शरीरं सुरूपं तथा वा कलत्रं

यशश्चारु चित्रं धनं मेरुतुल्यम्

मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपने

ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् ।।

 

 

 

 

 

 

श्री समाधि मन्दिर

श्री गुरु-पादुका-पूजा प्रातःकालीन नित्यपाठ

 

 

 

 

 

 

प्रकाशक

डिवाइन लाइफ सोसायटी

पत्रालय : शिवानन्दनगर-२४९ १९२

जिला : टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड (हिमालय), भारत

www.sivanandaonline.org, www.dlshq.org

प्रथम संस्करण : १९७०

पंचम संस्करण : २०१६

(,००० प्रतियाँ)

 

 

 

 

 

 

© डिवाइन लाइफ ट्रस्ट सोसायटी

 

 

 

 

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' डिवाइन लाइफ सोसायटी, शिवानन्दनगर' के लिए

स्वामी पद्मनाभानन्द द्वारा प्रकाशित तथा उन्हीं के द्वारा

'योग-वेदान्त फारेस्ट एकाडेमी प्रेस, पत्रालय : शिवानन्दनगर,

जिला : टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड, पिन: २४९ १९२' में मुद्रित।

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श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती

 

श्री स्वामी शिवानन्द ने सितम्बर १८८७ को सन्त अप्पय दीक्षितार तथा अन्य अनेक सुप्रसिद्ध सन्तों और विद्वानों के प्रतिष्ठित कुल में जन्म लिया था। उनमें वेदान्त के अध्ययन तथा आदशों को समर्पित जीवन व्यतीत करने की एक जन्मजात प्रवृत्ति थी; साथ ही, उनमें सबकी सेवा करने की सहज ललक तथा समस्त मानव-जाति के प्रति ऐक्य का अन्तर्जात भाव भी था।

 

अपने सेवानुराग के कारण वह चिकित्सीय वृत्ति की ओर आकर्षित हुए। जहाँ उन्होंने अपनी सेवा की सर्वाधिक आवश्यकता समझी, वहाँ वह शीघ्र ही एक अप्रतिरोध्य आकर्षणवश पहुँच गये। मलय देश उनकी सेवा का क्षेत्र बना। इससे पूर्व वह एक स्वास्थ्य-पत्रिका का सम्पादन कर रहे थे तथा उन्होंने स्वास्थ्य समस्याओं से सम्बन्धित अनेकानेक लेख लिखे थे। उन्होंने यह अनुभव किया कि व्यक्तियों को यथार्थ ज्ञान की सर्वाधिक आवश्यकता थी। और, ऐसे ज्ञान के प्रचार को उन्होंने अपने मिशन के रूप में स्वीकार कर लिया।

 

यह एक ईश्वरीय विधान था तथा मानव जाति पर ईश्वरीय कृपा थी कि शरीर-मन के उस चिकित्सक ने मानव-आत्मापरक सेवा-आध्यात्मिक सेवा करने के लिए पात्रता अर्जित करने हेतु चिकित्सीय वृत्ति का त्याग करके वैराग्यमय जीवन अपना लिया। इस प्रकार का जीवन व्यतीत करने के उद्देश्य से वह सन् १९२४ में ऋषिकेश गये। वहाँ उन्होंने गहन तपश्चर्या की तथा वह एक महान् योगी, सन्त, ज्ञानी और जीवन्मुक्त महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हुए।

 

सन् १९३२ में स्वामी शिवानन्द जी ने शिवानन्द आश्रम के कार्यों का श्रीगणेश किया। सन् १९३६ में दिव्य जीवन संघ की स्थापना हुई। सन् १९४८ में योग-वेदान्त फारेस्ट एकाडेमी के कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये। इन सबका उद्देश्य था-आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करना तथा व्यक्तियों को योग और वेदान्त में प्रशिक्षण देना। सन् १९५० में स्वामी जी ने भारत तथा सीलोन की यात्रा की। सन् १९५३ में स्वामी जी ने 'विश्व धर्म संसद' का संयोजन किया। स्वामी जी ३०० से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। संसार-भर में उनके शिष्य हैं-जिनमें सभी राष्ट्रों के निवासी तथा सभी धर्मों और मों के अनुयायी सम्मिलित हैं। स्वामी जी की पुस्तकों का अध्ययन करना परम प्रज्ञामृत का पान करने के समान है। १४ जुलाई १९६३ को स्वामी जी महासमाधि में लीन हुए।

 

 

 

गुरु-पाद-पूजा और नित्य-पाठ

 

(पूजा की सामग्री-थाली, दूध, जल, पुष्प, हार, चन्दन, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, कपूर, फल, मिठाई, मेवा आदि पूजा-स्थान पर होना चाहिए।)

 

घण्टी बजाते हुए तीन बार का उच्चारण कर कुछ पुष्प हाथ में ले कर निम्नांकित मन्त्र का उच्चारण करें :

 

गं गणपतये नमः गुं गुरुभ्यो नमः ऐं सरस्वत्यै नमः श्री शरवणभवाय नमः श्री भागीरथ्यै नमः

 

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः

लम्बोदरश्च विकटो विघ्नराजो गणाधिपः

धूमकेतुर्गणाध्यक्षो फालचन्द्रो गजाननः

द्वादशैतानि नामानि यः पठेत् शृणुयादपि

सर्वकार्यसमारम्भे विघ्नस्तस्य जायते

 

निम्नांकित श्लोक के उच्चारण के समय पुष्पार्पण करना चाहिए।

 

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्

प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

विषय-सूची

 

गुरुस्तोत्रम्.................................................................................................................................... 6

पुरुषसूक्तम्................................................................................................................................... 7

नारायणसूक्तम्.............................................................................................................................. 8

शान्तिपाठ................................................................................................................................... 11

गुरुवन्दना................................................................................................................................... 13

श्री शिवानन्दाष्टोत्तरशतनामावलिः.................................................................................................. 14

आरती........................................................................................................................................ 22

मङ्गलाचरण............................................................................................................................... 23

श्री चिदानन्दाष्टोत्तरशतनामावलिः.................................................................................................. 24

प्रातःस्मरणम्.............................................................................................................................. 31

कीर्तन........................................................................................................................................ 32

श्री सद्गुरुपादुकास्तोत्रम्................................................................................................................ 34

शिवानन्दयोगीन्द्रस्तुतिः............................................................................................................... 37

दैनिक श्लोकः.............................................................................................................................. 39

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

गुरुस्तोत्रम्

 

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्ति

द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं त्तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं

भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ।।१ ।।

 

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।२ ।।

 

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।। ।।

 

ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्

मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ।।४ ।।

 

नमः शिवाय गुरवे सच्चिदानन्दमूर्तये

निष्प्रपञ्चाय शान्ताय निरालम्बाय तेजसे ।।५ ।।

 

घण्टी बजाते हुए निम्नांकित श्लोक का उच्चारण करें।

 

गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपश्रवस्तमम्

ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम् ।।

 

श्री महागणपतये नमः ।।

 

निम्नांकित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए पहले दूध से, फिर शुद्ध जल से गुरु-पादुकाओं का अभिषेक करें।

 

 

 

पुरुषसूक्तम्

 

सहस्रशीर्षा पुरुषः। सहस्राक्षः सहस्रपात् भूर्मि विश्वतो वृत्वा। अत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् पुरुष एवेदं सर्वम् यद्भूतं यच्च भव्यम्। उतामृतत्वस्येशानः यदन्नेनातिरोहति एतावानस्य महिमा। अतो ज्याया श्च पूरुषः पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः। पादोऽस्येहाऽऽभवात्पुनः ततो विष्वङ् व्यक्रामत्। साशनानशने अभि तस्माद्विराडजायत। विराजो अधि पूरुषः। जातो अत्यरिच्यत। पश्चाद्भूमिमथो पुरः यत्पुरुषेण हविषा। देवा यज्ञमतन्वत वसन्तो अस्यासीदाज्यम् ग्रीष्म इध्मश्शरद्धविः सप्तास्यासन्परिधयः। त्रिः सप्त समिधः कृताः। देवा यद्यज्ञं तन्वानाः अबध्नन्पुरुषं पशुम् तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्। पुरुषं साध्या ऋषयश्च ये। जातमग्रतः तेन देवा अयजन्त तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः। संभृतं पृषदाज्यम् पशू स्ता श्चक्रे वायव्यान् आरण्यान् ग्राम्याश्च ये तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दा सि जज्ञिरे तस्मात्। यजुस्तस्मादजायत तस्मादश्वा अजायन्त। ये के चोभयादतः। गावो जज्ञिरे तस्मात् तस्माज्जाता अजावयः यत्पुरुषं व्यदधुः। कतिधा व्यकल्पयन् मुखं किमस्य कौ बाहू कावूरू पादावुच्येते ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत्। बाहू राजन्यः कृतः। ऊरू तदस्य यद्वैश्यः। पद्भ्या शूद्रो अजायत। चन्द्रमा मनसो जातः चक्षोः सूर्यो अजायत मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत नाभ्या आसीदन्तरिक्षम् शीर्णो द्यौः समवर्तत पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्। तथा लोका अकल्पयन् वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् आदित्यवर्णं तमसस्तु पारे सर्वाणि रूपाणि विचित्य धीरः नामानि कृत्वाऽभिवदन् यदास्ते धाता पुरस्ताद्यमुदाजहार शक्रः प्रविद्वान्प्रदिशश्चतस्रः तमेवं विद्वानमृत इह भवति नान्यः पन्था अयनाय विद्यते। यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः। तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ते नाकं महिमानः सचन्ते यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ।।

 

अद्भ्यः संभूतः पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मणः समवर्तताधि तस्य त्वष्टा विदधद्रूपमेति तत्पुरुषस्य विश्वमाजानमग्रे वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् तमेवं विद्वानमृत इह भवति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय प्रजापतिश्चरति गर्भे अन्तः अजायमानो बहुधा विजायते

 

तस्य धीराः परिजानन्ति योनिम्। मरीचीनां पदमिच्छन्ति वेधसः यो देवेभ्य आतपति यो देवानां पुरोहितः पूर्वी यो देवेभ्यो जातः। नमो रुचाय ब्राह्मये रुचं ब्राह्म जनयन्तः। देवा अग्रे तदन्नुवन् यस्त्वैवं ब्राह्मणो विद्यात् तस्य देवा असन् वशे ह्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ अहो रात्रे पावें नक्षत्राणि रूपम् अश्विनौ व्यात्तम् इष्टं मनिषाण अमुं मनिषाण सर्वं मनिषाण ।।

 

 

नारायणसूक्तम्

 

सहस्रशीर्ष देवं विश्वाक्षं विश्वशंभुवम्

विश्वं नारायणं देवमक्षरं परमं पदम् ।।

विश्वतः परमान्नित्यं विश्वं नारायण ꣲ᳜  हरिम्

विश्वमेवेदं पुरुषस्तद्विश्वमुपजीवति ।। 

 

पतिं विश्वस्यात्मेश्वर ꣲ᳜ शाश्वत ꣲ᳜ शिवमच्युतम्

नारायणं महाज्ञेयं विश्वात्मानं परायणम् ।।

 

नारायणपरो ज्योतिरात्मा नारायणः परः

नारायणपरं ब्रह्म तत्त्वं नारायणः परः

नारायणपरो ध्याता ध्यानं नारायणः परः ।।

 

यच्च किञ्चिज्जगत्सर्वं दृश्यते श्रूयतेऽपि वा।

अन्तर्बहिश्च तत्सर्वं व्याप्य नारायणः स्थितः ।।

 

अनन्तमव्ययं कवि ꣲ᳜  समुद्रेऽन्तं विश्वशंभुवम्

पद्मकोशप्रतीकाश ꣲ᳜ हृदयं चाप्यधोमुखम् ।।

 

अधो निष्ट्या वितस्त्यान्ते नाभ्यामुपरि तिष्ठति

ज्वालमालाकुलं भाती विश्वस्यायतनं महत् ।।

 

सन्ततꣲ᳜  शिलाभिस्तु लम्बत्याकोशसन्निभम्

तस्यान्ते सुषिर ꣲ᳜ सूक्ष्मं तस्मिन् सर्वं प्रतिष्ठितम् ।।

 

तस्य मध्ये महानग्निर्विश्वार्चिर्विश्वतोमुखः

सोऽग्रभुग्विभजन्तिष्ठन्नाहारमजरः कविः ।।

 

 

तिर्यगूर्ध्वमधश्शायी रश्मयस्तस्य सन्तता

सन्तापयति स्वं देहमापादतलमस्तकः

तस्य मध्ये वह्निशिखा अणीयोर्ध्वा व्यवस्थितः ।।

 

नीलतोयद-मध्यस्था-द्विद्युल्लेखेव भास्वरा

नीवारशूकवत्तन्वी पीता भास्वत्यणूपमा ।।

 

 तस्याः शिखाया मध्ये परमात्मा व्यवस्थितः

ब्रह्म शिवः हरिः सेन्द्रः सोऽक्षरः परमः स्वराट् ।।

 

 

ऋत ꣲ᳜ सत्यं परं ब्रह्म पुरुषं कृष्णपिङ्गलम्

 ऊर्ध्वरेतं विरूपाक्षं विश्वरूपाय वै नमो नमः ।।

 

नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ।।

 

विष्णोर्नुकं वीर्याणि प्रवोचं यः पार्थिवानि विममे रजाꣲ᳜ सि यो अस्कभायदुत्तरꣲ᳜ सधस्तं विचक्रमाण-स्त्रेधोरुगायो विष्णो रराटमसि विष्णोः पृष्ठमसि विष्णोः श्ञप्त्रेस्थो विष्णोस्सूरसि विष्णोध्रुवमसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ।।

 

शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

नारायणसूक्त के पश्चात् तीन बार महामृत्युञ्जय-मन्त्र का उच्चारण करें।

 

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्

 

तत्पश्चात् निम्न मन्त्र का उच्चारण करें।

 

तच्छं योरावृणीमहे गातुं यज्ञाय गातुं यज्ञपतये दैवीः स्वस्तिरस्तु नः स्वस्तिर्मानुषेभ्यः ऊर्ध्वं जिगातु भेषजम् शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

इस मन्त्र के पश्चात्, अभिषेक के जल आदि को थाली से निकाल कर पादुकाओं को पोंछ लेना चाहिए। तत्पश्चात्, पादुकाओं पर चन्दन और कुमकुम लगाते हुए निम्नांकित मन्त्र का भक्तिभाव से उच्चारण कीजिए।

 

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।

 

इस श्लोक के बाद निम्नांकित वाक्य बोलना चाहिए।

 

गन्धान् धारयामि, गन्धस्योपरि कुंकुमं समर्पयामि

 

और अन्त में पुष्पहार पहनाइए।

 

तत्पश्चात् निम्नांकित शान्ति-मन्त्रों में से , अथवा पूरे १० मन्त्रों का उच्चारण करें।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

शान्तिपाठ

 

शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा शं इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि ऋतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु तद्वक्तारमवतु अवतु माम्। अवतु वक्तारम् ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

यश्छन्दसामृषभो विश्वरूपः छन्दोभ्योऽध्यमृतात्- सम्बभूव मेन्द्रो मेधया स्पृणोतु अमृतस्य देवधारणो भूयासम् शरीरं मे विचर्षणम्। जिह्वा मे मधुमत्तमा कर्णाभ्यां भूरि विश्रुवम् ब्रह्मणः कोशोऽसि मेधयापिहितः श्रुतं मे गोपाय ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

अहं वृक्षस्य रेरिव कीर्तिः पृष्ठं गिरेरिव ऊर्ध्वपवित्रो वाजिनीव स्वमृतमस्मि द्रविणं सवर्चसम् सुमेधा अमृतोऽक्षितः इति त्रिशंकोर्वेदानुवचनम् ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि सर्वाणि सर्वं ब्रह्मौपनिषदं माहं ब्रह्म निराकुर्यां मा मा ब्रह्म निराकरोदनिराकरणमस्त्वनिराकरणं मे अस्तु तदात्मनि निरते उपनिषत्सु धर्मास्ते मयि सन्तु ते मयि सन्तु ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता मनो मे वाचि प्रतिष्ठितम्। आविरावीर्म एधि। वेदस्य आणीस्थः श्रुतं मे मा प्रहासी- रनेनाधीतेनाहोरात्रान्संदधाम्यृतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु तद्वक्तारमवतु अवतु माम्। अवतु वक्तारम् अवतु वक्तारम् ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

भद्रं नो अपिवातय मनः ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः स्वस्ति इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः स्वस्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै तं देवमात्मबुद्धिप्रकाशं मुमुक्षुर्वै शरणमहं प्रपद्ये ।। शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

गुरुवन्दना

 

नमो ब्रह्मादिभ्यो ब्रह्मविद्यासम्प्रदाय -

कर्तृभ्यो वंशर्षिभ्यो महद्भ्यो

नमो गुरुभ्यः सर्वोपप्लवरहितः

प्रज्ञानघनः प्रत्यगर्भो ब्रह्मैवाहमस्मि ।।

 

नारायणं पद्मभवं वसिष्ठं

शक्तिं तत्पुत्रपराशरं

व्यासं शुकं गौडपदं महान्तं

गोविन्दयोगीन्द्रमथास्य शिष्यम् ।।

 

श्रीशंकराचार्यमथास्य पद्मपादं

हस्तामलकं शिष्यम्

तं तोटकं वार्तिककारमन्यान्-

अस्मद्गुरून् सन्ततमानतोऽस्मि ।।

 

श्रुतिस्मृतिपुराणानामालयं करुणालयम्

नमामि भगवत्पादं शंकरं लोकशंकरम् ।।

शंकर शंकराचार्यं केशवं बादरायणम्

सूत्रभाष्यकृतौ वन्दे भगवन्तौ पुनः पुनः ।।

 

 ईश्वरो गुरुरात्मेति मूर्तिभेदविभागिने

व्योमवद् व्याप्तदेहाय दक्षिणामूर्तये नमः ।।

 

उपर्युक्त श्लोकों के उच्चारण के पश्चात् पुष्प, बेल-पत्र, अक्षत इत्यादि को 'श्री शिवानन्दाष्टोत्तरशतनामावलिः' का एक-एक मन्त्र उच्चारण करते हुए गुरुपादुकाओं पर चढ़ाइए।

 

 

 

 

श्री शिवानन्दाष्टोत्तरशतनामावलिः

 

. श्री ओंकाररूपाय नमः

 

. श्री सद्गुरवे नमः

 

. श्री साक्षाच्छंकररूपधृते नमः

 

. श्री शिवानन्दाय नमः

 

. श्री शिवाकाराय नमः

 

. श्री शिवाशयनिरूपकाय नमः

 

. श्री हृषीकेशनिवासिने नमः

 

. श्री वैद्यशास्त्रविशारदाय नमः

 

. श्री समदर्शिने नमः

 

१०. श्री तपस्विने नमः

 

११. श्री प्रेमरूपाय नमः

 

१२. श्री महामुनये नमः

 

१३. श्री दिव्यजीवनसंघप्रतिष्ठात्रे नमः

 

१४. श्री प्रबोधकाय नमः

 

१५. श्री गीतानन्दस्वरूपिणे नमः

 

१६. श्री भक्तिगम्याय नमः

 

१७. श्री भयापहाय नमः

 

१८. श्री सर्वविदे नमः

 

१९. श्री सर्वगाय नमः

 

२०. श्री नेत्रे नमः

२१. श्री त्रयीमार्गप्रदर्शकाय नमः

 

२२. श्री वैराग्यज्ञाननिरताय नमः

 

२३. श्री सर्वलोकहितोत्सुकाय नमः

 

२४. श्री भवभयप्रशमनाय नमः

 

२५. श्री समाधिग्रन्थकल्पकाय नमः

 

२६. श्री गुणिने नमः

 

२७. श्री महात्मने नमः

 

२८. श्री धर्मात्मने नमः

 

२९. श्री स्थितप्रज्ञाय नमः

 

३०. श्री शुभोदयाय नमः

 

३१. श्री आनन्दसागराय नमः

 

३२. श्री साराय नमः

 

३३. श्री गङ्गातीराश्रमस्थिताय नमः

 

३४. श्री विष्णुदेवानन्ददत्तब्रह्मज्ञानप्रदीपकाय नमः

 

३५. श्री ब्रह्मसूत्रोपनिषदांग्लभाष्यप्रकल्पकाय नमः

 

३६. श्री विश्वानन्दचरणयुग्मसेवाजातसुबुद्धिमते नमः

 

३७. श्री मन्त्रमूर्तये नमः

 

३८. श्री जपपराय नमः

 

३९. श्री तन्त्रज्ञाय नमः

 

४०. श्री मानवते नमः

 

४१. श्री बलिने नमः

 

४२. श्री उमारमणपादयुग्मसततार्चनलालसाय नमः

 

४३. श्री परस्मै ज्योतिषे नमः

 

४४. श्री परस्मै धाम्ने नमः

 

४५. श्री परमाणवे नमः

 

४६. श्री परात्पराय नमः

 

४७. श्री शान्तमूर्तये नमः

 

४८. श्री दयासागराय नमः

 

४९. श्री मुमुक्षुहृदयस्थिताय नमः

 

५०. श्री आनन्दामृतसंदोग्ध्र नमः

 

५१. श्री अप्पय्यकुलदीपकाय नमः

 

५२. श्री साक्षिभूताय नमः

 

५३. श्री राजयोगिने नमः

 

५४. श्री सत्यानन्दस्वरूपिणे नमः

 

५५. श्री अज्ञानामयभेषजाय नमः

 

५६. श्री लोकोद्धारणपण्डिताय नमः

 

५७. श्री योगानन्दरसास्वादिने नमः

 

५८. श्री सदाचारसमुज्ज्वलाय नमः

 

५९. श्री आत्मारामाय नमः

 

६०. श्री गुरवे नमः

 

६१. श्री सच्चिदानन्दविग्रहाय नमः

 

६२. श्री जीवन्मुक्ताय नमः

 

६३. श्री चिन्मयात्मने नमः

 

६४. श्री निस्त्रैगुण्याय नमः

 

६५. श्री यतीश्वराय नमः

 

६६. श्री अद्वैतसारप्रकटवेदवेदान्तत्तत्त्वगाय नमः

 

६७. श्री चिदानन्दजनाह्लादनृत्यगीतप्रवर्तकाय नमः

 

६८. श्री नवीनजनसंत्रात्रे नमः

 

६९. श्री ब्रह्ममार्गप्रदर्शकाय नमः

 

७०. श्री प्राणायामपरायणाय नमः

 

७१. श्री नित्यवैराग्यसमुपाश्रिताय नमः

 

७२. श्री जितमायाय नमः

 

७३. श्री ध्यानमग्नाय नमः

 

७४. श्री क्षेत्रज्ञाय नमः

 

७५. श्री ज्ञानभास्कराय नमः

 

७६. श्री महादेवादिदेवाय नमः

 

७७. श्री कलिकल्मषनाशनाय नमः

 

७८. श्री तुषारशैलयोगिने नमः

 

७९. श्री कोटिसूर्यसमप्रभाय नमः

 

८०. श्री मुनिवर्याय नमः

 

८१. श्री सत्ययोनये नमः

 

८२. श्री परमपुरुषाय नमः

 

८३. श्री प्रतापवते नमः

 

८४. श्री नामसंकीर्तनोत्कर्षप्रशंसिने नमः

 

८५. श्री महाद्युतये नमः

 

८६. श्री कैलासयात्रासंप्राप्तबहुसंतुष्टचेतसे नमः

 

८७. श्री चतुस्साधनसम्पन्नाय नमः

 

८८. श्री धर्मस्थापनतत्पराय नमः

 

८९. श्री शिवमूर्तये नमः

 

९०. श्री शिवपराय नमः

 

९१. श्री शिष्टेष्टाय नमः

 

९२. श्री शिवेक्षणाय नमः

 

९३. श्री चतुरन्तमेदिनीव्याप्तसुविशालयशोदयाय नमः

 

९४. श्री सत्यसंपूर्णविज्ञानसुतत्त्वैकसुलक्षणाय नमः

 

९५. श्री सर्वप्राणिषु संजातभ्रातृभावाय नमः

 

९६. श्री सुवर्चलाय नमः

 

९७. श्री प्रणवाय नमः

 

९८. श्री सर्वतत्त्वज्ञाय नमः

 

९९. श्री सुज्ञानाम्बुधिचन्द्रमसे नमः

 

१००. श्री ज्ञानगङ्गास्रोतस्नानपूतपापाय नमः

 

१०१. श्री सुखप्रदाय नमः

 

१०२. श्री विश्वनाथकृपापात्राय नमः

 

१०३. श्री शिष्यहृत्तापतस्कराय नमः

 

१०४. श्री कल्याणगुणसंपूर्णाय नमः

 

१०५. श्री सदाशिवपरायणाय नमः

 

१०६. श्री कल्पनारहिताय नमः

 

१०७. श्री वीर्याय नमः

 

१०८. श्री भगवद्गानलोलुपाय नमः

 

श्री सद्गुरुशिवानन्दस्वामिने नमः

 

 

 

१०८ मन्त्रों का पाठ, अर्चना (मन्त्रोच्चारण) के पश्चात् धूप दिखा कर इस मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए।

 

वनस्पत्युद्भवैर्दिव्यैः नानागन्धसमन्वितैः

आत्रेयधूपदीपानां धूपोयं प्रतिगृह्यताम् ।।

 

तत्पश्चात् यह मन्त्र बोलते हुए दीप दिखाना चाहिए।

 

अन्तज्योतिर्बहिज्योतिः प्रत्यक्ज्योतिः परात्परः

ज्योतिज्योतिः स्वयंज्योतिरात्मज्योतिः शिवोस्म्यहम् ।।

 

आत्मज्योतिर्मनोज्योतिज्योतिश्चक्षुस्स पश्यति

बाह्याभ्यन्तरज्योतिः तज्ज्योतिः शिवमुच्यते ।।

 

प्रसाद आदि को गुरुपादुकाओं के सम्मुख रख कर मन्त्रोच्चारण के साथ शुद्ध जल से सम्प्रदान कर भोग लगाइए

 

भूर्भुवस्वः तत् सवितुर्वरेण्यम्

भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

 

देव सवितः प्रसुव सत्यं त्वर्तेन परिषिंचामि अमृतमसि, अमृतोपस्तरणमसि प्राणाय स्वाहा अपानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा उदानाय स्वाहा समानाय स्वाहा ब्रह्मणे स्वाहा परब्रह्म परमात्मने नमः

 

सद्गुरुशिवानन्दस्वामिने नमः सर्वं अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि ।।

 

तत्पश्चात् मन्त्रोच्चारण करते हुए कपूर द्वारा आरती कीजिए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

आरती

 

राजाधिराजाय प्रसह्यसाहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।।

 

इसके पश्चात् पुष्प भेंट करके प्रणाम करना चाहिए। श्रद्धा से जो भेंट आदि चढ़ानी हो, वह इसी समय चढ़ानी चाहिए।

 

कर्मणा प्रजया धनेन त्यागेनैके अमृतत्वमानशुः

परेण नाकं निहितं गुहायां विभ्राजते यद्यतयो विशन्ति ।।

 

वेदान्तविज्ञानसुनिश्चितार्थाः संन्यासयोगाद्यतयः शुद्धसत्त्वाः

ते ब्रह्मलोकेषु परान्तकाले परामृताः परिमुच्यन्ति सर्वे

 

दहं विपापं परमेश्मभूतं यत्पुण्डरीकं पुरमध्यसंस्थम्

तत्रापि दहं गगनं विशोकस्तस्मिन्यदन्तस्तदुपासितव्यम् ।।

 

यो वेदादौ स्वरः प्रोक्तो वेदान्ते प्रतिष्ठितः

तस्य प्रकृतिलीनस्य यः परः महेश्वरः ।।

 

नाना सुगन्धपुष्पाणि यथा कालोद्भवानि च।

पुष्पाञ्जलिं मया दत्तां गृहाण परमेश्वर ।।

 

सर्वाभ्यो देवताभ्यो नमः श्री सद्गुरुशिवानन्दपरब्रह्मणे नमः पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।।

 

 

 

 

 

 

 

 

मङ्गलाचरण

 

स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां न्याय्येन मार्गेण महीं महीशाः। गोब्राह्मणेभ्यः शुभमस्तु नित्यं लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु ।। काले वर्षतु पर्जन्यः पृथिवी सस्यशालिनी देशोऽयं क्षोभरहितो ब्राह्मणाः सन्तु निर्भयाः ।। अशुभानि निराचष्टे तनोति शुभसन्ततिम् स्मृतिमात्रेण यत्पुंसां ब्रह्म तन्मङ्गलं परम् ।। अतिकल्याणरूपत्वान्नित्यकल्याणसंश्रयात्। स्मर्तृणां वरदत्वाच्च ब्रह्म तन्मङ्गलं विदुः ।। ओंकारश्चाथशब्दश्च द्वावेतौ ब्रह्मणः पुरा। कण्ठं भित्वा विनिर्यातौ तस्मान्माङ्गलिकावुभौ ।। अथ अथ अथ मङ्गलं अस्मद्गुरूणाम्। मङ्गलं मे अस्तु सर्वेषां मङ्गलं भवतु ।।

 

सर्वेषां स्वस्ति भवतु सर्वेषां शान्तिर्भवतु

सर्वेषां पूर्णं भवतु सर्वेषां मङ्गलं भवतु ।।

 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ।।

 

असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मा अमृतं गमय ।।

 

पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।

शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

 

परिक्रमा-ईश्वर को स्मरण करते हुए परिक्रमा करनी चाहिए।

 

 

चरणामृत-निम्नांकित श्लोक उच्चारण करते हुए चरणामृत बड़ी श्रद्धा से पान करना चाहिए :

 

अज्ञानमूलहरणं जन्मकर्मनिवारणम्

ज्ञानवैराग्यसिद्धयर्थं गुरुपादोदकं पिबेत् ।।

 

तत्पश्चात्, अन्त में प्रसाद वितरण करना चाहिए।

श्री चिदानन्दाष्टोत्तरशतनामावलिः

 

. श्री अनन्तगुणविभूषिताय नमः

 

. श्री अज्ञानहरणाय नमः

 

. श्री अवर्ण्यगुणोज्ज्वलाय नमः

 

. श्री अतीन्द्रियाय नमः

 

. श्री अक्षयप्रतिभाय नमः

 

. श्री आत्मानन्दाय नमः

 

. श्री आश्रितवत्सलाय नमः

 

. श्री आनन्दनिमग्नचित्ताय नमः

 

. श्री उदारकीर्तये नमः

 

१०. श्री करुणावासाय नमः

 

११. श्री करुणासागराय नमः

 

१२. श्री कल्याणप्रकृताय नमः

 

१३. श्री कुष्ठरोगीतापविनाशनाय नमः

 

१४. श्री कृपापियूषजलाय नमः

 

१५. श्री गुरुपादाब्जविहारिणे नमः

 

१६. श्री गुणाकाराय नमः

 

१७. श्री जितक्रोधाय नमः

 

१८. श्रीतत्त्वस्वरूपाय नमः

१९. श्री दीनत्राणतत्पराय नमः

 

२०. श्री दिव्यमूर्तये नमः

 

२१. श्री दयावारिधये नमः

 

२२. श्री धीरोदाताय नमः

 

२३. श्री निर्लेपाय नमः

 

२४. श्री नित्यनिर्मलाय नमः

 

२५. श्री निरञ्जनाय नमः

 

२६. श्री नीतिमते नमः

 

२७. श्री नियतकल्याणाय नमः

 

२८. श्री निर्विकाराय नमः

 

२९. श्री प्रणवस्वरूपाय नमः

 

३०. श्री परमसात्त्विकाय नमः

 

३१. श्री परात्पराय नमः

 

३२. श्री पुण्यवर्धनाय नमः

 

३३. श्री पुण्यपुरुषाय नमः

 

३४. श्री पावनस्वरूपाय नमः

 

३५. श्री पुरुषोत्तमाय नमः

 

३६. श्री परमज्योतिषे नमः

 

३७. श्री प्रियंवदाय नमः

 

३८. श्री प्रीतिवर्धनाय नमः

 

३९. श्री परमपूज्याय नमः

 

४०. श्री ब्रह्मण्याय नमः

 

४१. श्री भव्याय नमः

 

४२. श्री भवबन्धनविमोचनाय नमः

 

४३. श्री भयापहाय नमः

 

४४. श्री भक्तशोकविनाशनाय नमः

 

४५. श्री भवतारणकारणाय नमः

 

४६. श्री मोक्षदाय नमः

 

४७. श्री मृदुभाषणाय नमः

 

४८. श्री महानिधये नमः

 

४९. श्री मिहिराधिककान्तिमते नमः

 

५०. श्री महायोगिने नमः

 

५१. श्री मान्याय नमः

 

५२. श्री महामतये नमः

 

५३. श्री महाद्युतये नमः

 

५४. श्री यतीन्द्राय नमः

 

५५. श्री यज्ञस्वरूपिणे नमः

 

५६. श्री योगीश्वराय नमः

 

५७. श्री वाग्मिने नमः

 

५८. श्री वैद्यवरिष्ठाय नमः

 

५९. श्री वीतरागाय नमः

 

६०. श्री विनयात्मने नमः

 

६१. श्री वाचस्पतये नमः

 

६२. श्री वरप्रदाय नमः

 

६३. श्री वशीकृताखिलजगते नमः

 

६४. श्री विद्याराशये नमः

 

६५. श्री वैराग्यविशुद्धचित्ताय नमः

 

६६. श्री शान्तस्वरूपिणे नमः

 

६७. श्री शिवानन्दवात्सल्यभाजनाय नमः

 

६८. श्री शिवानन्दस्वरूपिणे नमः

 

६९. श्री शिष्टपूजिताय नमः

 

७०. श्री शिवाकाराय नमः

 

७१. श्री शरणागतवत्सलाय नमः

 

७२. श्री सर्वगुणोपेताय नमः

 

७३. श्री सर्वमङ्गलकत्रे नमः

 

७४. श्री सर्वकामदाय नमः

 

७५. श्री सर्वदुःखशमनाय नमः

 

७६. श्री स्मितभाषिणे नमः

 

७७. श्री सुमनसे नमः

 

७८. श्री सम्पूर्णकामाय नमः

 

७९. श्री सुशीलाय नमः

 

८०. श्री सर्वदेहिशरण्याय नमःভরিি

 

८१. श्री सर्वात्मने नमः

 

८२. श्री सौम्याय नमः

 

 

८३. श्री सर्व प्राणिसुहृदे नमः

 

८४. श्री सर्वभूतानुकम्पिने नमः

 

८५. श्री संशृताभीष्टदायकाय नमः

 

८६. श्री सनातनाय नमः

 

८७. श्री सत्यस्वरूपाय नमः

 

८८. श्री सर्वजिते नमः

 

८९. श्री सर्वोत्तमाय नमः

 

९०. श्री समस्तजनपूजिताय नमः

 

९१. श्री सद्गुरुचरणरतये नमः

 

९२. श्री सत्यकीर्तये नमः

 

९३. श्री संन्यासिवर्याय नमः

 

९४. श्री स्वयंतेजसे नमः

 

९५. श्री सुदीप्तिमते नमः

 

९६. श्री सर्वोपाधिविनिर्मुक्ताय नमः

 

९७. श्री सच्चिदानन्दविग्रहाय नमः

 

९८. श्री संसाररोगभिषजे नमः

 

९९. श्री सत्यव्रताय नमः

 

१००. श्री सुकीर्तये नमः

 

१०१. श्री सर्ववेदविदे नमः

 

१०२. श्री सदाचारशीलाय नमः

१०३. श्री सर्वज्ञाय नमः

 

१०४. श्री हंसाय नमः

 

१०५. श्री अभिवन्द्याय नमः

 

१०६. श्री परमेष्ठिने नमः

 

१०७. श्री शिवानन्दहृदयकमलभृङ्गाय नमः

 

१०८. श्री सद्गुरुचिदानन्दस्वामिने नमः

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रातःस्मरणम्

 

प्रातःस्मरामि हृदि संस्फुरदात्मतत्त्वं

सच्चित्सुखं परमहंसगतिं तुरीयम्

यत्स्वप्नजागरसुषुप्तमवैति नित्यं

तद्ब्रह्म निष्कलमहं भूतसंघः ।।१ ।।

 

प्रातर्भजामि मनसा वचसामगम्यं

वाचो विभान्ति निखिला यदनुग्रहेण

यन्नेतिनेतिवचनैर्निगमा अवोचु-

स्तं देवदेवमजमच्युतमाहुरग्रयम् ।।२ ।।

 

प्रातर्नमामि तमसः परमर्कवर्णं

पूर्णं सनातनपदं पुरुषोत्तमाख्यम्

यस्मिन्निदं जगदशेषमशेषमूर्तौ

रज्ज्वां भुजङ्गम इव प्रतिभासितं वै ।। ।।

 

श्लोकत्रयमिदं पुण्यं लोकत्रयविभूषणं

प्रातःकाले पठेद्यस्तु गच्छेत्परमं पदम् ।।

 

इति श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ परब्रह्मण

प्रातःस्मरणस्तोत्रं सम्पूर्णम्

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

कीर्तन

 

जय गणेश जय गणेश जय गणेश पाहि माम्।

श्री गणेश श्री गणेश श्री गणेश रक्ष माम् ।।

 

शरवणभव शरवणभव शरवणभव पाहि माम्।

कार्तिकेय कार्तिकेय कार्तिकेय रक्ष माम् ।।

 

जय सरस्वति जय सरस्वति जय सरस्वति पाहि माम्

 सरस्वति श्री सरस्वति श्री सरस्वति रक्ष माम् ।।

 

जय गुरु शिव गुरु हरि गुरु राम

जगद्गुरु परं गुरु सद्गुरु श्याम ।।

 

आदिगुरु अद्वैतगुरु अनन्तगुरु

चिद्गुरु चिद्घन गुरु चिन्मय गुरु ।।

 

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।

 

नमः शिवायः नमः शिवाय नमः शिवाय ॐ।

नमः शिवाय नमः शिवाय नमः शिवाय ।।

 

नमो नारायणाय नमो नारायणाय

ॐॐ नमो नारायणाय नमो नारायणाय ।।

 

नमो भगवते वासुदेवाय

नमो भगवते रामचन्द्राय ।।

 

आञ्जनेय आञ्जनेय आञ्जनेय पाहि माम्

हनुमन्त हनुमन्त हनुमन्त रक्ष माम् ।।

 

दत्तात्रेय दत्तात्रेय दत्तात्रेय पाहि माम्।

दत्तगुरु दत्तगुरु दत्तगुरु रक्ष माम् ।।

 

शंकराचार्य शंकराचार्य शंकराचार्य पाहि माम्

इच्छाशक्ति क्रियाशक्ति ज्ञानशक्ति रक्ष माम् ।।

 

राजराजेश्वरि राजराजेश्वरि राजराजेश्वरि पाहि माम्।

त्रिपुरसुन्दरि त्रिपुरसुन्दरि त्रिपुरसुन्दरि रक्ष माम् ।।

 

भगवत्पाद भगवत्पाद भगवत्पाद रक्ष माम् ।।

सद्गुरुदेव सद्गुरुदेव सद्गुरुदेव पाहि माम्

 

शिवानन्द शिवानन्द शिवानन्द रक्ष माम् ।।

गङ्गारानी गङ्गारानी गङ्गारानी पाहि माम्।

 

भागीरथि भागीरथि भागीरथि रक्ष माम् ।।

शक्ति शक्ति शक्ति पाहि माम्।

 

ब्रह्मशक्ति विष्णुशक्ति शिवशक्ति रक्ष माम् ।।

आदिशक्ति महाशक्ति पराशक्ति पाहि माम्

 

तत्सत् तत्सत् तत्सत् शान्ति शान्ति शान्ति ||

 

यद्यपि निम्नांकित स्तोत्र मुख्य गुरु-पाद-पूजा से सम्बद्ध नहीं है, फिर भी इनका उच्चारण मङ्गलदायक है।

 

 

 

 

 

 

 

श्री सद्गुरुपादुकास्तोत्रम्

 

श्रीसमर्चितमव्ययं परमप्रकाशमगोचरं,

भेदवर्जितमप्रमेयमनन्तमाद्यमकल्मषम्

निर्मलं निगमान्तमद्वयमप्रतर्व्यमबोधकं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।१ ।।

 

नादबिन्दुकलात्मकं दशनादभेदविनोदकं,

मन्त्रराजविराजितं निजमण्डलान्तरभासितम्

पञ्चवर्णमखण्डमद्द्भुतमादिकारणमच्युतं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।२ ।।

 

व्योमवद्बहिरन्तरस्थितमक्षरं निखिलात्मकं,

केवलं परिशुद्धमेकमजन्म हि प्रतिरूपकम्

ब्रह्मतत्त्वविनिश्चयं निरतानुमोक्षसुबोधकं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।३ ।।

 

बुद्धिरूपमबुद्धिकं त्रितयैककूटनिवासिनं,

निश्चलं निखिलप्रकाशकनिर्मलं निजमूलकम्

पश्चिमान्तरखेलनं निजशुद्धसंयमिगोचरं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।४ ।।

 

हृद्गतं विमलं मनोज्ञविभासितं परमाणुकं,

नीलमध्यसुनीलसन्निभमादिबिन्दु निजांशुकम्

सूक्ष्मकर्णिकमध्यमस्थितविद्युदादिविभासितं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।५ ।।

 

 

 

 

 

पञ्च पञ्च हृषीकदेहमनश्चतुष्कपरस्परं,

पञ्चभौतिककामषट्कसमीरशब्दमुखेतरम्

पञ्चकोशगुणत्रयादिसमस्तधर्मविलक्षणं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।६ ।।

 

पञ्चमुद्रसुलक्ष्यदर्शनभावमात्रनिरूपणं,

विद्युदादिधगद्धगित्वरुचिर्विनोदविवर्धनम्

चिन्मुखान्तरवर्तिनं विलसद्विलासममायकं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।७ ।।

 

पञ्चवर्णरुचिं विचित्रविशुद्धतत्त्व विचारणं,

चन्द्रसूर्यचिदग्निमण्डलमण्डितं घनचिन्तयम्

चित्कलापरिपूर्णमन्तरचित्समाधिनिरीक्षणं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।८ ।।

 

हंसचारमखण्डनादमनेकवर्णमरूपकं,

शब्दजालमयं चराचरजन्तुदेहनिवासिनम्

चक्रराजमनाहतोद्भवमेकवर्णमतः परं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।९ ।।

 

जन्मकर्मविलीनकारणहेतुभूतमभूतकं,

जन्मकर्मनिवारकं रुचिपूरकं भवतारकम्

नामरूपविवर्जितं निजनायकं शुभदायकं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।१० ।।

 

तप्तकाञ्चनदीप्यमानमहाणुमात्रमरूपकं,

चन्द्रिकान्तरतारकैरवमुज्ज्वलं परमास्पदम्

नीलनीरदमध्यमस्थितविद्युदादिविभासितं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।११ ।।

 

 

स्थूलसूक्ष्मसकारणान्तरखेलनं परिपालनं,

विश्वतैजस प्राज्ञचेतसमन्तरात्मनिजंशुकम्

सर्वकारणमीश्वरं निटिलान्तरालविदारकं,

प्रातरेव हि मानसे गुरुपादुकाद्वयमाश्रये ।।१२ ।।

 

इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीसद्गुरुपादुकास्तवं सम्पूर्णम्

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

शिवानन्दयोगीन्द्रस्तुतिः

 

सदा पावनं जाह्नवीतीरवासं

सदा स्वस्वरूपानुसंधानुशीलम्

सदा सुप्रसन्नं दयालुं भजेऽहं

शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ।।१ ।।

 

हरेर्दिव्यनाम स्वयं कीर्तयन्तं

हरेः पादभक्ति सदा बोधयन्तम्

हरेः पादपद्मस्थभृङ्गं भजेऽहं

शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ।।२ ।।

 

जराव्याधिदौर्बल्यसंपीडितानां

सदाऽऽरोग्यदं यस्य कारुण्यनेत्रम्

भजेऽहं समस्तार्तसेवाधुरीणं

शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ।।३ ।।

 

सदा निर्विकल्पे स्थिरं यस्य चित्तं

सदा कुम्भितः प्राणवायुर्निकामम्।

सदा योगनिष्ठं निरीहं भजेऽहं

शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ।।४।।

 

महामुद्रबन्धादियोगांगदक्षं

सुषुम्नान्तरे चित्स्वरूपे निमग्नम्

महायोगनिद्राविलीनं भजेऽहं

शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ।।५।।

 

 

 

 

 

दयासागरं सर्वकल्याणराशिं

सदा सच्चिदानन्दरूपे निलीनम्

सदाचारशीलं भजेऽहं भजेऽहं

शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ।। ।।

 

भवाम्भोधिनौकानिभं यस्य नेत्रं

महामोहघोरान्धकारं हरन्तम्

भजेऽहं सदा तं महान्तं नितान्तं

शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ।। ।।

 

भजेऽहं जगत्कारणं सत्स्वरूपं

भजेऽहं जगद्व्यापकं चित्स्वरूपम्

भजेऽहं निजानन्दमानन्दरूपं

शिवानन्दयोगीन्द्रमानन्दमूर्तिम् ।।८ ।।

 

पठेद्यः सदा स्तोत्रमेतत् प्रभाते

शिवानन्दयोगीन्द्रनाम्नि प्रणीतम्

भवेत्तस्यसंसारदुःखं विनष्टं

तथा मोक्षसाम्राज्यकैवल्यलाभः ।।९ ।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

दैनिक श्लोकः

 

वन्दे शम्भुमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं,

वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम्

वन्दे सूर्यशशांकवह्निनयनं वन्दे मुकुन्द प्रियं,

वन्दे भक्तजनाश्रयं वरदं वन्दे शिवं शंकरम् ।।

 

षडाननं कुंकुम रक्तवर्णं महामतिं दिव्य मयूर वाहनम्

रुद्रस्य सूनुं सुरसैन्यनाथं गुहं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ।।

 

जयतु जयतु देवो देवकीनन्दनोऽयं

जयतु जयतु कृष्णो वृष्णिवंशप्रदीपः

जयतु जयतु मेघश्यामलः कोमलाङ्गो

जयतु जयतु पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः ।।

 

आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः

मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ।।

 

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।

 

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।

 

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ।।

 

 

 

 

 

ध्येयः सदा सवितृमण्डलमध्यवर्ती,

नारायणः सरसिजासनसन्निविष्टः

केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी,

हारी हिरण्यमयवपुधृतशंखचक्रः ।।

 

नमो नारायणाय !

 

जय शिवानन्द !                                                                                                 जय चिदानन्द !