिवा।
हर हर हर हर शंकरः शिवा ।।
मुझे है काम ईश्वर से, जगत रूठे तो रूठन दे ।।
बैठ सन्तन की संगत में, करूँ कल्याण मैं अपना ।
लोग दुनिया के भोगों में, मौज लूटे तो लूटन दे ॥ मुझे ॥
कुटुम्ब परिवार सुत दारा, माल धन लाज लोकन की।
संग सन्तों का करने से, अगर छूटे तो छूटन दे। मुझे ॥
हरि का नाम लेने की, लगी मन में लगन मेरे।
प्रीति दुनिया के लोगों से, अगर टूटे तो टूटन दे ।। मुझे ॥
मेरे शिर पाप की मटकी, मेरे गुरुदेव ने झटकी।
ओ ब्रह्मानन्द ने पटकी, अगर फूटे तो फूटन दे। मुझे ॥
नामावली
हरि ॐ राम सीता राम।
हरि ॐ कृष्ण राधे श्याम ।।
हरि ॐ राम सीता राम।
हरि ॐ कृष्ण राधे श्याम ।।
ईश्वर तू है दयाला, दुःख दूर कर हमारा।
तेरी शरण में आया, प्रभु दीजिए सहारा ।। ईश्वर ।।
तू है पिता व माता, सब विश्व का विधाता।
तुझ सा नहीं है दाता, तेरा सभी सहारा ।। ईश्वर ।।
भूमी आकाश तारे, रवि चन्द्र सिन्धु सारे।
तेरे हुकुम में सारे, सबका तू ही अधारा ।। ईश्वर ।।
जग चक्र में चढ़ा हूँ, भव सिन्धु में पड़ा हूँ।
दर पे तेरे खड़ा हूँ, अब दे मुझे दिदारा ।। ईश्वर ।।
अपनी शरण में लीजे, सब दोष दूर कीजे।
ब्रह्मानन्द दान दीजे, तुझ नाम निर्विकारा ।। ईश्वर ।।
ईश्वर तू दीनबन्धु, हम दास हैं तुम्हारे ।
अपनी दया नजर से, सब दोष हर हमारे ।। ईश्वर ।।
हम बाल हैं अजाने, तुझ रूप को न जाने ।
पूरण सभी ठिकाने, कहते हैं वेद सारे ।। ईश्वर ।।
तू है चरा अचर में, जंगल गिरि नगर में।
सब जीव नारि नर में, तुमरे सभी सहारे । ईश्वर ।।
भव सिन्धु है अपारा, बहता हूँ बीच धारा।
नहीं दूसरा सहारा, प्रभु दीजिए किनारा। ईश्वर ।।
माया के जाल में माही, हम तो रहे फसाई।
ब्रह्मानन्द ले छुड़ाई, करुणानिधान प्यारे ।। ईश्वर ।।
ब्रह्ममुरारि-सुरार्चित लिंगं,
निर्मल-भाषित-शोभित-लिंगम्।
जन्मज-दुःख-विनाशक-लिंगं,
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ।।१।।
देवमुनि-प्रवरार्चित लिंगं,
कामदहं करुणाकर-लिंगम्।
रावण-दर्प-विनाशन-लिंगं,
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥२॥
सर्व-सुगन्धि-विलेपित-लिगं,
बुद्धि-विवर्द्धन-कारण-लिंगम् ।
सिद्ध-सुरासुर-वन्दित-लिंगं,
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥ ३॥
कनक-महामणि-भूषित-लिंगं,
फणिपति-वेष्टित-शोभित-लिंगम्।
दक्षसुयज्ञ-विनाशन-लिगं,
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥ ४॥
कुंकुम-चन्दन-लेपित-लिगं,
पंकज-हार-सुशोभित-लिंगम्।
संचित-पाप-विनाशन-लिंगं,
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥ ५॥
देवगणार्चित-सेवित-लिगं,
भावैर्भक्तिभिरेवच लिंगम्।
दिनकर-कोटि-प्रभाकर-लिगं,
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥ ६॥
अष्टदलोपरि-वेष्टित-लिंगं,
सर्वसमुद्भव-कारण-लिंगम्।
अष्टदरिद्र-विनाशक-लिंगं,
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥ ७ ॥
सुरगुरु-सुरवर-पूजित-लिंगं,
सुरवन-पुष्प-सदार्चित-लिंगम्।
परात्परं परमात्मक लिंगं,
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥ ८॥
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सहमोदते ॥ ९॥
नामावली
ॐ नमः शिवायः ॐ नमः शिवाय।
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॥
शिवाय नमः ॐ शिवाय नमः ।
शिवाय नमः ॐ शिवाय नमः ।।
शिव शिव शिव शिव शिवाय नमः ।
हर हर हर हर नमः शिवाय ॥
ॐ अंगारकाय विद्महे
शक्तिहस्ताय धीमहि।
तन्नो भौमः प्रचोदयात् ।।
धरणीगर्भ सम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम् ।।
जिह्ने कीर्तय केशवं मुररिपुं चेतो भज श्रीधरं,
पाणि द्वन्द्व समर्चयाच्युत कथाश्श्रोत्र द्वय त्वं शृणु।
कृष्णं लोकय लोचनद्वय हरेर्गच्छांघ्रि युग्मालयं,
जिघ्र घ्राण मुकुन्दपाद तुलर्सी मूर्धन्नमा धोक्षजम् ॥
हे गोपालक! हे कृपाजलनिधे! हे सिन्धु कन्यापते!
हे कंसान्तक! हे गजेन्द्र करुणापारीण! हे माधव!
हे रामानुज! हे जगत्त्रयगुरो ! हे पुण्डरीकाक्ष! माँ
हे गोपीजन नाथ! पालय परंजानामि न त्वां विना ।।
यमुना-तीर-विहारी, वृन्दावन-संचारी।
गोवर्धन-गिरि-धारी, गोपाल-कृष्ण मुरारी ॥
दशरथ-नन्दन राम राम, दशमुख मर्दन राम राम।
पशुपति-रंजन राम राम, पाप-विमोचन राम राम ॥
अयोध्यावासी राम नमो, गोकुलवासी कृष्ण नमो ।
वैकुण्ठवासी विष्णु नमो, कैलासवासी शंकर नमो ।
नामावली
जय श्री राधे जय नन्द नन्दन ।
जय जय गोपी जन मन रंजन ।।
सुमिरन कर ले मेरी मना।
मेरी बीत गयी उमर हरि नाम बिना ।। सुमिरन ।।
कूप नीर बिन, धेनु क्षीर बिन, धरती मेह बिना।
जैसे तरुवर फल बिन हीना, तैसे प्राणि हरि नाम बिना ।। सुमिरन ॥
देह नैन बिन, रैन चन्द्र बिन, मन्दिर दीप बिना।
जैसे पण्डित वेद विहीना, तैसे प्राणि हरि नाम बिना ।। सुमिरन ॥
काम क्रोध मद लोभ निहारो, ढूँढ ले अब सन्त जना।
कहे नानकशा सुनो भगवन्ता, दुनिया में नहीं कोई अपना ॥ सुमिरन ॥
नटवरलाल गिरिधर गोपाल,
जय जय नन्दा यशोदा के बाल।
सार सार सबके सार,
राधा रसिक वर रास विहार ।। नटवर ।।
स्फटिक स्फटिक मय गोपी मण्डल धाम,
गोपि गोपि मध्य मरकत श्याम।
नटवरलाल गिरिधर गोपाल ।। नटवर ।।
धन्य धन्य वज्र गोपी धन्य हो,
धन्य वृन्दावन कुंज धन्य हो,
व्रज मृग खग सब धन्य धन्य हो,
व्रज रज यमुना पुलिन धन्य हो ।। नटवर ।।
शरद पूर्णिमा निर्मल यमुना,
अद्भुत रास महोत्सव अनुपम ।
सार सार सबके सार,
राधा रसिक वर रास विहार ।। नटवर ।।
पग घुँघरु बाँध मीरा नाची रे।
मीरा नाची रे, मीरा नाची रे । पग ॥
विष का प्याला राणा जी ने भेजा,
पीबत मीरा हासी रे।
लोग कहे मीरा भई बावरी,
सास कहे कुल नाशी रे ॥ पग ॥
साँप पिटारा राणा जी ने भेजा,
नव लख हार कर पहना रे।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,
आपही हो गयी दासी रे । पग ।।
संगत सन्तन की कर ले,
जनम का साधन कुछ कर ले।
साधन कुछ कर ले,
जनम का साधन कुछ कर ले । संगत ॥
कहाँ से आया कहाँ जायेगा,
ये कुछ मालूम करना।
सन्तन की शरण जाके बाबा,
जनम मरण दूर कर ले रे भाई ॥ संगत ॥
उत्तम नर देह पाया प्राणी,
इसका हित कुछ कर ले।
दो दिन की जिन्दगानि रे बन्दे,
शियार हो कर चलना रे भाई ॥ संगत ॥
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
बार-बार नहीं आना रे भाई।
अपना हित कुछ कर ले प्यारे,
आखिर इकेला जाने रे भाई ।। संगत ।।
जिस हाल में, जिस देश में, जिस वेष में रहो।
राधारमण, राधारमण, राधारमण कहो ।।
जिस काम में, जिस धाम में, जिस गाँव में रहो।
राधारमण, राधारमण, राधारमण कहो ।।
जिस संग में, जिस रंग में, जिस ढंग में रहो।
राधारमण, राधारमण, राधारमण कहो ।।
जिस योग में, जिस भोग में, जिस रोग में रहो।
राधारमण, राधारमण, राधारमण कहो ।।
संसार में, परिवार में, व्यवहार में रहो।
राधारमण, राधारमण, राधारमण कहो ।।
मदन मोहन कदम्ब वन में, खड़े बंसी बजाते हैं।
कभी गंगा कभी यमुना, कभी सरयू नहाते हैं।। मदन ॥
कभी मथुरा कभी गोकुल, कभी वृन्दावन में रहते हैं।
कभी गोपियों, कभी ग्वालों, कभी गौवों को नचाते हैं। मदन ॥
कभी राधा, कभी रुक्मिणी, कभी भामा को सताते हैं ।॥
कभी माखन, कभी मिश्री, कभी दहिया चुराते हैं।। मदन ॥
कभी शंखा, कभी मुरली, कभी घुंगरू बजाते हैं।।
कभी सूरज, कभी चन्दा, कभी तारों में छुपते हैं।।मदन ॥
कभी रामा, कभी कृष्णा, कभी वह विष्णु बनते हैं।
कभी रावण, कभी कंसा, कभी हिरण्याक्ष को मारते हैं। मदन ॥
कभी ऋषियों, कभी मुनियों, कभी भक्तों को रिझाते हैं।।
कभी किसी रूप, कभी किसी रंग, कभी सत्संग में मिलते हैं।।मदन ॥
मिला दो श्याम से ऊधौ, तेरा गुण हम भी गावेंगे ।। मिला दो ॥
मुकुट सिर मोर पंखन का, मकर कुण्डल हैं कानों में।
मनोहर रूप मोहन का, देख दिल को रिझावेंगे ।। मिला दो ॥
हमन को छोड़ गिरिधारी, गये जब से नहीं आये।
चरण में शीश धर करके, फिर उनको मनावेंगे ।। मिला दो ॥
प्रेम हमसे लगा करके, बिसारा नन्द नन्दन ने।
हताशा हो गयी हमसे, अरज अपने सुनावेंगे ॥ मिला दो ॥
कभी फिर आये गोकुल में, हमें दर्शन दिलावेंगे।
वो ब्रह्मानन्द हम दिल से, नहीं उनको भुलावेंगे ।। मिला दो ॥
नामावली
हरि ॐ राम सीता राम ।
हरि ॐ कृष्ण राधे श्याम ।।
हरि ॐ जय जय राधे श्याम।
रि ॐ जय जय राधे श्याम ।।
मेरा श्यामा बड़ा अलबेला।
मेरी मटकी को मार गया ढेला ।। मेरा ॥
कभी गंगा के तीर, कभी यमुना के तीर।
कभी सरयू के तीर अकेला ।। मेरा ॥
कभी गोपियों के संग, कभी ग्वालों के संग।
कभी गौवें चरावे अकेला ।। मेरा ।।
कभी भामा के संग, कभी रुक्मिणी के संग।
कभी राधा के संग अकेला ॥ मेरा ॥
कभी सूरज के संग, कभी चन्दा के संग।
कभी तारों से घेरा अकेला ।। मेरा ॥
कभी सन्तों के संग, कभी भक्तों के संग।
कभी मस्ती में बैठा अकेला ॥ मेरा ।।
दर्शन दो घनश्याम, नाथ मेरी अखियाँ प्यासी रे।
मन मन्दिर की ज्योति जगा दो, घट घट वासी रे।।॥ दर्शन दो...
मन्दिर-मन्दिर मूरत तेरी, फिर भी न देखी सूरत तेरी।
युग बीते न आई मिलन की, पूरणमासी रे ।। दर्शन दो...
द्वार दया का जब तू खोले, पंचम स्वर में गूँगा बोले।
अन्धा देखे लंगड़ा चल कर, पहुँचे काशी रे ॥ दर्शन दो...
पानी पी कर प्यास बुझाऊँ, नैनन को कैसे समझाऊँ।
तेरे भजन में सब कुछ पाऊँ, मिटे उदासी रे।। दर्शन दो...
निर्बल के बल धन निर्धन के, तुम रखवाले भक्त जनन के।
तेरे भजन में सब कुछ पाऊँ, मिटे उदासी रे ।। दर्शन दो...
नाम जपे पर तुझे न जाने, उनको भी तू अपना माने।
तेरी दया का अन्त नहीं है, हे दुःख नाशी रे। दर्शन दो...
आज फैसला तेरे द्वार पर, मेरी जीत है तेरी हार पर।
हार जीत है तेरी, मैं तो चरण उपासी रे ।। दर्शन दो...
द्वार खड़ा कब से मतवाला, माँगे तुमसे हार तुम्हारा।
नरसी की ये बिनती सुन लो, भक्त विलासी रे ॥ दर्शन दो...
लाज न लुट जाय प्रभु तेरी, नाथ करो न दया में देरी।
तीनों लोक छोड़ कर आओ, गगन निवासी रे॥ दर्शन दो...
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव।
हे नाथ नारायण वासुदेव, हे नाथ नारायण वासुदेव ॥
ॐ नारायणाय विद्महे
वासुदेवाय धीमहि ।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ।।
प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ।।
कस्तूरी-तिलकं ललाट-फलके वक्षःस्थले कौस्तुभं,
नासाग्रे नव-मौक्तिकं करतले वेणु करे कंकणम् ।।
सर्वांगं हरिचन्दनं च कलयन् कण्ठे च मुक्तामणि,
गोपस्त्री-परिवेष्टितो विजयते गोपाल-चूड़ामणिः ।।
कृष्णो रक्षतु नो जगत्रयगुरुः कृष्णं नमस्याम्यहं,
कृष्णेनामरशत्रवो विनिहताः कृष्णाय तस्मै नमः ।
कृष्णादेव समुत्थितं जगदिदं कृष्णस्य दासोऽस्म्यहं,
कृष्णे तिष्ठति सर्वमेतदखिलं हे कृष्ण रक्षस्व माम् ।।
कमला वल्लभ गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा ।।
मनीयानन गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा ।।
नन्द नन्दना गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा ।।
नवनीतचोरा गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा ।।
वेणुविलोला गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा ॥
विजय गोपाला गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा ।।
पतित पावना गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा ।।
पतितोद्धारा गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा ।।
भक्तवत्सला गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा ॥
भागवत प्रिय गोविन्द माम्। पाहि कल्याण कृष्णा गोविन्दा॥
मुरलि मनोहर राधे श्याम।
गोपी बल्लभ राधे श्याम ॥ मुरलि ॥
देवकी नन्दन राधे श्याम ।
राधे श्याम जय राधे श्याम ॥ मुरलि ॥
सीता राम जय सीता राम ।
राधे श्याम जय राधे श्याम ॥ मुरलि ॥
कृष्ण हरे श्री कृष्ण हरे, दुःखियों के दुःख दूर करे।
जय जय जय जय कृष्ण हरे, जय जय जय जय कृष्ण हरे ॥ कृष्ण हरे...
जब चारों तरफ अँधियारा हो, आशा का तू किनारा हो।
और कोई न जीवन भवदा हो, फिर तू ही बेड़ा पार करो ॥ कृष्ण हरे...
तू चाहे तो सब कुछ करते, विष को भी अमृत करते।
पूरण करते उसकी आशा, जो भी तेरा ध्यान धरे ।। कृष्ण हरे...
कृष्ण गोविन्द गोविन्द गाते चलो।
मन को विषयों के विष से हटाते चलो । कृष्ण…
देखना इन्द्रियों के न घोड़े भर्गे,
रात दिन इनपे संयम के कोड़े लगे।
अपने रथ को सुमार्ग बढ़ाते चलो ।। कृष्ण…
नाम जपते चलो काम करते चलो,
नाम धन का खजाना बढ़ाते चलो ।
सुख में सोना नहीं, दुःख में रोना नहीं,
प्रेम भक्ति के आँसू बहाते चलो ।। कृष्ण…
लोग कहते हैं भगवान् आते नहीं,
ध्रुव की तरह से बुलाते नहीं।
भक्त प्रह्लाद के जैसा रटना करो ।। कृष्ण…
लोग कहते हैं भगवान् खाते नहीं,
शाक विदुर घर के जैसे खिलाते नहीं।
भक्त शबरी के जैसे खिलाया करो ।।कृष्ण…
लोग कहते हैं संकट में आते नहीं,
भगवान् आते नहीं
सती द्रौपदी की तरह से बुलाते नहीं। कृष्ण…
टेर गज की तरह से सुनाते चलो ॥
चाहे काशी चलो, चाहे मथुरा चलो,
चाहे प्रयागा चलो, चाहे अयोध्या चलो।
प्रेम भक्ति के मार्ग बढ़ाते चलो ।।कृष्ण…
याद आवेगा प्रभु को कभी न कभी,
दास पावेगा प्रभु को कभी न कभी।
ऐसा विश्वास मन में जमाते चलो । कृष्ण…
भजो राधे गोविन्द, गोपाला तेरा प्यारा नाम है।
गोपाला तेरा प्यारा नाम है, नन्दलाला तेरा प्यारा नाम है। भजो...
मोर मुकुट माथे तिलक, गल वैजन्ती माला
प्रभु गल वैजन्ती माला, कोई कहे वसुदेव का नन्दन
कोई कहे नन्दलाला, प्रभु कोई कहे नन्दलाला ॥ भजो...
जल में गज को ग्राह ने घेरा, जल में चक्र चलाया
प्रभु जल में चक्र चलाया, जब जब भीड़ पड़ी भक्तन पर
नंगे पाऊँ आया प्रभु नंगे पाऊँ आया ।। भजो...
अर्जुन का रथ तुमने हाँका, भारत भाइ लड़ाई
प्रभु भारत भाइ लड़ाई, भगतों के खातिर प्रभु ने
अडरा नन्दानाई, प्रभु अडरा नन्दानाई ।। भजो...
द्रौपदी ने जब तुम्हें पुकारा, साड़ी आन बढ़ाई
प्रभु साड़ी आन बढाई, नाम को ले कर विष भी पी गयी
देखो मीराबाई, प्रभु देखो मीराबाई ॥ भजो...
नरसी का सब काम सँवारे, मुझको मत बिसरारे
प्रभु मुझको मत बिसरारे, जनम जनम की तेरा हि सारंगि
तेरा हि नाम पुकारे, प्रभु तेरा हि नाम पुकारे ।। भजो...
अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपते-रखिलं मधुरम् ॥१॥
वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपते-रखिलं मधुरम् ॥२॥
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरो, पाणिर्मधुरः पादो मधुरः ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपते-रखिलं मधुरम् ॥ ३ ॥
गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपते-रखिलं मधुरम् ॥४॥
करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपते-रखिलं मधुरम् ॥५ ॥
गुंजा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपते-रखिलं मधुरम् ॥६ ।।
गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं, मधुराधिपते-रखिलं मधुरम् ॥७॥
गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं, मधुराधिपते-रखिलं मधुरम् ॥८॥
नामावली
विपिन-विहारी राधेश्याम, कुंज-विहारी राधेश्याम ।
बाँके-विहारी राधेश्याम, देवकी-नन्दन राधेश्याम ॥
गोपिका-वल्लभ राधेश्याम, राधा-वल्लभ राधेश्याम ।
कृष्ण-मुरारी राधेश्याम, करुणा-सागर राधेश्याम ॥
भक्ति-दायक राधेश्याम, शक्ति-दायक राधेश्याम ।
भुक्ति-दायक राधेश्याम, मुक्ति-दायक राधेश्याम ।।
सच्चिदानन्द राधेश्याम, सद्गुरु-रूप राधेश्याम ।
सर्वरूप श्री राधेश्याम, सर्व-नाम श्री राधेश्याम ॥
राधेश्याम राधेश्याम, राधेश्याम श्री राधेश्याम ।
राधेश्याम राधेश्याम, राधेश्याम श्री राधेश्याम ।।
सुनाजा सुनाजा सुनाजा कृष्णा ।
तू गीतावाला ज्ञान सुनाजा कृष्णा ।।
दिखाजा दिखाजा दिखाजा कृष्णा ।
ओ माधुरी सी मूर्ति दिखाजा कृष्णा ।।
पिलाजा पिलाजा पिलाजा कृष्णा ।
ओ प्रेम भरा प्याला पिलाजा कृष्णा ।।
खिलाजा खिलाजा खिलाजा कृष्णा।
ओ माखन औ मिश्रि खिलाजा कृष्णा ॥
लगाजा लगाजा लगाजा कृष्णा ।
मेरी नय्या को पार लगाजा कृष्णा ।।
सुनाजा सुनाजा सुनाजा कृष्णा ।
तू बाँसुरी की तान सुनाजा कृष्णा ॥ सुनाजा ॥
कृष्ण कृष्णा मुकुन्दा जनार्दना, कृष्ण गोविन्दा नारायणा हरे।
अच्युतानन्द गोविन्द माधवा, सच्चिदानन्द नारायणा हरे ।। कृष्ण...
राम राम नरसिंहा पुरुषोत्तमा, राघवा राम नारायणा हरे।
रावणारि कोदण्ड राम रघुवरा, श्रीधरा राम नारायणा हरे ।। कृष्ण...
गरुड़ गमना कंसारि मधुसूदना, शेष शयना श्री नारायणा हरे।
मुरलि कृष्ण मुरारी मन मोहना, मदन गोपाला नारायणा हरे ॥ कृष्ण...
वासुदेव गोविन्द दामोदरा, नन्द नन्दना नारायणा हरे।
वामना विष्णु गौरी लक्ष्मी धरा, वेणुगोपाला नारायणा हरे ।। कृष्ण...
पद्मनाभा परमेशा सनातना, परम पुरुषा श्री नारायणा हरे।
पाण्डुरंगा विठ्ठल पुरन्दरा, पुण्डरीकाक्षा नारायणा हरे ।। कृष्ण…
श्रीनिवासा अनिरुद्धा धरणीधरा, अप्रमेयात्मा नारायणा हरे।
दीनबन्धु भगवन्ता दयानिधे, देवकीतनया नारायणा हरे ।। कृष्ण...
आना सुन्दर श्याम हमारे घर कीर्तन में।
आप भी आना, राधा जी को लाना।
आकर मुरली बजाना हमारे घर कीर्तन में । आना ॥
आप भी आना, शंकर जी को लाना।
आकर डमरू बजाना हमारे घर कीर्तन में ॥ आना ॥
आप भी आना, गोपियों को लाना।
आकर रास रचाना हमारे घर कीर्तन में ।। आना ॥
आप भी आना, ग्वालाओं को लाना।
माखन मिश्री खिलाना हमारे घर कीर्तन में ।। आना ॥
आप भी आना, नारद जी को लाना।
आकर वीणा बजाना हमारे घर कीर्तन में ॥ आना ॥
आप भी आना, शबरी जी को लाना।
आकर बेर खिलाना हमारे घर कीर्तन में ।। आना ॥
आप भी आना, सुदामा जी को लाना।
आकर तन्दुल खिलाना हमारे घर कीर्तन में ।। आना ॥
आप भी आना, ऊधव जी को लाना।
आकर ज्ञान सुनाना हमारे घर कीर्तन में ॥ आना ॥
आप भी आना, अर्जुन जी को लाना।
आकर गीता सुनाना हमारे घर कीर्तन में ।। आना ॥
आप भी आना, मीरा जी को लाना।
भक्ति का भजन सुनाना हमारे घर कीर्तन में ।।
आप भी आना, स्वामी जी को लाना।
आकर ध्यान सिखाना हमारे घर कीर्तन में ।। आना ॥
गोविन्द राधे गोपाल राधे, राधा रमण हरि गोविन्द राधे।
गोविन्द कृष्णा गोपालाकृष्णा, राधा रमण हरि गोविन्द कृष्णा ।।
गोविन्द रंगा गोपाल रंगा, राधा रमण हरि गोविन्द रंगा।
गोविन्द विट्ठल गोपाल विट्ठल, राधा रमण हरि गोविन्द विट्ठल ॥
गोविन्द रामा गोपाल रामा, राधा रमण हरि गोविन्द रामा।
गोविन्दा ब्रह्मा गोपाल ब्रह्मा, राधा रमण हरि गोविन्द ब्रह्मा ।।
ॐ दत्तात्रेयाय च विद्महे
अत्रितनयाय च धीमहि
तन्नो दत्तः प्रचोदयात् ।।
देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचन सन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ॥
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम् ।
मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
सदा पावनं जाह्नवीतीरवासं सदा स्वस्वरूपानुसन्धानशीलम्।
सदा सुप्रसन्नं दयालुं भजेऽहं शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ।।१ ।।
हरेर्दिव्यनाम स्वयं कीर्तयन्तं हरेः पादभक्ति सदा बोधयन्तम्।
हरेः पादपद्मस्थ भृगं भजेऽहं शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ॥२ ॥
जराव्याधिदौर्बल्य सम्पीडितानां सदाऽऽरोग्यदं यस्य कारुण्यनेत्रम् ।
भजेऽहं समस्तार्तसेवाधुरीणं शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ॥३॥
सदा निर्विकल्पे स्थिरं यस्य चित्तं सदा कुम्भितः प्राणवायुर्निकामम्।
सदा योगनिष्ठं निरीहं भजेऽहं शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ॥४॥
महामुद्रबन्धादियोगांगदक्षं सुषुम्नान्तरे चित्स्वरूपे निमग्न्नम्।
महायोगनिद्राविलीनं भजेऽहं शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ॥५॥
दयासागरं सर्वकल्याणराशि सदा सच्चिदानन्दरूपे निलीनम्।
सदाचारशीलं भजेऽहं भजेऽहं शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ॥६॥
भवाम्बोधिनौकानिभं यस्य नेत्रं महामोहघोरान्धकारं हरन्तम्।
भजेऽहं सदा तं महान्तं नितान्तं शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ॥७॥
भजेऽहं जगत्कारणं सत्स्वरूपं भजेऽहं जगद्व्यापकं चित्स्वरूपम् ।
भजेऽहं निजानन्दमानन्दरूपं शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ॥८॥
पठेद्यः सदा स्तोत्रमेतत् प्रभाते शिवानन्दयोगीन्द्रनाम्नि प्रणीतम्।
भवेत्तस्य संसारदुःखं विनष्टं तथा मोक्षसाम्राज्यकैवल्यलाभः ॥९ ।।
राम जिनका नाम है, अयोध्या जिनका धाम है।
ऐसे रघुनन्दन को, हमारा भी प्रणाम है।।
श्याम जिनका नाम है, गोकुल जिनका धाम है।
ऐसे भक्तिदाता को, हमारा भी प्रणाम है।।
पाण्डुरंगा नाम है, पण्डरिपुर धाम है।
ऐसे दया सागर को, हमारा भी प्रणाम है।
शंकर जिनका नाम है, काशी जिनका धाम है।
ऐसे मुक्तिदाता को, हमारा भी प्रणाम है।
वेंकटरमण नाम है, तिरुमलगिरि धाम है।
ऐसे आपद्वान्धव को, हमारा भी प्रणाम है।
शिवानन्द नाम है, आनन्द कुटीर धाम है।
ऐसे सद्गुरुदेव को, हमारा भी प्रणाम है।।
देव-देव-शिवानन्द दीनबन्धो पाहि माम्।
चन्द्र-वदन मन्दहास प्रेम-रूप रक्ष माम् ।।
मधुर-गीत-गान-लोल ज्ञान-रूप पाहि माम्।
समस्त-लोक-पूजनीय मोहनांग रक्ष माम् ।।१ ।।
दिव्य-गंगा-तीर-वास दान-शील पाहि माम्।
पाप-हरण पुण्य-शील परम-पुरुष रक्ष माम् ।।
भक्त-लोक हृदय-वास स्वामिनाथ पाहि माम्।
चित्स्वरूप चिदानन्द शिवानन्द रक्ष माम् ॥२॥
गुरुचरणं भज चरणम्। सद्गुरु चरणं भव हरणम् ।।
मानस भजरे गुरु चरणम्। भजरे मानस गुरु चरणम् ॥
दुस्तर भवसागर तरणम्। सद्गुरु चरणं भव हरणम् ।।
गुरु महाराज गुरु जय जय । परब्रह्म सद्गुरु जय जय ।।
गुरु महाराज गुरु जय जय। शिवानन्द सद्गुरु जय जय ।।
जय गुरुदेव दयानिधे, भगतन के हितकारी।
शिवानन्द जय मोह विनाशक, भव बन्धन हारी ।। भगतन के...
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ने, गुरु मूरति धारी।
वेद पुराण करत बखाना, गुरु की महिमा भारी ।। भगतन के...
जप तप तीरथ शम यम दान, गुरु बिना नहीं होवत ज्ञान।
ज्ञान खड्ग से कर्मा काटे, गुरु नाम सब पातक हारी ।। भगतन के...
तन मन धन सब अर्पण कीजै, परमागति मोक्ष पद लीजै।
सब के सहारा सद्गुरु नाम, अविनाशी अविकारी ।। भगतन के...
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सद्गुरु ।
किरपा कर अपनायो । पायो जी ।।
जनम जनम की पूँजी पायी।
जग में सभी खोवायो । पायो जी ।।
खरच नहीं कोई चोर न लूटे।
दिन दिन बढ़त सवायो ।। पायो जी ।।
सत् की नाव केवटिया सद्गुरु ।
भवसागर तर आयो ।। पायो जी ॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर।
हरष हरष जस गायो ।। पायो जी ।।
बता दे मोक्ष का मारग, गुरु मैं शरण में तेरी ।।
जगत के बीच में नाना किसम के पन्थ हैं भारी।
सुनाते हैं कथा अपनी, भटकते हो गयी देरी ।। बता दे ॥
कोई मूरत पूजन को, बताते होम करने को।
कोई तीरथ के दर्शन को, फिराते हैं सदा फेरी ।। बता दे ॥
किताबें धर्म चर्चा की, हजारों बाँचकर देखा।
मिटे संशय नहीं मन का, अकल जंजाल में मेरी ॥ बता दे ॥
सकल दुनिया में है पूरण, सुना मैं रूप ईश्वर का।
वो ब्रह्मानन्द बिन देखे, मिटे नहीं भरमना मेरी ।। बता दे ॥
हरि ॐ राम सीता राम। हरि ॐ कृष्ण राधे श्याम ।।
हरि ॐ राम सीता राम । हरि ॐ कृष्ण राधे श्याम ॥
अगर है ज्ञान को पाना, तो गुरु की जा शरण भाई ।।
जटा सिर फेर खाने से, भस्म तन में रमाने से।
सदा फल मूल खाने से, कभी नहीं मुक्ति हो पाई।। अगर ॥
बने मूरत पुजारी हैं, तीरथ यात्रा पियारी है।
करे व्रत नेम भारी है, भरम मन का मिटे नाहीं ॥ अगर ॥
कोटि सूरज शशि तारा, करे परकाश मिल सारा ।
बिना गुरु घोर अँधेरा, न प्रभु का रूप दरशायी ।। अगर ॥
ईश सम जान गुरु देवा, लगा तन मन करो सेवा।
ब्रह्मानन्द मोक्ष पद मेवा, मिले भव बन्ध कट जायी ।। अगर ॥
नामावली
हरि ॐ जय जय गुरु देवा।
हरि ॐ जय जय गुरु देवा ॥
रि ॐ जय जय गुरु नाथा।
हरि ॐ जय जय गुरु नाथा ।।
भव-सागर-तारण-कारण हे, रवि-नन्दन-बन्धन-खण्डन हे।
शरणागत-किंकर दीनमने, गुरुदेव दयाकर दीनजने ।। हृ
दि-कन्दर तामस भास्कर हे, तुम विष्णु प्रजापति, शंकर हे।
परब्रह्म परात्पर वेद बने, गुरुदेव दयाकर दीनजने ।।
मन-वारण कारण-अंकुश हे, नर-त्राण करे हरिचाक्षुष हे।
गुण-गान-परायण देव गणे, गुरुदेव दयाकर दीनजने ॥
कुल-कुण्डलिनी भव-भंजक हे, हृदि-ग्रन्थि विदारण-कारण हे।
महिमा तव गोचर शुद्धमने, गुरुदेव दयाकर दीनजने ।।
अभिमान-प्रवाह-विमर्दक हे, अतिदीन-जने तुम रक्षक हे।
मन कंपित वंचित भक्ति धने, गुरुदेव दयाकर दीनजने ।।
रिपुसूदन मंगलनायक हे, सुख-शान्ति वराभय दायक है।
त्रय ताप हरे तव नाम गुणे, गुरुदेव दयाकर दीनजने ॥
तव नाम सदा सुखसाधक हे, पतिताधम मानव-पालक हे।
मम मानस चंचल रात्रि-दिने, गुरुदेव दयाकर दीनजने ॥
जय सद्गुरु ईश्वर-प्रापक हे, भवरोग विकार विनाशक है।
मन लीन रहे तव श्री चरणे, गुरुदेव दयाकर दीनजने ।।
ॐ गुरुनाथ जय गुरुनाथा।
जय गुरुनाथ शिव गुरुनाथा ।।
जय गुरुनाथ जगद्गुरुनाथा ।
जगद्गुरुनाथ परं गुरुनाथा ।।
परं गुरुनाथ सद्गुरुनाथा ।
सद्गुरुनाथ जय गुरुनाथा ।।
सच्चिदानन्द गुरु जय गुरु जय गुरु ।
अजर अमर गुरु जय गुरु जय गुरु ।।
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे
विष्णुपत्न्यै च धीमहि
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।।
हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ।।
सर्व-मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
शरणागत दीनार्त, परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्ति हरे देवि, नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
आदि दिव्य ज्योति महा कालि माँ नमः ।
मद शुम्भ महिष मर्दिनि महा शक्तये नमः ।।
ब्रह्म विष्णु शिवस्वरूप त्वं न अन्यथा ।
चराचरस्य पालिका नमो नमः सदा ।।
आदि दिव्य ज्योति…
हे वीणा, हे वीणा वादिनी देवी,
तुम्हारी जय हो, हो जय हो ।
हो जय हो, जय जय जय जय जय हो,
देवी तुम्हारी जय हो ।। हे वीणा ।।
बैठी हो कर मां तुम शुभ ग्रन्थ सजाये,
पढ़ पाठ हमारा हृदय शुद्ध बन जाये।
जागे नूतन ज्ञान प्राण में अनुपम,
तन बने सबल मन निर्मल और निर्भय हो ।। हे वीणा ।।
हे हंस वाहिनी मन को हंस बनाओ,
मधुमय श्वेत कमल पर नाचो गाओ।
पाकर मां वरदान तुम्हारा अनुपम,
यह जीवन सरल सरस सुन्दर सुखमय हो ।। हे वीणा ।।
गौरी गौरी गंगे राजेश्वरी, गौरी गौरी गंगे भुवनेश्वरी।
गौरी गौरी गंगे माहेश्वरी, गौरी गौरी गंगे मातेश्वरी ।।
गौरी गौरी गंगे महाकाली, गौरी गौरी गंगे महालक्ष्मी।
गौरी गौरी गंगे पार्वती, गौरी गौरी गंगे सरस्वती ॥
राम हरे सिया राम राम, राम हरे सिया राम राम।
कृष्ण हरे राधे श्याम श्याम, कृष्ण हरे राधे श्याम श्याम ॥
चलो मन गंगा यमुना तीर,
गंगा यमुना निर्मल पानी।
शीतल होत शरीर ।। चलो मन ।
मोर मुकुट पीताम्बर शोभे ।
कुण्डल झलकत हीर ।। चलो मन ॥
बंशी बजावत गावत गाना।
संग लिये बल वीर ।। चलो मन ।।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर।
चरण कमल पर सीर । चलो मन ॥
नामावली
गंगाराणि गंगाराणि गंगाराणि पाहि माम् ।
भागिरथी भागिरथी भागिरथी रक्ष माम् ।।
हे गिरिधर गोपाला,
हे गिरिधर गोपाला।
हे गिरिधर गोपाला ।।
माधव मुरहर मधुर मनोहर ।
गिरिधर गोपाला ।। हे गिरिधर ।।
नन्द कुमारा सुन्दराकारा,
बृन्दावन संचारा, मुरलीलोला।
मुनिजन पाला ।। हे गिरिधर ।।
कौस्तुभहारा, मौक्तिकाधारा,
राधा हृदय बिहारी, भक्तोद्धारा।
बाल गोपाला गिरिधर गोपाला ।। हे गिरिधर ।।
हे नन्दलाला, गोपरिपाला,
अगणित गुण शीला, रास विलोला।
तुलसी माला ॥ हे गिरिधर ।।
हे अवतारे, नन्द दुलारे,
राखो लाज हमारे, कुंज बिहारी।
कृष्ण मुरारी ।। हे गिरिधर ।।
नामावली
ईश्वरी, माहेश्वरी, परमेश्वरी पाहि माम्।
राजेश्वरी, भुवनेश्वरि, मातेश्वरि रक्ष माम् ॥
राज राजेश्वरी, राज राजेश्वरी, राज राजेश्वरी पाहि माम्।
त्रिपुरसुन्दरि त्रिपुरसुन्दरि त्रिपुरसुन्दरि रक्ष माम् ।।
लगाले प्रेम ईश्वर से, अगर तू मोक्ष चाहता है ।। अगर ॥
रचा उसने जगत् सारा, करे वो पालना सबकी।
वही मालिक है दुनिया का, पिता माता विधाता है। अगर ॥
नहीं पाताल के अन्दर, नहीं आकाश के ऊपर।
सदा वो पास है तेरे, कहाँ तू ढूँढ़न को जाता है। अगर ॥
करो जप नेम तप भारी, रहो जा कर सदा वन में।
बिना सद्गुरु की संगत से, नहीं वो दिल में भाता है । अगर ॥
पड़े जो शरण में उसकी, छोड़ दुनिया के लालच को।
वो ब्रह्मानन्द निश्चय से, परम सुख धाम पाता है। अगर ॥
नामावली
हरी ॐ राम सीता राम ।
हरी ॐ कृष्ण राधे श्याम ।।
हम तो सीता राम कहेंगे।
हम तो राधे श्याम कहेंगे ।।
हम तो राधे श्याम कहेंगे।
हम तो सीता राम कहेंगे।
अगर है प्रेम दर्शन का, भजन से प्रीति कर प्यारा ॥ अगर ॥
छोड़कर काम दुनिया के, रोक विषयों से मन अपना ।
जीतकर नींद आलस को, रहो एकान्त में न्यारा ॥ अगर ॥
बैठ आसन जमा करके, त्याग मन के विचारों को।
देख भृकुटी में अन्दर से, चमकता है अजब तारा। अगर ॥
कभी बिजली कभी चन्दा, कभी सूरज नजर आवे।
कभी फिर ध्यान में भासे, ब्रह्म ज्योति का चमकारा ।। अगर ।।
मिटे सब पाप जन्मों के, कटे सब कर्म के बन्धन।
वो ब्रह्मानन्द में होवे, लीन मन छोड़ संसारा । अगर ॥
जय दुर्गे दुर्गति परि हारिणि ।
शुम्भ विदारिणि मात भवानी ।। जय ।।
आदि शक्ति पर ब्रह्म स्वरूपिणि ।
जग जननी चहुँ वेद बखानी ।। जय ।।
ब्रह्मा शिव हरि अर्चन कीनो ।
ध्यान धरत सुर नर मुनि ज्ञानी ।। जय ।।
अष्ट भुजा कर खड्ग बिराजे।
सिंह सवार सकल वर दानी ।। जय ॥
ब्रह्मानन्द शरण में आयो।
भव भय नाश करो महाराणी ।। जय ।।
नामावली
ॐ शक्ति ॐ शक्ति ॐ शक्ति पाहि माम्।
ब्रह्म शक्ति विष्णु शक्ति शिव शक्ति रक्ष माम् ॥
न तातो न माता न बन्धुर्न दाता,
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
न जाया न विद्या न वृत्ति-र्ममैव,
गति-स्त्वं गति-स्त्वं त्व-मेका भवानि ॥ १ ॥
भवाब्धा-वपारे महादुःखभीरुः
पपात प्रकामं प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसार-पाश-प्रबद्धः सदाहं,
गति-स्त्वं गति-स्त्वं त्व-मेका भवानि ॥ २॥
न जानामि दानं न च ध्यान योगम्,
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रं-मन्त्रम्।
न जानामि पूजां न संन्यास-योगं,
गति-स्त्वं गति-स्त्वं त्व-मेका भवानि ॥ ३॥
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं,
न जानामि मुक्ति लयं वा कदाचित् ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातः,
गति-स्त्वं गति-स्त्वं त्व-मेका भवानि ॥ ४॥
कुकर्मी कुसंगी कुबुद्धिः कुदासः,
कुलाचार-हीनः कदाचारलीनः ।
गुरुदेव कुटीर में भजन-कीर्तन
कुदृष्टिः कुवाक्य-प्रबन्धः सदाहं,
गति-स्त्वं गति-स्त्वं त्व-मेका भवानि ॥ ५॥
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं,
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये,
गति-स्त्वं गति-स्त्वं त्व-मेका भवानि ॥ ६॥
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे,
जले चानले पर्वते शत्रु-मध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि,
गति-स्त्वं गति-स्त्वं त्व-मेका भवानि ॥ ७॥
अनाथो दरिद्रो जरा-रोग-युक्तो,
महाक्षीण-दीनः सदा जाड्य-वक्त्रः ।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहं,
गति-स्त्वं गति-स्त्वं त्व-मेका भवानि ॥ ८॥
अम्ब परमेश्वरि अखिलाण्डेश्वरि ।
आदि परा शक्ति पालय माम् ॥ अम्ब ॥
जय जय दुर्गे जय मातारा।
जय जगदम्बे सुख आधारा । अम्ब ॥
दुःख विनाशिनि दुर्गा जय जय।
काल विनाशिनि काली जय जय ॥ अम्ब ॥
उमा रमा ब्रह्माणी जय जय,
राधा रुक्मिणि सीता जय जय ।
वाणी वीणा पाणी जय जय ॥ अम्ब ॥
नामावली
राज राजेश्वरि पालयमां
त्रिपुरसुन्दरि पालयमां,
मधुर मीनाक्षी पालयमां।
कंचि कामाक्षी पालयमां,
काशी विशालाक्षि पालयमां।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्ताण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥
वैदेही सहितं सुरद्रुमतले हैमे महामण्डपे,
मध्ये पुष्पकमासने मणिमये वीरासने संस्थितम्।
अग्ने वाचयति प्रभंजनसुते तत्त्वं मुनिभ्यः परं,
व्याख्यान्तं भरतादिभिः परिवृतं रामं भजे श्यामलम् ॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्व सम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ।।
मनोजवं मारुत तुल्य वेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं, श्रीरामदूतं शिरसा नमामि ॥
यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं, तत्र तत्र कृतमस्तकांजलिम्।
बाष्पवारि परिपूर्णलोचनं, मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ।।
रामचन्द्र रघुवीर, रामचन्द्र रणधीरा।
रामचन्द्र रघुनाथ, रामचन्द्र जगन्नाथ ।।
रामचन्द्र रघुराम, रामचन्द्र परंधाम।
रामचन्द्र मम बन्धो, रामचन्द्र दयासिन्धो ।।
रामचन्द्र मम दैवं, रामचन्द्र कुलदैवम्।
रामचन्द्र रघुवीर, रामचन्द्र रणधीर ॥
राम राम राम राम राम नाम तारकं ।
राम कृष्ण वासुदेव भक्ति मुक्ति दायकम् ॥
जानकीमनोहरं सर्व लोक नायकं,
शंकरादि सेव्यमान दिव्य नाम कीर्तनम्।
शंकरादि सेव्यमान पुण्य नाम कीर्तनम् ॥
प्रेम मुदित मन से कहो राम राम राम ।
श्री राम राम राम, श्री राम राम राम ।।
पाप कटे दुःख मिटे, लेत राम नाम ।
भव समुद्र सुखद नाव, एक राम नाम ॥ श्रीराम ॥
परम शान्ति सुख निधान दिव्य रांम नाम ।
निराधार को अधार, एक राम नाम ॥ श्रीराम ॥
परम गोप्य परम इष्ट मन्त्र राम नाम ।
सन्त हृदय सदा बसत एक राम नाम ।। श्रीराम ॥
महादेव सतत जपत एक राम नाम।
काशी मरत मुक्ति करत कहत राम नाम ॥ श्रीराम ॥
मात पिता बन्धु सखा सब ही राम नाम।
भक्त जनन जीवन धन एक राम नाम ॥ श्रीराम ॥
सीताराम कहो राधे श्याम कहो ।
सीताराम कहो राधे श्याम कहो । सीता ।।
सीताराम बिना सुख कौन करे।
राधे श्याम बिना दुःख कौन हरे ।। सीता ।
सीताराम बिना उद्धार नहीं।
राधे श्याम बिना बेड़ा पार नहीं ।। सीता ।।
सीताराम बिना सुख स्वप्न नहीं।
राधे श्याम बिना कोई अपना नहीं ॥ सीता ॥
भजो रे भय्या राम गोविन्द हरे।
राम गोविन्द हरे, राम गोपाल हरे ।। भजो रे ।।
जप तप साधन कछु नहिं लागत।
खरचत नहीं गठरी ।। भजो रे ।
सन्तत सम्पद सुख के कारण।
जैसे भूल परी ॥ भजो रे ॥
कहत कबीर जो मुख राम नहीं।
सो मुख धूल भरी ॥ भजो रे॥
राम कृष्ण हरि, मुकुन्द मुरारी।
पाण्डुरंग पाण्डुरंग पाण्डुरंग हरि ।। राम ॥
मकर कुण्डल धारी, भक्त बन्धु शौरी।
मुक्तिदाता शक्तिदाता बिट्ठल नरहरी ।। राम ॥
दीन बन्धु कृपा सिन्धु श्रीहरी श्रीहरी।
पावनांगा हे कृपांगा, वासुदेव हरी ।। राम ॥
तुलसि हार कन्धरा, भक्त हृदय मन्दिरा।
मन्दराद्रि धरा मुकुन्दा, इन्दिरेश श्रीहरी ।। राम ॥
जगत्रय जीवना, केशव नारायणा ।
माधवा जनार्दना, आनन्द घन हरी ॥ राम ॥
राजस सुकुमारा, मोहनाकारा।
करुणा सागरा, अच्युता श्रीहरी ।।राम ॥
पुण्डरीक वरदा, पण्डरिनाथा शुभदा ।
राम ॥अण्डज वाहन कृष्ण, पाण्डुरंगा हरी ।।
ज्ञानदेव सन्स्तुता नामदेव कीर्तिता।
तुकाराम पूजिता, दास केशव सन्त्रुता ।।राम ॥
जय जय विठ्ठल पाण्डुरंगा जयहरि विठ्ठल पाण्डुरंगा ॥
राम न बिसार बन्दे,
खाली आना खाली जाना।
धन यौवन का नाहि ठिकाना,
इसमें न कुछ सार बन्दे ।। राम ॥
यह दुनिया दो दिन का मेला,
न तू किसी का न कोई तेरा।
जीवन है दिन चार बन्दे ।। राम ।।
जग में फूल खिले हैं रंगीले,
सुन्दर प्यारे और रसीले।
मत कर कोई प्यार बन्दे ।। राम ।।
भूले राही सुनते जाना,
झूठे जग में न भरमाना।
तेरी है मंजिल पार बन्दे । राम ।।
राम नाम जपना क्यों छोड़ दिया,
क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा।
सत्य वचन क्यों छोड़ दिया ।। राम नाम ।।
झूठे जग में दिल ललचाकर,
असल वतन क्यों छोड़ दिया।
कौड़ी को तू खूब सम्भाला,
लाल रतन क्यों छोड़ दिया । राम नाम ॥
जिस सुमिरन से अति सुख पावे,
सो सुमिरन क्यों छोड़ दिया।
काल से एक भगवान् भरोसे,
तन मन धन क्यों छोड़ दिया ।। राम नाम ॥
राम नाम जपना, कृष्ण नाम जपना।
हरि नाम जपना, क्यों छोड़ दिया ।। राम नाम ।।
गोविन्द हरे, गोपाल हरे, जय जय प्रभु दीन दयाल हरे ।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणम् ।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद कंजारुणम् ॥ हरण भव भय...
कन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील-नीरद सुन्दरम्।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरम् ।। हरण भव भय...
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्दकन्द कौशलचन्द दशरथ-नन्दनम् ।। हरण भव भय...
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खरदूषणम् ॥ हरण भव भय...
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम्।
मम हृदय-कंज निवास कुरु कामादि खलदल-गंजनम् ।। हरण भव भय...
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।
करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ।। हरण भव भय…
आंजनेय वीरा हनुमन्त शूरा,
वायु कुमारा वानर धीरा।
श्रीराम दूता जय हनुमन्ता,
जय जय सीता राम की।
जय बोलो हनुमान् की ।।
राम लक्ष्मण जानकी,
जय बोलो हनुमान् की ।।॥
जय सिया राम जय, जय सिया राम ।
जय हनुमान् जय, जय हनुमान् ।।
शुद्ध-ब्रह्म परात्पर राम। कालात्मक परमेश्वर राम ।।
शेष तल्प-सुख-निद्रित राम। ब्रह्माद्यमरगण-प्रार्थित राम ।।
चण्ड-किरण-कुल-मण्डन राम । श्रीमद्दशरथ-नन्दन राम ।।
कौशल्या-सुख-वर्द्धन राम। विश्वामित्र-प्रिय-धन राम ॥
घोर-ताड़का-घातक राम। मारीचादि निपातक राम ।।
कौशिक-मख-संरक्षक राम । श्रीमदहल्योद्धारक राम ।।
गौतम-मुनि सम्पूजित राम। सुर-मुनि-वर-गण संस्तुत राम ॥
नाविक-धावित-मृदु-पद राम। मिथिला-पुर-जन-मोदक राम ।।
विदेह-मानस रंजक राम। त्र्यम्बक-कार्मुक-भंजक राम ।।
सीतार्पित-वर मालिक राम। कृत-वैवाहिक-कौतुक राम ।।
भार्गव-दर्प-विनाशक राम। श्रीमदयोध्या-पालक राम ।।
अगणित-गुण गण-भूषित राम। अवनीतनया-कामित राम ।।
राकाचन्द्र-समानन राम। पितृवाक्याश्रित-कानन राम ।।
प्रिय-गुह-विनिवेदित पद राम। तत्क्षालित-निज मृदु-पद राम ।।
भरद्वाज-मुखानन्दक राम। चित्रकूटाद्रि-निकेतन राम ।।
दशरथ-संतत चिन्तित राम। कैकेयी-तनयार्चित राम ।।
विरचित-निज-पितृ कर्मक राम। भरतार्पित-निज-पादुक राम ।।
दण्डक-वन-जन पावन राम। दुष्ट-विराध-विनाशन राम ।।
शरभंग-सुतीक्ष्णार्चित राम। अगस्त्यानुग्रह-वर्धित राम ।।
गृध्राधिप-संसेवित राम । पंचवटी-तट-सुस्थित राम ।।
शूर्पणखार्ति-विधायक राम। खरदूषण-मुख-सूदक राम ।।
सीताप्रिय-हरिणानुग राम। मारिचार्ति-कृदाशुग राम ।।
अपहृत-सीतान्वेषक राम । गृध्राधिप-गतिदायक राम ।।
शबरीदत्त-फलाशन राम। कबन्ध-बाहुच्छेदक राम ।।
हनुमत्-सेवित-निजपद राम। नत सुग्रीवाभीष्टद राम ।।
गर्वित-वालि-संहारक राम। वानर-दूत-प्रेषक राम ॥
'हितकर-लक्ष्मण-संयुत राम। कपिवर-संतत-संस्मृत राम ।।
तद्गति-विघ्न-ध्वंसक राम। सीता-प्राणाधारक राम ।।
दुष्ट-दशानन-दूषित राम। शिष्ट-हनुमद्-भूषित राम ।।
सीतावेदित-काकावन राम। कृत-चूड़ामणि-दर्शन राम ॥
कपिवर-वचनाश्वासित राम। रावण-निधन-सुप्रस्थित राम ।।
वानर-सैन्य-समावृत राम। शोषित सरिदीशार्थित राम ॥
विभीषणा भयदायक राम। पर्वत-सेतु-निबन्धक राम ।।
कुम्भकर्ण-शिरश्छेदक राम । राक्षस-संघ-विमर्दक राम ।।
अहिमहि रावण-मारण राम। संहत-दशमुख-रावण राम ।।
विधि भव मुख सुर संस्तुत राम । खस्थित-दशरथ-वीक्षित राम ॥
सीता दर्शन-मोहित राम। अभिषिक्त-विभीषण-नत राम ॥
पुष्पकयानारोहण राम । भरद्वाजाभिनिषेवन राम ।।
भरत प्राणप्रिय-कारक राम । साकेत पुरी भूषण राम ।।
सकल स्वीय समावृत राम। रत्नलसत्-पीठस्थित राम ।।
पट्टाभिषेकालंकृत राम । पार्थिव कुल सम्मानित राम ।।
विभीषणार्चित रंजक राम। कीशकुलानुग्रहकर राम ।।
सकल जीव-संरक्षक राम। समस्त-लोकोद्धारक राम ।।
नामावली
राम राम जय राजा राम ।
राम राम जय सीता राम ।।
श्रीराम जय राम जय जय राम ।
श्रीराम जय राम जय जय राम ।।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
गौरी शंकर गौरी शंकर, शंकर शंकर गौरी गौरी।
उमा शंकर उमा शंकर, शंकर शंकर उमा उमा ।।
ॐ गुरु नाथा जय गुरु नाथा,
श्री गुरु नाथा शिवानन्दा ।
ॐ गुरु नाथा जय गुरु नाथा,
श्रीगुरु नाथा शिवानन्दा ।।
Come here my dear कृष्ण कन्हाई।
मैंने तेरे लिए हृदय अन्दर Building बनाई ।। Come ||
तेरे लिए बहुत सारा खाना बनाई।
दूध दही Butter मिश्री सारा मंगाई ।।
Come Soon Come Soon कृष्ण कन्हाई।
मैंने तेरे लिए हृदय अन्दर Building बनाई ।। Come ||
तेरे लिए रोज रोज आँसु बहाई।
Come to my House, तुझे आरति दिखाऊँ ॥ Come ||
Why Late, so Late करते कन्हाई।
मैंने तेरे लिए हृदय अन्दर Building बनाई ।। Come ||
हे प्रभो आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए। हे प्रभो...
लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी, धर्म रक्षक, वीर व्रत धारी बनें । हे प्रभो...
प्रेम से हम गुरुजनों की नित्य ही सेवा करें।
सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें । हे प्रभो...
निन्दा किसी की हम किसी से भूल कर भी ना करें।
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें । हे प्रभो…
देवि सुरेश्वरि भगवति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥ १॥
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २॥
हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ ३॥
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम्।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ।॥ ४॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खण्डितगिरिवरमण्डितभंगे।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणी त्रिभुवनधन्ये ॥ ५॥
कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतित शोके।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवतिकृततरलापांगे ॥ ६॥
तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ।। ७॥
पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८॥
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ ९॥
अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ १० ॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ।। ११ ।
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२॥
येषां हृदये गंगाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः ।। १३॥
गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम्।
शंकरसेवकशंकररचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥ १४॥
।।इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीगंगास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
नामावली
गोविन्द जय जय गोपाल जय जय ।
राधा रमण हरि गोविन्द जय जय ।।
जय सिया राम जय जय सिया राम ।
जय हनुमान जय जय हनुमान ।।
राम लक्ष्मण जानकी।
जय बोलो हनुमान की।
श्री राम जय राम जय जय राम ।।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्याता, जो नर तुमको ध्याता,
मनवांछित फल पाता ।। ॐ जय...
चन्द्र-सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता,
मैया जल निर्मल आता,
शरण पड़े जो तेरी, शरण पड़े जो तेरी,
सो नर तर जाता ।। ॐ जय...
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता,
मैया सब जग को ज्ञाता,
कृपा-दृष्टि तुम्हारी, कृपा-दृष्टि तुम्हारी,
त्रिभुवन सुखदाता ।। ॐ जय...
एक ही बार जो तेरी, शरणागत आता,
मैया शरणागत आता,
यम की त्रास मिटा कर, यम की त्रास मिटा कर,
परम गती पाता ।। ॐ जय...
आरती मात तुम्हारी, जो कोई नर गाता,
मैया जो कोई नर गाता,
दास वही सहज में, भक्त वही सहज में।
मुक्ति को पाता ।। ॐ जय…
पुण्य सलिला गंगा के तट पर अवस्थित 'गुरुदेव कुटीर' प्रतिदिन सायं संकीर्तन की दिव्य लहरियों से आपूरित हो जाती है। पुरवासी, अतिथि, अभ्यागत, बाल-वृद्ध, नर-नारी सभी उपस्थित जन आत्म-विभोर हो उठते हैं। ऐसे प्रभावी दिव्य संकीर्तन का शुभारम्भ हुआ कैसे ? उत्तर आप भी जानिए- यह सब समन्वय योगीश्वर संकीर्तन-सम्राट् श्री सद्गुरुदेव स्वामी शिवानन्द जी महाराज की अनुपम संकल्प-शक्ति का ही प्रत्यक्ष स्वरूप है जो कि इस पुस्तक से आपको प्रत्यक्ष अनुभव हो जायेगा।